महाप्रभु वल्लभाचार्य भक्तिकालीन सगुण धारा की कृष्णभक्ति शाखा में प्रमुख आधार स्तंभ तथा पुष्टिमार्ग के प्रणेता माने जाते हैं। उन्होंने शंकराचार्य के अद्वैतवाद के स्थान पर शुद्धाद्वैतवाद का प्रतिपादन किया। इस दर्शन पर आधारित जिस धार्मिक संप्रदाय या भक्ति मार्ग का विकास हुआ, वह पुष्टिमार्ग कहलाया। जिन कृष्णोपासक कवियों ने वल्लभाचार्य के इस दार्शनिक मत एवं भक्तिमार्ग की काव्यमयी व्याख्या की, उनमें महाकवि सूरदास, परमानंद दास तथा नंददास प्रमुख हैं। मध्ययुगीन कृष्णभक्ति संप्रदायों में वल्लभ संप्रदाय का विशेष स्थान माना जाता है। भागवत के दशम स्कंध पर लिखी गई ‘सुबोधिनी टीका’ और ‘अणुभाष्य’ (ब्रह्मसूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा) वल्लभाचार्य जी के प्रमुख दार्शनिक ग्रंथ हैं। इस लेख में छात्रों के लिए वल्लभाचार्य का जीवन परिचय और उनके दर्शन की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है।
| नाम | महाप्रभु वल्लभाचार्य |
| जन्म | संवत 1535 |
| जन्म स्थान | चंपारण, छत्तीसगढ़ |
| पिता का नाम | श्री लक्ष्मण भट्ट |
| माता का नाम | एल्लमागारू |
| गुरु का नाम | विल्वमंगलाचार्य |
| पत्नी का नाम | महालक्ष्मी |
| संतान | गोपीनाथ व विट्ठलनाथ |
| दर्शन | पुष्टिमार्ग |
| कर्म भूमि | ब्रज क्षेत्र |
| मुख्य रचनाएँ | भागवत के दशम स्कंध पर सुबोधिनी टीका व अणुभाष्य (ब्रह्म सूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा) आदि। |
| देहावसान | संवत 1587 |
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वल्लभाचार्य का जन्म कहाँ हुआ था?
महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म संवत 1535 में वैशाख कृष्ण एकादशी को छत्तीसगढ़ के चंपारण नामक गांव में हुआ था। कुछ विद्वान इनका जन्म संवत 1479 के आसपास भी मानते हैं। वल्लभाचार्य जी दाक्षिणात्य तैलंग ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम ‘लक्ष्मण भट्ट’ और माता का नाम ‘एल्लमागारू’ था। वल्लभाचार्य जी का विवाह ‘महालक्ष्मी’ से हुआ था और यथासमय उन्हें दो पुत्र हुए- ‘गोपीनाथ’ व ‘विट्ठलनाथ’।
वल्लभाचार्य के गुरु कौन थे?
वल्लभाचार्य जी बालयवस्था से ही कुशाग्र बुद्धि और अलौकिक प्रतिभा के धनी थे। बताया जाता है कि श्रीरुद्र संप्रदाय के ‘विल्वमंगलाचार्य’ द्वारा उन्हें अष्टादशाक्षर गोपालमंत्र की दीक्षा दी गई थी। वहीं त्रिदंड संन्यास की दीक्षा वल्लभाचार्य को ‘स्वामी नारायणोंद्रतीर्थ’ से प्राप्त हुई।
पुष्टिमार्ग के प्रेणता
कालांतर में वल्लभाचार्य जी जब अपने पिता के साथ तीर्थाटन के लिए निकले तो अनेक तीर्थों के दर्शन करते हुए काशी पहुंचे और वहीं रहने लगे। काशी में रहकर उन्होंने वेद, वेदांग, पुराण और दर्शन का गहन अध्ययन किया। वहीं थोड़े ही दिनों में उन्होंने काशी की विद्वान मंडली में अपना एक उच्च स्थान स्थापित कर लिया। वे आचार्य हो गए।
तदनंतर ब्रजक्षेत्र स्थित गोवर्धन पर्वत पर अपना निवास स्थान बनाकर शिष्य पूरनमल खत्री के सहयोग से संवत 1576 में ‘श्रीनाथजी’ का भव्य मंदिर बनवाया। बाद में वल्लभाचार्य जी ने शंकराचार्य के ‘अद्वैतवाद’ की जगह ‘शुद्धाद्वैतवाद’ दर्शन प्रतिपादित किया। साथ ही ब्रज क्षेत्र में कृष्ण-केंद्रित पंथ, वैष्णववाद के पुष्टिमार्ग संप्रदाय की भी स्थापना की।
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अष्टछाप
अष्टछाप, महाप्रभु वल्लभाचार्य जी एवं उनके पुत्र श्री विट्ठलनाथ जी द्वारा संस्थापित आठ भक्तिकालीन कवियों का एक समूह था, जिसका मूल संबंध आचार्य वल्लभ द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय से है। अष्टछाप के कवियों ने अपने विभिन्न पद एवं कीर्तनों के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं का गुणगान किया हैं।
अष्टछाप के आठ कवियों में चार आचार्य वल्लभाचार्य के शिष्य हैं, जबकि चार गोस्वामी विट्ठलनाथ के। वल्लभाचार्य के शिष्य हैं- सूरदास, परमानंददास, कुंबनदास व कृष्णदास जबकि विट्ठलनाथ के शिष्यों में ‘नंददास’, ‘चतुर्भुजदास’, गोविंदस्वामी तथा छीतस्वामी शामिल हैं। वस्तुत: विट्ठलनाथ ने भगवान श्रीनाथ के अष्ट शृंगार की परंपरा शुरु की थी। अष्टछाप के कवियों में महाकवि सूरदास का महत्वपूर्ण स्थान हैं।
विद्वानों द्वारा सन 1500 से 1586 तक अष्टछाप के कवियों का रचनाकाल माना जाता है। पुष्टिमार्ग में ‘श्रीनाथजी’ को इष्टदेव के रूप में स्वीकार किया गया है और ये सभी कवि सखाभाव से उनकी भक्ति में अनुरक्त होकर पद रचते थे और उनका कीर्तन एवं गायन भी करते थे।
वल्लभाचार्य का दर्शन
महाप्रभु वल्लभाचार्य के अनुसार तीन ही तत्व हैं ब्रह्म, ब्रह्मांड और आत्मा अर्थात ईश्वर, जगत और जीव। उनके अनुसार ब्रह्म ही एकमात्र सत्य हैं जो सर्वव्यापक और अंतर्यामी है। उनके मतानुसार भगवान के अनुग्रह को जीव का असली पोषण कहा गया है क्योंकि उनकी कृपा से जीवात्मा की हृदय में भक्ति का संचार होता है। पुष्टिमार्ग की मुख्य विशेषता यह है कि उसमें सभी मनुष्य एक समान है। बिना किसी प्रकार के भेदभाव के मनुष्य मात्र को इसका अधिकारी बताया गया है। इस मार्ग की दूसरी सबसे बड़ी विशेषता इसमें प्रेमलक्षणा भक्ति की प्रधानता है।
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वल्लभाचार्य के प्रधान दार्शनिक ग्रंथ
वल्लभाचार्य जी ने अपने जीवनकाल में कई साहित्यिक कृतियों की रचना की थी। नीचे उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
- अणुभाष्य (ब्रह्म सूत्र भाष्य अथवा उत्तरमीमांसा)
- पूर्वमीमांसा भाष्य
- भागवत के दशम स्कंध पर सुबोधिनी टीका
- तत्वदीप निबंध एव पुष्टि प्रवाह मर्यादा
- दशमस्कंध अनुक्रमणिका
- न्यायादेश
- पत्रावलंवन
- पुरुषोत्तम सहस्त्रनाम
- दशमस्कंध अनुक्रमणिका
- त्रिविध नामावली
- भगवत्पीठिका
FAQs
वल्लभाचार्य जी के कई शिष्य थे, जिनमें सूरदास, कृष्णदास, कुंभनदास, परमानंद दास उनके प्रमुख शिष्य रहे हैं।
महाप्रभु वल्लभाचार्य के आराध्य भगवान श्रीकृष्ण थे।
उनके पुत्र का नाम गोपीनाथ और विट्ठलनाथ था।
महाप्रभु वल्लभाचार्य शुद्धाद्वैतवाद दर्शन के महान आचार्य और पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक थे।
उनका दार्शनिक सिद्धांत ‘शुद्धाद्वैत’ कहलाता है, वल्लभाचार्य ने इस दर्शन को स्थापित किया था।
वल्लभाचार्य जी ने ‘पुष्टिमार्ग’ का सिद्धांत दिया था।
आशा है कि आपको पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक महाप्रभु वल्लभाचार्य का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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