संस्कृत साहित्य के रचनाकारों में महाकवि बाणभट्ट उन विख्यात कवियों में से एक हैं, जिनका विस्तृत जीवन-परिचय हमें उनकी रचनाओं से प्राप्त होता है। बाणभट्ट को सम्राट हर्षवर्धन का समकालीन माना जाता है। इस आधार पर उनका समय ईस्वी 606 से 647 के आसपास माना जा सकता है। इसी कालावधि में सम्राट हर्षवर्धन ने उत्तरी भारत पर शासन किया था।
बताना चाहेंगे चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (Xuanzang) ने अपनी भारत यात्रा के दौरान कुछ लेखों में राजा हर्षवर्धन और उनके दरबारी कवियों, विशेषकर बाणभट्ट का उल्लेख किया है। बाणभट्ट की दो प्रमुख रचनाएँ ‘हर्षचरित’ और ‘कादंबरी’, संस्कृत गद्य साहित्य की अनुपम एवं कालजयी कृतियाँ मानी जाती हैं, जिन्हें विद्वानों ने एकमत से स्वीकार किया है।
महाकवि बाणभट्ट की ‘हर्षचरित’ (आख्यायिका) और ‘कादंबरी’ (कथा) को बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, अनेक शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। इसके साथ ही, UGC/NET में संस्कृत विषय से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के लिए बाणभट्ट का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
| नाम | बाणभट्ट (Banbhatt) |
| समय | 7वीं सदी |
| जन्म स्थान | आरा जनपद, बिहार (माना जाता है) |
| पिता का नाम | चित्रभानु |
| माता का नाम | राजदेवी |
| समकालीन | सम्राट हर्षवर्धन |
| पेशा | कवि |
| भाषा | संस्कृत |
| विधा | काव्य, नाटक |
| प्रमुख | हर्षचरित, कादंबरी |
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बिहार के आरा जनपद में हुआ था जन्म
महाकवि बाणभट्ट ने अपनी सर्वोत्कृष्ट रचना कादंबरी की भूमिका तथा हर्षचरित के प्रथम उच्छवासों में अपनी वंश परंपरा का विस्तृत वर्णन किया है। उनके पूर्वज बिहार के आरा जनपद में प्रीतिकूट के रहने वाले थे। बता दें कि बाणभट्ट के जन्म के बारे में कोई प्रमाणित जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन विद्वानों द्वारा वह सम्राट हर्षवर्धन के समकालीन माने जाते हैं।
उनके पिता का नाम ‘चित्रभानु’ जबकि माता का नाम ‘राजदेवी’ था। बताया जाता है कि अल्प आयु में ही उनकी माता का निधन हो गया था। इसके बाद उनके पिता ने उनका पालन पोषण किया किंतु जब वे 14 वर्ष के हुए उसी दौरान उनके पिता का भी स्वर्गवास हो गया।
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युवावस्था में किया देश भ्रमण
पिता की आकस्मिक मृत्यु के बाणभट्ट ने अपने मित्रों के साथ समय व्यतीत करने लगे। विद्वानों द्वारा बताया जाता है कि युवावस्था में उन्होंने अनेक स्थानों की यात्राएँ कीं, इन यात्राओं से उन्हें विशिष्ट ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसका प्रभाव उनकी रचनाओं में भी देखने को मिलता है।
सम्राट हर्षवर्धन के समकालीन
महाकवि बाणभट्ट, सम्राट हर्षवर्धन के समकालीन माने गए हैं। विश्व विख्यात चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने भी अपने भारत भ्रमण के कुछ लेखों में हर्षवर्धन और बाणभट्ट का वर्णन किया है। वे हर्षवर्धन के प्रिय कवि और दरबारी लेखक थे।। माना जाता है कि हर्षवर्धन ने उनकी बुद्धिमता से प्रसन्न होकर उन्हें राज्याश्रय प्रदान किया था। वहीं बाणभट्ट ने उनके चरित्र पर ‘हर्षचरित’ नामक रचना की जो उनके जीवन की श्रेष्ठ काव्य कृति मानी जाती है।
बाणभट्ट की भाषा शैली
महाकवि बाणभट्ट ने विषय के अनुरूप अपनी भाषा का प्रयोग किया है। इसके माध्यम से उनकी रचनाओं में कहीं लंबे समासों का प्रयोग तो कहीं समासरहित भाषा की सरलता दिखाई देती है। उनकी कृतियों में यमक, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा और विरोधाभास अलंकारों का स्वभाविक प्रयोग भी देखने को मिलता है।
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बाणभट्ट की प्रमुख रचनाएँ
महाकवि बाणभट्ट ने संस्कृत साहित्य में अनुपम कृतियों का सृजन कर न केवल संस्कृत साहित्य बल्कि विश्व के काव्यकारों में भी विशेष ख्याति प्राप्त की हैं। बाणभट्ट की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं:-
- हर्षचरित (आख्यायिका)
- कादंबरी (कथा)
- चंडीशतकम (श्लोक स्तुति)
- मुकुटताडितक (नाटक)
- पार्वती-परिणय (नाटक)
FAQs
बाणभट्ट की माता का नाम राजदेवी तथा पिता का नाम चित्रभानु था।
बाणभट्ट सम्राट हर्षवर्धन के समकालीन थे।
‘हर्षचरित’ और ‘कादंबरी’ बाणभट्ट की श्रेष्ठ रचनाएँ मानी जाती हैं।
आशा है कि आपको महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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