Samanta Ka Adhikar: भारत में समानता का अधिकार और उसका सामाजिक प्रभाव

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Samanta Ka Adhikar

Samanta Ka Adhikar: भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान देने की बात कही जाती है। संविधान के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जन्म, जाति, धर्म, लिंग, भाषा या क्षेत्र के आधार पर छोटा या बड़ा नहीं माना जा सकता। यही विचार समानता का अधिकार (Right to Equality) का मूल आधार है। यह न सिर्फ हमारा मौलिक अधिकार है, बल्कि भारतीय संविधान की आत्मा भी है। बताना चाहेंगे कि भारत के संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 तक समानता के अधिकार को विस्तार से बताया गया है। इन अनुच्छेदों में यह सुनिश्चित किया गया है कि देश का हर नागरिक कानून की नजर में बराबर है और सभी को समान संरक्षण प्राप्त है। कई प्रकार की परीक्षाओं में समानता का अधिकार के अनुच्छेदों और इससे संबंधित अन्य प्रश्नों को पूछा जाता है। इसलिए इस लेख में आपके लिए समानता का अधिकार (Samanta Ka Adhikar) से संबंधित संपूर्ण जानकारी दी गई है, जिसके बारे में जानने के लिए आपको यह ब्लॉग अंत तक जरूर पढ़ना चाहिए।

समानता क्या होती है?

जब हम “समानता” की बात करते हैं, तो सबसे पहले हमारे मन में यह सवाल उठता है कि आखिर यह शब्द हमारे जीवन में क्या महत्व रखता है। क्या समानता का मतलब है कि सभी लोग बिल्कुल एक जैसे हों? नहीं। बताना चाहेंगे समानता का अर्थ है कि हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के बराबरी का अधिकार, अवसर और सम्मान मिले – फिर चाहे उसकी जाति, धर्म, लिंग, भाषा, रंग, वर्ग या क्षेत्र कोई भी क्यों न हो।

समानता का महत्व केवल कानूनी दायरे में ही नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टिकोण से भी बहुत अधिक है। अगर एक समाज में हर व्यक्ति को उसकी पहचान, मेहनत और योग्यता के आधार पर समान अधिकार मिले, तो वह समाज अधिक न्यायपूर्ण, समृद्ध, प्रगतिशील और शांतिपूर्ण बनता है। बता दें कि समानता के मुख्यतः तीन आयाम – राजनीतिक समानता, आर्थिक समानता और सामाजिक समानता हैं।

समानता का अधिकार क्या है?

भारत का संविधान समानता को एक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देता है। अनुच्छेद 14 से लेकर 18 तक संविधान में समानता से जुड़े प्रावधान दिए गए हैं। आसान भाषा में समझें तो समानता का अधिकार का मतलब है – सभी लोगों को कानून के सामने एक जैसा दर्जा और व्यवहार मिलना। चाहे कोई अमीर हो या गरीब, किसी उच्च जाति का हो या निम्न जाति का, पुरुष हो या महिला – हर किसी को एक जैसे अधिकार मिलेंगे और उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

उदाहरण के तौर पर, अगर किसी सरकारी नौकरी के लिए आवेदन निकाला गया है, तो उसमें हर नागरिक को आवेदन करने का अधिकार होगा। कोई भी व्यक्ति इस आधार पर नहीं रोका जा सकता कि वह किसी खास जाति या धर्म से आता है। इसी तरह, अगर दो लोग एक जैसे अपराध में पकड़े जाते हैं, तो उन्हें समान सज़ा दी जानी चाहिए – न कि उनके सामाजिक या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव किया जाए।

क्यों ज़रूरी है समानता का अधिकार?

समानता का अधिकार हमें एक समान और न्यायसंगत समाज की ओर ले जाता है। यह अधिकार केवल कागजों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें अपने दैनिक जीवन में भी इसे अपनाना चाहिए। हर नागरिक को यह जानना और समझना जरूरी है कि वह भारत राष्ट्र का सम्मानित नागरिक है और उसके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता। इस अधिकार को जानना इसलिए भी जरूरी है ताकि जब भी आपके या किसी और के साथ कोई भेदभाव हो, तो आप आवाज़ उठा सकें और न्याय की मांग कर सकें।

इसके साथ ही बता दें कि समाज में न्याय और शांति के लिए, सभी को विकास के बराबर अवसर देने के लिए, महिलाओं और कमजोर वर्गों की स्थिति में सुधार के लिए, लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने के लिए समानता का अधिकार एक रक्षक की तरह कार्य करता है।

भारतीय संविधान में समानता से जुड़े अनुच्छेद

भारतीय संविधान विश्व के सबसे विस्तृत और लोकतांत्रिक संविधानों में से एक है। इसका मुख्य उद्देश्य हर नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना प्रदान करना है। इन्हीं मूल्यों में से “समानता” एक ऐसा अधिकार है, जो हर भारतीय नागरिक के जीवन को गरिमा और बराबरी की जमीन पर खड़ा करता है। भारतीय संविधान ने इस मूलभूत अधिकार को न केवल स्वीकार किया है, बल्कि इसे सुनिश्चित करने के लिए कई ठोस अनुच्छेद भी निर्धारित किए हैं। भारतीय संविधान में समानता से जुड़े अनुच्छेदों की जानकारी इस प्रकार है –

अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता

अनुच्छेद 14 कहता है कि “राज्य, भारत के क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।” आसान भाषा में समझें तो कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं, चाहे वह अमीर हो या गरीब, महिला हो या पुरुष, किसी भी धर्म, जाति या भाषा का क्यों न हो। इस अनुच्छेद के दो मुख्य सिद्धांत कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) और कानूनों का समान संरक्षण (Equal Protection of the Laws) हैं।

जहाँ एक ओर कानून के समक्ष समानता (Equality before Law) का मतलब है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो। तो वहीं दूसरे सिद्धांत कानूनों का समान संरक्षण (Equal Protection of the Laws) का मतलब है कि समान परिस्थितियों में सभी व्यक्तियों को समान कानूनी उपचार मिलना चाहिए।

उदाहरण: अगर कोई सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा देता है, तो सभी उम्मीदवारों को एक जैसी योग्यता और प्रक्रिया का पालन करना होगा। किसी को उसके धर्म या जाति के आधार पर वरीयता नहीं दी जा सकती, जब तक वह संविधान द्वारा मान्य आरक्षण के अंतर्गत न आता हो।

अनुच्छेद 15: भेदभाव का निषेध

अनुच्छेद 15 इस बात को सुनिश्चित करता है कि “राज्य किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर किसी भी सार्वजनिक स्थान में प्रवेश, सुविधाओं का उपयोग, या अवसरों की प्राप्ति में भेदभाव नहीं करेगा।”

आसान भाषा में समझें तो अनुच्छेद 15 भारतीय संविधान की आत्मा में से एक है, जो यह सुनिश्चित करता है कि भारत का हर नागरिक गरिमा और समानता के साथ जीवन जी सके। यह केवल एक कानूनी प्रावधान नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की ओर उठाया गया मजबूत कदम है। जब समाज में हर व्यक्ति को बराबरी का दर्जा मिलेगा, तभी असली लोकतंत्र की भावना जीवित रह पाएगी।

उदाहरण: यदि कोई निजी संस्थान केवल एक धर्म विशेष के लोगों को ही प्रवेश दे और अन्य को मना कर दे, तो वह अनुच्छेद 15 का उल्लंघन कर रहा होगा।

अनुच्छेद 16: सरकारी नौकरियों में समान अवसर

यह अनुच्छेद कहता है कि हर नागरिक को सार्वजनिक पदों और नौकरियों में समान अवसर मिलेगा। इसका तात्पर्य है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर नौकरियों से वंचित नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 16 की मुख्य विशेषताएं समान अवसर का अधिकार (Clause 1), भेदभाव का निषेध (Clause 2), आरक्षण का प्रावधान (Clause 4) हैं। बता दें कि समान अवसर का अधिकार (Clause 1) कहता है कि सभी नागरिकों को सार्वजनिक रोजगार के मामले में समान अवसर प्राप्त होंगे।

इस अनुच्छेद में भेदभाव का निषेध (Clause 2) के अनुसार राज्य, किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, जाति, लिंग, वंश या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। तो वहीं आरक्षण का प्रावधान (Clause 4) कहता है कि राज्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू कर सकता है, जिनका प्रतिनिधित्व सरकारी सेवाओं में पर्याप्त नहीं है।

उदाहरण: एक दलित युवा अगर योग्य है, तो उसे भी IAS या अन्य सरकारी सेवाओं में समान अवसर मिलेंगे, और उसके साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता।

अनुच्छेद 17: अस्पृश्यता का अंत

यह अनुच्छेद ऐतिहासिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण है। भारत में वर्षों तक छुआछूत के नाम पर समाज के एक वर्ग को अपमानित और वंचित किया गया। अनुच्छेद 17 इस प्रथा को समाप्त घोषित करता है और इसे कानूनन दंडनीय अपराध मानता है।

उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति दलित समुदाय के सदस्य को मंदिर में प्रवेश से रोकता है, तो वह इस अनुच्छेद का उल्लंघन करता है और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

अनुच्छेद 18: उपाधियों की समाप्ति

यह अनुच्छेद कहता है कि भारत में कोई भी नागरिक किसी भी प्रकार की विरासत में मिली या सरकारी तौर पर दी गई उपाधियों का उपयोग नहीं कर सकता। इससे समाज में कृत्रिम ऊँच-नीच की भावना को समाप्त करने का प्रयास किया गया है।

समानता के अधिकार का सामाजिक महत्व

नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से समानता के अधिकार का सामाजिक महत्व को आसानी से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार है –

  • समानता का अधिकार समाज में एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है।
  • यह अधिकार न्याय व्यवस्था में विश्वास को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • यह अधिकार विशेष रूप से जाति और लिंग आधारित भेदभाव को रोकता है।
  • समानता का अधिकार वंचित वर्गों को आत्मसम्मान और पहचान देता है।
  • यह अधिकार समाजिक परिवर्तन और सुधार को बढ़ाने में भी मुख्य भूमिका निभाता है।
  • यह केवल न्यायालयों तक सीमित नहीं है, यह तो हमारे सामाजिक ढांचे को संतुलित और न्यायपूर्ण बनाता है।

समानता बनाम व्यवहारिक चुनौतियाँ

नीचे दी गई तालिका में समानता बनाम व्यवहारिक चुनौतियाँ और इससे जुड़ी जानकारी दी गई है, जो इस प्रकार है –

समानता का अधिकारव्यवहारिक चुनौतियाँ
अनुच्छेद 14 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण का अधिकार मिलता है।वहीं व्यवहारिक चुनौतियों में से एक महत्वपूर्ण चुनौती सामाजिक भेदभाव है, जिसमें जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव की घटनाओं को देखा जाता है।
समानता के अधिकार का अनुच्छेद 15 बताता है कि धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है।व्यवहारिक चुनौतियों में से एक लैंगिक असमानता भी है, जिसमें पुरुष और महिला के बीच व्यवहार में अंतर को देखा जा सकता है।
अनुच्छेद 16 के अंतर्गत सभी को सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर देने की बात कही गई है।इसमें एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में आर्थिक असमानता भी है, जहाँ धनवान और गरीब के बीच बढ़ती दूरी है। आसान भाषा में कहें तो गरीब छात्र को कोचिंग या अच्छे स्कूल की सुविधा नहीं मिलना भी एक बड़ी चुनौती के समान है।
समानता के अधिकार का अनुच्छेद 17 हमें बताता है कि अस्पृश्यता का अंत होना चाहिए।क्षेत्रीय असमानता एक ऐसी प्रमुख चुनौती के समान है, जिसमें ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में संसाधनों का अंतर देखा जाता है। उदाहरण – गाँवों में स्कूल या अस्पताल की सुविधा कमजोर होना।
अनुच्छेद 18 के तहत उपाधियों का अंत (टाइटल्स पर रोक, सिवाय कुछ सम्मान के) की बात कही गई है।व्यवहारिक चुनौतियों की प्रमुख चुनौतियों में से एक दिव्यांगजनों को बराबर अवसर नहीं मिलना है। उद्धरण के लिए देखें तो ऑफिस में व्हीलचेयर सुविधा का अभाव होना है।

समानता सुनिश्चित करने के लिए सरकार की पहल

समानता सुनिश्चित करने के लिए सरकार की पहल को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार हैं –

  • सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SC, ST, OBC) को मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार ने आरक्षण की नीति अपनाई। उदाहरण: UPSC, SSC जैसी परीक्षाओं में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए सीटें आरक्षित होती हैं, जिससे वे प्रतियोगिता में शामिल हो सकें।
  • इसके साथ ही सरकारी नौकरियों, शिक्षा संस्थानों और चुनावी प्रतिनिधित्व में आरक्षण प्रदान कर बराबरी के मौके देकर भारत सरकार ने समानता के अधिकार के प्रति जनता को जागरूक किया।
  • लड़कियों की शिक्षा और जीवन सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने यह वर्ष 2015 में “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” की शुरुआत की। इसका उद्देश्य लड़कियों की गिरती जनसंख्या दर को रोकना और उन्हें शिक्षा के समान अवसर देना है। इस योजना के कारण हरियाणा जैसे राज्य में लड़कियों की संख्या में सुधार देखा गया।
  • सभी श्रमिकों को उनके काम का उचित श्रमिक वेतन यानि कि उचित मेहनताना मिले, इसके लिए सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन अधिनियम (Minimum Wages Act) जैसा कानून लागू किया गया। इसके अंतर्गत चाहे महिला हो या पुरुष, सभी को एक जैसा न्यूनतम वेतन देना अनिवार्य होता है।
  • सरकार द्वारा समान वेतन कानून (Equal Remuneration Act, 1976) लाया गया, जिसके अंतर्गत महिलाओं और पुरुषों को एक जैसा काम करने पर बराबर वेतन देने का प्रावधान है। यह महिलाओं को कार्यक्षेत्र में समान अधिकार दिलाने की दिशा में बड़ा कदम है।

FAQs

समानता का अधिकार क्या है?

समानता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक आता है, जो सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता और कानून का समान संरक्षण प्राप्त करने की गारंटी देता है।

संविधान में समानता का अधिकार किस अनुच्छेद के अंतर्गत आता है?

समानता का अधिकार संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 14 से 18 तक विस्तृत रूप में वर्णित है।

क्या समानता का अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को मिलता है?

अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों पर लागू होता है, जिसमें विदेशी और भारतीय नागरिक दोनों शामिल हैं, लेकिन कुछ विशेष अधिकार केवल भारतीय नागरिकों के लिए सीमित हैं।

समानता का अधिकार महिलाओं और पुरुषों दोनों पर समान रूप से लागू होता है?

हाँ, संविधान में लिंग, जाति, धर्म, जन्म स्थान या किसी अन्य आधार पर भेदभाव नहीं करने की स्पष्ट व्यवस्था है, इसलिए यह अधिकार सभी लिंगों के लिए समान रूप से लागू होता है।

क्या सरकारी नौकरियों में आरक्षण समानता का उल्लंघन करता है?

नहीं, संविधान में अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने का अधिकार है, जो समानता के सिद्धांत का विस्तार ही है।

समानता का अधिकार क्यों महत्वपूर्ण है?

यह अधिकार समाज में न्याय, समान अवसर और भेदभाव-रहित वातावरण की नींव रखता है, जो लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।

अगर किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव हो तो वह क्या कर सकता है?

ऐसी स्थिति में व्यक्ति उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में संविधान के अनुच्छेद 32 या 226 के तहत रिट याचिका दायर कर सकता है।

क्या निजी संस्थानों पर भी समानता का अधिकार लागू होता है?

समानता का अधिकार मुख्य रूप से राज्य (सरकारी तंत्र) पर लागू होता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में निजी संस्थानों को भी इसका पालन करना होता है, विशेष रूप से जब वे सार्वजनिक कार्य कर रहे हों।

क्या अनुच्छेद 15 धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव की अनुमति देता है?

नहीं, अनुच्छेद 15 स्पष्ट रूप से राज्य को नागरिकों के साथ धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है।

क्या समानता का अधिकार सीमित किया जा सकता है?

हां, राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या आपातकालीन स्थिति में कुछ हद तक इस अधिकार की सीमाएं निर्धारित की जा सकती हैं, लेकिन यह संविधान के दायरे में होना चाहिए।

आशा है कि इस लेख में समानता का अधिकार (Samanta Ka Adhikar) से संबंधित संपूर्ण जानकारी पसंद आई होगी। UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।

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