Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay: महात्मा गांधी को भारतीय इतिहास के महान व्यक्तियों में से एक माना जाता हैं। जिन्होंने सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए ब्रिटिश हुकूमत की नाक में दम कर दिया था और अंत में भारत को स्वतंत्र कराने में अपनी अहम भूमिका अदा की थी। वहीं महात्मा गांधी की सत्य और अहिंसा की विचारधारा से ‘मार्टिन लूथर किंग’ और ‘नेलसन मंडेला‘ भी काफी प्रभावित थे।
महात्मा गांधी को ‘राष्ट्रपिता’ और ‘बापू’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है। वहीं उनके जन्म दिवस को हर साल गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। आपको बता दें कि यह भारत के आधिकारिक रूप से घोषित राष्ट्रीय अवकाशों में से एक है। इस वर्ष 02 अक्टूबर को हम महात्मा गांधी की 154वीं जयंती मनाई जाएगी। आइए जानते हैं महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay) और उनकी कुछ प्रसिद्ध सूक्तियां।
पूरा नाम | मोहनदास करमचंद गांधी |
जन्म तिथि | 2 अक्टूबर, 1869 |
जन्म स्थान | पोरबंद, गुजरात |
पिता का नाम | करमचंद गांधी |
माता का नाम | पुतलीबाई |
पत्नी का नाम | कस्तूरबा गांधी |
संतान | हरिलाल, मनिलाल, रामदास और देवदास |
मृत्यु | 30 जनवरी 1948 |
मृत्यु स्थान | बिड़ला मंदिर, नई दिल्ली |
आत्मकथा | ‘द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ |
प्रसिद्ध नारा | “करो या मरो” |
स्मारक | राजघाट, दिल्ली |
This Blog Includes:
- गांधी जी का आरंभिक जीवन – Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay
- गांधी जी का वैवाहिक जीवन
- गांधी जी की शिक्षा
- इस घटना से शुरू हुई मोहन दास करमचंद से ‘महात्मा’ बनने की कहानी
- सत्याग्रह की शुरुआत
- गांधी युग की शुरुआत
- असहयोग आंदोलन
- दांडी यात्रा
- गोलमेज सम्मेलन
- भारत छोड़ो आंदोलन
- गांधीजी की मृत्यु
- अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस
- महात्मा गांधी की प्रकाशित पुस्तकें
- पत्रकारिता के क्षेत्र में गांधीजी का योगदान
- महात्मा गांधी के अनमोल विचार
- पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
गांधी जी का आरंभिक जीवन – Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay
Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay: महात्मा गांधी का पूरा नाम ‘मोहन दास करमचंद’ गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को वर्तमान गुजरात राज्य के पोरबंदर जिले के मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। गांधी जी के पिता का नाम ‘करमचंद गाँधी’ था जो ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत के दीवान थे। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था। वह एक पारंपरिक हिन्दू महिला थीं जो धार्मिक प्रवृत्ति वाली एवं संयमी थी। वे अपने तीन भाईयों में सबसे छोटे थे।
गाँधीजी अपने शुरूआती जीवन में ‘राजा हरिश्चन्द्र नाटक’ से बहुत प्रभावित थे। राजा हरिश्चन्द्र की सच्चाई एवं कष्टकर जिंदगी से सफलतापूर्वक निकलने की अद्भुत क्षमता ने गाँधीजी को अत्यंत प्रभावित किया। इसलिए गांधी जी ने भी राजा हरिश्चन्द्र के दिखाये मार्ग पर चलने का मन बना लिया।
गांधी जी का वैवाहिक जीवन
गांधी जी का विवाह महज 13 साल की उम्र में ‘कस्तूरबा गांधी’ के साथ हो गया था। कस्तूरबा गांधी के पिता ‘गोकुलदास माखन’ जी एक धनी व्यवसायी थे। कस्तूरबा गांधी शादी से पहले तक अनपढ़ थीं। विवाह के बाद गांधी जी ने ही उन्हें लिखना एवं पढ़ना सिखाया था। लेकिन विवाह के दो साल बाद ही सन् 1885 ई. में गांधी जी के पिताजी का देहांत हो गया और एक वर्ष बाद उनकी पहली संतान हुई, लेकिन दुर्भाग्यवश जन्म के कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई।
कस्तूरबा गाँधी अत्यंत धर्मपरायण महिला थीं। गाँधीजी के विचारों का अनुसरण कर उन्होंने भी जातीय भेदभाव करना छोड़ दिया। वे स्पष्टवादी, व्यवहार-कुशल एवं अनुशासित महिला थीं। महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी के चार पुत्र हुए जिनका नाम इस प्रकार हैं हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास।
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गांधी जी की शिक्षा
गांधी जी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर, गुजरात में हुई थी। पोरबंदर से उन्होंने मिडिल स्कूल तक की शिक्षा प्राप्त की। उन्हें खेलों में बिलकुल भी रुचि नहीं थी और न ही उनके आप कोई विशेष प्रतिभा थीं। वे हमेशा अकेला रहना पसंद करते थे। वर्ष 1887 में राजकोट हाई स्कूल से दसवीं की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने भावनगर के ‘सामलदास महाविद्यालय’ में प्रवेश लिया, लेकिन उन्हें वहाँ का माहौल पढ़ाई के अनुकूल नहीं लगा।
गांधी जी अपने बड़े भाई लक्ष्मीदास के बहुत करीब थे। पिताजी की मृत्यु के बाद उनके बड़े भाई ने ही उनकी आगे की पढ़ाई में मदद की एवं उन्हें वकालत की पढ़ाई के लिए लंदन, इंग्लैंड भेजा। 4 सितम्बर 1888 को अट्ठारह वर्ष की उम्र में वे साउथेम्पटन के लिए रवाना हो गए। लंदन में शुरूआती कुछ दिन गाँधीजी के लिए अत्यंत कठिन रहे।
इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद गाँधीजी राजकोट लौट आए एवं कुछ दिनों तक यहाँ रहने के बाद उन्होंने बंबई में वकालत की शुरुआत करने का निर्णय लिया। हालाँकि बंबई में रहकर उन्हें वकालत में कोई सफलता नहीं मिली। जिसके बाद वह राजकोट लौटे आए और उन्होंने फिर से वकालत में आगे बढ़ने का निर्णय लिया। इसमें गांधी जी को अपने पुरे परिवार का सहयोग मिला।
इस घटना से शुरू हुई मोहन दास करमचंद से ‘महात्मा’ बनने की कहानी
क्या आप जानते हैं दक्षिण अफ्रीका गांधीजी के जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। यहीं से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया और उनके जीवन को एक नई दिशा मिली। जब वर्ष 1893 में वह गुजराती व्यापारी ‘शेख अब्दुल्ला’ के क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम करने डरबन, दक्षिण अफ्रीका चले गए। यहीं रहते हुए उन्होंने नस्लीय भेदभाव का पहली बार अनुभव किया क्योंकि अंग्रेजों द्वारा भारतीयों और अफ्रीकियों के साथ जातीय भेदभाव किया जाता था। जिसका शिकार गाँधीजी को भी कई बार होना पड़ा था।
एक बार उन्हें डरबन के न्यायलय में न्यायधीश ने उन्हें अपनी पगड़ी उतारने को कहा। जिसे गांधी जी में अस्वीकार कर दिया और वह न्यायालय से बाहर निकल गये। इसके कुछ समय बाद 31 मई 1893 को गांधी जी प्रथम श्रेणी से ‘प्रिटोरिया’ की यात्रा कर रहे थे लेकिन एक अंग्रेज व्यक्ति ने उनकी प्रथम श्रेणी के डब्बे से यात्रा करने पर आपत्ति जताई और उन्हें ट्रेन के अंतिम माल डब्बे में जाने को कहा। क्योंकि किसी भी भारतीय या अश्वेत व्यक्ति का प्रथम श्रेणी में यात्रा करना प्रतिबंधित था।
गाँधीजी के पास प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बात कहकर ट्रेन के अंतिम डिब्बे में जाने से इंकार कर दिया। लेकिन उन्हें ‘पीटमेरित्जबर्ग’ रेलवे स्टेशन पर बेहद सर्दी में उतार दिया गया। इस घटना के बाद उन्होंने फैसला किया कि वह जातीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष करेंगें। यह अंग्रेजों को केवल दक्षिण अफ्रीका में ही नहीं बल्कि भारत में भी बहुत महंगा पड़ने वाला था।
सत्याग्रह की शुरुआत
दक्षिण अफ्रीका में गांधीजी ने प्रवासी भारतीयों और अफ्रीकियों के अधिकारों के लिए कई सफल आंदोलन किए। इन सभी आंदोलनों में उन्होंने ‘अहिंसात्मक’ रूप से अपना विरोध जताया और ब्रिटिश हुकूमत को उनकी दमनकारी नीतियों को बदलने पर मजबूर कर दिया। लेकिन इन सामजिक आंदोलनों की गूंज दक्षिण अफ्रीका तक ही नहीं बल्कि भारत भी पहुंची। वर्ष 1915 में गांधीजी भारत वापस लौट आए और उन्होंने यह निर्णय लिया कि पहले एक वर्ष तक वे देश के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण करेंगे और लोगों का हाल सुनेंगे।
एक वर्ष देश का भ्रमण करने के बाद गांधीजी ने अहमदाबाद से सटे साबरमती नदी के तट पर अपना एक आश्रम बनाया, जिसका नाम उन्होंने सत्याग्रह आश्रम रखा। इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपना ‘पहला सत्याग्रह’ वर्ष 1917 में बिहार के चंपारण जिले से शुरू किया। यहाँ गांधीजी ने नील की खेती करने वाले हजारों किसानों को नील बगान के मालिकों के शोषण से मुक्ति दिलाई।
इसके बाद गांधीजी ने ‘सरदार वल्लभभाई पटेल’ के साथ वर्ष 1918 में खेड़ा, गुजरात में किसान आंदोलन का नेतृत्व किया। यहाँ उन्होंने किसानों की भू-राजस्व माफ करे जाने की मांग का समर्थन किया और उन्हें यह सलाह दी कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे ब्रिटिश सरकार को राजस्व का भुगतान न करें। बता दें कि यह आंदोलन जून 1918 तक चला और अंत में ब्रिटिश सरकार ने किसानों की मांगों को स्वीकार कर लिया।
गांधी युग की शुरुआत
वर्ष 1915 में गांधीजी के राजनितिक गुरु ‘गोपाल कृष्ण गोखले’ का निधन हो गया। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) में नरम दल के सबसे बड़े नेता थे। इनके बाद ‘बाल गंगाधर तिलक’ INC के सबसे बड़े नेता थे जिन्हें ‘लोकमान्य तिलक’ के रूप में जाना जाता हैं। उन्होंने ही प्रसिद्ध नारा दिया था जिसमें उन्होंने कहाँ था “आजादी मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूँगा।”
गांधीजी ने उन्हें ‘आधुनिक भारत का निर्माता’ की संज्ञा दी थी। लेकिन वर्ष 1920 में बाल गंगाधर तिलक का भी निधन हो गया। इसके बाद गांधीजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे और यही से गांधी युंग की शुरुआत हुई। वर्ष 1919 में अमृतसर, पंजाब में ‘रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर’ ने ‘जलियांवाला बाग’ में आम सभा में शामिल निहत्थे लोगों पर अंधाधुंध गोलियां चलवा दी जिससे हजारों मासूमों की जान चली गई। इस नरसंहार के बाद गांधीजी और अन्य भारतीय स्वतंत्रता सैनानियों ने अपने इनाम और उपाधियाँ ब्रिटिश सरकार को लौटा दी।
असहयोग आंदोलन
वर्ष 1920 में गांधीजी के नेतृत्व में ‘असहयोग आंदोलन’ की शुरुआत हुई। इसका मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ अहिंसक विरोध जताना एवं सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत करना था। इस राष्ट्रीय आंदोलन के बाद देश के सभी प्रतिष्ठित लोगों ने ब्रिटिश सरकार द्वारा मिले सम्मान और उपाधियाँ लौटा दी। महान साहित्यकार ‘रबींद्रनाथ टैगोर’ ने भी ब्रिटिश किंग जॉर्ज पंचम द्वारा दी गई ‘नाइटहुड’ की उपाधि को जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद लौटा दी।
इस आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत में कार्यरत हजारों लोगों ने अपनी नौकरी छोड़ दी, वकीलों ने वकालत का छोड़ दी और छात्रों ने स्कूल व कॉलेज जाना बंद कर दिया। वहीं विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया और लोगों ने अपने अपने घरों में चरखा चलाकर स्वदेशी कपड़े बुनने शुरू कर दिए। गाँधीजी ने भी ‘यंग इंडिया’ एवं ‘नवजीवन’ नामक दो साप्ताहिक समाचार-पत्रों के से आम लोगों तक अपनी बात पहुँचाई।
दांडी यात्रा
12 मार्च 1930 को गांधीजी ने अन्य स्वतंत्रता सैनानियों के साथ मिलकर ‘दांडी यात्रा’ की शुरुआत की। ‘नमक सत्याग्रह’ के नाम से प्रसिद्ध यह एक ऐसा आंदोलन था जिसका उद्देश्य औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश नमक कर के खिलाफ अहिंसक विरोध प्रदर्शन करना था।
गांधीजी ने साबरमती से अरब सागर तक 78 अनुयायियों के साथ 241 मील की यात्रा की और नमक न बनाने वाले ब्रिटिश कानून को तोड़ दिया। इसके कुछ समय बाद ही गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया और प्रमुख क्रांतिकारी नेताओं को जेल में डाल दिया। लेकिन इस आंदोलन में देश के लाखों लोगों शामिल हुआ और यह आंदोलन जारी रखा। 26 जनवरी 1931 को गांधीजी और अन्य स्वतंत्रता सैनानियों को रिहा कर दिया गया।
गोलमेज सम्मेलन
5 मार्च 1931 को गांधीजी और ब्रिटिश ‘वायसराय लॉर्ड इरविन’ के बीच एक समझौते हुआ। जिसके बाद उन्होंने लंदन में हुए गोलमेज सम्मेलन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) से एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में हिस्सा लिया। हालांकि यह बैठक निराशाजनक रही और इसमें ब्रिटिश हुकूमत ने क्रूर शासन की अपनी नीति को नए सिरे से लागू किया। इसके बाद जनवरी 1932 में गांधीजी ने फिर से ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ की शुरुआत की।
भारत छोड़ो आंदोलन
वर्ष 1942 में गाँधीजी ने ‘भारत छोड़ो’ का प्रसिद्ध नारा दिया जो भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का संकेत था। क्या आप जानते हैं ‘भारत छोड़ो’ का नारा ‘यूसुफ मेहरली’ द्वारा गढ़ा गया था, जिन्होंने बाद में मुंबई के मेयर के रूप में भी काम किया था। इस आंदोलन के कारण देश में एकता और भाईचारे की एक बेजोड़ भावना पैदा हुई। भारत छोड़ो आंदोलन से ब्रिटिश हुकूमत के हौसले पस्त पड़ गए और जून 1947 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने घोषणा की कि 15 अगस्त भारत आजाद हो जाएगा। हालांकि भारत की आजादी के साथ ही एक नए देश ‘पाकिस्तान’ का भी जन्म हुआ।
गांधीजी की मृत्यु
भारत को स्वतंत्रता मिले हुए अभी कुछ ही माह बीते थे। जब 30 जनवरी 1948 को जब गांधीजी दिल्ली स्थित ‘बिड़ला मंदिर’ से अपनी संध्या प्रार्थना समाप्त कर बाहर निकले तभी अचानक ‘नाथूराम गोडसे’ ने उनके सीने पर तीन गोलियां चला दी। अपने अंतिम समय में उनके मुख से सिर्फ दो ही शब्द निकले ‘हे राम’!
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस
गांधीजी के जन्म दिवस को प्रत्येक वर्ष ‘गाँधी जयंती’ के रूप में मनाया जाता है। भारत के लोग उन्हें प्यार से ‘बापू’ एवं ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से पुकारते हैं। माना जाता है कि रबींद्रनाथ टैगोर ने ही गांधीजी को ‘महात्मा’ की उपाधि दी थी। गांधीजी दुनिया में मानवता एवं शांति के प्रतीक माने जाते हैं उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में लोगों को सत्य और अहिंसा की शिक्षा दी थी। वहीं संयुक्त राष्ट्र ने भी 2 अक्टूबर को ‘अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की है।
यह भी पढ़ें – अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस
महात्मा गांधी की प्रकाशित पुस्तकें
यहाँ महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay) की जानकारी के साथ ही उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों के बारे में भी जानकारी दी जा रही है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-
पुस्तक का नाम | प्रकाशन वर्ष |
हिंद स्वराज | 1909 |
अहिंसा के प्रथम चरण | 1910 |
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह | 1920 |
व्यक्तिगत सत्याग्रह | 1920 |
‘द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ (सत्य के प्रयोग) | 1927 |
गीता बोध | 1929 |
सामाजिक परिवर्तन के लिए धर्म | 1936 |
स्वराज्य की ओर | 1937 |
मेरे सपनों का भारत | 1942 |
पत्रकारिता के क्षेत्र में गांधीजी का योगदान
यहाँ महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay) की जानकारी के साथ ही उनके द्वारा कुछ प्रकाशित पत्रिकाओं के बारे में भी बताया गया है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-
- नवजीवन
- यंग इंडिया
- हरिजन
महात्मा गांधी के अनमोल विचार
यहाँ महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay) की जानकारी के साथ ही उनके कुछ अनमोल विचारों के बारे में भी बताया जा रहा है। जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं:-
- “अहिंसा सबसे बड़ा कर्तव्य है। यदि हम इसका पूरा पालन नहीं कर सकते हैं तो हमें इसकी भावना को अवश्य समझना चाहिए और जहां तक संभव हो हिंसा से दूर रहकर मानवता का पालन करना चाहिए।”
- “आजादी का कोई अर्थ नहीं है यदि इसमें गलतियां करने की आजादी शामिल न हों।”
- “उस प्रकार जिएं कि आपको कल मर जाना है। सीखें उस प्रकार जैसे आपको सदा जीवित रहना हैं।”
- “आंख के बदले आंख पूरे विश्व को अंधा बना देगी।”
- “बेहतर है कि हिंसा की जाए, यदि यह हिंसा हमारे दिल में हैं, बजाए इसके कि नपुंसकता को ढकने के लिए अहिंसा का शोर मचाया जाए।”
- “किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति के लिए सोने की बेड़ियां, लोहे की बेड़ियों से कम कठोर नहीं होगी। चुभन धातु में नहीं वरन् बेड़ियों में होती है।”
- “निःशस्त्र अहिंसा की शक्ति किसी भी परिस्थिति में सशस्त्र शक्ति से सर्वश्रेष्ठ होगी।”
- “आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक समुद्र है, यदि समुद्र की कुछ बूंदें सूख जाती है तो समुद्र मैला नहीं होता।”
- “व्यक्ति को अपनी बुद्धिमानी के बारे में पूरा भरोसा रखना बुद्धिमानी नहीं है। यह अच्छी बात है कि याद रखा जाए कि सबसे मजबूत भी कमजोर हो सकता है और बुद्धिमान भी गलती कर सकता है।”
- “स्वतंत्रता एक जन्म की भांति है। जब तक हम पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हो जाते तब तक हम परतंत्र ही रहेंगे।”
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ ‘राष्ट्रपिता’ महात्मा गांधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-
FAQs
महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात राज्य के पोरबंदर जिले में हुआ था।
महात्मा गांधी का पूरा नाम ‘मोहन दास करमचंद’ गांधी था।
‘द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रूथ’ महात्मा गांधी की आत्मकथा है।
गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ‘करो या मरो’ का नारा दिया था।
30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला मंदिर में गांधी जी का निधन हुआ था।
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