हिंदी साहित्य के रीतिकाल में कवि पद्माकर को अंतिम श्रेष्ठ आलंकारिक कवि माना जाता है। रीतिकालीन कवियों में उनका स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने जीवन में विभिन्न राजदरबारों की शोभा बढ़ाई और जयपुर नरेश द्वारा उन्हें ‘कविराज शिरोमणि’ की उपाधि भी प्राप्त हुई। उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में ‘हिम्मतबहादुर विरुदावली’, ‘रामरसायन’ तथा ‘गंगा लहरी’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इस लेख में पद्माकर का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | पद्माकर |
| जन्म | सन 1753 (विद्वानों के अनुसार) |
| जन्म स्थान | बाँदा, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | मोहनलाल भट्ट |
| पेशा | दरबारी कवि |
| विधा | पद्य |
| मुख्य रचनाएँ | ‘हिम्मतबहादुर विरुदावली’, ‘रामरसायन’ ‘जगद्विनोद’, ‘प्रबोध पचासा’ और ‘गंगा लहरी’ |
| साहित्यकाल | रीतिकाल |
| आश्रयदाता | महाराज जैतपुर, दतिया नरेश महाराज पारीक्षत व जयपुर-नरेश सवाई प्रताप सिंह और उनके पुत्र महाराज जगत सिंह |
| निधन | सन 1833 (विद्वानों के अनुसार) |
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उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद में हुआ था जन्म
माना जाता है कि कवि पद्माकर का जन्म सन 1753 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जनपद में हुआ था। विद्वानों के अनुसार उनके परिवार का वातावरण काव्य-प्रधान था। उनके पिता सहित उनके वंश के अनेक सदस्य कवि थे, जिसके कारण उनके कुल को ‘कवीश्वर’ कहा जाने लगा। यह भी कहा जाता है कि पद्माकर को अनेक राजदरबारों का आश्रय प्राप्त हुआ था। मात्र 16 वर्ष की किशोरावस्था में उन्होंने सागर नरेश रघुनाथ राव को एक कवित्त सुनाया था, जिससे प्रसन्न होकर रघुनाथ राव ने उन्हें एक लाख मुद्राओं से पुरस्कृत किया था।
इसके अतिरिक्त उन्हें जैतपुर के महाराज, रजधान के गोसाई अनूपगिरि (हिम्मतबहादुर), सत्ता-प्रमुख रघुनाथ राव (राघोबा), उदयपुर के महाराणा भीम सिंह, ग्वालियर नरेश सवाई प्रताप राव सिंधिया तथा जयपुर नरेश सवाई प्रताप सिंह एवं उनके पुत्र महाराज जगत सिंह जैसे विशिष्ट आश्रयदाता मिले थे।
पद्माकर के काव्य की विशेषताएं
पद्माकर की ख्याति का मूलाधार उनकी शृंगारिक रचनाएँ हैं। वे मुख्यतः शृंगार रस के महान कवि माने जाते हैं। अपनी रचनाओं में उन्होंने सजीव और मूर्त कल्पना के माध्यम से प्रेम और सौंदर्य का अत्यंत मार्मिक चित्रण किया है। वे ऐसे वातावरण में काव्य-रचना कर रहे थे, जो शृंगार रस के लिए अत्यंत अनुकूल था।
उस समय उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य का प्रभाव कम हो चुका था, और अनेक स्थानीय राजघराने विलासिता और दरबारी जीवन में लिप्त हो गए थे। अधिकांश राजा-महाराजा विदेशी आक्रमणों या मुगलों से लोहा लेने के बजाय अपने महलों में विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहे थे। दरबारी कवि भी उनकी वीरता और भव्यता की प्रशंसा में रचनाएँ किया करते थे।
पद्माकर की रचनाएँ
पद्माकर ने मुख्यतः तीन प्रकार के काव्य-ग्रंथों की रचना की है- प्रशस्ति काव्य, रीतिकाव्य तथा भक्तिकाव्य। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
- हिम्मतबहादुर विरुदावली
- प्रतापसिंह विरुदावली
- रामरसायन
- पद्माभरण
- जगद्विनोद
- प्रबोध पचासा
- गंगा लहरी
- ईश्वर पचीसी
यह भी पढ़ें – रीतिकाल के प्रमुख कवि पद्माकर का जीवन परिचय और साहित्यिक योगदान
पद्माकर की भाषा शैली
पद्माकर की भाषा सरल, सुंदर और सहज प्रवाह वाली थी। सवैया और कवित्त छंदों पर उनका खास अधिकार था, जो अन्य कवियों में कम ही देखने को मिलता है। वे भाषा का बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग करते थे और लाक्षणिक शब्दों के जरिए बेहद नाजुक भावों को भी आसानी से अभिव्यक्त कर देते थे। उनके अलंकारपूर्ण वर्णनों का असर बाद के कवियों की रचनाओं में भी स्पष्ट दिखाई देता है।
सन 1833 में हुआ निधन
विद्वानों द्वारा माना जाता है कि कवि पद्माकर का निधन गंगा तट पर कानपुर में सन 1833 में हुआ था।
FAQs
माना जाता है कि पद्माकर का जन्म सन 1753 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था।
उनका मूल नाम पद्माकर भट्ट था।
‘पद्माभरण’ प्रसिद्ध कवि पद्माकर की एक काव्य-रचना है।
‘पद्माकर’ रीतिकाल के अंतिम श्रेष्ठ कवि हैं।
लोकमान्यता के अनुसार कवि पद्माकर का निधन गंगा तट पर कानपुर में सन 1833 में हुआ था।
आशा है कि आपको प्रसिद्ध कवि पद्माकर का जीवन परिचय पर आधारित हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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