Dr Shankar Shesh ka Jivan Parichay: डॉ. शंकर शेष आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘साठोत्तरी हिन्दी साहित्य’ के सुप्रसिद्ध नाटककार व सिनेमा कथा लेखक माने जाते हैं। वहीं उनके अधिकांश नाटकों में समकालीन जीवन की ज्वलंत समस्याओं से जूझते मनुष्य की त्रासदी का चित्रण देखने को मिलता हैं। उनके प्रसिद्ध नाटकों में ‘एक और द्रोणाचार्य’, ‘रक्तबीज’, ‘फंदी’ और ‘आधी रात के बाद’ प्रमुख है जिनसे उन्हें ख्याति मिली। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वह एक नाटककार होने के साथ साथ स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, मुंबई के प्रमुख हिंदी अधिकारी भी थे। डॉ. शंकर शेष ने अधिकारी पद पर रहते हुए भी हिंदी नाट्य साहित्य में अपना विशेष योगदान दिया था। वहीं आज भी नाट्य साहित्य में उनकी रचनाएँ ‘मील का पत्थर’ मानी जाती हैं।
बता दें कि डॉ.शंकर शेष के नाटक एक और ‘द्रोणाचार्य’, ‘फंदी’ व ‘घरौंदा’ आदि बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की हैं इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी डॉ. शंकर शेष का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात नाटककार ‘डॉ. शंकर शेष’ (Dr Shankar Shesh ka Jivan Parichay) के संपूर्ण जीवन और उनकी रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | डॉ. शंकर शेष |
जन्म | 2 अक्टूबर 1933 |
जन्म स्थान | बिलासपुर नगर, मध्य प्रदेश |
पिता का नाम | नागोराव शेष |
माता का नाम | सावित्री बाई शेष |
भाई-बहन | पांच भाई- तीन बहन |
पत्नी का नाम | सुधा |
संतान | राजीव, संजय और बिंदु माधव |
शिक्षा | एम.ए. पीएच.डी. |
पेशा | लेखक, राजभाषा अधिकारी |
विधाएँ | नाटक, उपन्यास, कविताएं, एकांकी आदि। |
साहित्य काल | आधुनिक काल (साठोत्तरी पीढ़ी) |
नाटक | एक और द्रोणाचार्य, घरौंदा, रक्तबीज व फंदी आदि। |
उपन्यास | ‘तेंदु के पत्ते’ व धर्मक्षेत्रे-कुरूक्षेत्रे’ आदि |
एकांकी | हिंदी का भूत, एक प्याला काफी था, अजायबघर आदि। |
पटकथा | घरौंदा, दूरियाँ |
सम्मान | आशीर्वाद पुरस्कार, फिल्मफेयर पुरस्कार |
निधन | 28 नवंबर 1981 |
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डॉ. शंकर शेष का प्रारंभिक जीवन
विख्यात नाटककार डॉ. शंकर शेष का जन्म 2 अक्टूबर 1933 को मध्य प्रदेश के बिलासपुर नगर में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘नागोराव शेष’ था जो पेशे से मालगुजार थे, इसके साथ ही वह साहित्य, नाटक और संगीत में विशेष रूचि रखते थे। उनकी माता का नाम ‘सावित्री बाई शेष’ था जो कि एक गृहणी थीं। डॉ. शेष के पांच भाई व तीन बहनें थी। सामंती परिवार में जन्म होने कारण डॉ. शंकर शेष की देखभाल घर के नौकरों द्वारा ही गयी। वहीं पिता का नाटक व साहित्य में लगाव होने के कारण अकसर घर में नाटक व साहित्य की चर्चा होती रहती थी। इसके साथ ही सभी भाई बहनों को “रामायण” और “महाभारत” की कथाएँ सुनाई जाती थी। इस तरह उनका बचपन गुजरा।
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साहित्य सृजन के साथ ‘पीएचडी’ की उपाधि प्राप्त की
डॉ. शंकर शेष की स्कूली शिक्षा बिलासपुर नगर में ही हुई थी। वह बचपन से ही एक मेधावी छात्र थे व साहित्य में विशेष रूचि होने के कारण उन्होंने आठवीं कक्षा से ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। यहीं से उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ माना जाता हैं। हाई स्कूल की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने नागपुर के ‘मॉरिस कॉलेज’ में दाखिला लिया जहाँ उनकी लेखन कार्य में रूचि बढ़ने लगी।
डॉ. शेष ने शुरुआत में कविताओं के माध्यम से अपने लेखन की शुरुआत की वहीं उनकी कविता ‘मित्र के नाम पाती’ कॉलेज में बहुत लोकप्रिय हुई। इसके बाद उन्होंने हिंदी की अन्य विधाओं में साहित्य का सृजन किया जिसमें उपन्यास, नाटक व एकांकी शामिल हैं। इसी बीच उनका संपर्क साहित्य के विद्वानों और आकाशवाणी से हुआ जिसके बाद उन्हें रेडियो नाटक में कथा-कथन का अवसर मिला और वह कम समय में ही रेडियो के लोकप्रिय कलाकार बन गए।
अपने लेखन कार्य के साथ साथ डॉ. शंकर शेष ने ‘नागपुर विश्वविद्यालय’ से बी.ए की उपाधि प्रथम श्रेणी से पास की। इसके बाद उन्होंने भाषा विज्ञान में एम.ए. किया और ‘हिन्दी मराठी कथा साहित्य का तुलनात्मक अध्ययन’ में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
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लेक्चरर के रूप में की करियर की शुरूआत
साहित्य और लेखन कार्य से विशेष लगाव होने के कारण उन्होंने अपने करियर की शुरुआत नागपुर के मॉरिस कॉलेज में लेक्चरर के रूप में की। यहाँ कुछ वर्ष अध्यापन कार्य करने के बाद उनकी नियुक्ति ‘मध्यप्रदेश हिंदी ग्रंथ अकादमी भोपाल’ में सहायक संचालक के रूप में हुई। इस पद पर रहते हुए उन्होंने लगभग चार वर्षों तक कार्य किया। इस समय ही उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना एक विशेष स्थान हासिल कर लिया।
डॉ. शंकर शेष का वैवाहिक जीवन
जिस समय डॉ. शंकर शेष मॉरिस कॉलेज में अध्यापन कार्य कर रहे थे उसी समय ‘सुधा अत्रे’ वहाँ से अपनी एम.ए की पढ़ाई कर रही थी। कॉलेज में डॉ. शेष मुलाकात सुधाजी से हुई जो बाद में उनकी घर्मपत्नी बनी। उनकी तीन संतान हुई जिनके नाम राजीव, संजय और बिंदु माधव हैं।
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राजभाषा अधिकारी के रूप में भी किया कार्य
इसके बाद डॉ. शंकर शेष ने ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’, मुंबई में राजभाषा विभाग में मुख्य अधिकारी के रूप में कार्यभार संभाला। वहीं अपनी नौकरी के साथ साथ उन्होंने हिंदी साहित्य में नाटक, एकांकी, उपन्यास, बाल नाटक और पटकथा लेखन में अपना विशेष योगदान दिया। इसी बीच वह हिंदी नाट्य साहित्य में प्रसिद्ध नाटकार के रूप में पहचाने जाने लगे।
डॉ. शंकर शेष की साहित्यिक रचनाएँ
डॉ. शंकर शेष ने साहित्य की कई विधाओं में साहित्य का सृजन किया वहीं उनकी कई रचनाओं का कई भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद हो चुका हैं। यहाँ डॉ. शंकर शेष की संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं के बारे में बताया जा रहा है, जो कि इस प्रकार हैं:-
नाटक
- मूर्तिकार
- नई सभ्यता के नए नमूने
- रत्नगर्भा
- बेटों वाला बाप
- तिल का ताड़
- बिना बाती के द्वीप
- बंधन अपने अपने
- खुजराहो का शिल्पी
- फंदी
- त्रिकोण का चौथा कोण
- एक और द्रोणाचार्य
- कालजयी
- आधी रात के बाद
- घरौंदा
- अरे मायावी सरोवर
- रक्तबीज
- राक्षस
- पोस्टर
- चेहरे
- बाद का पानी
- कोमल गांधार
एकांकी
- हिंदी का भूत
- विवाह मंडप
- एक प्याला काफी था
- अजायबघर
- पुलिया
उपन्यास
- तेंदु के पत्ते
- धर्मक्षेत्रे-कुरूक्षेत्रे
- चेतना
- खुजराहो की अलका
बाल नाटक
- मिठाई की चोरी
- दर्द का इलाज
पटकथा
- घरौंदा
- दूरियाँ
अनुदित नाटक
- एक और गार्वो
- दूर के द्वीप
- चल मेरे कद्दू
- पंचतंत्र
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पुरस्कार और सम्मान
डॉ. शंकर शेष (Dr Shankar Shesh) को आधुनिक हिंदी साहित्य में नाटक, एकांकी, उपन्यास व बाल नाटक विधा में विशेष योगदान देने के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका हैं। यहाँ उन्हें मिले कुछ प्रमुख पुरस्कारों के बारे में बताया जा रहा है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- आशीर्वाद पुरस्कार
- फिल्मफेयर पुरस्कार
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अचानक ही कह दिया दुनिया का अलविदा
Dr Shankar Shesh ने आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान के देने के साथ ही कई अनुपम रचनाएँ की थी। जो आज भी हिंदी साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती हैं। बता दें कि डॉ. शंकर शेष का 28 नवंबर 1981 को मात्र अड़तालीस वर्ष की आयु में ही निधन हो गया था। लेकिन उनकी रचनाओं के लिए आज भी उन्हें याद किया जाता हैं।
FAQs
डॉ. शकर शेष का जन्म 2 अक्टूबर 1933 को मध्य प्रदेश के बिलासपुर नगर में हुआ था।
शंकर शेष की माता का नाम सावित्री बाई शेष और पिता का नाम नागोराव शेष था।
यह विख्यात नाटककार ‘डॉ. शंकर शेष’ का चर्चित नाटक है।
बता दें कि एक और द्रोणाचार्य, रत्नगर्भा, घरौंदा व फंदी डॉ. शकर शेष के लोकप्रिय नाटकों में से एक हैं।
यह Dr Shankar Shesh के चर्चित नाटकों में से एक हैं।
आशा है कि आपको प्रसिद्ध नाटककार ‘डॉ. शंकर शेष’ (Dr Shankar Shesh ka Jivan Parichay) का संपूर्ण जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।