नई कहानी आंदोलन के विख्यात लेखक मोहन राकेश का संपूर्ण जीवन परिचय | Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay

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Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay

मोहन राकेश (Mohan Rakesh) आधुनिक हिंदी कथा साहित्य में ‘नई कहानी’ आंदोलन के प्रसिद्ध कथाकार माने जाते हैं। आज भी मोहन राकेश का साहित्य आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘मील का पत्थर’ माना जाता है। मोहन राकेश ने हिंदी साहित्य में अनेकों विधाओं में साहित्य का सृजन किया जिसमें कहानियां, उपन्यास, नाटक, डायरी लेखन, यात्रा वृतांत और एकांकी शामिल हैं। वहीं हिंदी साहित्य में विशेष योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1968 में ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ और ‘नेहरू फेलोशिप’ से सम्मानित भी किया जा चुका हैं। आइए अब हम Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay और उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

मूल नाम मदन मोहन गुगलानी
विख्यात मोहन राकेश 
जन्म 8 जनवरी 1925
जन्म स्थान अमृतसर, पंजाब
शिक्षा एम. ए. हिंदी (पंजाब विश्वविद्यालय)
पेशा लेखक, अध्यापक 
भाषा हिंदी, अंग्रेजी 
साहित्य काल आधुनिक काल 
विधाएँ कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, यात्रा वृतांत, अनुवाद, डायरी लेखन आदि। 
प्रमुख रचनाएँ उपन्यास- अँधरे बंद कमरे नाटक – आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे 
पिता का नाम कर्मचंद गुगलानी
माता का नाम बचन (अम्मा)
बहन-भाई कमला-वीरेंद्र 
संपादन सारिका (पत्रिका)
पुरस्कार सम्मान संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, नेहरू फेलोशिप 
निधन3 दिसंबर 1972, नई दिल्ली

मोहन राकेश का प्रारंभिक जीवन 

हिंदी साहित्य जगत को अपनी लेखनी के माध्यम से समृद्ध करने वाले मोहन राकेश (Mohan Rakesh) का जन्म 8 जनवरी 1925 अमृतसर, पंजाब में हुआ। वे मूलतः एक सिंधी परिवार से थे। उनके पिता का नाम ‘कर्मचंद गुगलानी’ था जो कि एक वकील थे। मोहन राकेश अपनी माता को ‘अम्मा’ कहकर पुकारते थे, उनका वास्तविक नाम ‘बचन’ था। वह बहुत ही घार्मिक प्रवृति की महिला थी। मोहन राकेश की एक बड़ी बहन ‘कमला’ और छोटे भाई का नाम ‘वीरेंद्र’ था। क्या आप जानते हैं कि मोहन राकेश का असली नाम ‘मदन मोहन गुगलानी’ था। लेकिन बाद में उन्होंने अपना प्रचलित नाम ‘मोहन राकेश’ (Mohan Rakesh) रख लिया। 

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मोहन राकेश की शिक्षा 

Mohan Rakesh Biography in Hindi: मोहन राकेश का जन्म एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी वहीं 16 वर्ष की किशोरावस्था में ही उनके पिता का आकस्मिक देहांत हो गया। जिसके कारण उन्हें बचपन में ही कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। वहीं मोहन का का बचपन पंजाब के अमृतसर और जालंधर में बीता था। उन्होंने अपनी औपचारिक शिक्षा का आरंभ अमृतसर के ‘हिंदू विश्वविद्यालय’ से किया। 

इसके बाद वह लाहौर के ‘ओरिएंटल कॉलेज’ में पढ़ने चले गए। वहाँ उन्होंने 16 वर्ष की आयु में ही ‘शास्त्री’ की उपाधि प्राप्त की थी। फिर उन्होंने अंग्रेजी में B.A. किया और चंडीगढ़ के पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी में M.A. की डिग्री हासिल की। बता दें कि इस परीक्षा में वह प्रथम श्रेणी से पास हुए थे।     

अस्थिर नौकरियां

मोहन राकेश ने विश्वविद्यालय द्वारा मिली छात्रवृति की अवधि समाप्त होने के बाद ही उन्होंने 21 वर्ष की आयु से नौकरी करना शुरू कर दिया था। लेकिन अपनी स्वतंत्र चेतना बुद्धि के कारण अपने जीवन में किसी भी नौकरी और व्यवसाय में अधिक समय तक नहीं रह सके। उन्होंने फिल्म कंपनी से लेकर विभिन्न कॉलेजों में अध्यापन का कार्य किया। इस प्रकार अस्थिर नौकरियों के कारण उन्हें जीवन में कई बार आर्थिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ा। 

मोहन राकेश वर्ष 1962 में वह ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ में लेक्चरशिप से इस्तीफा देने के बाद मुंबई चले गए। यहाँ उन्हें अच्छे वेतन की नौकरी मिल गई और वह सुप्रसिद्ध कहानी पत्रिका ‘सारिका’ के संपादक बन गए। किंतु अपनी स्वतंत्रता वृति के चलते यहाँ भी ज्यादा समय तक टिक न सके और वर्ष 1963 में उन्होंने संपादक पद से इस्तीफा दे दिया। 

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वैवाहिक जीवन नहीं रहा सामान्य 

मोहन राकेश (Mohan Rakesh) जिस तरफ नौकरियों में ज्यादा समय तक नहीं रह सके उसी तरह उनका वैवाहिक जीवन भी तनावपूर्ण रहा। उन्होंने अपने जीवन में तीन शादियां की थी लेकिन वह तीनों विवाह असफल साबित हुए। उनकी पत्नी सुशीला, पुष्पा और अनीता आलोक थी जिनसे उनका तलाक हो गया। लेकिन उनका मित्र परिवार बहुत बड़ा था जिसमें ज्यादातर हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकार थे इनमें ‘राजेंद्र यादव’, ‘उपेंद्रनाथ अश्क’, मनु भंडारी’, ‘डॉ इंद्रनाथ मदान’, ‘कमलेश्वर’ और ‘धर्मवीर भारती’ आदि शामिल थे।   

नाट्य-लेखन से मिली पहचान 

मोहन राकेश को कहानी और उपन्यास के बाद सबसे ज्यादा सफलता नाट्य-लेखन के क्षेत्र में मिली। हिंदी नाट्य युग में भारतेंदु और जयशंकर प्रसाद के बाद उनका दौर आता है जिससे हिंदी नाटकों को फिर से अखिल भारतीय स्तर के रंगमंच से जोड़ा। वहीं उनके द्वारा लिखे नाटकों का निर्देशन ‘अरविंद गौड़’, ‘इब्राहीम अलकाजी’, ‘राम गोपाल बजाज’, ‘ओम शिवपुरी’, ‘श्यामानंद जालान’ और ‘दिनेश ठाकुर’ जैसे प्रमुख भारतीय निर्देशकों ने किया। 

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मोहन राकेश की साहित्यिक रचनाएं 

मोहन राकेश (Mohan Rakesh) का बचपन से साहित्य के प्रति विशेष लगाव था इसलिए उन्होंने अल्प आयु से ही साहित्य का सृजन करना आरंभ कर दिया था। उन्होंने हिंदी साहित्य में अनेकों विधाओं में साहित्य का सृजन किया जिसमें कहानियां, उपन्यास, नाटक, निबंध, बाल साहित्य और यात्रा वृतांत शामिल हैं। आइए अब हम Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay में उनकी साहित्यिक कृतियों के बारे में जानते हैं-

कहानी संग्रह 

कहानी संग्रह प्रकाशन 
इंसान के खंडहर1950 
नये बादल 1957 
जानवर और जानवर 1958 
पाँच लंबी कहानियाँ 1960 
एक और जिंदगी 1961 
फौलाद का आकाश 1966 
क्वार्टर 1973 
पहचान1973 
वारिस1973 
एक घटना 1974 
संपूर्ण कहानी संग्रह 1984 

उपन्यास 

उपन्यास प्रकाशन 
अँधेरे बंद कमरे 1961 
न आने वाला कल 1968 
अंतराल 1972 
काँपता हुआ दरिया 1998 
स्याह और सफेद 1998 

नाटक 

नाटक प्रकाशन 
आषाढ़ का एक दिन1958 
लहरों के राजहंस1963 
आधे अधूरे1969 
रात बीतने तक1974 
पैर तले की ज़मीन (अपूर्ण नाटक)1975 

बीज नाटक 

  • शायद
  • हंः

पार्श्व नाटक 

  • छतरियाँ

एकांकी 

  • सत्य और कल्पना 
  • अंडे के छिलके 
  • बहुत बड़ा सवाल 
  • सिपाही की माँ 
  • प्यालियाँ टूटती हैं

लेख 

  • रंगमंच और शब्द 
  • शब्द और ध्वनि 

रेखा चित्र 

  • सत युग के लोग 
  • दिल्ली रात के बाहों में 

यात्रा वृतांत 

यात्रा वृतांत प्रकाशन 
आख़िरी चट्टान तक (इसमें गोवा से कन्याकुमारी तक की यात्रा का वर्णन है। )1953 

अनुवाद 

अनुवाद प्रकाशन
मृच्छकटिक1961 
शाकुंतलम1965 
स्वपनवासवदतम 1974 

निबंध 

निबंध प्रकाशन 
बकलम खुद 1974 
मोहन राकेश साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण 1975 

डायरी 

डायरीप्रकाशन
मोहन राकेश की डायरी 1985 

जीवनी 

जीवनीप्रकाशन
समय सारथी 1972 

संस्मरण 

संस्मरणप्रकाशन
परिवेश 1962  

बाल साहित्य 

बाल साहित्य प्रकाशन
बिना हाड़ मांस के आदमी 1974  

संपादन कार्य 

संपादन प्रकाशन
सारिका पत्रिका 1962-63 
आईने के सामने 1965 

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पुरस्कार और सम्मान 

Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay में अब हम उन्हें मिले कुछ प्रमुख पुरस्कारों व सम्मान के बारे में जानते है। जिसे नीचे दिए गए बिंदुओं में बताया गया हैं-

  • वर्ष 1959 में मोहन राकेश को ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक के लिए भारत सरकार की ‘संगीत नाटक अकादमी’ द्वारा पुरस्कृत किया गया था। 
  • वर्ष 1971 में उन्हें ‘संगीत नाटक अकादमी’ द्वारा उनकी संपूर्ण नाट्य रचना एवं नाट्य सेवा के लिए ‘नाट्य लेखन पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।  
  • वर्ष 1971 में उन्हें नाट्य शोध के लिए नेहरू फेलोशिप भी मिली थी। लेकिन यह शोध कार्य प्रारंभ होने के बाद पूरा न हो सका। 

आकस्मिक निधन 

मोहन राकेश (Mohan Rakesh) ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य के लिए ही समर्पित कर दिया था और जीवन की अंतिम घड़ी में भी वह साहित्य की साधना में मगन थे। किंतु 3 दिसंबर 1972 को ह्रदय गति रूक जाने से उन्होंने मात्र 48 वर्ष की आयु में ही दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। 

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FAQs

मोहन राकेश का मूल नाम क्या था?

मोहन राकेश का मूल नाम ‘मदन मोहन गुगलानी’ था। 

मोहन राकेश का जन्म कहाँ हुआ था?

बता दें कि उनका जन्म 8 जनवरी 1925 अमृतसर, पंजाब में एक सिंधी परिवार में हुआ था। 

मोहन राकेश का पहला नाटक कौन सा है?

मोहन राकेश का पहला ‘आषाढ़ का एक दिन’ है, जो वर्ष 1958 में प्रकाशित हुआ था। 

मोहन राकेश का निधन कब हुआ था?

मोहन राकेश का निधन  3 दिसंबर 1972 को ह्रदय गति रूक जाने से हुआ था। 

मोहन राकेश ने कितने नाटक लिखें?

मोहन राकेश ने कुल चार नाटक लिखे हैं जिनमें से चौथा नाटक ‘पैर तले की ज़मीन’ वे पूरा नहीं कर सके। जिसे बाद में उनके मित्र ‘कमलेश्वर’ ने पूरा किया था। 

आशा है कि आपको मोहन राकेश का संपूर्ण जीवन परिचय (Mohan Rakesh Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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