Panchayati Raj Kya Hai: पंचायती राज व्यवस्था में, ग्राम सभा सबसे महत्वपूर्ण संस्था है। यह गांव के सभी वयस्क सदस्यों की एक सभा होती है, जो गांव के लिए नीतियां और बजट बनाती है, और विकास कार्यों की निगरानी करती है। इसके अलावा, निर्वाचित पंचायतें होती हैं जो इन नीतियों को लागू करती हैं और गांव के दिन-प्रतिदिन के प्रशासन का प्रबंधन करती हैं। यह ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास और स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह सुनिश्चित करती है कि विकास प्रक्रिया में सभी नागरिकों की आवाज सुनी जाए, और स्थानीय आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को ध्यान में रखा जाए। इस ब्लॉग में हम पंचायती राज व्यवस्था क्या है? (Panchayati Raj Kya Hai) के बारे में विस्तार से जानेंगे।
This Blog Includes:
- पंचायती राज व्यवस्था क्या है? – Panchayati Raj Vyavastha Kya Hai
- पंचायती राज का विकास
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम की विशेषताएँ
- भारत की पंचायती राज व्यवस्था कैसे काम करती है? – How to Work Panchayati Raj System in India
- पंचायती राज की आवश्यकता
- ग्राम पंचायतों की आय के स्रोत
- FAQs
पंचायती राज व्यवस्था क्या है? – Panchayati Raj Vyavastha Kya Hai
भारत के महान नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने हमेशा गांवों के स्तर पर शक्ति और स्वशासन की कल्पना की थी। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को इस व्यवस्था में अटूट विश्वास था। हमारे संविधान निर्माताओं ने भी इस विचार को महत्व दिया और इसीलिए राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों में पंचायती राज के लिए विशेष प्रावधान शामिल किए गए। संविधान यह कहता है कि राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करेगा और उन्हें स्थानीय स्वशासन की इकाई के रूप में कार्य करने के लिए आवश्यक अधिकार और शक्ति प्रदान करेगा।
पंचायती राज का विकास
भारत में पंचायती राज की नींव सामुदायिक विकास कार्यक्रम के साथ रखी गई, जो प्रथम पंचवर्षीय योजना के दौरान शुरू हुई। यह पहला प्रयास था जब पंचायती राज और उसके मुख्य कार्यों को ज़मीनी स्तर पर लागू किया गया था।
इस व्यवस्था को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए, बलवंत राय मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। इस महत्वपूर्ण समिति ने अपनी रिपोर्ट में त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था स्थापित करने की सिफारिश की, जिसमें शामिल थे:
- ग्राम पंचायतें: गांव के स्तर पर सबसे बुनियादी इकाई।
- तहसील या ब्लॉक समिति: मध्यवर्ती यानी ब्लॉक स्तर पर काम करने वाली इकाई।
- जिला परिषद: सबसे ऊपरी स्तर पर, जिले के स्तर पर काम करने वाली इकाई।
राष्ट्रीय विकास परिषद ने भी वर्ष 1958 में इसी तरह की त्रिस्तरीय संरचना का सुझाव दिया था। हालांकि, पंचायती राज व्यवस्था को अपना वर्तमान स्वरूप 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम के बाद ही मिला।
आज, अधिकांश राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था तीन स्तरों पर काम करती है: गांव, मध्यवर्ती और जिला। हालांकि, छोटे जिले जिनकी आबादी 20 लाख से कम है, वहां केवल दो स्तर हैं: गांव और जिला।
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73वें संविधान संशोधन अधिनियम
73वें संविधान संशोधन अधिनियम ने पंचायती राज को स्थानीय स्तर पर न्याय प्रशासन का अधिकार और शक्ति प्रदान की, जिससे उन्हें प्रभावी ढंग से कार्य करने की अनुमति मिली। इस अधिनियम ने पंचायतों को आर्थिक विकास के लिए योजनाएं बनाने और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के साथ-साथ इन योजनाओं को लागू करने की शक्ति और जिम्मेदारी भी दी।
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73वें संविधान संशोधन अधिनियम की विशेषताएँ
सन 1992 का 73वां संविधान संशोधन अधिनियम भारतीय संघीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक ऐतिहासिक मोड़ था। इसने पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इस अधिनियम की कुछ मुख्य बातें इस प्रकार हैं:-
- त्रिस्तरीय संरचना: ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद की स्थापना।
- नियमित चुनाव: हर पांच साल में नियमित और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना।
- आरक्षण: अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें आरक्षित करना।
- महिलाओं के लिए आरक्षण: ग्रामीण विकास और पंचायती राज के सभी तीन स्तरों पर महिलाओं के लिए कुल सीटों का एक तिहाई आरक्षण सुनिश्चित करना। इसे पंचायती राज की त्रिस्तरीय व्यवस्था भी कहा जाता है।
- राज्य वित्त आयोग: पंचायतों की वित्तीय स्थिति को सुधारने के तरीकों पर सुझाव देने के लिए राज्य वित्त आयोगों का गठन करना।
- राज्य चुनाव आयोग: पंचायत चुनावों की देखरेख के लिए स्वतंत्र राज्य चुनाव आयोगों का गठन करना।
- जिला योजना समितियां: विभिन्न जिलों के लिए विकास रणनीतियां तैयार करने के लिए जिला योजना समितियों का गठन करना। ये समितियां आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बनाने में मदद करती हैं, जिसमें संविधान की 11वीं अनुसूची में शामिल 29 विषय शामिल हैं।
- ग्राम सभा का सशक्तिकरण: ग्राम सभा को स्थानीय स्तर पर एक शक्तिशाली इकाई के रूप में स्थापित करना। ग्राम सभा में गांव के सभी वयस्क मतदाता शामिल होते हैं।
- सीटों का रोटेशन: महिलाओं और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित सीटों का नियमित रूप से रोटेशन सुनिश्चित करना।
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भारत की पंचायती राज व्यवस्था कैसे काम करती है? – How to Work Panchayati Raj System in India
ग्राम पंचायत: पंचायती राज व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण इकाई ग्राम पंचायत है। यह इस व्यवस्था का लोअर लेवल है, जो गांव में होता है। इसमें एक ग्राम सभा और एक ग्राम पंचायत होती है। ग्राम पंचायत का प्रमुख ग्राम प्रधान या सरपंच (मुखिया) कहलाता है, और उसके साथ एक उप-प्रधान और कुछ पंच (सदस्य) होते हैं। ग्राम पंचायतें राज्य के कानूनों के अनुसार काम करती हैं।
तहसील या ब्लॉक समिति: यह ग्राम स्तर के बाद आती है और जिला स्तर से नीचे होती है। ग्राम सभा में गांव के सभी वयस्क मतदाता (18 वर्ष से अधिक आयु के) शामिल होते हैं। यह एक गांव या छोटे गांवों का समूह हो सकता है। ग्राम सभा को कानूनी अधिकार प्राप्त हैं और यह एक विधायी निकाय की तरह कार्य करती है।
बताना चाहेंगे साल में कम से कम दो ग्राम सभा की बैठकें अनिवार्य हैं। पहली बैठक में ग्राम पंचायत के बजट पर चर्चा होती है, और दूसरी बैठक में पंचायत की महत्वपूर्ण रिपोर्टों की समीक्षा की जाती है। ग्राम सभा पंचायत के वार्षिक वित्त का मूल्यांकन करती है, ऑडिट और प्रशासनिक रिपोर्टों पर विचार करती है, और पंचायत के कर प्रस्तावों पर अपनी राय देती है। यह सामुदायिक सेवा, स्वैच्छिक श्रम और नई पंचायत परियोजनाओं पर भी विचार करती है। ग्राम सभा के सदस्य ही ग्राम पंचायत के सदस्यों और प्रधान का चुनाव करते हैं। राज्य यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके जिलों में सभी ग्राम सभाएं सक्रिय रूप से कार्य करें।
जिला परिषद: ग्राम पंचायत और ब्लॉक समिति के बाद सबसे ऊपर के लेवल को जिला परिषद कहते हैं। ग्राम पंचायत ग्राम सभा की मुख्य कार्यकारी परिषद है। यह ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्वशासन का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। ग्राम सभा के सभी मतदाता गुप्त मतदान द्वारा पंचायत के सदस्यों (पंचों) का चुनाव करते हैं। भारत के अधिकांश हिस्सों में, एक ग्राम पंचायत में 5 से 9 सदस्य होते हैं। महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित हैं, और कुछ राज्यों में यह अनुपात अधिक भी है। अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए भी सीटें आरक्षित होती हैं। गांव के सभी मतदाता सीधे सरपंच (मुखिया) का चुनाव करते हैं। सरपंच के एक तिहाई पद महिलाओं और बाकी अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के लिए आरक्षित हैं।
सरपंच पंचायत का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है। वह पंचायत की बैठकों को बुलाता है और उनकी अध्यक्षता करता है। उसे हर महीने कम से कम एक पंचायत बैठक की अध्यक्षता करनी होती है। पंच भी महत्वपूर्ण मामलों पर विशेष बैठक बुलाने का अनुरोध कर सकते हैं, और सरपंच को अनुरोध मिलने के तीन दिनों के भीतर ऐसी बैठक बुलानी होती है। पंचायत की हर बैठक का एजेंडा सरपंच द्वारा रिकॉर्ड में रखा जाता है। ज़्यादातर मामलों में, पंचायत के सदस्य ही उप-प्रधान का चुनाव करते हैं। ग्राम पंचायत का कार्यकाल पांच साल का होता है।
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पंचायती राज की आवश्यकता
ग्राम पंचायत के मुख्य कार्य गांव की भलाई और विकास से जुड़े होते हैं। प्रत्येक ग्राम पंचायत को ग्रामीणों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कुछ अनिवार्य कार्य करने होते हैं, जैसे सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना, सड़कें बनाना और अच्छी जल निकासी व्यवस्था बनाना और उसका रखरखाव करना, गांव की सफाई सुनिश्चित करना, स्ट्रीट लाइट और डिस्पेंसरी का रखरखाव करना आदि।
पंचायत के कुछ अन्य कार्य वैकल्पिक होते हैं और यदि पंचायत के पास पर्याप्त धन हो तो उन्हें किया जा सकता है। इनमें पेड़ और जड़ी-बूटियां लगाना, पशु गर्भाधान केंद्र स्थापित करना और उनका रखरखाव करना, खेल केंद्र विकसित करना और उनका रखरखाव करना, और पुस्तकालय स्थापित करना और चलाना शामिल है। वहीं राज्य सरकार या केंद्र सरकार भी समय-समय पर पंचायतों को अतिरिक्त जिम्मेदारियां सौंपती हैं।
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ग्राम पंचायतों की आय के स्रोत
अपनी जिम्मेदारियों को निभाने के लिए ग्राम पंचायतों को वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है। यदि उनके पास पर्याप्त बजट है तो ग्राम पंचायतें प्रभावी ढंग से कार्य कर सकती हैं। राज्य सरकारों ने अनुदान सहायता के साथ-साथ कर लगाने और राजस्व एकत्र करने की पंचायतों की क्षमता में वृद्धि की है। पंचायतों की आय के कुछ स्रोत इस प्रकार हैं:-
- विशेष संपत्ति, भूमि, उत्पादों और पशुधन पर कर।
- पंचायत की संपत्तियों से प्राप्त किराया।
- विभिन्न उल्लंघनों पर वसूला गया जुर्माना।
- अन्य सरकारी स्रोतों से प्राप्त अनुदान सहायता।
- राज्य और केंद्र सरकार से प्राप्त भूमि राजस्व और संबंधित आय का एक हिस्सा।
FAQs
पंचायती राज से ये समझा जा सकता है कि, भारत में एक त्रिस्तरीय प्रशासनिक ढांचा है जो ग्रामीण विकास पर केंद्रित है।
पंचायती राज के जनक बलवंत राय मेहता को माना जाता है। उन्हें भारत में पंचायती राज व्यवस्था के वास्तुकार के रूप में भी जाना जाता है।
पंचायती राज भारत में पहली बार 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पेश किया गया था।
पंचायती राज के 3 चरण हैं: ग्राम पंचायत, तहसील या ब्लॉक समिति और जिला परिषद।
पंचायती राज का सबसे छोटा अंग ग्राम पंचायत होता है।
पंचायत राज एक्ट, जो भारत में त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
हर वर्ष 24 अप्रैल को भारत में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस (Panchayati Raj Diwas) मनाया जाता है।
आशा है कि आपको इस लेख में पंचायती राज व्यवस्था क्या है? (Panchayati Raj Kya Hai) से संबंधित संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।