शहीद-ए-आजम भगत सिंह का जीवन परिचय, विचार और बलिदान 

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भगत सिंह का जीवन परिचय

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली युवा क्रांतिकारियों में गिना जाता है। उन्होंने मात्र 23 वर्ष की अल्प आयु में अपने साथियों के साथ देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए थे। इस कारण वे स्वतंत्रता संग्राम के समय युवाओं के लिए एक आदर्श और प्रेरणा स्रोत बन गए थे। इस वर्ष 28 सितंबर 2026 को उनकी 119वीं जयंती मनाई जाएगी। इस लेख में आप महान क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय और स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जानेंगे।

नाम भगत सिंह 
जन्म28 सितंबर, 1907
जन्म स्थानलायलपुर जिला (वर्तमान पाकिस्तान)
पिता का नाम किशन सिंह संधू  
माता का नाम विद्यावती कौर
भाई – बहनरणवीर, कुलतार, राजिंदर, कुलबीर, जगत, प्रकाश कौर, अमर कौर
भगत सिंह की रचना मैं नास्तिक क्यों हूँ? (Why I Am an Atheist)
मृत्यु 23 मार्च, 1931 (लाहौर सेंट्रल जेल, पाकिस्तान)

भगत सिंह का जन्म एवं आरंभिक जीवन

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 को तत्कालीन पंजाब प्रांत के लायलपुर ज़िले के बंगा गांव (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलां, पंजाब (भारत) में स्थित है। उनके जन्म के समय उनके पिता ‘किशन सिंह संधू’ और परिवार के कुछ अन्य सदस्य जेल में थे। उन्हें वर्ष 1906 में ब्रिटिश सरकार द्वारा जबरन लागू किए गए उपनिवेशीकरण विधेयक के विरोध में प्रदर्शन करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। भगत सिंह की माता का नाम ‘विद्यावती कौर’ था।

भगत सिंह ने पाँचवीं कक्षा तक की पढ़ाई अपने गांव में की और उसके बाद उनके पिता किशन सिंह ने उनका दाखिला लाहौर के ‘दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल’ में करवाया। बहुत कम उम्र में ही भगत सिंह महात्मा गांधी के ‘असहयोग आंदोलन’ से जुड़ गए थे। हालांकि, वह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे।

जलियांवाला बाग हत्याकांड

उस समय भगत सिंह लगभग बारह वर्ष के थे जब वर्ष 1919 में अमृतसर का ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ हुआ। इस हत्याकांड ने उनके बाल मन पर अत्यंत गहरा प्रभाव डाला। इसके कुछ समय बाद साल 1920 में उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे ‘असहयोग आंदोलन’ में भाग लिया, जिसके अंतर्गत गांधी जी विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और सरकारी संस्थाओं से त्याग की अपील कर रहे थे। इस आंदोलन से प्रभावित होकर भगत सिंह ने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी थी।

लेकिन जब वर्ष 1922 में ‘चौरी चौरा’ की हिंसात्मक घटना के कारण महात्मा गांधी ने ‘असहयोग आंदोलन’ को अचानक वापस ले लिया, तो इस निर्णय का भगत सिंह पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्हें लगा कि केवल अहिंसा से स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। इस घटना के बाद उन्होंने क्रांतिकारी मार्ग अपनाने का निश्चय किया और आगे चलकर ‘चंद्रशेखर आज़ाद’ के नेतृत्व वाले ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (HSRA) से जुड़ गए।

काकोरी कांड 

इसके बाद भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद और अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू कीं। इसी दौरान 9 अगस्त, 1925 को ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के सदस्यों जिनमें रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, चंद्रशेखर आज़ाद आदि प्रमुख थे; ने शाहजहाँपुर से लखनऊ जा रही एक पैसेंजर ट्रेन को काकोरी स्टेशन के पास रोककर उसमें ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को जब्त कर लिया। यह घटना इतिहास में ‘काकोरी कांड’ के नाम से प्रसिद्ध हुई।

लाला लाजपत राय की मृत्यु 

30 अक्टूबर 1928 को ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘साइमन कमीशन’ को जबरन लागू किए जाने के विरोध में लाहौर में एक विशाल प्रदर्शन किया गया, जिसका नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया। उन्होंने “साइमन वापस जाओ” का ऐतिहासिक नारा दिया। इस दौरान ब्रिटिश पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज में लाला जी गंभीर रूप से घायल हो गए और कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई।

असेंबली में बम फेंकना

लाला लाजपत राय की मृत्यु से आहत होकर भगत सिंह और उनके साथियों ने ब्रिटिश सरकार से बदला लेने का निश्चय किया और लाठीचार्ज के लिए जिम्मेदार पुलिस अधिकारी जेम्स स्कॉट को मारने की योजना बनाई। लेकिन स्कॉट के स्थान पर भूलवश असिस्टेंट सुप्रिंटेंडेंट जे. पी. सॉन्डर्स को गोली मार दी गई। इसके बाद स्वयं को पुलिस से बचाने के लिए भगत सिंह लाहौर से तुरंत निकल गए। ब्रिटिश सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के लिए बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान शुरू कर दिया।

भगत सिंह और उनके दोनों साथियों को फाँसी 

भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, राजगुरु और सुखदेव ने ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में कोई बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाने का निश्चय किया। इसी योजना के अंतर्गत, 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर दिल्ली स्थित केंद्रीय विधानसभा भवन में प्रतीकात्मक रूप से बम फेंका। बम इस प्रकार फेंके गए कि किसी को गंभीर हानि न हो। इसके बाद उन्होंने “इंकलाब ज़िंदाबाद” के नारे लगाए और विरोध से संबंधित पर्चे बाँटे। वे भागे नहीं, बल्कि स्वेच्छा से गिरफ़्तार हो गए ताकि अपने विचारों को अदालत में प्रस्तुत कर सकें।

इसके बाद भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव पर लाहौर षड्यंत्र केस के अंतर्गत मुकदमा चलाया गया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें फांसी की सज़ा सुनाई गई। जेल में रहते हुए भगत सिंह ने राजनीतिक कैदियों के अधिकारों के लिए भूख हड़ताल सहित कई विरोध प्रदर्शन किए।

इसी दौरान उन्होंने अपना प्रसिद्ध लेख ‘मैं नास्तिक क्यों हूँ’ (Why I Am an Atheist) लिखा। 23 मार्च 1931 की संध्या को, ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को निर्धारित समय से पहले ही फांसी दे दी और जनविरोध की आशंका के चलते गुप्त रूप से उनका अंतिम संस्कार भी करवा दिया।

शहीद भगत सिंह और उनके साथियों के बलिदान को आज भी पूरे देश में श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है। हर वर्ष 23 मार्च को उनकी शहादत की स्मृति में ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है, और इस दिन राष्ट्र उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

जानें भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार

भगत सिंह के कुछ प्रसिद्ध विचार नीचे दिए गए हैं:-

  • “व्यक्तियों को कुचल कर, वे विचारों को नहीं मार सकते।” – शहीद भगत सिंह 
  • “मैं एक मानव हूं और जो कुछ भी मानवता को प्रभावित करता है, उससे मुझे मतलब है।” – शहीद भगत सिंह 
  • “मेरा धर्म सिर्फ देश की सेवा करना है।” – शहीद भगत सिंह 
  • “महान साम्राज्य ध्वंस हो जाते हैं पर विचार जिंदा रहते हैं।” – शहीद भगत सिंह 
  • “कानून की पवित्रता तभी तक बनी रह सकती है जब तक वो लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति करे।” – शहीद भगत सिंह 
  • “बहरों को सुनाने के लिए धमाके की जरूरत।” – शहीद भगत सिंह 
  • “जो भी विकास के लिए खड़ा है, उसे हर चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा और उसे चुनौती देना होगा।” – शहीद भगत सिंह 
  • “राख का हर कण मेरी गर्मी से गतिमान है। मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है।” – शहीद भगत सिंह

FAQs

भगत सिंह के माता-पिता का क्या नाम था?

भगत सिंह की माता का नाम विद्यावती कौर और पिता का नाम किशन सिंह संधू था।

भगत सिंह ने किस संगठन की स्थापना की थी?

भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारियों ने मार्च 1926 में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की थी।

भगत सिंह ने किस पुस्तक की रचना की थी?

मैं नास्तिक क्यों हूँ? पुस्तक का प्रकाशन 27 सितंबर, 1931 को किया गया था।

भगत सिंह की मृत्यु कब हुई थी?

भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव को लाहौर सेंट्रल जेल, पाकिस्तान में 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी।

आशा है कि आपको भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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