तुलसीदास का जीवन परिचय, रामभक्ति शाखा, रचनाएँ एवं भाषा शैली 

1 minute read
तुलसीदास का जीवन परिचय

गोस्वामी तुलसीदास हिंदी के ‘भक्तिकाल’ की सगुण काव्यधारा में ‘रामभक्ति शाखा’ के सर्वोपरि कवि हैं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन प्रभु श्रीराम की भक्ति और उनके गुणों का गुणगान करने के लिए समर्पित कर दिया। उनके द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ हिंदी का एक सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना जाता है। यह सात कांडों का प्रबंध काव्य है। इस महाकाव्य की रचना मुख्यतः दोहा और चौपाई छंद में हुई है। उन्हें ब्रज और अवधी भाषा पर असाधारण अधिकार था। उनकी बारह कृतियाँ प्रमाणिक मानी जाती हैं परंतु ‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली’, ‘कवितावली’ और ‘वैराग्य संदीपनी’ ही उनकी ख्याति के आधार हैं। इस लेख में ‘रामभक्ति शाखा’ के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।

नाम गोस्वामी तुलसीदास
उपनाम रामबोला
जन्म सन 1532 
जन्म स्थान राजापुर गाँव, बाँदा जिला, उत्तर प्रदेश 
पिता का नाम आत्माराम दुबे
माता का नाम हुलसी
गुरु नरहरिदास 
पत्नी का नाम रत्नावली 
दर्शन वैष्णव 
विधा पद्य 
प्रमुख रचनाएँ ‘रामचरितमानस’, ‘विनयपत्रिका’, ‘गीतावली’, ‘कवितावली’ और ‘वैराग्य संदीपनी’ आदि। 
भाषा अवधी, ब्रज 
साहित्य काल भक्तिकाल (रामभक्ति शाखा)
देहावसानसन 1632 

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय

गोस्वामी तुलसीदास के जन्म एवं मृत्युकाल से संबंधित प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। किंतु अनेक विद्वानों द्वारा माना जाता है कि तुलसीदास का जन्म सन 1532 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ था। वहीं कुछ विद्वान उनका जन्म स्थान सोरों, एटा जनपद भी मानते हैं। तुलसी के पिता का नाम ‘आत्माराम दुबे’ जबकि माता का नाम ‘हुलसी’ था। तुलसीदास का बचपन का नाम ‘रामबोला’ था। बताया जाता है कि तुलसी का प्रारंभिक जीवन घोर कष्ट में बीता था। बाल्यावस्था में ही उनका माता-पिता से बिछोह हो गया था। जिसके कारण उन्हें भिक्षाटन द्वारा जीवन-यापन करने को विवश होना पड़ा था। 

गोस्वामी तुलसीदास जी की शिक्षा

गोस्वामी तुलसीदास जी पर उनके दीक्षा गुरु बाबा नरहरिदास जी की दया दृष्टि थी। उन्हीं से तुलसीदास जी ने शूकर क्षेत्र या सोरों में राम कथा सुनी थी। बाद में उन्होंने शेषसनातन जी के पास काशी में लगभग 15-16 वर्ष रहकर वेद, पुराण, उपनिषद, रामायण तथा श्रीमद्भागवत आदि का गंभीर अध्यन्न किया था। 

गुरु नरहरिदास से मिला राम भक्ति का मार्ग

गोस्वामी तुलसीदास को ‘गुरु नरहरिदास’ (Narharidas) की कृपा से राम भक्ति का मार्ग मिला था। वहीं ‘रत्नावली’ से उनका विवाह होना और उनकी बातों से प्रभावित होकर तुलसी का गृहत्याग करके वैरागय धारण करने की कथा प्रचलित है लेकिन इसका पर्याप्त प्रमाण नहीं मिलता। ‘हिंदी साहित्य का बृहत् इतिहास’ के अनुसार, तुलसी का विवाह तारपिता गांव के ब्राह्मण की कन्या ‘रत्नावली’ से हुआ था। कुछ वर्ष के वैवाहिक जीवन के बाद जब उनकी पत्नी मायके गई तब वे भी उनके पीछे ससुराल चले गए। किंतु पत्नी की चेतावनी सुनकर उन्होंने वैरागय ग्रहण कर लिया। 

रामचरितमानस महाकाव्य का किया सृजन 

पारिवारिक जीवन से विरक्त होने के बाद गोस्वामी तुलसीदास काशी, चित्रकूट, अयोध्या आदि तीर्थ स्थानों का भ्रमण करते रहे। माना जाता है कि सन 1574 में अयोध्या में उन्होंने ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य की रचना प्रारंभ की, जिसका कुछ अंश उन्होंने काशी में भी लिखा। इसके बाद उन्होंने कई अन्य ग्रंथों की रचना की। तुलसी ने अपना बाकी जीवन काशी में प्रभु श्रीराम कथा का गान करते हुए गुजारा। सन 1623 के लगभग उन्होंने काशी में ही अपना शरीर त्याग दिया। 

तुलसीदास की भक्ति भावना 

तुलसीदास जी एक महान जीवनदृष्टा कवि हैं। वहीं उनकी भक्ति का स्वरूप अत्यंत विविध है। उसमें शिष्टता, आदर्श और नैतिकता को पूरा स्थान दिया गया है। यद्यपि तुलसीदास जी के इष्ट परब्रह्म परमेश्वर दशरथ नंदन श्रीराम हैं। तुलसीदास इन्हें ही अपना जीवन धन मानते हैं। वे अपने इष्टदेव राम को ‘स्वामी’ और स्वयं को ‘सेवक’ स्वीकारते हैं। एक सच्चे सेवक के समान वे अपने स्वामी की भक्ति और स्तुति करते हैं। इसके अतिरिक्त वे अपने गुरु सहित कई देवी-देवताओं की भक्ति उपासना करते हैं। 

तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ

गोस्वामी तुलसीदास लोकमंगल की साधना के कवि हैं, उन्हें समन्वय का कवि भी कहा जाता है। तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ हिंदी का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य माना जाता है। उनकी कुल बारह कृतियाँ प्रामाणिक मानी जाती हैं। यहां उनकी सभी प्रमुख रचनाओं की सूची दी गई है:-

तुलसीदास की रचना का नामभाषा 
रामचरितमानसअवधी
विनयपत्रिकाअवधी
गीतावलीब्रजभाषा
कवितावलीब्रजभाषा
दोहावलीअवधी
हनुमान-वाहकअवधी
जानकीमंगलअवधी
वैराग्य संदीपनीअवधी
कृष्ण गीतावलीब्रजभाषा
पार्वती मंगल अवधी
रामलला नहछू अवधी
बरवै रामायणअवधी

तुलसीदास की भाषा शैली

गोस्वामी तुलसीदास को संस्कृत, अवधी और ब्रज भाषा पर असाधारण अधिकार था। वे लोकमंगल के साधक कवि के रूप में विख्यात हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण यह है कि उन्होंने शास्त्रीय भाषा संस्कृत के स्थान पर लोक जन की भाषा अवधी और ब्रजभाषा को साहित्य रचना के रूप में चुना था। ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य मुख्यतः दोहा और चौपाई छंद में रचित है तथा इसकी भाषा अवधी है। जबकि ‘गीतावली’, ‘कवितावली’ और ‘कृष्ण गीतावली’ ब्रज भाषा में रचित पद शैली की रचनाएँ हैं। उनकी लोक और शास्त्र दोनों में गहरी पैठ है। वहीं जीवन की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंगों की उन्हें अचूक समझ हैं। यहीं विशेषता उन्हें महाकवि का दर्जा प्रदान करती है। 

FAQs

तुलसी जी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

तुलसीदास का जन्म सन 1532 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ था।

तुलसी की प्रमुख रचना कौन सी है?

रामचरितमानस, विनयपत्रिका, गीतावली, कवितावली और वैराग्य संदीपनी उनकी प्रमुख रचनाएँ मानी जाती हैं। 

तुलसीदास कितने वर्ष जीवित रहे थे?

तुलसीदास की मृत्यु 111 वर्ष की आयु में सन 1623 के आसपास हुई थी। 

तुलसीदास के गुरु कौन थे?

नरहरिदास’ गोस्वामी तुलसीदास के गुरु माने जाते हैं।

तुलसीदास की पत्नी कौन थी?

तुलसीदास की पत्नी का नाम रत्नावली था। 

तुलसीदास के बचपन का क्या नाम था?

तुलसीदास के बचपन का नाम रामबोला था।

तुलसीदास के माता-पिता का नाम क्या था?

उनकी माता का नाम ‘हुलसी’ था जबकि पिता का नाम ‘आत्माराम दुबे’ था।

रामायण में कितने अध्याय हैं?

रामायण में सात अध्याय हैं, जिन्हें ‘कांड’ के नाम से जाना जाता है।

आशा है कि आपको रामभक्ति शाखा के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*