Tulsidas Poems in Hindi: हिंदी भावार्थ के साथ पढ़ें तुलसीदास जी की सुप्रसिद्ध कविताएं और अनमोल दोहे

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Tulsidas Poems in Hindi

Tulsidas Poems in Hindi: तुलसीदास जी का नाम भारतीय साहित्य और भक्ति आंदोलन की दुनिया में अत्यंत श्रद्धा और सम्मान से लिया जाता है। वे न केवल एक कवि थे, बल्कि एक संत, दार्शनिक और समाज-सुधारक भी थे। बता दें कि गोस्वामी तुलसीदास जी 16वीं शताब्दी में जन्मे तुलसीदास जी ने अवधि भाषा में ऐसी रचनाओं को उनका मूल स्वरुप दिया, जिनके भावार्थ जानने के बाद आप उनकी लेखनी और उनके शब्दों से नैतिकता का अर्थ और महत्व के बारे में जान पाएंगे।

तुलसीदास जी की रचनाओं का मुख्य उद्देश्य जनमानस को भक्ति, नैतिकता और धर्म के मार्ग पर प्रेरित करना था। उनकी प्रमुख रचनाओं में रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहे, कवितावली और हनुमान चालीसा शामिल हैं। इन सभी रचनाओं में उनकी कविताएँ सरल, सहज और जन-जन की समझ में आने वाली हैं, जो उन्हें जनकवि बनाती हैं। यही कारण है कि भारत सरकार और विभिन्न शैक्षिक संस्थाओं द्वारा गोस्वामी तुलसीदास जी को भारतीय संस्कृति के सर्वोच्च कवियों में स्थान दिया गया है। इसलिए इस लेख में आपके लिए तुलसीदास की कविताएं (Tulsidas Poems in Hindi) दी गई हैं, जो आपको धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करेंगी। तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं पढ़ने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।

Tulsidas poems in hindi
Courtesy: Wikipedia

गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय

तुलसीदास जी का जन्म सन् 1532 में उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजापुर गांव में हुआ था, कुछ लोग उनका जन्म स्थान सोरों (जिला – एटा) भी मानते हैं। बचपन में ही तुलसीदास जी का उनके माता-पिता से बिछोह हो गया इसलिए  तुलसीदास जी का जीवन बहुत ही संघर्षमय था। मान्यता है कि उन्हें रामभक्ति का मार्ग गुरु कृपा से मिला था, तुलसीदास जी मानव मूल्यों के एक उपासक कवि थे। गोस्वामी तुलसीदास जी प्रभु श्री राम के परम भक्तों में से एक थे और रामचरितमानस उनकी इस अतुलनीय भक्ति का उदाहरण है । तुलसीदास जी भगवान राम को मानवीय मर्यादा और आदर्शों के प्रतीक मानते थे, जिसके माध्यम से तुलसीदास जी ने स्नेह, त्याग, नीति, वीनम्रता, शील जैसे कई और आदर्शों का बखान किया है।

उत्तरी भारत की जनता के मध्य रामचरितमानस बहुत प्रचलित है, जो कि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित है। रामचरितमानस के अलावा उनकी कई और प्रमुख रचनाएं (Tulsidas poems in Hindi) हैं, जैसे: कवितावली, गीतावली, दोहावली, कृष्णगीतावली, विनयपत्रिका आदि। तुलसीदास जी का अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में ही समान अधिकार था। सदी के महान संत, एक महान कवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने सन् 1632 में काशी में अपनी अंतिम सांस ली और बैकुंठ धाम की ओर गमन किया। रामचरितमानस की रचना अवधि में तथा कवितावली और विनयपत्रिका की रचना ब्रज भाषा में थी। उस समय प्रचलित सभी काव्यों को आप तुलसीदास की रचनाओं में देख सकते हैं।

तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं – Tulsidas Ki Pramukh Rachnaye

यहाँ आपके लिए तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं (Tulsidas Ki Pramukh Rachnaye) दी गई हैं, जो आपको नैतिकता का पाठ पढ़ाएंगी। तुलसीदास की प्रमुख रचनाएं (Tulsidas Ki Pramukh Rachnaye) इस प्रकार हैं –

क्रम संख्यारचना का नामभाषासंक्षिप्त विवरण
1रामचरितमानसअवधीभगवान राम के जीवन पर आधारित; तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध कृति।
2हनुमान चालीसाअवधीभगवान हनुमान की स्तुति में रचित 40 चौपाइयों का संग्रह।
3विनय पत्रिकाब्रजभगवान राम से करुणा और दया की प्रार्थना; अत्यंत मार्मिक और भावपूर्ण रचना।
4कवितावलीअवधीभगवान राम के जीवन की विभिन्न घटनाओं का वर्णन करने वाली कविताएँ।
5दोहावलीहिंदीजीवन के नैतिक मूल्यों और भक्ति के मार्ग को समझाने वाले दोहे।
6गीतावलीब्रजश्रीराम के गुणों को गीतात्मक शैली में प्रस्तुत करने वाली रचना।
7श्री रामलला नहछूअवधीश्रीराम के बचपन की लीलाओं का मधुर चित्रण।
8जानकी मंगलअवधीश्रीराम और सीता के विवाह का सुंदर वर्णन।
9रामाज्ञा प्रश्नसंस्कृतश्रीराम के आदेशों और उत्तरों पर आधारित रचना।
10वैराग्य संदीपनीसंस्कृतवैराग्य और आत्मज्ञान पर आधारित गूढ़ विचारों की प्रस्तुति।

गोस्वामी तुलसीदास की प्रमुख रचनाओं (Tulsidas poems in Hindi) में हनुमान चालीसा बेहद प्रचलित और पुण्य फल दाई भी है, हनुमान चालीसा का माहात्म्य हर वह सनातनी जानता है, जिसने अपने जीवन में कभी न कभी इसका पाठ सुना या किया है।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥
महावीर विक्रम बजरंगी
कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा
कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे
काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन
तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर
राम काज करिबे को आतुर॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे
रामचंद्र के काज सँवारे॥१०॥
लाय संजीवन लखन जियाए
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावै
अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा
नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते
कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा
राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना
लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू
लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं
जलधि लाँघि गए अचरज नाहीं॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे
होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना
तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै
तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै
महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥
नासै रोग हरे सब पीरा
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥
संकट तै हनुमान छुडावै
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा
तिन के काज सकल तुम साजा॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै
सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा
है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥
साधु संत के तुम रखवारे
असुर निकंदन राम दुलारे॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता
अस बर दीन जानकी माता॥३१॥
है। राम रसायन तुम्हरे पासा
सदा रहो रघुपति के दासा॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै
जनम जनम के दुख बिसरावै॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई
हनुमत सेई सर्व सुख करई॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥३६॥
जै जै जै हनुमान गोसाई
कृपा करहु गुरु देव की नाई॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महा सुख होई॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा॥४०॥

“हनुमान चालीसा”

तुलसीदास की कविताएं – Tulsidas Poems in Hindi

यहाँ आपके लिए तुलसीदास की कविताएं (Tulsidas Poems in Hindi) दी गई हैं, जो आपकी आत्मा का परिचय सच्चिदानंद भगवान श्री हरि विष्णु से करवाएंगी। तुलसीदास की कविताएं (Tulsidas Poems in Hindi) इस प्रकार हैं –

तुलसीदास कविताएँ-1

अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से॥
‘तुलसी’ मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे॥

तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।
अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं॥
दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों किलकैं कल बाल बिनोद करैं।
अवधेस के बालक चारि सदा ‘तुलसी’ मन मंदिर में बिहरैं॥

सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौंहैं।
तून सरासन-बान धरें तुलसी बन मारग में सुठि सोहैं॥
सादर बारहिं बार सुभायँ, चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं।
पूँछति ग्राम बधु सिय सों, कहो साँवरे-से सखि रावरे को हैं॥

सुनि सुंदर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।
तिरछै करि नैन, दे सैन, तिन्हैं, समुझाइ कछु मुसुकाइ चली॥
‘तुलसी’ तेहि औसर सोहैं सबै, अवलोकति लोचन लाहू अली।
अनुराग तड़ाग में भानु उदै, बिगसीं मनो मंजुल कंजकली॥

तुलसीदास कविताएँ-2

हरि! तुम बहुत अनुग्रह किन्हों।
साधन-नाम बिबुध दुरलभ तनु, मोहि कृपा करि दीन्हों॥१॥

कोटिहुँ मुख कहि जात न प्रभुके, एक एक उपकार।
तदपि नाथ कछु और माँगिहौं, दीजै परम उदार॥२॥

बिषय-बारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।
ताते सहौं बिपति अति दारुन, जनमत जोनि अनेक॥३॥

कृपा डोरि बनसी पद अंकुस, परम प्रेम-मृदु चारो।
एहि बिधि बेगि हरहु मेरो दुख कौतुक राम तिहारो॥४॥

हैं स्त्रुति बिदित उपाय सकल सुर, केहि केहि दीन निहोरै।
तुलसीदास यहि जीव मोह रजु, जोइ बाँध्यो सोइ छोरै॥५॥

तुलसीदास कविताएँ-3

तुलसी ने मानस लिखा था जब जाति-पाँति-सम्प्रदाय-ताप से धरम-धरा झुलसी।
झुलसी धरा के तृण-संकुल पे मानस की पावसी-फुहार से हरीतिमा-सी हुलसी।

हुलसी हिये में हरि-नाम की कथा अनन्त सन्त के समागम से फूली-फली कुल-सी।
कुल-सी लसी जो प्रीति राम के चरित्र में तो राम-रस जग को चखाय गये तुलसी।

तुलसीदास कविताएँ-4

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं।1।

पायेउ नाम चारू चिंतामनि, उर-कर तें न खसैहों।
स्यामरूप सुचि रूचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं।2।

परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन-मधुकर पनक तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।3।

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तुलसीदास कविताएँ-5

माधव, मोह-पास क्यों छूटै
माधव, मोह-पास क्यों छूटै।
बाहर कोट उपाय करिय अभ्यंतर ग्रन्थि न छूटै।।1।।
घृतपूरन कराह अंतरगत ससि प्रतिबिम्ब दिखावै।
ईंधन अनल लगाय कल्पसत औंटत नास न पावै।।2।।
तरु-कोटर मँह बस बिहंग तरु काटे मरै न जैसे।
साधन करिय बिचारहीन मन, सुद्ध होइ नहिं तैसे।।3।।
अंतर मलिन, बिषय मन अति, तन पावन करिय पखारे।
मरै न उरक अनेक जतन बलमीकि बिबिध बिधि मारे।।4।।
तुलसीदास हरि गुरु करुना बिनु बिमल बिबेक न होई।
बिनु बिबेक संसार-घोरनिधि पार न पावै कोई।।5।।

तुलसीदास कविताएँ-6

है नीको मेरो देवता कोसलपति राम।
सुभग सरारूह लोचन, सुठि सुंदर स्याम।।1।।
सिय-समेत सोहत सदा छबि अमित अनंग।
भुज बिसाल सर धनु धरे, कटि चारू निषंग।।2।।
बलि पूजा चाहत नहीं, चाहत एक प्रीति।
सुमिरत ही मानै भलो, पावन सब रीति।3।
देहि सकल सुख, दुख दहै, आरत-जन -बंधु।
गुन गहि, अघ-औगुन हरै, अस करूनासिंधु।।4।।
देस-काल-पूरन सदा बद बेद पुरान।
सबको प्रभु, सबमें बसै, सबकी गति जान।।5।।
को करि कोटिक कामना, पूजै बहु देव।
तुलसिदास तेहि सेइये, संकर जेहि सेव।।6।।

तुलसीदास कविताएँ-7

तुलसी-स्तवन

तुलसी ने मानस लिखा था जब जाति-पाँति-सम्प्रदाय-ताप से धरम-धरा झुलसी।
झुलसी धरा के तृण-संकुल पे मानस की पावसी-फुहार से हरीतिमा-सी हुलसी।।
हुलसी हिये में हरि-नाम की कथा अनन्त सन्त के समागम से फूली-फली कुल-सी।
कुल-सी लसी जो प्रीति राम के चरित्र में तो राम-रस जग को चखाय गये तुलसी।।
आत्मा थी राम की पिता में सो प्रताप-पुन्ज आप रूप गर्भ में समाय गये तुलसी।
जन्मते ही राम-नाम मुख से उचारि निज नाम रामबोला रखवाय गये तुलसी।।
रत्नावली-सी अर्द्धांगिनी सों सीख पाय राम सों प्रगाढ प्रीति पाय गये तुलसी।
मानस में राम के चरित्र की कथा सुनाय राम-रस जग को चखाय गये तुलसी।।

तुलसीदास कविताएँ8

सुन मन मूढ सिखावन मेरो

सुन मन मूढ सिखावन मेरो।
हरिपद विमुख लह्यो न काहू सुख, सठ समुझ सबेरो।।
बिछुरे ससि रबि मन नैननि तें, पावत दुख बहुतेरो।
भ्रमर स्यमित निसि दिवस गगन मँह, तहँ रिपु राहु बडेरो।।
जद्यपि अति पुनीत सुरसरिता, तिहुँ पुर सुजस घनेरो।
तजे चरन अजहूँ न मिट नित, बहिबो ताहू केरो।।
छूटै न बिपति भजे बिन रघुपति, स्त्रुति सन्देहु निबेरो।
तुलसीदास सब आस छाँडि करि, होहु राम कर चेरो।।

तुलसीदास कविताएँ9

केशव, कहि न जाइ का कहिये

केशव, कहि न जाइ का कहिये।
देखत तव रचना विचित्र अति, समुझि मनहिमन रहिये।
शून्य भीति पर चित्र, रंग नहि तनु बिनु लिखा चितेरे।
धोये मिटे न मरै भीति, दुख पाइय इति तनु हेरे।
रविकर नीर बसै अति दारुन, मकर रुप तेहि माहीं।
बदन हीन सो ग्रसै चराचर, पान करन जे जाहीं।
कोउ कह सत्य, झूठ कहे कोउ जुगल प्रबल कोउ मानै।
तुलसीदास परिहरै तीनि भ्रम, सो आपुन पहिचानै

तुलसीदास कविताएँ10

अबलौं नसानी, अब न नसैहौं।
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं।।1।।
पायेउ नाम चारू चिंतामनि, उर-कर तें न खसैहों।
स्यामरूप सुचि रूचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं।।2।।
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन-मधुकर पनक तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।।3।।

तुलसीदास कविताएँ11

महाराज रामादर्यो धन्य सोई।
गरूअ, गुनरासि, सरबग्य, सुकृती, सूर, सील,-निधि, साधु तेहि सम न कोई।।1।।
उपल ,केवट, कीस,भालु, निसिचर, सबरि, गीध सम-दम -दया -दान -हीने।।
नाम लिये राम किये पवन पावन सकल, नर तरत तिनके गुनगान कीने।।2।।
ब्याध अपराध की सधि राखी कहा, पिंगलै कौन मति भगति भेई।
कौन धौं सेमजाजी अजामिल अधम, कौन गजराज धौं बाजपेयी।।3।।
पांडु-सुत, गोपिका, बिदुर, कुबरी, सबरि, सुद्ध किये, सुद्धता लेस कैसो।
प्रेम लखि कृस्न किये आने तिनहूको, सुजस संसार हरिहर को जैसो।।4।।
कोल, खस, भील जवनादि खल राम कहि, नीच ह्वै ऊँच पद को न पायो।
दीन-दुख- दवन श्रीवन करूना-भवन, पतित-पावन विरद बेद गायो।।5।।
मंदमति, कुटिल , खल -तिलक तुलसी सरिस, भेा न तिहुँ लोक तिहुँ काल कोऊ।
नाकी कानि पहिचानि पन आवनो, ग्रसित कलि-ब्याल राख्यो सरन सोऊ।।6।।

गोस्वामी तुलसीदास के दोहे

यहाँ Tulsidas poems in Hindi के साथ-साथ, गोस्वामी तुलसीदास के दोहे हिंदी भावार्थ के साथ दिए गए हैं, जो आपका जीवन भर मार्गदर्शन करेंगे। हिंदी भावार्थ के साथ गोस्वामी तुलसीदास के दोहे इस प्रकार हैं –

तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
राम नाम  मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि हे मनुष्य ,अगर तुम अंदर और बाहर दोनों ओर से शांति चाहते हो तो अपने मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नाम का जाप करो|

नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||

अर्थ: राम का नाम कल्पतरु (मनचाहा पदार्थ देनेवाला )और कल्याण का निवास (मुक्ति का घर ) है,जिसको स्मरण करने से भाँग सा (निकृष्ट) तुलसीदास भी तुलसी के समान पवित्र हो गया |

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तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||

अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि सुंदर वेष देखकर न केवल मूर्ख बल्कि चतुर मनुष्य भी धोखा खा जाएं | सुंदर मोर को ही देख लो उसका वचन तो अमृत के समान है लेकिन आहार साँप का है |

सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान  रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||

अर्थ: शूरवीर तो युद्ध में शूरवीरता का कार्य करते हैं ,कहकर अपने को नहीं जानते| शत्रु को युद्ध में उपस्थित पा कर कायर ही अपने प्रताप की डींग मारा करते हैं |

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सहज सुहृद  गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो  पछिताइ  अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||

अर्थ: स्वाभाविक ही हित चाहने वाले गुरु और स्वामी की सीख को जो सिर चढ़ाकर नहीं मानता ,वह हृदय में खूब पछताता है और उसके हित की हानि अवश्य होती है|

मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए जो खाने-पीने को तो अकेला है, लेकिन विवेकपूर्वक सब अंगों का पालन-पोषण करता है |

सचिव  बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज  धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||

tulsidas poems in hindi
तुलसीदास जी का मीठे वचन पर दोहा

तुलसी मीठे बचन  ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठे वचन सब ओर सुख फैलाते हैं | किसी को भी  वश में करने का ये एक मन्त्र होते हैं इसलिए मानव को चाहिए कि कठोर वचन छोडकर मीठा बोलने का प्रयास करे |

सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||

अर्थ: जो मनुष्य अपने अहित का अनुमान करके शरण में आये हुए का त्याग कर देते हैं वे क्षुद्र और पापमय होते हैं |दरअसल ,उनका तो दर्शन भी उचित नहीं होता |

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दया धर्म का मूल  है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी कहते हैं कि मनुष्य को दया कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि दया ही धर्म का मूल है और इसके विपरीत अहंकार समस्त पापों की जड़ होता है|

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह|
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||

अर्थ: जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो,  वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो|

तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, किसी विपत्ति यानि किसी बड़ी परेशानी के समय आपको ये सात गुण बचायेंगे: आपका ज्ञान या शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और ईश्वर में विश्वास|

तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान|
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||

अर्थ: गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, समय बड़ा बलवान होता है, वो समय ही है जो व्यक्ति को छोटा या बड़ा बनाता है| जैसे एक बार जब महान धनुर्धर अर्जुन का समय ख़राब हुआ तो वह भीलों के हमले से गोपियों की रक्षा नहीं कर पाए

Tulsidas Poems in Hindi
तुलसीदास
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तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए|

तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग|
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||

अर्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, इस दुनिय में तरह-तरह के लोग रहते हैं, यानी हर तरह के स्वभाव और व्यवहार वाले लोग रहते हैं, आप हर किसी से अच्छे से मिलिए और बात करिए| जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पार कर लेती है वैसे ही अपने अच्छे व्यवहार से आप भी इस भव सागर को पार कर लेंगे|

लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन|
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||

अर्थ: बारिश के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता|

“अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेक जो होती राम से, तो काहे भव-भीत”

अर्थ: मेरा शरीर चमड़े से बना है, जो नश्वर है, यदि फिर भी मैं इस त्वचा से बहुत अधिक लगाव रखता हूँ। अगर आपने मेरा ध्यान करना छोड़ कर राम के नाम का ध्यान किया होता तो आपकी नव्या से पार हो जाते।

काम क्रोध मद लोभ की जौ लौं मन में खान ।
तौ लौं पण्डित मूरखौं तुलसी एक समान ।।

अर्थ: जब तक व्यक्ति के मन में काम की भावना, गुस्सा, अहंकार, और लालच भरे हुए होते हैं। तबतक एक ज्ञानी व्यक्ति और मूर्ख व्यक्ति में कोई अंतर नहीं होता है, दोनों एक हीं जैसे होते हैं।

आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह ।।

अर्थ: जिस जगह या फिर जिस घर में आपके जाने से लोग खुश नहीं होते हों और उन लोगों की आँखों में आपके लिए न तो प्रेम और न हीं स्नेह हो। वहाँ हमें कभी भी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की हीं वर्षा क्यों न होती हो।

मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन ।
अस बिचारि तजि संसय रामहि भजहिं प्रबीन ॥

अर्थ: राम मच्छर को भी ब्रह्मा बना सकते हैं और ब्रह्मा को मच्छर से भी छोटा बना सकते हैं। ऐसा जानकर बुद्धिमान लोग सारे संदेहों को त्यागकर राम को ही भजते हैं।

तुलसीदास के 10 दोहे

यहाँ आपके लिए Tulsidas poems in Hindi के साथ-साथ, गोस्वामी तुलसीदास के 10 दोहे दिए गए हैं, जो इस प्रकार हैं –

तुलसीदास का दोहा-1

“दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान, तुलसी दया न छोडिये जब तक घट में प्राण”

तुलसीदास का दोहा-2

“नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवास, जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास”

तुलसीदास का दोहा-3

“सरनागत कहूँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि, ते नर पावर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि”

तुलसीदास का दोहा-4

“तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ और, बसीकरण इक मंत्र हैं परिहरु बचन कठोर”

तुलसीदास का दोहा-5

“मुखिया मुखु सो चाहिये खान पान कहूँ एक, पालड़ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक”

तुलसीदास का दोहा-6

“सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस, राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास”

तुलसीदास का दोहा-7

‘तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥

तुलसीदास का दोहा-8

राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस।
बरषत वारिद-बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥

तुलसीदास का दोहा-9

‘तुलसी’ सब छल छाँड़िकै, कीजै राम-सनेह।
अंतर पति सों है कहा, जिन देखी सब देह॥

तुलसीदास का दोहा-10

तुलसी ममता राम सों, समता सब संसार।
राग न रोष न दोष दुख, दास भए भव पार॥

FAQ

तुलसीदास का जन्म कब हुआ था और मृत्यु कब हुई थी?

गोस्वामी तुलसीदास (1511 – 1623) हिन्दी साहित्य के महान सन्त कवि थे। रामचरितमानस इनका गौरव ग्रन्थ है।

गोस्वामी तुलसीदास जी की अंतिम रचना कौन सी है?

तुलसीदास की प्रथम रचना (Tulsidas poems in Hindi) वैराग्य संदीपनी तथा अन्तिम रचना कवितावली को माना जाता है।

जाऊँ कहाँ तजि चरण तुम्हारे।
काको नाम पतित पावन जग केहि अति दीन पियारे
कौने देव बराइ बिरद हित, हठि-हठि अधम उधारे।
खग, मृग, व्याध, पषान, विटप जड़, जवन-कवन सुत तारे।
देव, दनुज, मुनि, नाग, मनुज सब, माया-बिबस विचारे।
तिनके हाथ दास तुलसी प्रभु, कहा अपुनपौ हारै।
इस दोहे का अर्थ क्या है?

प्रस्तुत पद में कवि तुलसीदास ने अपने आराध्य देव प्रभु श्रीराम के चरणों को अपने जीवन का चरम लक्ष्य माना है। वे उनकी कृपा, वत्सल भावना, उद्धार करने की सामर्थ्य व भक्तों पर अपार करुणा से प्रभावित हैं। उन्हें लगता है कि प्रभु श्रीराम ही उन जैसे संसारी जीवों का उद्धार कर उन्हें अपने चरणों में जगह दे सकते हैं। वे इसकी पुष्टि के लिए रामायण व अन्य ग्रंथों से उदाहरण देते हैं जिनमें नीच, पतित व अधम नर-नारियों का उद्धार किया गया है।

अवधेस के द्वारे सकारे गई, सुत गोद कै भूपति लै निकसे।
अवलोकि हौं सोच-विमोचन को ठगि सी रही, जे न ठगे धिक से॥
तुलसी मनरंजन रंजित-अंजन नैन सु-खंजन-जातक से।
सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह से बिकसे॥
इस दोहे का अर्थ क्या है?

इस दोहे में दो सहेलियां आपस में बात कर रही होती हैं और एक सहेली दूसरी को सम्बोधित करते हुए कहती है की, हे सखी, मैं आज सबेरे राजा दशरथ के द्वार पर गई थी।देखा, राजा अपने पुत्र राम को गोद में लेकर बाहर निकले। शोक को दूर करने वाले राज-पुत्र को देखकर मैं मुग्ध-सी हो गई। जो उन्हें देखकर मुग्ध न हो उसे धिक्कार है।
तुलसीदासकहते हैं कि वे सुंदर खंजन पक्षी के बच्चे की सी काजल लगी हुई, मन को आनंदित करने वाली आँखें  मालूम होती हैं मानो चंद्रमा में एक ही तरह के दो नए नीले कमल खिले हों।

तुलसीदास की कविताओं से हमें कौन-कौन से जीवन मूल्य मिलते हैं?

उनकी कविताओं से हमें सत्य, भक्ति, सेवा, विनम्रता, और संयम जैसे जीवन मूल्य सीखने को मिलते हैं।

तुलसीदास की कविताओं का मुख्य उद्देश्य क्या था?

तुलसीदास की कविताओं (Tulsidas poems in Hindi) का उद्देश्य रामभक्ति को जन-जन तक पहुंचाना और नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना था।

तुलसीदास ने कौन-कौन सी प्रमुख कविताएं और ग्रंथ लिखे हैं?

तुलसीदास ने रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, विनय पत्रिका, दोहावली और कवितावली जैसी कई प्रमुख रचनाएं लिखी हैं।

क्या तुलसीदास की कविताएं आज भी प्रासंगिक हैं?

हां, उनकी कविताएं आज भी आध्यात्मिक मार्गदर्शन, नैतिक शिक्षा और आत्मबल बढ़ाने के लिए प्रासंगिक हैं।

तुलसीदास की कविताओं में राम का चित्रण किस रूप में किया गया है?

उन्होंने राम को मर्यादा पुरुषोत्तम, आदर्श राजा, आदर्श पुत्र और करुणामय भगवान के रूप में चित्रित किया है।

तुलसीदास की रचनाएं बच्चों को कैसे लाभ पहुंचा सकती हैं?

बच्चों को उनकी कविताओं से संस्कार, भक्ति, शिष्टाचार और जीवन के सही मार्ग की शिक्षा मिलती है।

तुलसीदास की कविताओं की भाषा क्या थी और वह किस शैली में लिखते थे?

उन्होंने अवधी और ब्रज भाषा में कविताएं लिखीं और शैली के रूप में दोहा, चौपाई, श्लोक आदि का प्रयोग किया।

आशा है कि इस लेख में दी गई गोस्वामी तुलसीदास की कविताएं (Tulsidas poems in Hindi) और दोहे पसंद आए होंगे। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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