Dudhwa Rashtriya Udyan: उत्तर प्रदेश का एक खूबसूरत जंगल है जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और वन्यजीवों के लिए जाना जाता है। अगर आप घूमने-फिरने या फोटोग्राफी के शौकीन हैं तो यहाँ के घने जंगल, बड़े-बड़े घास के मैदान और शांत नदियाँ आपको इस जगह बुला ही लेंगी। यह आपके लिए एक बेहतरीन जगह हो सकती है, जहां आपको बाघों, बारहसिंगा और विभिन्न प्रकार के पक्षियों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने का मौका मिलेगा। दुधवा में आपको शहर की खटर-पटर से दूर शांति और प्रकृति का लुभावना संगम मिलेगा, जहां आप बहुत कुछ और भी एक्सप्लोर कर सकते हैं। इस ब्लॉग में आप दुधवा राष्ट्रीय उद्यान (Dudhwa Rashtriya Udyan) से संबंधित संपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे, जो प्रकृति और वन्यजीव प्रेमियों के लिए कारगर साबित होगी।
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Dudhwa National Park: दुधवा राष्ट्रीय उद्यान
Dudhwa Rashtriya Udyan, नेपाल और भारत सीमा से लगकर उत्तरप्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले में मौजूद है। दुधवा पार्क तराई क्षेत्र की बायोडायवर्सिटी को सँभालने वाली एक खास जगह है। जहां एक सींग वाला गैंडा, बारह-सिंघा, बाघ, हाथी, दलदली हिरन , तेंदुआ, एशियाई हाथी, स्लोथ बियर, सियार, लोमड़ी, जंगली बिल्ली, नेवले, औटर, नीलगाय, अजगर जैसे बहुत से जानवर और 450 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां पायी जाती है।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के बारे में अन्य जानकारी:
विशेषता | जानकारी |
नाम | दुधवा राष्ट्रीय उद्यान (Dudhwa National Park) |
स्थापना | वन्यजीव अभयारण्य के रूप में: 1958 (मुख्य रूप से दलदली हिरणों के संरक्षण के लिए) |
किसने स्थापित किया | उत्तर प्रदेश सरकार |
राष्ट्रीय उद्यान कब घोषित हुआ | जनवरी 1977 |
भौगोलिक स्थिति | उत्तर प्रदेश, भारत के उत्तरी भाग में, तराई क्षेत्र के दलदली घास के मैदानों में स्थित। मुख्य रूप से लखीमपुर खीरी जिले में भारत-नेपाल सीमा के निकट। |
क्षेत्रफल | मुख्य उद्यान: लगभग 490.3 वर्ग किलोमीटर। दुधवा टाइगर रिजर्व (जिसमें यह शामिल है): 1,284.3 वर्ग किलोमीटर (इसमें किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य भी शामिल हैं)। |
मुख्य आकर्षण केंद्र | अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध, जिसमें बंगाल टाइगर, एक सींग वाला गैंडा (पुनःस्थापित), दलदली हिरण (बारहसिंगा), हाथी, तेंदुआ, सुस्त भालू और पक्षियों की 450 से अधिक प्रजातियाँ शामिल हैं। यह तराई पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें घने जंगल, विशाल घास के मैदान और आर्द्रभूमि शामिल हैं। |
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान इतिहास
दुधवा क्षेत्र को 1958 में दलदली हिरण (बारहसिंगा) के संरक्षण के लिए वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। 1977 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला, और 1988 में यह ‘दुधवा टाइगर रिजर्व’ के रूप में घोषित किया गया, जिसमें किशनपुर और कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्यों को भी शामिल किया गया।
दुधवा के जंगल, कभी एक शांत आरक्षित क्षेत्र, 1977 में राष्ट्रीय उद्यान के रूप में उभरा। इसकी स्थापना का श्रेय महान संरक्षणवादी बिली अर्जन सिंह के दूरदर्शी प्रयासों को जाता है, जिन्होंने विशेष रूप से बारहसिंगा के संरक्षण के लिए इसे राष्ट्रीय उद्यान बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1987 में, इसने पड़ोसी किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य के साथ मिलकर दुधवा टाइगर रिजर्व का गठन किया, जिससे बाघों के संरक्षण को एक नई दिशा मिली।
बिली अर्जन सिंह, एक दूरदर्शी संरक्षणवादी, ने दुधवा को राष्ट्रीय उद्यान बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बाघों और तेंदुओं को वापस जंगल में छोड़ने के अपने अनूठे प्रयासों से दुनिया भर में पहचान बनाई। उनका अटूट समर्पण दुधवा की आत्मा में आज भी जीवित है।
दुधवा के जंगल उत्तरी भारतीय नम पर्णपाती वनों का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जहाँ साल के विशाल वृक्ष प्रमुखता से खड़े हैं। इनके साथ, विस्तृत घास के मैदान (‘फांटा’ के रूप में स्थानीय रूप से जाने जाते हैं) और नदियों व झीलों के किनारे आर्द्रभूमि वनस्पति इस परिदृश्य को और भी मनोरम बनाते हैं।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की भौगोलिक स्थिति और जलवायु
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की भौगोलिक स्थिति और जलवायु इस प्रकार है:
- उत्तर प्रदेश का लखीमपुर खीरी जिला, नेपाल बॉर्डर के पास।
- हिमालय के नीचे का तराई क्षेत्र, जो दुनिया के सबसे नाजुक जंगलों में से एक है।
- गंगा नदी के ऊपरी हिस्से का मैदान, जो लगभग 150 से 183 मीटर ऊँचा है।
- यहाँ नमी वाली गर्मी और सूखी सर्दी होती है।
- घूमने का अच्छा समय नवंबर से जून तक और ज्यादातर फरवरी से अप्रैल है।
- 40 डिग्री सेल्सियस तक तापमान जा सकता है।
- 10 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान रहता है।
- हर साल औसतन 1600 मिमी बारिश होती है।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के जंगल
दुधवा के जंगल उत्तरी भारतीय नम पर्णपाती प्रकार के हैं, जिनमें साल के वृक्ष प्रमुख हैं और भारत में साल के कुछ बेहतरीन उदाहरण यहाँ पाए जाते हैं। इसके अलावा, यहाँ विस्तृत घास के मैदान, दलदल और नदी के किनारे के वन भी हैं। स्थानीय लोग इन घास के मैदानों को ‘फांटा’ कहते हैं।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के जानवर
दुधवा वन्यजीवों की एक अद्भुत विविधता का आश्रय स्थल है। यहाँ बंगाल टाइगर की स्वस्थ आबादी के साथ-साथ बारहसिंगा की सबसे बड़ी संख्या भी पाई जाती है। इसके अतिरिक्त, एक सींग वाला गैंडा, भारतीय हाथी, तेंदुआ, आलसी भालू और विभिन्न प्रकार के हिरण यहाँ के जंगलों की शोभा बढ़ाते हैं। दुर्लभ हिसपिड हरे को भी यहाँ देखा जा सकता है।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के पक्षी
पक्षी प्रेमियों के लिए दुधवा एक छिपा हुआ स्वर्ग है, जहाँ 450 से अधिक प्रजातियों के रंगीन पंख उड़ान भरते हैं। भारतीय मोर, विभिन्न प्रकार की बत्तखें और हंस, हॉर्नबिल, सारस क्रेन और संकटग्रस्त गिद्ध यहाँ के आकाश को जीवंत बनाते हैं।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के रक्षक बिली अर्जन सिंह
बिली अर्जन सिंह, जिनका पूरा नाम कुँवर अर्जुन सिंह था, दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के संरक्षण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। बिली अर्जन सिंह का जन्म 15 अगस्त 1917 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उनकी मृत्यु 1 जनवरी 2010 को 93 वर्ष की आयु में हुई। उन्हें अक्सर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के रक्षक के रूप में याद किया जाता है।
बिली अर्जन सिंह एक पूर्व शिकारी थे, thebetterindia के अनुसार एक तेंदुए के शिकार की घटना के बाद उनका हृदय परिवर्तन हो गया। बिली अर्जन सिंह ने एक तेंदुए को गोली मार दी। जब वे उस मृत जानवर के पास पहुँचे, तो उन्होंने महसूस किया कि यह एक मादा तेंदुआ थी। और उससे भी ज़्यादा हृदयविदारक दृश्य यह था कि पास ही में उसके दो छोटे शावक डरे और सहमे हुए बैठे थे, अपनी माँ के पास आने की कोशिश कर रहे थे। इस घटना ने उन्हें आघात पहुँचाया, जिसके बाद उन्होंने अपना जीवन वन्यजीवों के संरक्षण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने दुधवा के पास ‘टाइगर हेवन’ नामक एक निजी अभयारण्य बनाया जहाँ वे बाघों और तेंदुओं के साथ रहते थे।
उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान तारा नामक एक बाघिन का पुनर्वास था, जिसे इंग्लैंड के एक चिड़ियाघर से लाया गया था। बिली अर्जन सिंह ने तारा को ‘टाइगर हेवन’ में प्रशिक्षित किया और फिर उसे दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के जंगल में सफलतापूर्वक पुनर्वासित किया। यह दुनिया का पहला सफल प्रयास माना जाता है जब किसी चिड़ियाघर से लाए गए बाघ को जंगल में बसाया गया। तारा की संतानों ने दुधवा के जंगलों में वृद्धि की।
बिली अर्जन सिंह ने न केवल बाघों के संरक्षण के लिए काम किया, बल्कि उन्होंने तेंदुए और दलदली हिरण जैसी अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण प्रयास किए। वे जीवन भर दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के मानद वन्यजीव वार्डन रहे और उन्होंने इस क्षेत्र की जैव विविधता को बचाने के लिए अथक प्रयास किए।
उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण संरक्षण कार्यों के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
- उन्हें वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) द्वारा सम्मानित किया गया।
- भारत सरकार ने उन्हें वन्यजीव संरक्षण के प्रति उनके समर्पण और प्रयासों के लिए पद्म श्री से सम्मानित किया।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की खासियत
दुधवा अपनी विशिष्ट तराई पारिस्थितिकी तंत्र, बारहसिंगा की विशाल आबादी और गैंडों के सफल पुनर्वास के लिए जाना जाता है। यह उन कुछ स्थानों में से एक है जहाँ आप बाघों और गैंडों को एक साथ देख सकते हैं। इसकी शांत सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता इसे एक अद्वितीय वन्यजीव गंतव्य बनाती है।
- दुधवा अपनी खास तराई क्षेत्र की प्रकृति के लिए जाना जाता है, जिसमें दलदली घास के मैदान और घने जंगल शामिल हैं।
- यहाँ बारहसिंगा (दलदली हिरण) की बहुत बड़ी संख्या पाई जाती है, जो इस पार्क का एक प्रमुख आकर्षण है।
- दुधवा उन कुछ जगहों में से एक है जहाँ एक सींग वाले गैंडों को सफलतापूर्वक फिर से बसाया गया है।
- यह उन दुर्लभ स्थानों में से है जहाँ बाघ और गैंडे दोनों को एक ही जगह पर देखा जा सकता है।
- दुधवा की शांतिपूर्ण और हरी-भरी सुंदरता इसे एक खास वन्यजीव पर्यटन स्थल बनाती है।
- यहाँ विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे और जीव-जंतु पाए जाते हैं, जो इसे जैव विविधता का हॉटस्पॉट बनाते हैं।
FAQs
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान उत्तर प्रदेश राज्य के लखीमपुर खीरी जिले में स्थित है।
दुधवा नेशनल पार्क शारदा नदी के किनारे पर स्थित है।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की यात्रा के लिए नवंबर से अप्रैल का समय सबसे अच्छा है।
उत्तर प्रदेश के भीतर केवल 1 राष्ट्रीय उद्यान स्थित है।
उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा जंगल दुधवा राष्ट्रीय उद्यान है।
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान बाघों और बारहसिंगा के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
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