आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने चंदबरदाई को दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान का सामंत और राजकवि माना है। प्रचलित जनश्रुतियों के अनुसार, चंदबरदाई और पृथ्वीराज चौहान का जन्म तथा मृत्यु लगभग एक ही समय में हुई मानी जाती है। उनकी प्रसिद्धि का मुख्य आधार ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक वीरगाथा काव्य है। इस ग्रंथ की भाषा को कई भाषा-शास्त्रियों ने ‘पिंगल’ कहा है, जो राजस्थान में प्रचलित ब्रजभाषा का एक रूप मानी जाती है। रासो के विभिन्न संस्करण उपलब्ध हैं, जिनमें लगभग 69 सर्गों (या समय) का वर्णन मिलता है। इस काव्य के नायक पृथ्वीराज चौहान हैं। इस लेख में छात्रों के लिए चंदबरदाई का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | चंदबरदाई |
| जन्म | 1168 ई. |
| जन्म स्थान | लाहौर, पाकिस्तान |
| पेशा | कवि एवं सामंत |
| आश्रयदाता | पृथ्वीराज चौहान |
| विधा | काव्य |
| भाषा | पिंगल व ब्रजभाषा |
| प्रमुख रचना | पृथ्वीराज रासो |
| मृत्यु | 1200 ई. |
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जन्मस्थान को लेकर प्रचलित मान्यता
महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री के अनुसार, चंदबरदाई का जन्म लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। वहीं आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उनका जन्म 1168 ई. माना है। चंदबरदाई के संबंध में यह जनश्रुति प्रसिद्ध है कि उनका जन्म और मृत्यु दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के साथ ही हुई थी। चंदबरदाई, पृथ्वीराज चौहान के सखा, राजकवि और सहयोगी थे।
पृथ्वीराज चौहान का शासनकाल 1165 से 1192 ई. तक माना जाता है। इस अवधि में उन्होंने वर्तमान राजस्थान से लेकर दिल्ली तक शासन किया था। इसी कालखंड में चंदबरदाई भी रचनात्मक रूप से सक्रिय थे और उन्होंने अपने वीरगाथा काव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ की रचना की थी।
हिंदी के प्रथम महाकवि
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में लिखा है कि चंदबरदाई हिंदी के प्रथम महाकवि माने जाते हैं। वहीं, उनके द्वारा रचित ‘पृथ्वीराज रासो’ को हिंदी का प्रथम महाकाव्य माना जाता है। पृथ्वीराज रासो लगभग ढाई हजार पृष्ठों का एक वृहद ग्रंथ है, जिसमें 69 सर्ग (या समय) हैं। इस महाकाव्य में चंदबरदाई ने संस्कृत, प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, अपभ्रंश और पैशाची इन छह भाषाओं का प्रयोग किया है।
उन्होंने इस महाकाव्य में पृथ्वीराज चौहान के वीर चरित्र का वर्णन किया है। इस काव्य में दो प्रमुख रसों की प्रधानता देखी जाती है- वीर रस, जो युद्धों के वर्णन में है और शृंगार रस, जो पृथ्वीराज चौहान के विवाह और विलासपूर्ण जीवन के प्रसंगों में प्रकट होता है।
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चंदबरदाई की प्रमुख रचनाएं
चंदबरदाई का महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ हिंदी साहित्य की एक अनुपम रचना है, जिसे कालजयी महाकाव्य का दर्जा प्राप्त है। इस महाकाव्य में लगभग 10,000 से अधिक छंद संकलित हैं। क्या आप जानते हैं कि चंदबरदाई केवल एक कवि ही नहीं, बल्कि एक कुशल योद्धा भी थे।
वे पृथ्वीराज चौहान के लगभग सभी युद्धों में उनके साथ उपस्थित रहे। अंतिम समय में जब पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद ग़ौरी ने बंदी बनाकर गजनी ले गया था, तब चंदबरदाई भी उनके साथ गए थे। कहा जाता है कि बाद में उन्होंने अपने पुत्र जल्हण को पृथ्वीराज रासो को पूर्ण रूप देने का कार्य सौंपा था।
चंदबरदाई की भाषा शैली
चंदबरदाई के महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ की भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो राजस्थान में ब्रजभाषा का पर्याय मानी जाती है। प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने भी रासो की भाषा को पिंगल अर्थात पुरानी ब्रजभाषा माना है। इस महाकाव्य में चंदबरदाई ने छह भाषाओं का प्रयोग किया है।
FAQs
महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री के अनुसार चंदबरदाई का जन्म लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था।
चंदबरदाई के पुत्र का नाम जल्हण था।
चंदबरदाई, दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि थे।
चंदबरदाई ने ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक ग्रंथ की रचना की थी।
आशा है कि आपको महाकवि चंदबरदाई का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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