‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय का जीवन परिचय – Lala Lajpat Rai Biography in Hindi

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लाला लाजपत राय

Lala Lajpat Rai Biography in Hindi: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई ऐसे वीर सपूत हुए हैं, जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह न करते हुए देश की आजादी के लिए अपना जीवन तक बलिदान कर दिया हैं। ऐसे ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे “पंजाब केसरी” (Punjab Kesari) लाला लाजपत राय जिन्हें “शेर-ए-पंजाब” (Lion of Punjab) के नाम से भी जाना जाता हैं। लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) बहुआयामी व्यक्तित्व के घनी व्यक्ति थे जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अहम योगदान दिया था। वहीं आधुनिक भारत के इतिहास में लाला लाजपत राय के बारे में स्कूल, कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं में भी पढ़ाया जाता है। इसके साथ ही उनके जीवन से जुड़े विभिन्न प्रश्न पूछे जाते हैं। 

लाला लाजपत राय सामाजिक कार्यकर्ता, राजनीतिज्ञ, लेखक, पत्रकार और वक्ता होने के साथ-साथ स्वतंत्र भारत के सासंद भी थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्होंने ही देश में सबसे पहले स्वदेशी बैंक ‘पंजाब नेशनल बैंक’ और ‘लक्ष्मी बीमा कंपनी’ की नींव रखी थी। वहीं उनके अथक प्रयासों से देश के स्वतंत्रता आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली थी। बता दें कि इस वर्ष लाला लाजपत राय की 158वीं जयंती मनाई जा रही है। 

आइए अब हम “पंजाब केसरी” लाला लाजपत राय का जीवन परिचय (Lala Lajpat Rai Biography in Hindi) और उनकी उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

पूरा नाम लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai)
उपाधि “पंजाब केसरी”, “शेर-ए-पंजाब” 
जन्म तिथि 28 जनवरी 1865 
जन्म स्थान धुडीके (वर्तमान फिरोज़पुर जिला) पंजाब  
शिक्षा वकालत  
पिता का नाम श्री राधा कृष्ण 
माता का नाम श्रीमती गुलाब देवी
पत्नी का नाम राधा देवी 
संतान अमृत राय, प्यारेलाल, पार्वती
प्रसिद्धि स्वतंत्रता सेनानी
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (गरम दल)
राजनीतिक विचारधाराराष्ट्रवाद, उदारवाद
अध्यक्ष इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका
सह-संस्थापकपंजाब नेशनल बैंक, लक्ष्मी बीमा कंपनी
रचनाएं भगवद्गीता का संदेश, यंग इंडिया, इंग्लैंड डेब्ट टू इंडिया, एवोल्यूशन ऑफ जापान, इंडिया विल टू फ्रीडम आदि। 
पत्रिकाएं ‘वंदे मातरम’ (उर्दू), ‘द पीपुल’ (अंग्रेजी)
संपादक‘आर्य गजट’ 
प्रसिद्ध नारा ‘साइमन वापस जाओ’ 
निधन 17 नवंबर 1928

लाला लाजपत राय का जीवन परिचय – Lala Lajpat Rai Ka Jivan Parichay

“शेर-ए-पंजाब” (Lion of Punjab) लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के फिरोज़पुर जिले के धुडीके (Dhudike) नामक एक छोटे से गाँव में हुआ था। उनके पिता “श्री राधा कृष्ण” उर्दू और फ़ारसी के अध्यापक थे और उनकी माता श्रीमती “गुलाबी देवी” बहुत ही घार्मिक प्रवृति की महिला थी। 

लाला लाजपत राय की शिक्षा 

लाला लाजपत राय की प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव और लुधियाना व अंबाला के मिशन विद्यालय से शुरू हुई। इसके बाद वर्ष 1880 में उन्होंने लाहौर के सरकारी कॉलेज में प्रवेश लिया साथ ही लॉ कॉलेज में भी दाखिला ले लिया। फिर उन्होंने वर्ष 1883 में मुख्तारी के लिए लाइसेंस लिया और लुधियाना के राजस्व न्यायलय में वकालत आरंभ कर दी। इसके बाद लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) ने वर्ष 1886 में ‘पंजाब विश्वविद्यालय’ से प्लीडर की परीक्षा पास की और वकील की अहर्ता प्राप्त करने के बाद हिसार में अपनी वकालत शुरू कर दी। 

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आर्य समाज में प्रवेश

क्या आप जानते हैं कि वर्ष 1882 में मात्र 17 वर्ष की अल्प आयु में लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) आर्य समाज (Arya Samaj) में शामिल हो गए थे। वह आर्य समाज के संस्थापक “दयानंद सरस्वती” के विचारों से काफी प्रभावित थे इसलिए उन्होंने आर्य समाज की शिक्षा ग्रहण की साथ ही समाज सेवा करना शुरू कर दी। इसके साथ ही उन्होंने पंजाब के ‘दयानन्द एंग्लो वैदिक कॉलेज’ (डी.ए.वी. कॉलेज) की स्थापना में अपना अहम योगदान दिया। वहीं लाला लाजपत राय ने वर्ष 1897 और 1899 में देश में आयी अकाल की समस्या और 1905 में कांगडा में आए भूकंप से देशवासियों की तन, मन, घन से एक लोक हितैषी और लोकोपकारक के रूप में सेवा की थी।  

“लाल-बाल-पाल” की तिकड़ी 

बता दें कि ‘लाहौर अधिवेशन’ 1893 में लाला लाजपत राय का परिचय महान स्वतंत्रता सेनानी “गोपाल कृष्ण गोखले” और “बाल गंगाधर तिलक” हुआ, जो आगे चलकर घनिष्ठ मित्रता में बदल गई। इसके बाद लाला लाजपत राय ने स्वतंत्रता संग्राम में ‘बाल गंगाधर तिलक’ और ‘बिपिन चन्द्र पाल’ के साथ मिलकर, गरम दल के नेताओं की तिकड़ी (लाल-बाल-पाल) बनाई। वहीं वर्ष 1905 के बंगाल विभाजन के विरोध में ‘लाल-बाल-पाल’ की तिकड़ी वाले नेतृत्व का उद्भव हुआ यही कारण है कि भारतीय इतिहास में लाल-बाल-पाल का नाम बड़े ही आदर के साथ लिया जाता है। 

वहीं आगे चलकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं की विचारधारा और कार्यप्रणाली के अंतर्विरोध के कारण यह दल दो भागों ‘नरम दल’ और ‘गरम दल’ में विभाजित हो गया। इसमें अहिंसा के पक्षधर नरम दल में, तो क्रांति की मशाल लेकर बढ़ रहे लोगों को गरम दल का माना गया। नरम दल का नेतृत्व जहां ‘गोपाल कृष्ण गोखले’,’दादा भाई नौरोजी’ और ‘फिरोजशाह मेहता’ जैसे बड़े नेताओं ने किया वहीं गरम दल का नेतृत्व ‘विपिन चन्द्र पाल’, ‘अरविंद घोष’, ‘बाल गंगाधर तिलक’ ‘लाला लाजपत राय’ (Lala Lajpat Rai) द्वारा किया गया। 

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देश में रखी प्रथम स्वदेशी बैंक नींव 

लाला लाजपत राय ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देने के साथ-साथ देश को आर्थिक रूप में मजबूत करने का भी कार्य किया था। क्या आप जानते हैं कि लाला लाजपत राय ने 19 मई 1894 को लाहौर में देश के प्रथम ‘पंजाब नेशनल बैंक’ की नींव रखी थी। बता दें कि ब्रिटिश हुकूमत के समय केवल अंग्रेजों द्वारा संचालित बैंक ही होते थे जो भारतीयों को बहुत अधिक ब्याज दर पर कर्ज देते थे। जिसके बाद लाला जी और अन्य सदस्यों ने मिलकर देश में स्वदेशी बैंक स्थापित करने की योजना बनाई जिनमें ‘लाला हरकिशन लाल’, ‘प्रसूनो रॉय, ‘दयाल सिंह मजीठिया’, ‘लाला लालचंद’ और ‘ईसी जेसवाला’ जैसे सामाजिक कार्यकर्ता व लोकोपकारक शामिल थे। 

वहीं बैंक के पहले अध्यक्ष के रूप में ट्रिब्यून अखबार के संस्थापक ‘दयाल सिंह मजीठिया’ को चुना गया। इस बैंक में पहला खाता लाला लाजपत राय ने खुलवाया था और इसके बाद देश की कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने भी इस बैंक में अपना खाता खुलवाया जिनमेंमहात्मा गांधी,पंडित जवाहर लाल नेहरू,लाल बहादुर शास्त्रीप्रमुख थे। लाला जी और अन्य सभी सदस्य इस बैंक से आखिर तक जुड़े रहे। किंतु भारत विभाजन के खतरे को देखते हुए, स्वतंत्रता से कुछ समय पूर्व ही पंजाब नेशनल बैंक को लाहौर से दिल्ली में स्थानांतरित कर दिया गया। 

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लाला लाजपत राय की गिरफ्तारी 

वर्ष 1905 में ‘बनारस कांग्रेस अधिवेशन’ में लाला लाजपत राय ने ब्रिटिश हुकूमत द्वारा बंगाल में हो रहे उग्र आंदोलन को समाप्त करने के लिए अपनाए गए दमनकारी नीतियों का कड़ा विरोध किया। लालजी ने भारतीय जनमानस से स्वदेशी अपनाने और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का आवाहन किया। वहीं ‘स्वदेशी’ के प्रचार ने उन्हें पंजाब में बहुत लोकप्रिय बना दिया। इससे ब्रिटिश हुकूमत उन्हें अपना दुश्मन मानने लगी इसके बाद लालाजी को 9 मई 1907 को गिरफ्तार कर लिया और मांडले, बर्मा (वर्तमान म्यांमार) भेज दिया। 

हालांकि ब्रिटिश हुकूमत लाजा लाजपत राय पर कोई ठोस सबूत साबित नहीं कर सकी, जिसके बाद उन्हें भारत आने की अनुमति दी गई। लाला लाजपत राय का मानना था कि राजनीतिक स्वतंत्रता के बिना भारतीय जनमानस का आर्थिक और सामाजिक सुधार असंभव है। इसके बाद उन्होंने वकालत को छोड़कर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। 

‘इंडियन होम रूल लीग’ की स्थापना

वर्ष 1916 में भारत में बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने होम रूल आंदोलन शुरू किया। उसी समय लाला लाजपत राय ने ‘इंडियन होम रूल लीग ऑफ अमेरिका’ की स्थापना की, जिसके प्रथम अध्यक्ष वह स्वयं थे। बता दें कि इस लीग का उद्देश्य भारत में हो रहे ‘होम रूल आंदोलन’ का समर्थन करना था। वहीं प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश हुकूमत की ओर से भारतीय सैनिकों के भाग लेने का भी विरोध दर्ज कराना था। इसके साथ ही इस लीग ने भारत और अमेरिका में इस प्रकार के अन्य संगठनों के बीच सहयोग स्थापित करने का अहम कार्य भी किया। 

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असहयोग आंदोलन

वर्ष 1920 में भारत लौटने के बाद लाला लाजपत राय सितंबर में आयोजित कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा उन्हें अध्यक्ष चुना गया। क्या आप जानते हैं लाला लाजपत राय के नेतृत्व में ही ‘जलियांवाला बाग कांड’ के बाद ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ ‘असहयोग आंदोलन’ का निर्णय लिया गया था। इसके साथ ही लाला लाजपत राय ने पंजाब में इस आंदोलन की कमान संभाली। 

साइमन कमीशन का किया था पुरजोर विरोध 

लाला लाजपत राय देश के उन अग्रणी नेताओं में से एक थे जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की क्रूर नीतियों का मुखर स्वर में विरोध दर्ज कराया था और देशवासियों के बीच राष्ट्रीय भावना का प्रसार किया था। वहीं वर्ष 1927 में ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में राजनीतिक स्थिति की रिपोर्ट तैयार करने के लिए इंग्लैण्ड के वकील ‘सर जॉन साइमन’ की अगुवाई में एक सात सदस्यीय कमीशन की स्थापना की थी, जिसमें किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया था। 

इसी कारण कांग्रेस की अगुवाई में देश भर में साइमन कमीशन का जबरदस्त विरोध हुआ। महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस शांतिपूर्ण तरीके से साइमन कमीशन का विरोध कर रही थी। वहीं पंजाब में इस आंदोलन की कमान लाला लाजपत राय ने संभाल रखी थी और उनके नेतृत्व में पंजाब में एक विशाल जलूस निकाला गया।  इस प्रदर्शन में लाला लाजपत राय ने ‘साइमन वापस जाओ’ का अपना प्रसिद्ध नारा दिया। 

लाठीचार्ज में हुए लहूलुहान 

इस प्रदर्शन के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने धारा 144 लागू कर दी। इसी दौरान अंग्रेज पुलिस ने सभी प्रदर्शनकारियों पर लाठी चार्ज कर दी जिससे लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए। अपने ऊपर हुए इस प्रहार के बाद, उन्होंनें ब्रिटिश हुकूमत को चेतावनी देते हुए कहा था कि “ मुझ पर किया गया लाठी का एक एक प्रहार अंग्रेजी साम्राज्यवाद के ताबूत में एक एक कील ठोकने के बराबर है।” इसके बाद लाला लाजपत राय जी का 18 दिनों तक उपचार हुआ लेकिन जख्मों की वजह से वह ठीक नहीं को सके और 17 नवंबर 1928 को उन्होंने इस दुनिया से  अलविदा कह दिया। 

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लाला लाजपत राय की मौत का बदला

इसके बाद भगत सिंह, सुखदेव ,राजगुरु ने लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने का फैसला किया जिसमें चंद्रशेखर आजादने उनका साथ दिया। इन लोगों ने 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) के पुलिस अधीक्षक ‘जे.पी. सॉन्डर्स’ के दफ्तर को चारो ओर से घेर लिया और राजगुरु ने सॉन्डर्स पर गोली चला दी, जिससे उसकी मौत हो गई।

लाला लाजपत राय की रचनाएं 

लाला लाजपत राय ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई पुस्तकों और कई पत्रिकाओं का संपादन कार्य किया था। इसके साथ ही उन्होंने वर्ष 1895 से 1900 के दौरान ‘गैरीबाल्डी’ ,’मैजिनी’, ‘स्वामी दयानंद सरस्वती’ और ‘शिवाजी’ की जीवनियां भी लिखी थी। आइए अब हम Lala Lajpat Rai Books के बारे में जानते है, जिसकी जानकारी नीचे दी गई टेबल में दी गई है:-

किताब प्रकाशन यहाँ से खरीदें 
द स्टोरी ऑफ़ माई डिपोर्टेशन1908लिंक 
आर्य समाज 1915 लिंक 
द यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका: ए हिंदूज़ इंप्रेशन्स1916 लिंक 
यंग इंडिया1916 लिंक 
इंग्लैंड डेब्ट टू इंडिया1917 लिंक 
भारत का राजनीतिक भविष्य1919 
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा की समस्या1920 लिंक 
अनहैप्पी इंडिया 1928 लिंक 

पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय 

यहाँ ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय का जीवन परिचय (Lala Lajpat Rai Biography in Hindi) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-

के.आर. नारायणनडॉ. एपीजे अब्दुल कलाममहात्मा गांधी
पंडित जवाहरलाल नेहरूसुभाष चंद्र बोस बिपिन चंद्र पाल
गोपाल कृष्ण गोखलेनामवर सिंह सरदार वल्लभभाई पटेल
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी मुंशी प्रेमचंद रामधारी सिंह दिनकर 
सुमित्रानंदन पंतअमरकांत आर.के. नारायण
मृदुला गर्ग अमृता प्रीतम मन्नू भंडारी
मोहन राकेशकृष्ण चंदरउपेन्द्रनाथ अश्क
फणीश्वर नाथ रेणुनिर्मल वर्माउषा प्रियंवदा
हबीब तनवीरमैत्रेयी पुष्पा धर्मवीर भारती
नासिरा शर्माकमलेश्वरशंकर शेष
असग़र वजाहतसर्वेश्वर दयाल सक्सेनाचित्रा मुद्गल
ओमप्रकाश वाल्मीकिश्रीलाल शुक्लरघुवीर सहाय
ज्ञानरंजनगोपालदास नीरजकृष्णा सोबती
रांगेय राघवसच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’माखनलाल चतुर्वेदी 
दुष्यंत कुमारभारतेंदु हरिश्चंद्रसाहिर लुधियानवी
जैनेंद्र कुमारभीष्म साहनीकाशीनाथ सिंह
विष्णु प्रभाकरसआदत हसन मंटोअमृतलाल नागर 
राजिंदर सिंह बेदीहरिशंकर परसाईमुनव्वर राणा

FAQs 

लाला लाजपत राय का जन्म कब हुआ था?

लालाजी का जन्म 28 जनवरी 1865 को धुडीके (वर्तमान फिरोज़पुर जिला) पंजाब में हुआ था। 

लाला लाजपत को और किस नाम से जाना है?

लालाजी को ‘पंजाब केसरी’ और ‘शेर-ए-पंजाब’ के नाम से भी जाना जाता है। 

लाला लाजपत राय ने किस स्वदेशी बैंक की स्थापना की थी?

लालाजी ने कई स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर ‘पंजाब नेशनल बैंक’ और ‘लक्ष्मी इंश्योरेंस’ की स्थापना की थी। 

लाला लाजपत राय ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कौन सा प्रसिद्ध नारा दिया था?

लालाजी ने साइमन कमीशन के विरोध में ‘साइमन वापिस जाओं’ का प्रसिद्ध नारा दिया था। 

लाला लाजपत की मृत्यु कैसे हुई थी?

साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन में ‘जे.पी. सॉन्डर्स’ द्वारा किए गए लाठी चार्ज के दौरान घायल होने से उनकी मृत्यु हुई थी। 

आशा है कि आपको ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय का जीवन परिचय (Lala Lajpat Rai Biography in Hindi) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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