Vanaspati Ke Prakar: भारत में प्रमुख वनस्पतियों के प्रकार और उनकी विशेषताएं

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Vanaspati Ke Prakar

Vanaspati Ke Prakar: भारत की धरती पर वनस्पति का संसार उतना ही विविध है जितना यहाँ का मौसम, संस्कृति और परंपरा। बताना चाहेंगे कि यहां की वनस्पति न केवल देश की पारिस्थितिकी को संतुलित रखती है, बल्कि अनेक जीव-जंतुओं का आधार भी बनती है। भारत में वनस्पति को मुख्यतः चार प्रमुख प्रकारों में बांटा जाता है – उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन, पर्णपाती वन, शुष्क और कंटीली वनस्पति तथा पर्वतीय वनस्पति। अक्सर भारत में वनस्पति के प्रकार से संबंधित कई प्रश्न पूछे जाते हैं। इसलिए इस लेख में आपके लिए भारत में वनस्पति के प्रकार (Vanaspati Ke Prakar) के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसके लिए आपको इस लेख को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।

वनस्पति की परिभाषा

वनस्पति शब्द का प्रयोग सामान्यतः पौधों और उनकी जातियों के संदर्भ में किया जाता है। यह एक प्राकृतिक जीवों का समूह है, जो मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और सूर्य के प्रकाश का उपयोग करके भोजन बनाने की प्रक्रिया में सक्षम होते हैं। वनस्पतियाँ पृथ्वी पर जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं, क्योंकि ये न केवल वातावरण को ऑक्सीजन प्रदान करती हैं, बल्कि पशु और मानव जीवन के लिए भोजन और अन्य आवश्यक संसाधन भी प्रदान करती हैं।

वनस्पति का शाब्दिक अर्थ पौधों से है, लेकिन इसका दायरा बहुत विस्तृत है। बताना चाहेंगे कि इसमें पेड़, झाड़ियाँ, घास, शैवाल, फूलों के पौधे, और यहां तक कि समुद्र में उगने वाली समुद्री वनस्पतियाँ भी शामिल होती हैं। वनस्पतियाँ जीवन के कई पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये न केवल हमें भोजन और ऑक्सीजन देती हैं, बल्कि प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में भी मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, वनस्पतियाँ जलवायु को नियंत्रित करने, मृदा संरक्षण करने और विभिन्न जैविक प्रणालियों को संतुलित रखने में सहायक होती हैं।

भारत में वनस्पति के प्रकार

भारत एक जैव विविधता से भरपूर देश है, जहाँ विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। यहां के विभिन्न मौसम, जलवायु, और भौगोलिक परिस्थितियाँ वनस्पतियों की अनेक किस्मों को जन्म देती हैं। भारत में वनस्पति के निम्नलिखित प्रकार होते हैं, जो इस प्रकार हैं –

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन

भारत में वनस्पति की एक समृद्ध और विविध दुनिया है, जो न केवल सुंदरता से भरपूर है, बल्कि हमारे पर्यावरण को भी संतुलित बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इनमें से एक प्रमुख वनस्पति प्रकार है – उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन। यह वनस्पति विशेषत: उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहां वर्षभर गर्मी और नमी बनी रहती है, जैसे कि भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट और उत्तर-पूर्वी भारत।

उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन में पेड़-पौधे सालभर हरे-भरे रहते हैं, जिसका मतलब है कि इनमें पत्तियां गिरती नहीं हैं, बल्कि ये निरंतर हरे रहते हैं। इन वनों की विशेषता यह है कि यहां वर्षा का स्तर बहुत अधिक होता है, जिससे ये वन हरियाली से भरपूर रहते हैं। इन वनों में बड़ी-बड़ी और ऊंची पेड़ की जातियाँ जैसे सागौन, शीशम, महोगनी, और बांस आदि पाई जाती हैं।

बता दें कि उष्णकटिबंधीय सदाबहार वनों में बहुत सारी औषधीय पौधों की प्रजातियाँ (जैसे कि हल्दी, अदरक, और बायोमेडिकल के लिए उपयोगी अन्य पौधे) भी होती हैं। इन वनों का जैव विविधता में योगदान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन क्षेत्र में अनेक दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियाँ पाई जाती हैं।

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन

उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन को अंग्रेजी में “Tropical Deciduous Forest” कहा जाता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में होते हैं, जहां वर्षा की मात्रा बहुत अधिक होती है। इन वनों की विशेषता यह है कि यहां के पेड़, जो अधिकांशत: हर साल अपने पत्ते छोड़ देते हैं। यही कारण है कि इन वनों में मौसम के अनुसार पत्तियों का गिरना और फिर नई पत्तियों का उगना ही इनकी जीवनशैली का हिस्सा है।

भारत में उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वनों के उदाहरण मध्यप्रदेश, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। यहां के प्रमुख पेड़ों में साल, साग, बांस, तेंदू, और बबूल जैसे पौधे शामिल हैं। ये वनों में पशु और पक्षियों की भी विविधता देखने को मिलती है, जैसे कि हाथी, बाघ, और विभिन्न प्रकार के पक्षी, जो इन वनों के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं।

इन वनों का पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यह वर्षा जल को संचित करने, मिट्टी के कटाव को रोकने और जलवायु को संतुलित करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, उष्णकटिबंधीय पर्णपाती वन स्थानीय लोगों के लिए लकड़ी, फल और अन्य प्राकृतिक संसाधनों का महत्वपूर्ण स्रोत होते हैं।

कांटेदार झाड़ियाँ और झाड़-झंखाड़

भारत की वनस्पतियों में अत्यधिक विविधता पाई जाती है, और यहां के पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों का योगदान अनमोल है। इन वनस्पतियों में से एक महत्वपूर्ण समूह कांटेदार झाड़ियाँ और झाड़-झंखाड़ (thorny shrubs and thickets) का है, जो विशेष रूप से सूखा और अर्ध-सूखा क्षेत्र में पाए जाते हैं। यह वनस्पति न केवल प्रकृति के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है, बल्कि विभिन्न जीवों के लिए जीवन का आधार भी है।

कांटेदार झाड़ियाँ आमतौर पर शुष्क या रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जहां पानी की कमी होती है। इन झाड़ियों में कांटे होते हैं, जो पौधों को प्राक्रतिक शिकारियों से बचाते हैं। इसके अलावा, कांटेदार झाड़ियाँ मृदा की जल धारण क्षमता को बढ़ाने और मिट्टी के कटाव को रोकने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, भारतीय रेगिस्तान में पाए जाने वाले “कांटेदार बबूल” और “खेजड़ी” जैसे पौधे इन क्षेत्रों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनकी जड़ें मिट्टी में गहरी जाती हैं, जो भूमि की संरचना को मजबूत करने में सहायक होती हैं।

झाड़-झंखाड़, यानी घनी झाड़ियों का समूह, अधिकतर उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। ये पौधे अक्सर जंगलों और घास के मैदानों के किनारे पर उगते हैं और इनकी शाखाएं जंगली जानवरों के लिए आश्रय का काम करती हैं। बताना चाहेंगे कि कांटेदार झाड़ियाँ और झाड़-झंखाड़ भारतीय वनस्पति की एक महत्वपूर्ण श्रेणियों में से एक है, जो न केवल जैव विविधता को समृद्ध करती हैं, बल्कि मानव जीवन और अन्य जीवों के लिए भी अनिवार्य हैं। इन पौधों का संरक्षण और समझ हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक है।

पर्वतीय वनस्पति

पर्वतीय वनस्पतियों का मुख्य कारण है उन क्षेत्रों में तापमान और आर्द्रता की विशेष स्थिति। इन क्षेत्रों में ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान कम होता है, जिससे केवल कुछ विशेष प्रकार की वनस्पतियाँ ही जीवित रह पाती हैं। उदाहरण के लिए, हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली “देवदार” और “पाइन” जैसी पादप प्रजातियाँ पर्वतीय वनस्पति का हिस्सा हैं। इसके अलावा, ओक, चीड़ और बर्च जैसे वृक्ष भी इस प्रकार की वनस्पति का उदाहरण हैं।

इसके अतिरिक्त, पर्वतीय क्षेत्रों में छोटे पौधे और शंखपुष्पी जैसी औषधीय वनस्पतियाँ भी पाई जाती हैं, जो स्थानीय जीवन और पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। पर्वतीय वनस्पतियाँ न केवल पर्यावरण के संतुलन में मदद करती हैं, बल्कि ये जैव विविधता को भी बढ़ाती हैं, जिससे इन क्षेत्रों के पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती मिलती है।

इन वनस्पतियों का संरक्षण बेहद आवश्यक है, क्योंकि ये न केवल पर्यावरण को संरक्षित करने में मदद करती हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों के जीवन का भी अभिन्न हिस्सा हैं। इस प्रकार, पर्वतीय वनस्पति न केवल प्राकृतिक सुंदरता में योगदान करती हैं, बल्कि जीवनदायिनी भी साबित होती हैं।

दलदली वनस्पति

दलदली वनस्पति को अंग्रेजी में Marshy Vegetation कहा जाता है। बताना चाहेंगे कि दलदली वनस्पति उन स्थानों पर पाई जाती हैं जहाँ मिट्टी हमेशा गीली या दलदली रहती है। भारत में इस प्रकार की वनस्पति सुंदरवन के क्षेत्र, असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के आस-पास के क्षेत्र, या केरल के बैकवाटर क्षेत्र आदि में पाई जाती हैं। इन जगहों पर उगने वाले पौधों में मुख्य रूप से सरकंडा (Typha), नरकट (Phragmites), और काई (Mosses) शामिल हैं। ये पौधे जल को शुद्ध करने, भूमि कटाव को रोकने और कई जलीय जीवों को आश्रय देने में सहायक होते हैं।

जलीय वनस्पति 

जलीय वनस्पति को अंग्रेजी में Aquatic Vegetation कहा जाता है, इस प्रकार की वनस्पतियाँ पूरी तरह से पानी में उगती हैं या आंशिक रूप से जलमग्न रहती हैं। भारत की झीलों, नदियों और तालाबों में इस प्रकार की वनस्पतियों का बड़ा योगदान होता है। बता दें कि डल झील (कश्मीर), चिल्का झील (ओडिशा) और लोकटक झील (मणिपुर) में पाई जाने वाली कमल (Lotus), जलकुंभी (Water Hyacinth), सिंघाड़ा (Water Chestnut) और हाइड्रिला (Hydrilla) जैसे पौधे जलीय वनस्पति में शामिल हैं। ये न केवल जल जीवों को ऑक्सीजन प्रदान करते हैं बल्कि मछलियों की प्रजातियों के लिए आश्रय और खाद्य स्रोत भी बनते हैं।

प्राकृतिक वनस्पति और मानव निर्मित वनस्पति में अंतर

प्राकृतिक वनस्पति वे पेड़-पौधे होते हैं जो बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के अपने आप उगते हैं। इस प्रकार की वनस्पति क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी और वर्षा पर निर्भर करती हैं। तो वहीं मानव निर्मित वनस्पति वे पेड़-पौधे होते हैं, जो इंसानों द्वारा विशेष उद्देश्य (जैसे – खेती के लिए, सजावट के लिए, लकड़ी या फल-फूल के लिए) से उगाए जाते हैं। प्राकृतिक वनस्पति और मानव निर्मित वनस्पति में अंतर को निम्नलिखित तालिका के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार है –

प्राकृतिक वनस्पतिमानव निर्मित वनस्पति
इसकी उत्पत्ति स्वाभाविक रूप से, बिना मानवीय हस्तक्षेप के होती है।यह वनस्पति मानव द्वारा योजनाबद्ध तरीके से उगाई जाती है।
यह वनस्पति मुख्य रूप से जंगल, पहाड़, रेगिस्तान, दलदली क्षेत्र आदि स्थानों पर पाई जाती है।इस प्रकार की वनस्पति का स्थान खेत, बाग-बगीचे, सड़क किनारे, आवासीय क्षेत्र आदि होते हैं।
इस वनस्पति की जैव विविधता अत्यधिक और प्राकृतिक रूप की होती है।इस प्रकार की वनस्पतियों की जैव विविधता सीमित, उद्देश्य पर आधारित होती है।
इन वनस्पतियों के रख-रखाव पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरुरत नहीं होती क्योंकि यह स्वयं विकसित होती हैं।इस प्रकार की वनस्पति को नियमित देखभाल, सिंचाई, खाद की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार की वनस्पति का उद्देश्य पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना है।इसका उद्देश्य भोजन, व्यवसाय, सजावट आदि में अपना महत्वपूर्ण योगदान निभाना है।
उदाहरण के लिए साल, सागौन, चीड़, केक्‍टस आदि। उदहारण स्वरुप आम, गेहूं, गुलाब, यूकेलिप्टस आदि।

भारत में वनस्पति वितरण को प्रभावित करने वाले कारक

भारत में वनस्पति वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार हैं –

  • तापमान, वर्षा और आर्द्रता जैसे तत्त्व वनस्पति की जातियों और उनके फैलाव को नियंत्रित करते हैं।
  • बाढ़, सूखा, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी वनस्पति को बदल देती हैं।
  • वनों की कटाई, शहरीकरण, खेती और औद्योगीकरण से प्राकृतिक वनस्पति बुरी तरह प्रभावित होती है।
  • जैसे-जैसे हम समुद्र तल से ऊँचाई की ओर बढ़ते हैं, तापमान घटता है और वनस्पति का स्वरूप बदलता है।
  • नदियों, झीलों और भूजल की उपलब्धता सीधे वनस्पति के घनत्व और विविधता को प्रभावित करती है।
  • मिट्टी की गुणवत्ता और प्रकार भी यह तय करती है कि किस स्थान पर कौन-सी वनस्पति पनपेगी।

भारत में पाई जाने वाली प्रमुख वनस्पतियाँ

भारत में पाई जाने वाली प्रमुख वनस्पतियाँ और उनकी विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  • भारत की वनस्पतियाँ भौगोलिक क्षेत्रों के अनुसार अलग-अलग प्रकार की होती हैं, जिनका विभाजन जलवायु के अनुसार होता है। बता दें कि हिमालय क्षेत्र में देवदार (Cedar), भोजपत्र (Betula utilis) जैसी ऊँचाई पर उगने वाली वनस्पतियाँ, गंगा के मैदानी क्षेत्र में नीम, पीपल, बरगद जैसे बहुप्रचलित वृक्ष, दक्षिण भारत व पश्चिमी घाट में नारियल, सुपारी, रबर और चंदन की पैदावार के साथ-साथ, थार के रेगिस्तान में कैक्टस, खेजड़ी, बेर जैसी सूखा सहने वाली वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
  • औषधीय महत्व की वनस्पतियों में मुख्य रूप से आंवला जिसे अंग्रेजी में Emblica officinalis कहा जाता है, यह एक प्रकार का विटामिन C का भरपूर स्रोत होता है।
  • आंवला के साथ ही गिलोय भी एक औषधीय वनस्पति है, जिसे अंग्रेजी में Tinospora cordifolia कहा जाता है। बता दें कि यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने वाली जड़ी-बूटी है।
  • इसके साथ ही अश्वगंधा भी एक औषधीय वनस्पति है, जिसका अंग्रेजी में नाम Withania somnifera है। इस वनस्पति मानसिक तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

भारत में वनस्पति संरक्षण के उपाय

भारत में वनस्पति संरक्षण के उपायों को नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार है –

  • भारतीय वनस्पति जगत में कई स्थानीय और दुर्लभ प्रजातियों जैसे – रेड सैंडर्स (लाल चंदन), आंध्र प्रदेश में मिलने वाला कीमती पेड़, मध्य भारत में प्रमुख तौर पर पाए जाने वाला शाल वृक्ष आदि शामिल हैं। इन प्रजातियों का संरक्षण इसलिए ज़रूरी है क्योंकि ये जलवायु संतुलन, औषधीय गुण और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अहम हैं।
  • भारत में वनस्पति संरक्षण के माध्यम से सामुदायिक वन प्रबंधन किया जा सकता है। छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा जैसे राज्यों में आदिवासी समुदायों द्वारा वन संरक्षण के कई उदाहरण भी देखे गए हैं। बताना चाहेंगे कि स्थानीय समुदायों को अधिकार और जानकारी दी जाए, तो वे पर्यावरण के सबसे बेहतर रक्षक बन सकते हैं।
  • भारत में वनस्पति संरक्षण करने से औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा मिलाता है। बता दें कि अश्वगंधा, गिलोय, ब्राह्मी जैसी औषधियाँ सिर्फ जंगल में नहीं, खेतों में भी उगाई जा सकती हैं। इससे किसानों की आय में भी वृद्धि होती है।
  • वनों की कटाई से सिर्फ पेड़ ही नहीं, संपूर्ण जीवन चक्र प्रभावित होता है। इसलिए भारत में वनस्पति संरक्षण के लिए अधिकाधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।
  • वनस्पति शिक्षा और जन जागरूकता अभियान को चलाकर भी भारत में वनस्पति संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है।

FAQs

भारत में प्रमुख वनस्पति के कितने प्रकार पाए जाते हैं?

भारत में मुख्यतः छह प्रकार की वनस्पति पाई जाती है – उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन, उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन, कांटेदार एवं झाड़ीदार वनस्पति, पर्वतीय वन, मैंग्रोव वनस्पति और मरुस्थलीय वनस्पति।

उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनस्पति की विशेषताएँ क्या हैं?

यह वनस्पति क्षेत्र अधिक वर्षा वाले स्थानों में पाई जाती है, जहाँ पेड़ बहुत ऊँचे, घने और सदाबहार होते हैं। इन वनों में सूरज की रोशनी ज़मीन तक नहीं पहुँच पाती।

उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन किसे कहते हैं?

ये वे वन हैं जहाँ पेड़ गर्मी के मौसम में अपने पत्ते गिरा देते हैं। यह वनस्पति अधिकतर गंगा और गोदावरी जैसी नदियों के किनारे पाई जाती है।

कांटेदार और झाड़ीदार वनस्पति भारत के किन हिस्सों में मिलती है?

यह वनस्पति राजस्थान, गुजरात और दक्षिणी पंजाब के शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है। यहाँ के पौधे जल की कमी से निपटने के लिए कांटेदार होते हैं।

मैंग्रोव वनस्पति की विशेषता क्या है और यह कहाँ पाई जाती है?

मैंग्रोव वनस्पति खारे पानी वाले तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है। सुंदरवन इसका प्रमुख उदाहरण है, जहाँ की मिट्टी नम और दलदली होती है।

भारत में पर्वतीय वनस्पति किस प्रकार की होती है?

पर्वतीय क्षेत्रों की वनस्पति ऊँचाई के अनुसार बदलती है। निचले हिस्सों में पर्णपाती वन, मध्य में शंकुधारी और ऊपरी क्षेत्रों में झाड़ीदार वन पाए जाते हैं।

मरुस्थलीय वनस्पति के कौन-कौन से पौधे प्रसिद्ध हैं?

मरुस्थलीय क्षेत्रों में खजूर, केक्टस, अकड़ा और बाबूल जैसे पौधे पाए जाते हैं जो कम जल में जीवित रह सकते हैं।

वनस्पति की विविधता भारत के मौसम से कैसे जुड़ी है?

भारत की जलवायु विविध है, जिससे हर क्षेत्र में अलग प्रकार की वनस्पति विकसित होती है। वर्षा, तापमान और मिट्टी का प्रकार वनस्पति के प्रकार को प्रभावित करता है।

भारत में वनस्पति संरक्षण के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा रहे हैं?

भारत में राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र और वृक्षारोपण अभियानों के माध्यम से वनस्पति का संरक्षण किया जा रहा है।

कौन से राज्य वनस्पति विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं?

अरुणाचल प्रदेश, केरल, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य वनस्पति की समृद्ध विविधता के लिए जाने जाते हैं।

आशा है कि इस लेख में भारत में वनस्पति के प्रकार (Vanaspati Ke Prakar) से संबंधित संपूर्ण जानकारी पसंद आई होगी। UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।

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