Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay : आधुनिक हिंदी साहित्य में शिवमंगल सिंह सुमन एक बहुचर्चित नाम है। वे मुख्यतः एक प्रसिद्ध कवि और शिक्षाविद् थे। एक कवि-लेखक होने के साथ ही वह ‘विक्रम विश्वविद्यालय’, उज्जैन के कुलपति, ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’, लखनऊ के उपाध्यक्ष और ‘भारतीय विश्वविद्यालय संघ’, नई दिल्ली के अध्यक्ष के रूप में अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। देशप्रेम, स्वतंत्रता, अन्याय के प्रति विद्रोह और निराशा के प्रति आक्रामकता उनकी कविताओं के मुख्य विषय रहे हैं।
भारत सरकार ने शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए शिवमंगल सिंह सुमन को पहले वर्ष 1974 में ‘पद्म श्री’ और वर्ष 1999 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। इसके साथ ही उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और ‘भारत भारती पुरस्कार’ से भी पुरस्कृत किया जा चुका हैं। बता दें कि उनकी कुछ रचनाओं को बीए और एमए के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं।
इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब प्रसिद्ध कवि और शिक्षाविद् शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय (Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | शिवमंगल सिंह सुमन (Shivmangal Singh Suman) |
जन्म | 5 अगस्त, 1915 |
जन्म स्थान | उन्नाव जिला, उत्तर प्रदेश |
शिक्षा | एम.ए, पीएच.डी. और डी.लिट्. |
पेशा | कवि और लेखक |
साहित्य काल | आधुनिक काल (छायावाद से संबद्ध) |
विधाएँ | कविता, आलोचना, नाटक |
भाषा | हिंदी |
पुरस्कार एवं सम्मान | ‘पद्मश्री’, ‘पद्मभूषण’, ‘देव पुरस्कार’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, ‘भारत भारती पुरस्कार’ व ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ आदि। |
निधन | 27 नवंबर, 2002 उज्जैन, मध्य प्रदेश |
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उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था जन्म
प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि शिवमंगल सिंह सुमन का जन्म 5 अगस्त, 1915 को उतर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था। उनके प्रारंभिक जीवन और माता-पिता के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। बताया जाता है कि उन्होंने रीवा, ग्वालियर आदि स्थानों पर रहकर अपनी आरंभिक शिक्षा प्राप्त की थी। इसके बाद ‘बनारस हिंदू विश्वविद्यालय’ से एमए और पीएचडी करने के बाद डी.लिट् की उपाधि हासिल की। माना जाता है कि उच्च शिक्षा के दौरान ही उनका साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण हो गया था।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
शिवमंगल सिंह सुमन का कार्यक्षेत्र अधिकांशत: शिक्षा जगत से संबद्ध रहा। वे अपने संपूर्ण जीवनकाल में विभिन्न शिक्षण संस्थानों से जुड़े रहे और अपनी सेवाएँ दी। वर्ष 1968 से 1978 के दौरान वह ‘विक्रम विश्वविद्यालय’, उज्जैन के कुलपति रहे। फिर उन्होंने ‘उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान’, लखनऊ के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। इसके बाद वह 1956 से 1961 के दौरान भारतीय दूतावास, काठमांडू, नेपाल और वर्ष 1977 से वर्ष 1978 के बीच ‘भारतीय विश्वविद्यालय संघ’, नई दिल्ली के अध्यक्ष रहे। फिर कुछ समय तक वह ‘कालिदास अकादमी’, उज्जैन के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे।
शिवमंगल सिंह सुमन की साहित्यिक रचनाएँ – Shivmangal Singh Suman Ki Rachnaye
शिवमंगल सिंह सुमन ने हिंदी साहित्य के कई विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन किया हैं। बता दें कि उनका पहला काव्य-संग्रह ‘हिल्लोल’ वर्ष 1939 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद उनकी अन्य साहित्यिक रचनाएँ प्रकाशित हुई। यहाँ उनकी संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं –
काव्य-संग्रह
काव्य-संग्रह | प्रकाशन |
हिल्लोल | वर्ष 1939 |
जीवन के गान | वर्ष 1942 |
युग का मेल | वर्ष 1945 |
विश्वास बढ़ता ही गया | वर्ष 1948 |
प्रलय सृजन | वर्ष 1950 |
विंध्य हिमालय | वर्ष 1960 |
मिट्टी की बारात | वर्ष 1972 |
वाणी की व्यथा | वर्ष 1980 |
कटे अँगूठे की वंदनवारें | वर्ष 1991 |
आलोचना
- महादेवी की काव्य-साधना
- गीति काव्य
- उद्यम और विकास
नाटक
- प्रकृति पुरुष कालिदास
पुरस्कार एवं सम्मान
शिवमंगल सिंह सुमन को शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं –
- पद्म श्री- वर्ष 1974
- पद्म भूषण – वर्ष 1999
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार – वर्ष 1975
- देव पुरस्कार
- भारत भारती पुरस्कार
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – (शिवमंगल सिंह सुमन को ‘मिट्टी की बारात’ काव्य-संग्रह के लिए वर्ष 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।)
- शिखर सम्मान
उज्जैन में हुआ निधन
शिवमंगल सिंह सुमन ने दशकों तक हिंदी साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध किया था। किंतु 27 नवंबर, 2002 को 87 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। लेकिन आज भी वे अपनी लोकप्रिय काव्य कृतियों के लिए साहित्य जगत में विख्यात हैं।
शिवमंगल सिंह सुमन की कविताएँ
यहाँ उनकी कुछ लोकप्रिय कविताएँ दी गई हैं जो आज भी लोगों के दिलों में छाप छोड़ती हैं –
वरदान मांगूंगा नहीं
यह हार एक विराम है जीवन महासंग्राम है तिल-तिल मिटूंगा पर दया की भीख मैं लूंगा नहीं वरदान मांगूंगा नहीं। स्मृति सुखद प्रहरों के लिए अपने खंडहरों के लिए यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूंगा नहीं वरदान मांगूंगा नहीं। क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही वरदान मांगूंगा नहीं। लघुता न अब मेरी छुओ तुम हो महान बने रहो अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं वरदान मांगूंगा नहीं। चाहे हृदय को ताप दो चाहे मुझे अभिशाप दो कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूंगा नहीं वरदान मांगूंगा नहीं। -शिवमंगल सिंह सुमन
तब समझूँगा आया वसंत
जब सजी बसंती बाने में बहनें जौहर गाती होंगी क़ातिल की तोपें उधर इधर नवयुवकों की छाती होगी तब समझूँगा आया वसंत। जब पतझड़ पत्तों-सी विनष्ट बलिदानों की टोली होगी जब नव विकसित कोंपल कर में कुंकुम होगा, रोली होगी तब समझूँगा आया वसंत। युग-युग से पीड़ित मानवता सुख की साँसे भरती होगी जब अपने होंगे वन उपवन जग अपनी यह धरती होगी तब समझूँगा आया वसंत। जब विश्व-प्रेम मतवालों के ख़ूँ से पथ पर लाली होगी जब रक्त बिंदुओं से सिंचित उपवन में हरियाली होगी तब समझूँगा आया वसंत। जब सब बंधन कट जाएँगे परवशता की होली होगी अनुराग अबीर बिखेर रही माँ बहनों की झोली होगी तब समझूँगा आया वसंत। -शिवमंगल सिंह सुमन
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
हम पंछी उन्मुक्त गगन के पिंजरबद्ध न गा पाएँगे, कनक-तीलियों से टकराकर पुलकित पंख टूट जाएँगे। हम बहता जल पीनेवाले मर जाएँगे भूखे-प्यास, कहीं भली है कटुक निबौरी कनक-कटोरी की मैदा से। स्वर्ण-शृंखला के बंधन में अपनी गति, उड़ान सब भूले, बस सपनों में देख रहे हैं तरु की फुनगी पर के झूले। ऐसे थे अरमान कि उड़ते नीले नभ की सीमा पाने, लाल किरण-सी चोंच खोल चुगते तारक-अनार के दाने। होती सीमाहीन क्षितिज से इन पंखों की होड़ा-होड़ी, या तो क्षितिज मिलन बन जाता या तनती साँसों की डोरी। नीड़ न दो, चाहे टहनी का आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो, लेकिन पंख दिए हैं तो आकुल उड़ान में विघ्न न डालो। - शिवमंगल सिंह सुमन
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ प्रसिद्ध कवि और शिक्षाविद् शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय (Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
शिवमंगल सिंह का उपनाम ‘सुमन’ है।
उनका जन्म 5 अगस्त, 1915 को उतर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ था।
मिट्टी की बारात’ काव्य-संग्रह के लिए उन्हें वर्ष 1974 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
उनके प्रथम काव्य संग्रह ‘हिल्लोल’ का प्रकाशन वर्ष 1939 में हुआ था।
27 नवंबर, 2002 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में उनका निधन हो गया था।
आशा है कि आपको प्रसिद्ध कवि और शिक्षाविद् शिवमंगल सिंह सुमन का जीवन परिचय (Shivmangal Singh Suman Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।