मंगल पांडे भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी योद्धा थे, जिन्होंने सन् 1857 में ब्रिटिश हुकूमत को अपनी क्रांति की ज्वाला से हिला कर रख दिया था। यह वह समय था जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपनी जड़ें पूरी तरह जमा ली थीं और उनके विरुद्ध बोलने का साहस किसी में नहीं था। लेकिन कलकत्ता से कुछ मील दूर स्थित बैरकपुर की शांत छावनी से किसी ने भी यह कल्पना नहीं की थी कि यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया जाएगा। इसी विद्रोह से स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत मानी जाती है, जिसके अग्रदूत बने मंगल पांडे। यद्यपि भारत को पूर्ण स्वराज प्राप्त होने में लगभग 90 वर्ष और लगे। इस लेख में आजादी के महानायक मंगल पांडे का जीवन परिचय और उनके कार्यों की जानकारी दी गई है।
| नाम | मंगल पांडे |
| जन्म | 19 जुलाई, 1827 |
| जन्म स्थान | नगवा गांव, बलिया जिला, उत्तर प्रदेश |
| पेशा | सिपाही, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी |
| पिता का नाम | दिवाकर पांडे |
| माता का नाम | अभय रानी |
| नारा | “मारो फिरंगी को” |
| मृत्यु | 08 अप्रैल, 1857 |
| मृत्यु स्थान | बैरकपुर, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश इंडिया |
| मंगल पांडे की पुण्यतिथि 2026 | 169वीं |
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उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था जन्म
भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के अग्रदूत मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में नगवा नामक गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘दिवाकर पांडे’ तथा माता का नाम ‘अभय रानी’ था। बताया जाता है कि उस दौरान अधिकांश ब्राह्मण परिवार के बच्चे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भर्ती होते थे। इसलिए मंगल पांडे भी 22 वर्ष की आयु में सन 1849 में बंगाल की सेना में शामिल हो गए। वे बैरकपुर की सैनिक छावनी में ‘34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री’ की पैदल सेना के सिपाही थे।
नई एनफील्ड बंदूक की कारतूस बनी विद्रोह की वजह
वर्ष 1856 में ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाहियों के लिए नई एनफील्ड पी बंदूक लाई गई जो पुरानी ब्राउन बैस बंदूक की तुलना में काफी शक्तिशाली और सटीक थी। लेकिन इस बंदूक को लोड करने से पहले कारतूस को दाँत से काटना पड़ता था। इस बीच भारतीय सैनिकों में यह खबर फैल गई कि इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे उनकी घार्मिक भावनाएँ आहत होती हैं।
29 मार्च, 1857 को कोलकाता के बैरकपुर परेड ग्राउंड में जब 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री के सिपाहियों ने इस बंदूक के कारतूस का इस्तेमाल के प्रति असहमति दिखाई और मंगल पांडे ने इसका पुरजोर विरोध किया। बताया जाता है कि इस विरोध के चलते ग्राउंड पर ‘लेफ्टिनेंट बी.एच. बो’ पहुंच गए और मंगल पांडे ने उनपर गोली से हमला कर दिया। लेकिन बो बचने में कामयाब हो गए।
मंगल पांडे ने खुद को मारी गोली
इस घटना के बाद 34 नेटिव इंफ़ेंट्री के कमांडिंग अफसर भी वहां पहुंच गए और उन्होंने वहां मौजूद सभी सैनिकों को मंगल पांडे को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। लेकिन जब मंगल पांडे का किसी भी सैनिक ने साथ नहीं दिया और कुछ सैनिक उन्हें गिरफ्तार करने आए तो उन्होंने स्वयं को गोली मारने का प्रयास किया और बुरी तरह घायल हो गए। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार करके अस्पताल भेज दिया गया।
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मंगल पांडे को सुनाई गई फाँसी की सजा
इसके बाद देशभर की सैनिक छावनियों में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ तेजी से विद्रोह फैल गया। लेकिन मंगल पांडे को फांसी की सजा सुना दी गई। पहले उनकी फांसी की तारीख 18 अप्रैल तय की गई थी, लेकिन देशभर में आक्रोश न बढ़े, इसलिए उन्हें 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल, 1857 को फांसी दे दी गई। बता दें कि 1857 के विद्रोह में जान देने वाले मंगल पांडे पहले भारतीय थे। फिर इस घटना के गवाह ‘जमादार ईश्वरी प्रसाद’ को भी 21 अप्रैल, 1857 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
भारत सरकार ने जारी किया डाक टिकट
बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा मंगल पांडे की 34वीं रेजिमेंट को सामूहिक सज़ा के तौर पर 1857 में भंग कर दिया था। वहीं स्वाधीनता की इस क्रांति को कुछ समय के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने दबा तो दिया लेकिन वो भारतीयों के भीतर सुलग रही क्रांति को खत्म नहीं कर सके और आगे चलकर उन्हें भारत छोड़कर जाना ही पड़ा। भारत सरकार ने वर्ष 1984 में वीर मंगल पांडे के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था। इसके साथ ही उनके जीवन पर फिल्म और नाटक प्रदर्शित हुए हैं व कई पुस्तकें भी लिखी जा चुकी हैं।
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मंगल पांडे पर लिखी गई पुस्तकें
यहां मंगल पांडे के जीवन पर लिखी गई कुछ प्रमुख पुस्तकों की सूची दी गई है, जो इस प्रकार हैं:-
- डेटलाइन 1857 रिवोल्ट अगेंस्ट द राज – रुद्रांशु मुखर्जी
- वाट रियली हैपेन्ड ड्यूरिंग द म्यूटिनी – पीजीओ टेलर
- मंगल पाँडे द ट्रू स्टोरी ऑफ़ एन इंडियन रिवोल्यूशनरी – अमरेश मिश्रा
FAQs
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में नगवा गांव में हुआ था।
वे उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के रहने वाले थे।
उनकी माता का नाम अभय रानी और पिता का नाम दिवाकर पांडे था।
“मारो फिरंगी को” उनका प्रसिद्ध नारा था।
उन्हें 8 अप्रैल 1857 को फांसी दी गई थी।
मंगल पांडे ने कलकत्ता के पास बैरकपुर में 29 मार्च, 1857 को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह किया था।
आशा है कि आपको क्रांति के प्रतीक मंगल पांडे का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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