अली सरदार जाफरी उर्दू अदब के अजीम शायर, आलोचक, बुद्धिजीवी और प्रख्यात संपादक थे। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं में अपनी लेखनी चलाकर उसे समृद्ध किया है। उनका लेखकीय जीवन वर्ष 1938 में प्रकाशित उनके प्रथम लघुकथा-संग्रह ‘मंज़िल’ से आरंभ हुआ था। वहीं एक शायर के रूप में श्री जाफरी वर्ष 1944 में प्रकाशित अपनी पहली काव्य-कृति ‘परवाज़’ से प्रतिष्ठित हुए। उन्होंने भारतीय सिनेमा में भी अहम योगदान दिया था। एक गीतकार के रूप में उनके महत्वपूर्ण कार्यों में ‘ग्यारह हजार लड़कियां’, ‘जलजला’ और ‘धरती के लाल’ जैसी फिल्मों का गीत लेखन शामिल है।
उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1998 में साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें ‘पद्म श्री’ (1967), ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’, उत्तर प्रदेश सरकार का ‘उर्दू अकादमी पुरस्कार’ तथा मध्य प्रदेश सरकार का ‘इक़बाल सम्मान’ भी प्रदान किया गया है।
| नाम | अली सरदार जाफरी |
| जन्म | 29 नवंबर 1913 |
| जन्म स्थान | बलरामपुर गांव, गोंडा जिला, उत्तर प्रदेश |
| शिक्षा | M.A. लखनऊ विश्वविद्यालय |
| कार्य क्षेत्र | शायर, आलोचक, संपादक व नाटक आदि। |
| भाषा | उर्दू, हिंदी |
| विधा | शायरी, काव्य, कहानी |
| मुख्य रचनाएँ | परवाज़ (1944), नई दुनिया को सलाम (1946), ख़ून की लकीर (1949), अमन का सितारा (1950), एशिया जाग उठा (1964) तथा एक ख़्वाब और (1965) आदि। |
| पुरस्कार एवं सम्मान | ज्ञानपीठ पुरस्कार (1998), पद्म श्री (1967) सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार व इक़बाल सम्मान। |
| निधन | 01 अगस्त, 2000 मुंबई |
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उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में हुआ था जन्म
अली सरदार जाफरी का जन्म 29 नवंबर, 1913 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में हुआ था। उन्होंने हाईस्कूल तक की शिक्षा बलरामपुर में ही प्राप्त की। इसके पश्चात वे उच्च शिक्षा के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) गए। वहाँ पर उन्हें उस समय के उभरते हुए और प्रसिद्ध शायरों तथा साहित्यकारों की संगत प्राप्त हुई, जिनमें जान निसार अख़्तर, ख़्वाजा अहमद अब्बास और अख़्तर हुसैन रायपुरी जैसे नाम प्रमुख हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय से किया एम.ए.
यह वह दौर था जब संपूर्ण भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आज़ादी के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन चल रहे थे। देश के छात्र भी आज़ादी की भावना और उत्साह से ओतप्रोत थे। वे भी उनमें से एक थे। एक आंदोलन के दौरान वायसराय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल के विरुद्ध किए गए विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के कारण उन्हें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया।
किंतु उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने दिल्ली के एंग्लो-अरेबिक कॉलेज से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की तथा बाद में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. की उपाधि भी अर्जित की।
प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े
अली सरदार जाफरी ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और उसके बाद कई बार जेल यात्रा की। इस दौरान उनकी मुलाकात ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ के सदस्य और मार्क्सवादी चिंतक सज्जाद ज़हीर से हुई। उन्हीं के प्रभाव में आकर उन्होंने मार्क्स और लेनिन के साहित्य का गहन अध्ययन किया, जिससे उनके चिंतन और वैचारिक दृष्टिकोण को एक ठोस आधार मिला।
इस काल में उन्होंने मुंशी प्रेमचंद, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अख़्तर शीरानी, रवींद्रनाथ टैगोर और मुल्कराज आनंद जैसे सुप्रसिद्ध साहित्यकारों की रचनाओं का भी अध्ययन किया और उनके विचारों को समझा।
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अली सरदार जाफरी की प्रमुख रचनाएँ
अली सरदार जाफरी ने उर्दू साहित्य की अनेक विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन किया है। उनका लेखकीय जीवन वर्ष 1938 में प्रकाशित उनके पहले लघुकथा-संग्रह ‘मंज़िल’ से प्रारंभ हुआ। वहीं एक शायर के रूप में श्री जाफरी वर्ष 1944 में प्रकाशित अपनी प्रथम काव्य-कृति ‘परवाज़’ से प्रतिष्ठित हुए।
उनका अंतिम काव्य-संग्रह ‘सरहद’ वर्ष 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लाहौर यात्रा के संदर्भ में लिखा गया था। उनकी काव्य रचनाओं का अनुवाद दुनिया की विभिन्न भाषाओं में किया गया है। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
काव्य-संग्रह
| काव्य-संग्रह | प्रकाशन |
| परवाज़ | वर्ष 1944 |
| जम्हूर | वर्ष 1946 |
| नई दुनिया को सलाम | वर्ष 1947 |
| खूब की लकीर | वर्ष 1949 |
| अम्मन का सितारा | वर्ष 1950 |
| एशिया जाग उठा | वर्ष 1950 |
| पत्थर की दीवार | वर्ष 1953 |
| एक ख्वाब और | वर्ष 1965 |
| पैराहने शरर | वर्ष 1966 |
| लहु पुकारता है | वर्ष 1978 |
फ़िल्मी दुनिया का सफर
अली सरदार जाफरी ने उर्दू साहित्य को समृद्ध करने के साथ ही भारतीय सिनेमा में भी अहम योगदान दिया। एक गीतकार के रूप में उन्होंने ‘जलजला’, ‘धरती के लाल’ और ‘परदेसी’ जैसी फिल्मों के लिए प्रसिद्ध गीत लिखे हैं। उन्होंने ‘इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन’ (इप्टा) के लिए दो नाटक भी लिखे, जो अत्यंत लोकप्रिय हुए। इसके अतिरिक्त, श्री जाफरी ने दो डॉक्युमेंट्री फिल्मों का निर्माण किया और उर्दू के सात प्रसिद्ध शायरों के जीवन पर आधारित ‘कहकशाँ’ नामक एक चर्चित धारावाहिक का भी निर्माण किया।
पुरस्कार एवं सम्मान
अली सरदार जाफरी को साहित्य और कला के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया गया है, जो इस प्रकार हैं:-
- अली सरदार जाफरी को वर्ष 1998 में साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। क्या आप जानते हैं कि वे ‘फिराक गोरखपुरी’ और ‘कुर्तुल एन हैदर’ के बाद ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले उर्दू के तीसरे साहित्यकार थे।
- पद्म श्री – 1967
- सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
- उत्तर प्रदेश का उर्दू अकादमी पुरस्कार
- मध्य प्रदेश सरकार का इक़बाल सम्मान
- कुमारन आशान पुरस्कार
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86 वर्ष की आयु में हुआ था निधन
अली सरदार जाफरी का निधन 1 अगस्त, 2000 को मुंबई में ब्रेन ट्यूमर की बीमारी के कारण हुआ था। आज भी वे अपनी कालजयी और लोकप्रिय रचनाओं के लिए स्मरण किए जाते हैं।
FAQs
अली सरदार जाफरी का जन्म 29 नवंबर, 1913 को उत्तर प्रदेश के बलरामपुर जिले में हुआ था।
अली सरदार जाफरी को वर्ष 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
खून की लकीर, अली सरदार जाफरी का लोकप्रिय काव्य-संग्रह है जिसका प्रकाशन वर्ष 1949 में हुआ था।
अली सरदार जाफरी का 1 अगस्त, 2000 को मुंबई में निधन हुआ था।
आशा है कि आपको प्रख्यात शायर अली सरदार जाफरी का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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