Bipin Chandra Pal in Hindi: क्रांतिकारी विचारों के जनक ‘बिपिन चंद्र पाल’ का संपूर्ण जीवन परिचय

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Bipin Chandra Pal in Hindi

बिपिन चंद्र पाल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे। वह “लाल-बाल-पाल” अर्थात् लाल (लाला लाजपत राय), बाल (बाल गंगाधर तिलक), पाल (बिपिन चंद्र पाल) के रूप में विख्यात तीन महान स्वतंत्रता सेनानियों की त्रिमूर्ति में एक एक थे। क्या आप जानते हैं कि बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) को ‘भारत में क्रांतिकारी विचारों के जनक’ के रूप में भी जाना जाता है। वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के समय बिपिन चंद्र पाल मने स्वतंत्रता आंदोलन को अपने क्रांतिकारी विचारों से एक नई दिशा प्रदान की थी। वह एक स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ साथ एक शिक्षक, पत्रकार, लेखक, वक्ता और समाजिक कार्यकर्ता भी थे, जिन्होंने अपना जीवन देश को समर्पित कर दिया था। आइए अब हम Bipin Chandra Pal in Hindi के इस लेख में उनके संपूर्ण जीवन के बारे में जानते हैं। 

नाम बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal)
जन्म 7 नवंबर 1858
जन्म स्थान ग्राम पोइल, जिला सिलहट (वर्तमान बांग्लादेश)
पेशा स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, पत्रकार, लेखक, वक्ता
शिक्षा प्रेसीडेंसी कॉलेज 
पिता का नाम श्री राम चंद्र पाल 
माता का नाम श्रीमती नारायणी 
प्रसिद्धि “लाल-बाल-पाल” 
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (गरम दल)
पत्रिकाएं ‘द डेमोक्रेट’, ‘द इंडिपेंडेंट’ 
पुस्तकें ‘इंडियन नेशनलिज्म’, ‘स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन, ‘नेशनलिटी एंड एम्पायर’, ‘द बेसिस ऑफ सोशल रिफॉर्म’ आदि। 
निधन 20 मई 1932 

बिपिन चंद्र पाल का प्रारंभिक जीवन 

बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) का जन्म 7 नवंबर 1858 को ग्राम पोइल, जिला सिलहट में एक हुआ था, जो अब बांग्लादेश में है। उनके पिता का नाम श्री ‘राम चंद्र पाल’ था जो एक छोटे से जमींदार और फारसी भाषा के विद्वान थे। उनकी माता का नाम श्रीमती ‘नारायणी’ था जो एक गृहणी थी। एक समृद्ध परिवार में जन्म लेने के कारण उनकी शिक्षा उच्च कोटि की हुई। 

बिपिन चंद्र पाल की प्रारंभिक शिक्षा फ़ारसी भाषा में हुई। फिर उन्होंने वर्ष 1874 में सिलहट राजकीय उच्च विद्यालय से कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा पास की और उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता के ‘प्रेसिडेंसी कॉलेज’ में दाखिला ले लिया। विश्वविद्यालय में अपने अगले चार वर्षों के दौरान उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उठ रही भारतीय जनमानस की स्वतंत्रता की चिंगारी व नव राष्ट्रीय चेतना को करीब से देखा। 

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नौकरी से दे दिया इस्तीफा 

बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) ने कॉलेज में दाखिला तो लिया लेकिन अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सके और पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इसके बाद वह वर्ष 1879 में कटक के हाईस्कूल में हेड-मास्टर की नौकरी करने लगे। फिर उन्होंने कुछ समय तक ‘कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी’ में लाइब्रेरियन और सचिव के रूप में करीबन डेढ़ तक कार्य किया। उसी दौरान वह कुछ प्रख्यात लोगों के संपर्क में आए जिनमें ब्रह्म समाज के विख्यात नेता ‘केशवचंद्र सेन’ जिन्होंने उन्हें ब्रह्म समाज आंदोलन से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। 

वहीं ‘शिवनाथ शास्त्री’, ‘सुरेंद्र नाथ बनर्जी’ और ‘विजय कृष्ण गोस्वामी’ जैसे नेताओं ने उन्हें स्वाधीनता, व्यक्तिपरकता और देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत किया। जिसके परिणाम स्वरुप उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और राजनीति में आने का निर्णय लिया। बता दें कि शुरुआत में बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) राजनीति में ‘सुरेंद्रनाथ बनर्जी’ से अधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना गुरु मानते थे। लेकिन बाद में उन्होंने ‘लाला लाजपत राय’, ‘बाल गंगाधर तिलक’ और ‘महर्षि अरविंद घोष’ के साथ मिलकर कार्य किया। 

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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में प्रवेश   

बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) का ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ में प्रवेश वर्ष 1886 में कलकत्ता में हुए इसके दूसरे अधिवेशन के साथ ही शुरू हो गया था। बता दें कि वह इस अधिवेशन में सिलहट के प्रतिनिधि के रूप में शामिल हुए थे। उन्होंने कांग्रेस के कई अन्य सत्रों में भाग लिया और देश की स्वतंत्रता, भारतीय अधिकार, तकनीकी शिक्षा और भारत की औधोगिकी स्तिथि पर अपने विचार मुखर स्वर में रखें। 

वर्ष 1898 में बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) ‘ब्रिटिश एंड फॉरेन यूनिटेरियन एसोसिएशन’ द्वारा प्राप्त छात्रवृति पर ‘घर्मशास्त्रीय अध्ययन’ के लिए इंग्लैंड चले गए। लेकिन एक वर्ष बाद ही उन्होंने छात्रवृति लेना छोड़ दिया और भारत लौट आए। वर्ष 1900 में बिपिन चंद्र पाल भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गए और उन्होंने देश की अवाम के बीच स्वराज के विचार की भावना का प्रचार किया व कांग्रेस के नेताओं के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की रूपरेखा तैयार की। 

यही पर उनकी मुलाकात पंजाब केसरी ‘लाला लाजपत राय’ और ‘बाल गंगाधर तिलक’ से हुई, जो बाद में घनिष्ठ मित्रता में परिवर्तित हो गई। बंगाल विभाजन के बाद इन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए उग्र स्वरूप को अपनाया और कांग्रेस से अलग होकर ‘गरम दल’ का नेतृत्व किया और जल्दी ही यह त्रिमूर्ति देश में ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से मशहूर हो गई। 

ब्रिटिश हुकूमत मानने लगी थी शत्रु

बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) ने देश की अवाम में स्वराज की अलख जगाने के लिए कई पत्रिकाएं निकाली। इनमें ‘न्यू इंडिया’ (साप्ताहिक पत्रिका), और ‘वंदे मातरम’ (दैनिक पत्रिका) अहम है, इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने पंथनिरपेक्षता, तर्कवाद, राष्ट्रीय शिक्षा, स्वदेशी वस्तुओं का इस्तेमाल और राष्ट्रवाद की वकालत की। वहीं विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और देश में काबिज ब्रिटिश हुकूमत से सभी प्रकार संबंधों को तोड़ने की वकालत की। 

बिपिन चंद्र पाल ब्रिटिश हुकूमत के मुखर विरोधी थे और उन्हें इस सरकार पर तनिक भी भरोसा नहीं था। उनका यह मानना था कि ब्रिटिश हुकूमत से तर्क, असहयोग, हड़ताल और निवेदन से कभी भी देश को स्वराज नहीं दिलाया जा सकता। इन्हीं कारणों से वहमहात्मा गांधी जी के शांतिवादी तरीकों की आलोचना करते थे और उनसे असहमति जाहिर करने में कभी पीछे नहीं हटते थे। 

बिपिन चंद्र पाल कुशल लेखक होने के साथ साथ शानदार वक्ता भी थे उन्होंने अपने संबोधनों में देशवासियों में सामजिक जागरूकता और राष्ट्रवादी भावना जागृत  करने का कार्य किया। इन्हीं कारणों से ब्रिटिश हुकूमत अब बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) को अपना शत्रु मानने लगी थी। 

6 महीने का कारावास 

क्या आप जानते हैं कि वर्ष 1906 में ‘वंदे मातरम’ पत्रिका के मुख्य संपादक ‘श्री अरबिंदो घोष’ पर ब्रिटिश हुकूमत द्वारा राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया था। वहीं इस पत्रिका के लिए लिखने वाले बिपिन चंद्र पाल को उनके खिलाफ गवाही देने के लिए कहा लेकिन उन्होंने गवाही देने से साफ इंकार कर दिया। ब्रिटिश हुकूमत पहले से ही पाल के उनके खिलाफ चल रहे उग्र विरोध को देख चुकी थी। इसलिए उन्होंने पाल को 6 महीने की कारावास की सजा सुना दी। 

कारावास से रिहा होने के बाद बिपिन चंद्र पाल इंग्लैंड चले गए। इस दौरान उन्होंने नए राजनीतिक चिंतन का विकास किया जिसे उन्होंने ‘एम्पायर इंडिया’ का नाम दिया। यहाँ वह इंडिया हाउस से भी जुड़े जिसकी स्थापना  ‘श्यामजी कृष्ण वर्मा’ ने की थी। भारत आने के बाद उन्होंने मासिक पत्रिका ‘द हिंदू रिव्यू’ का संपादन शुरू किया। 

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सामाजिक कुरीतियों का किया कड़ा विरोध  

बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) जितने वह स्पष्टवादी अपने सार्वजिनक जीवन थे उतने ही वह अपने निजी जीवन में भी रहे। उन्होंने हमेशा ही सामाजिक कुरीतियों, आडम्बरों और रूढ़िवादी परम्पराओं का खुलकर विरोध किया था। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपनी पहली पत्नी ‘नृत्यकली देवी’ के देहांत के बाद, वर्ष 1891 में एक विधवा स्त्री ‘बिरजमोहिनी देवी’ से दोबारा शादी की थी। यह उस समय बिल्कुल भी आसान नहीं था वहीं इस निर्णय से उनका परिवार सख्त खिलाफ था। लेकिन पाल अपने निर्णय से तनिक भी अड़िग नहीं हुए और सामाजिक दबाव के आगे नहीं झुके। 

बिपिन चंद्र पाल की पत्रिकाएं 

Bipin Chandra Pal in Hindi के इस लेख में अब हम उनके द्वारा संपादित कुछ प्रमुख पत्रिकाओं के बारे में बता रहे है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं-

  • परिदर्शक – (1880) 
  • बंगाल पब्लिक ओपिनियन – (1882)
  • द लाहौर ट्रिब्यून – (1887)
  • न्यू इंडिया (1901)
  • वंदे मातरम (1906)
  • द हिंदू रिव्यू (1913)

बिपिन चंद्र पाल द्वारा लिखी पुस्तकें 

बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) ने भारतीय जनमानस में स्वराज की अलख जागने के लिए कुछ पुस्तकें भी लिखी थी। जिनकी सूची नीचे दी गई हैं-

  • द स्टडीज इन हिंदूज्म
  • न्यू स्पिरिट
  • नेशनलिस्ट एंड एम्पायर
  • इंडियन नेशनलिज्म
  • द बेसिस ऑफ रिफॉर्म
  • स्वराज एंड द प्रजेंट सिचुएशन
  • द सोल ऑफ इंडिया

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राजनीतिक जीवन से लिया संन्यास 

वर्ष 1920 में बिपिन चंद्र पाल (Bipin Chandra Pal) ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया, और अपने जीवन के अंतिम दिनों का पुस्तकों और लेखों के माध्यम से अपने विचार व्यक्त करते रहे। 20 मई 1932 को स्वास्थ्य ठीक ने होने कारण उनका 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भारतीय जनमानस में राष्ट्रवाद की भावना को जगाने व उसे एक नई सार्थक दिशा देने में बिपिन चंद्र पाल का योगदान सदैव याद किया जाएगा। ‘श्री अरविंद घोष’ ने बिपिन चंद्र पाल को ‘राष्ट्रवाद का सबसे प्रबल समर्थक’ कहा था।

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आशा है कि आपको Bipin Chandra Pal in Hindi पर हमारा यह लेख पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों के जीवन परिचय के बारे में पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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