श्रीधर पाठक आधुनिक हिंदी साहित्य के ‘द्विवेदी युग’ के प्रतिष्ठित कवि और अनुवादक थे। उन्हें स्वच्छंद काव्य-धारा का प्रवर्तक भी माना जाता है। वर्ष 1915 में लखनऊ में आयोजित हिंदी साहित्य सम्मेलन के पांचवें अधिवेशन में वे सभापति रहे। उन्हें ‘कवि भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। हिंदी, संस्कृत, उर्दू, फ़ारसी और अंग्रेज़ी भाषाओं पर उनका समान अधिकार था। ‘वनाष्टक’, ‘काश्मीर सुषमा’, ‘देहरादून’, ‘मनोविनोद’ और ‘गोपिका गीत’ उनकी प्रमुख काव्य रचनाएं हैं। इस लेख में आप श्रीधर पाठक का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में जानेंगे।
| नाम | पंडित श्रीधर पाठक |
| जन्म | 11 जनवरी, 1858 |
| जन्म स्थान | आगरा, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | पंडित लीलाधर |
| पेशा | कवि, लेखक, अनुवादक, अधिकारी |
| भाषा | हिंदी, फ़ारसी, संस्कृत, अंग्रेजी |
| साहित्य काल | आधुनिक काल (द्विवेदी युग) |
| विधाएँ | कविता, अनुवाद |
| मुख्य रचनाएँ | ‘वनाश्टक’, ‘काश्मीर सुषमा’, ‘देहरादून’, ‘मनोविनोद’ व ‘गोपिका गीत’ आदि। |
| सम्मान | ‘कवि भूषण’ |
| निधन | 13 सितंबर, 1928 |
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आगरा में हुआ था जन्म
श्रीधर पाठक का जन्म 11 जनवरी, 1858 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के जौंधरी नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘पंडित लीलाधर’ था। बताया जाता है कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई थी जहाँ उन्होंने संस्कृत, फ़ारसी और हिंदी भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। तदुपरांत औपचारिक रूप से विद्यालयी शिक्षा लेते हुए वे वर्ष 1875 में हिंदी प्रवेशिका और वर्ष 1879 में अंग्रेजी मिडिल परीक्षा में सर्वप्रथम रहे। इसके बाद उन्होंने एंट्रेंस परीक्षा भी प्रथम श्रेणी से पास की।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
शिक्षा के उपरांत श्रीधर पाठक की नियुक्ति सरकारी सेवा में हो गई। सर्वप्रथम उन्होंने जनगणना आयुक्त के रूप में कलकत्ता (अब कोलकाता) के कार्यालय में कार्य किया। उस समय तत्कालीन ब्रिटिश भारत के अधिकांश सरकारी कार्यालय कलकत्ता में ही होते थे। वहीं जनगणना के काम के लिए पाठक जी को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में जाना पड़ता था। जिसके कारण उन्हें पर्वतीय प्रदेशों तथा प्रकृति-सौंदर्य का निकट से अवलोकन करने का अवसर मिला। माना जाता है कि यहीं से उनकी काव्य प्रवृति जागृत हुई। कालांतर में उन्होंने सरकार के कई अन्य विभागों में भी अपनी सेवाएँ दी थी।
श्रीधर पाठक का साहित्यिक परिचय
श्रीधर पाठक, आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता भारतेंदु हरिश्चंद्र एवं आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के समकालीन रहे हैं, जिससे उन्होंने ब्रज तथा खड़ी बोली दोनों भाषाओं में अपनी प्रतिभा का उपयोग किया है। इसके साथ ही उन्होंने ‘खड़ी बोली आंदोलन’ को सफल बनाने में अहम भूमिका निभाई है। हिंदी साहित्य के कुछ विद्वान उन्हें खड़ी बोली का प्रथम कवि भी मानते है।
श्रीधर पाठक ने ‘द्विवेदी युग’ में अनुमप काव्य कृतियों का सृजन किया था। वहीं उनकी काव्य रचनाओं में स्वदेश प्रेम, प्राकृतिक सौंदर्य और समाज सुधार की भावना का सजीव चित्रण देखने को मिलता हैं। काव्य सृजन के अतिरिक्त उन्होंने संस्कृत और पाश्चात्य रचनाओं का हिंदी भाषा में अनुवाद किया है।
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श्रीधर पाठक की प्रमुख रचनाएँ
श्रीधर पाठक को मुख्यतः कवि के रूप में प्रसिद्धि मिली हैं। लेकिन उन्होंने अनुवाद के क्षेत्र में भी अहम कार्य किया है। उनकी प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं:-
काव्य रचनाएँ
- वनाश्टक
- आराध्य शोकांजलि
- काश्मीर सुषमा
- देहरादून
- भारत गीत
- गोपिका गीत
- मनोविनोद
- जगत सच्चाई-सार
- बाल विधवा
- भारत प्रशंसा भारतोत्थान
- गुनवंत हेमंत
- स्वर्गीय वीणा
अनुदित रचनाएँ
- एकांतवासी योगी – (आयरिश लेखक ओलिवर गोल्डस्मिथ की काव्य -रचना ‘The hermit’ का हिंदी अनुवाद)
- उजड़ ग्राम – (आयरिश लेखक ओलिवर गोल्डस्मिथ की काव्य-रचना ‘The Deserted Village’ का हिंदी अनुवाद)
- श्रांत पथिक – (आयरिश लेखक ओलिवर गोल्डस्मिथ की काव्य-रचना ‘The Traveller’ का हिंदी अनुवाद)
- ऋतुसंहार – संस्कृत के महान कवि कालिदास की काव्य रचना का अनुवाद
श्रीधर पाठक की कविताएं
नीचे श्रीधर पाठक की प्रमुख कविताएं दी गई हैं:-
भारत-गगन
निरखहु रैनि भारत-गगन
दूरि दिवि द्युति पूरि राजत, भूरि भ्राजत-भगन
नखत-अवलि-प्रकाश पुरवत, दिव्य-सुरपुर-मगन
सुमन खिलि मंदार महकत अमर-भौनन-अँगन
निरखहु रैनि भारत-गगन
मिलन प्रिय अभिसारि सुर-तिय चलत चंचल पगन
छिटकि छूटत तार किंकिनि, टूटि नूपुर-नगन
निरखहु रैनि भारत-गगन
नेह-रत गंधर्व निरतत, उमग भरि अँग अँगन
तहाँ हरि-पद-प्रेम पागी, लगी श्रीधर लगन
निरखहु रैनि भारत-गगन
कवि – श्रीधर पाठक
हिंद-महिमा
जय, जयति-जयति प्राचीन
हिंद जय नगर, ग्राम अभिराम हिंद
जय, जयति-जयति सुख-धाम हिंद
जय, सरसिज-मधुकर निकट हिंद
जय जयति हिमालय-शिखर-हिंद
जय जयति विंध्य-कंदरा हिंद
जय मलयज-मेरु-मंदरा हिंद
जय शैल-सुता सुरसरी हिंद
जय यमुना-गोदावरी हिंद जय जयति सदा स्वाधीन
हिंद जय, जयति-जयति प्राचीन हिंद।
कवि – श्रीधर पाठक
स्वदेश-विज्ञान
जब तक तुम प्रत्येक व्यक्ति निज सत्त्व-तत्त्व नहिं जानोगे
त्यों नहिं अति पावन स्वदेश-रति का महत्त्व पहचानोगे
जब तक इस प्यारे स्वदेश को अपना निज नहिं मानोगे
त्यों अपना निज जान सतत शुश्रूषा-व्रत नहिं ठानोगे
प्रेम-सहित प्रत्येक वस्तु को जब तक नहिं अपनाओगे
समता-युत सर्वत्र देश में ममता-मति न जगाओगे
जब तक प्रिय स्वदेश को अपना इष्ट देव न बनाओगे
उसके धूलि-कणों में आत्मा को समूल न मिलाओगे
पूत पवन जल भूमि व्योम पर प्रेम-दृष्टि नहिं डालोगे
हो अनन्य-मन प्रेम-प्रतिज्ञा-पालन-व्रत नहिं पालोगे
तन मन धन जन प्रान देश-जीवन के साथ न सानोगे
स्वोपयुक्त विज्ञान ज्ञान का सुखद वितान न तानोगे
तब तक क्योंकर देश तुम्हारा निज स्वदेश हो सकता है
स्वत्व उसी का रह सकता है रख उसको जो सकता है
कवि – श्रीधर पाठक
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देश गीत
जय जय प्यारा, जग से न्यारा
शोभित सारा, देश हमारा,
जगत-मुकुट, जगदीश दुलारा
जग-सौभाग्य, सुदेश।
जय जय प्यारा भारत देश।
प्यारा देश, जय देशेश,
अजय अशेष, सदय विशेष,
जहाँ न संभव अघ का लेश,
संभव केवल पुण्य-प्रवेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
स्वर्गिक शीश-फूल पृथिवी का,
प्रेम-मूल, प्रिय लोकत्रयी का,
सुललित प्रकृति-नटी का टीका,
ज्यों निशि का राकेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
जय जय शुभ्र हिमाचल-श्रृंगा,
कल-रव-निरत कलोलिनि गंगा,
भानु-प्रताप-समत्कृत अंगा,
तेज-पुंज तप-वेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
जग में कोटि-कोटि जुग जीवै,
जीवन-सुलभ अमी-रस पीवै,
सुखद वितान सुकृत का सीवै,
रहै स्वतंत्र हमेश।
जय जय प्यारा भारत-देश।
कवि – श्रीधर पाठक
बलि-बलि जाऊँ
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ
बलि-बलि जाऊँ हियरा लगाऊँ
हरवा बनाऊँ घरवा सजाऊँ
मेरे जियरवा का, तन का, जिगरवा का
मन का, मंदिरवा का प्यारा बसैया
मैं बलि-बलि जाऊँ।
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ।
भोली-भोली बतियाँ, साँवली सुरतिया
काली-काली जुल्फोंवाली मोहनी मुरतिया
मेरे नगरवा का, मेरे डगरवा का
मेरे अँगनवा का, क्वारा कन्हैया
मैं बलि-बलि जाऊँ।
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ।
कवि – श्रीधर पाठक
निधन
श्रीधर पाठक ने दशकों तक हिंदी साहित्य में श्रेष्ठ काव्य कृतियों का सृजन किया था। किंतु 13 सितंबर, 1928 को उनका निधन हो गया। लेकिन आज भी उनकी लोकप्रिय रचनाओं के लिए उन्हें याद किया जाता है।
FAQs
श्रीधर पाठक, ‘द्विवेदी युग’ के प्रतिष्ठित कवि एवं अनुवादक थे।
11 जनवरी, 1858 को श्रीधर पाठक का जन्म आगरा जिले के जौंधरी गांव में हुआ था।
एकांतवासी योगी, श्रीधर पाठक की अनुदित रचना है।
उनके पिता का नाम ‘पंडित लीलाधर’ था।
13 सितंबर, 1928 को 70 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था।
आशा है कि आपको श्रीधर पाठक का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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