Mirabai Ka Jivan Parichay : मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की आध्यत्मिक प्रेरणा ने जिन कवियों को जन्म दिया उनमें मीराबाई का विशिष्ट स्थान है। मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सबकुछ भगवान श्री कृष्ण के लिए समर्पित था। वहीं उनके पद अपनी मार्मिकता एवं मधुरिमा के कारण इतने लोकप्रिय हुए कि हिंदी व अन्य भाषा भाषियों ने भी इन्हें आत्मसात् कर लिया। क्या आप जानते हैं कि उनके पद पूरे उत्तर भारत सहित गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल और तमिलनाडु तक प्रचलित हैं। मीराबाई हिंदी और गुजराती दोनों की कवयित्री मानी जाती हैं।
‘नरसीजी का माहरा’, ‘गीतगोविंद की टीका’, ‘राग गोविंद’ और ‘राग सोरठ’, मीराबाई की कुछ प्रमुख रचनाएँ मानी जाती हैं। आपको बता दें कि मीराबाई की रचनाओं को विद्यालय के अलावा बीए और एमए के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी मीराबाई का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
आइए अब मीराबाई का जीवन परिचय का जीवन परिचय (Mirabai Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | मीराबाई (Mirabai) |
जन्म | 1503 |
जन्म स्थान | चोकड़ी (कुड़की) गांव, जोधपुर, राजस्थान |
गुरु का नाम | संत रैदास |
पिता का नाम | रतन सिंह राठौड़ |
माता का नाम | वीर कुमारी |
श्वसुर का नाम | महाराणा सांगा |
पति का नाम | भोजराज |
साहित्यकाल | भक्तिकाल |
विधा | पद |
भाषा | राजस्थानी, ब्रज |
प्रमुख रचनाएँ | ‘नरसीजी का माहरा’, ‘गीतगोविंद की टीका’, ‘राग गोविंद’ और ‘राग सोरठ’ |
मृत्यु | 1546 |
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राजस्थान के जोधपुर में हुआ था जन्म – Mirabai Ka Jivan Parichay
माना जाता है कि मीराबाई का जन्म राजस्थान के जोधपुर में चोकड़ी (कुड़की) गांव में हुआ था। मीराबाई जोधपुर के ‘राठौड़ रतनसिंह’ और ‘वीर कुमारी’ की एकलौती पुत्री थीं। बाल्यावस्था में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। बताया जाता है कि अल्प आयु में ही मीराबाई कृष्ण- भक्ति में रम गईं थीं और श्री कृष्ण को ही अपना पति समझने लगीं थी।
13 वर्ष की आयु में हुआ विवाह
जब मीराबाई 13 वर्ष की हुई तो उनके माता-पिता उनका विवाह करना चाहते थे, किंतु मीराबाई प्रभु श्रीकृष्ण को अपना पति मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। लेकिन उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उनके घरवालों ने उनका विवाह मेवाड़ के ‘महाराणा सांगा’ के पुत्र कुवंर ‘भोजराज’ से करा दिया, जो आगे चलकर ‘महाराणा कुंभा’ (Kumbha of Mewar) कहलाए।
मीराबाई की कृष्ण-भक्ति
विवाहोपरांत मीराबाई का जीवन दुखों की छाया में ही बीता क्योंकि विवाह के कुछ ही वर्ष बाद पहले उनके पति, फिर पिता और एक युद्ध के दौरान श्वसुर ‘महाराणा सांगा’ का देहांत हो गया। पति भोजराज की मृत्यु के बाद मीराबाई की भक्ति श्री कृष्ण के लिए दिनों-दिन बढ़ती गई। वह मंदिरों में जाकर श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने घंटों तक बैठी रहती, उनसे वार्तालाप करती और उनके सामने नृत्य करने लगती। बाद में वह भौतिक जीवन और घर-परिवार को त्यागकर वृंदावन चली गई और कृष्ण भक्ति में पूरी तरह लीन हो गई। माना जाता है कि मीराबाई ने जीवन के अंतिम कुछ वर्ष गुजरात के द्वारका में गुजारे थे। मान्यताओं के अनुसार मीराबाई वर्ष 1546 में द्वारका में कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।
मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ – Mirabai Ki Rachnaye
संत रैदास की शिष्या मीरा की कुल सात-आठ कृतियाँ ही उपलब्ध हैं। भक्त मीरा की कृतियों पर संतों, योगियों और वैष्णव भक्तों का गहरा प्रभाव पड़ा हैं। यहाँ मीराबाई का जीवन परिचय के साथ ही उनकी संपूर्ण रचनाओं के बारे में बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं :-
मीराबाई की रचनाएँ
- नरसीजी का माहरा
- गीतगोविंद की टीका
- राग गोविंद
- राग सोरठ
- मीराबाई का मलार
- फुटकर पद
मीराबाई की भाषा शैली – Mirabai Ki Bhasha Shaili
मीराबाई ने गीतिकाव्य की रचना की और अन्य कृष्णभक्त कवियों की परंपरागत पद शैली को अपनाया। वहीं कृष्ण के प्रति प्रेमभाव और भक्ति ही मीराबाई के पदों का उद्देश्य रहा है। मीराबाई के पदों की भाषा में राजस्थानी, ब्रज और गुजराती का मिश्रण देखने को मिलता है। वहीं खड़ी बोली, पंजाबी और पूर्वी भाषा का प्रयोग भी उनकी रचनाओं में पाया जाता है।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ मीराबाई का जीवन परिचय (Mirabai Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
माना जाता है कि मीराबाई का जन्म राजस्थान के जोधपुर में चोकड़ी (कुड़की) गांव में हुआ था।
नरसीजी का माहरा, गीतगोविंद की टीका, राग गोविंद, राग सोरठ और मलार राग मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ हैं।
मीरा का विवाह महाराणा सांगा के पुत्र कुवंर भोजराज से हुआ था।
मीरा ने अनिच्छा से 1516 में 13 वर्ष की आयु में मेवाड़ के युवराज भोजराज से विवाह किया था।
मीराबाई की माता का नाम ‘वीर कुमारी’ था।
मान्यताओं के अनुसार मीराबाई वर्ष 1546 में द्वारका में कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।
आशा है कि आपको मीराबाई का जीवन परिचय (Mirabai Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।