संत कबीर दास का जीवन परिचय: साहित्यिक रचनाएं, भाषा शैली और प्रसिद्ध दोहे

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Kabir Das Ka Jivan Parichay

संत कबीर दास 15वीं सदी में हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के सबसे प्रसिद्ध कवि एवं विचारक माने जाते हैं। उनका संबंध भक्तिकाल की निर्गुण शाखा ‘ज्ञानमार्गी उपशाखा’ से था। इनकी रचनाओं और गंभीर विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया था। इसके साथ ही उन्होंने उस समय समाज में फैली कुरीतियों, कर्मकांडों, अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की कड़ी आलोचना की। संत कबीर दास की रचनाओं के कुछ अंश सिक्खों के ‘आदि ग्रंथ’ में भी सम्मिलित किए गए हैं। इस लेख में संत कबीर दास का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं की विस्तृत जानकारी दी गई है।  

नामसंत कबीर दास
जन्म स्थानवाराणसी, उत्तर प्रदेश
पिता का नामनीरू
माता का नामनीमा
पत्नी का नामलोई
संतान कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
शिक्षा निरक्षर 
मुख्य रचनाएं साखी, सबद, रमैनी
काल भक्तिकाल 
शाखा ज्ञानमार्गी शाखा
भाषा अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा
संत कबीर दास की जयंती 202511 जून, 2025

कबीर दास का जीवन परिचय 

संत कबीर दास का जन्म कब हुआ, यह ठीक-ठीक ज्ञात नहीं है। परन्तु ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (वर्तमान वाराणसी) में हुआ था। कबीर के जीवन से संबंधित कई किवदंतियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक के अनुसार उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था, जिसने उन्हें जन्म के तुरंत बाद ही नदी में बहा दिया था।

नीरू और नीमा नामक एक जुलाहा दंपति को वे नदी किनारे मिले, जिन्होंने उनका पालन-पोषण किया। कबीर के गुरु का नाम ‘संत स्वामी रामानंद’ था। उनका विवाह ‘लोई’ नामक महिला से हुआ था, जिनसे उन्हें ‘कमाल’ और ‘कमाली’ नामक दो संतानें प्राप्त हुईं। अधिकांश विद्वानों के अनुसार संत कबीर का सन 1575 के आसपास मगहर में स्वर्गवास हुआ था। 

कबीर दास की साहित्यिक रचनाएं 

कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे। उन्होंने अपनी वाणी से स्वयं ही कहा है “मसि कागद छूयो नहीं, कलम गह्यो नहिं हाथ”। इससे स्पष्ट होता है कि उन्होंने अपनी रचनाएँ स्वयं नहीं लिखीं। इसके बावजूद, उनके वचनों का संकलन कई प्रमुख ग्रंथों में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि बाद में उनके शिष्यों ने उनके वचनों को संकलित कर ‘बीजक’ नामक ग्रंथ की रचना की।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने भी स्पष्ट कहा है कि, “कविता करना कबीर का लक्ष्य नहीं था, कविता तो उन्हें संत-मेंत में मिली वस्तु थी, उनका लक्ष्य लोकहित था।” कबीर की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार हैं:-

रचनाअर्थप्रयुक्त छंदभाषा
साखीसाक्षीदोहाराजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली
सबदशब्दगेय पदब्रजभाषा और पूर्वी बोली
रमैनीरामायणचौपाई और दोहाब्रजभाषा और पूर्वी बोली

संत कबीर दास जी को कई भाषाओं का ज्ञान था वे साधु-संतों के साथ कई जगह भ्रमण पर जाते रहते थे इसलिए उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान हो गया था। इसके साथ ही कबीरदास अपने विचारो और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए स्थानीय भाषा के शब्दों का इस्तेमाल करते थे। जिसे स्थानीय लोग उनकी वचनो को भली भांति समझ जाते थे। बता दें कि कबीर दास जी की भाषा को ‘सधुक्कड़ी’ भी कहा जाता है।

कबीर दास जी के प्रसिद्ध दोहे 

कबीर दास के शिक्षाप्रद दोहे निम्नलिखित हैं:-

“माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।” 

कबीर दास का जीवन परिचय

“पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!”

“गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय।।”

“यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।”

कबीर दास का जीवन परिचय

“उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥”

“निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।”

“प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।”

“जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान । जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण।”

“मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि । कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि॥”

“चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये । दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।”

“तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार । सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार।”

कबीर दास का जीवन परिचय

“जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि॥”

“कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ॥”

“जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप।”

“ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।”

कबीर दास का जीवन परिचय

संत कबीरदास ने अपने जीवनभर लोककल्याण के लिए उपदेश दिए और समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा आडंबरों का निर्भीकता से विरोध किया। हिंदी साहित्य में उन्हें एक महान कवि का स्थान प्राप्त है। उनके अनमोल विचार आज भी पढ़े जाते हैं और लोग उन्हें अपने जीवन में अपनाते हैं।

संत कबीर दास की जयंती 2025 

संत कबीर दास जी की जयंती प्रतिवर्ष जेयष्ठ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। बताना चाहेंगे इस वर्ष यह तिथि बुधवार 11 जून, 2025 को पड़ रही है। इसलिए आज पूरे देशभर में कबीर दास जी की जयंती बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। इस अवसर पर लोग अपने प्रियजनों, सगे-संबंधियों और मित्रों को शुभकामना संदेश भेजते हैं। वहीं इस दिन को विशेष बनाने के लिए लोग सत्संग, कीर्तन और विचार गोष्ठियों का आयोजन भी करते हैं। इस अवसर पर कई स्थानों पर शोभायात्रा भी निकाली जाती है जो कबीर मंदिरों तक जाती है।

FAQs

संत कबीर दास का जन्म कहाँ हुआ था?

माना जाता है कि संत कबीर दास का जन्म वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था। 


कबीर दास के माता-पिता का क्या नाम था?

कबीर दास की माता ‘नीमा’ और पिता का नाम ‘नीरू’ था। 

कबीर दास किस काल के कवि थे। 

कबीर दास भक्तिकाल में ‘ज्ञानमार्गी शाखा’ के कवि थे। 

कबीर दास की मुख्य रचनाएँ कौनसी हैं?

कबीर दास की मुख्य रचनाएँ ‘साखी’, ‘सबद’ और ‘रमैनी’ हैं।

कबीर दास ने किस भाषा में रचना की थी?

कबीर दास ने मुख्य रूप से ‘सधुक्कड़ी’ भाषा में रचना की थी। 

संत कबीर दास जयंती 2025 कब है?

संत कबीर दास जी की जयंती 11 जून, 2025 को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है।

आशा है कि आपको संत कबीर दास का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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