काकोरी काण्ड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो 9 अगस्त 1925 को घटी थी। इस घटना में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) के 10 क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश सरकार के खजाने से भरी एक ट्रेन को काकोरी के पास लूट लिया। इसका उद्देश्य अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के लिए धन जुटाना और ब्रिटिश सरकार को सबक सिखाना था। इस घटना के बाद, कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर फांसी की सजा दी गई, लेकिन उनका बलिदान भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में अमर हो गया। काकोरी काण्ड के बारे में अधिक जानने के लिए ये लेख पूरा पढ़े।
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काकोरी काण्ड के बारे में
क्रांतिकारियों के द्वारा चलाए जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन को सहयोग करने के लिए धन की ज़रुरत थी। शाहजहांपुर में एक बैठक में राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजों के सरकारी खजाने को लूटने की योजना बनाई थी। इस योजना के अनुसार हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोशिएशन के ही एक सदस्य राजेन्द्रनाथ लेहड़ी ने 1 अगस्त 1924 को लखनऊ के काकोरी रेलवे स्टेशन से चलने वाली आठ डाउन सहारनपुर ट्रेन को चेन खींचकर रोक लिया और उसे लूट लिया। इस गतिविधि में मुख्य भूमिका क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, चंद्रशेखर आजाद और अन्य 6 क्रांतिकारियों की थी। इस काण्ड का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार से धन प्राप्त करना था, जिससे क्रांतिकारी अपने स्वतंत्रता संघर्ष को और अधिक प्रभावी बना सकें।
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काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारियों की गिरफ्तारी
काकोरी काण्ड में शामिल सभी क्रांतिकारियों पर सरकारी खजाने को लूटने की कोशिश और यात्रियों को जान से मारने की साजिश करने के तहत मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई।
फरार हुए क्रांतिकारी
काकोरी-काण्ड में केवल 10 लोग ही वास्तविक रूप से शामिल हुए थे, पुलिस की ओर से उन सभी को इस प्रकरण में नामजद किया गया। इन 10 लोगों में से पाँच – चन्द्रशेखर आजाद, मुरारी शर्मा, केशव चक्रवर्ती (छद्मनाम), अशफाक उल्ला खाँ व शचीन्द्र नाथ बख्शी को छोड़कर, जो उस समय तक पुलिस के हाथ नहीं आये, शेष सभी व्यक्तियों पर सरकार बनाम राम प्रसाद बिस्मिल व अन्य के नाम से ऐतिहासिक प्रकरण चला और उन्हें 5 वर्ष की कैद से लेकर फाँसी तक की सजा हुई। फरार अभियुक्तों के अतिरिक्त जिन-जिन क्रान्तिकारियों को एच. आर. ए. का सक्रिय कार्यकर्ता होने के सन्देह में गिरफ्तार किया गया था उनमें से 14 को सबूत न मिलने के कारण रिहा कर दिया गया। विशेष न्यायधीश ऐनुद्दीन ने प्रत्येक क्रान्तिकारी की छवि खराब करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी और प्रकरण को सेशन न्यायालय में भेजने से पहले ही इस बात के पक्के सबूत व गवाह एकत्र कर लिये थे ताकि बाद में यदि अभियुक्तों की तरफ से कोई याचिका भी की जाये तो इनमें से एक भी बिना सजा के छूटने न पाये।
काकोरी कांड में शामिल क्रांतिकारियों के क्षमादान का प्रयास
अवध चीफ कोर्ट का फैसला आते ही यह खबर आग की तरह समूचे हिन्दुस्तान में फैल गयी। ठाकुर मनजीत सिंह राठौर ने सेण्ट्रल लेजिस्लेटिव काउंसिल में काकोरी काण्ड के चारो मृत्यु-दण्ड प्राप्त कैदियों की सजायें कम करके आजीवन कारावास (उम्र-कैद) में बदलने का प्रस्ताव पेश किया। काउंसिल के कई सदस्यों ने सर विलियम मोरिस को, जो उस समय संयुक्त प्रान्त के गवर्नर हुआ करते थे, इस आशय का एक प्रार्थना-पत्र भी दिया कि इन चारो की सजाये-मौत माफ कर दी जाये परन्तु उन्होंने उस प्रार्थना को अस्वीकार कर दिया। सेण्ट्रल काउंसिल के 78 सदस्यों ने तत्कालीन वायसराय व गवर्नर जनरल एडवर्ड फ्रेडरिक लिण्डले वुड को शिमला जाकर हस्ताक्षर युक्त मेमोरियल दिया जिस पर प्रमुख रूप से पं. मदन मोहन मालवीय, मोहम्मद अली जिन्ना, एन. सी. केलकर, लाला लाजपत राय, गोविन्द वल्लभ पन्त आदि ने अपने हस्ताक्षर किये थे किन्तु वायसराय पर उसका भी कोई असर न हुआ।
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस घटना का महत्त्व
काकोरी कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मोड़ था। 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खां, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश खजाना लूटने के लिए एक ट्रेन पर हमला किया। इसका उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन जुटाना और ब्रिटिश शासन को चुनौती देना था। इस घटना से क्रांतिकारी आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और युवाओं में आजादी के प्रति जोश बढ़ा। काकोरी कांड ने ब्रिटिश सरकार को भारतीय क्रांतिकारियों की संगठित ताकत का एहसास कराया, जिससे स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा मिली।
FAQs
इस बीच 9 अगस्त 1925 की रात चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी और रौशन सिंह समेत तमाम क्रांतिकारियों ने अंग्रेज़ी हुकूमत पर बड़ी चोट की। इन लोगों ने लखनऊ से कुछ दूरी पर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया।
सही उत्तर राम प्रसाद बिस्मिल है। काकोरी की घटना के लिए रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, ठाकुर रोशन सिंह सहित कुल दस क्रांतिकारी जिम्मेदार थे। राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को शाहजहाँपुर में हुआ था। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर, 1927 को गोरखपुर जेल की कोठरी में फांसी दी गई थी।
क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई. इस कांड में शामिल दूसरे क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल को कालेपानी की सजा हुई. मन्मथनात गुप्त को 14 साल की सजा सुनाई गई. बाकियों को 10, 7 और 5 साल की सजा हुई।
आशा है इस ब्लॉग से आपको काकोरी काण्ड और इससे जुड़ी अहम घटनाओं के बारे में बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई होगी। आधुनिक भारत के इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।