महाकवि भवभूति का जीवन परिचय, रचनाएँ और भाषा शैली 

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भवभूति का जीवन परिचय

महाकवि भवभूति संस्कृत के महान कवि और सर्वश्रेष्ठ नाटककारों में से एक माने जाते हैं। उनके द्वारा रचित ‘उत्तररामचरितम्’ का साहित्य जगत में महत्वपूर्ण स्थान है। यह उनका अंतिम और सर्वश्रेष्ठ नाटक माना जाता है, जिसकी कथा वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड पर आधारित है। इस नाटक के सात अंकों में रामायण के उत्तरकांड की घटनाएँ वर्णित हैं। उनके नाटक, महाकवि कालिदास के नाटकों के समतुल्य माने जाते हैं। उनके द्वारा रचित तीन प्रमुख नाटक प्राप्त होते हैं- ‘महावीरचरितम्’, ‘मालतीमाधव’ और ‘उत्तररामचरितम्’।

यह उल्लेखनीय है कि महाकवि भवभूति की रचना ‘उत्तररामचरितम्’ को बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं और अनेक शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। इसके साथ ही UGC-NET में संस्कृत विषय से परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए भवभूति का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।

नाम भवभूति
जन्म 700 ई. लगभग
जन्म स्थान विदर्भ (आज के महाराष्ट्र) के पद्मपुरा ग्राम
पितामह भट्टगोपाल 
पिता का नाम नीलकंठ 
माता का नाम जातुकर्णि
गुरु का नाम ज्ञाननिधि 
पेशा कवि एवं नाटककार 
भाषा संस्कृत 
मुख्य रचनाएँ ‘महावीरचरितम्’, ‘उत्तररामचरितम्’ और ‘मालतीमाधव’।

पद्मपुरा ग्राम में हुआ था जन्म

महाकवि भवभूति ने अपने ग्रंथों, विशेष रूप से ‘महावीरचरितम्’ की प्रस्तावना में अपना संक्षिप्त जीवन परिचय दिया है। इसके अतिरिक्त, ‘उत्तररामचरितम्’ और ‘मालतीमाधव’ में भी उनके जीवन से जुड़ी जानकारी मिलती है। उनके पूर्वज दक्षिण देश के पद्मपुरा ग्राम में निवास करते थे। उनके पिता का नाम ‘नीलकंठ’ और माता का नाम ‘जातुकर्णि’ था। उनके पितामह का नाम ‘भट्टगोपाल’ था, जबकि गुरु का नाम ‘ज्ञाननिधि’ था।

भवभूति की रचनाएँ

भवभूति ने वेद, उपनिषद, संगीत, चित्रकला, राजनीति, शास्त्र, व्याकरण, ज्योतिष, मनोविज्ञान और इतिहास आदि का गहन अध्ययन किया था। उनकी कृतियों में पांडित्य का संकेत देने वाले अनेक प्रसंग मिलते हैं। संस्कृत साहित्याकाश में भवभूति की तीन रचनाएं मिलती हैं – ‘महावीरचरितम्’, ‘मालतीमाधव’ और ‘उत्तररामचरितम्’।

  • मालतीमाधव – यह एक प्रकरण ग्रंथ है, जिसमें मालती और माधव का प्रेम प्रसंग सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
  • महावीरचरितम् – यह सात अंकों का नाटक है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र जी के राज्याभिषेक तक की घटनाओं का वर्णन है। मालतीमाधव की अपेक्षा यह नाटक अधिक व्यवस्थित है। 
  • उत्तररामचरितम् – उत्तररामचरितम् भवभूति का अंतिम और सर्वोत्कृष्ट नाटक है। इसकी कथा वाल्मीकि रामायण के उत्तरकांड की कथा पर आश्रित है। उत्तररामचरितम् ही भवभूति की प्रौढ़तम रचना है। इसमें उनकी नाट्य कला और काव्य कला दोनों का पूर्ण परिपाक है। 

भवभूति की भाषा शैली

भवभूति का भाषा पर पूर्ण अधिकार था। वे अपनी रचनाओं में भाव और प्रसंग के अनुसार सरल से सरल तथा कठिन से कठिन शब्दों का प्रयोग अत्यंत दक्षता के साथ करते थे। उनकी कृतियों में पांडित्य और वैदग्ध्य का अपूर्व सम्मिश्रण देखने को मिलता है। उनके नाटकों में प्रायः सभी प्रमुख अलंकारों का प्रयोग मिलता है। उन्होंने अपनी कृतियों में उपमा की नई विधाओं को भी जन्म दिया। वे प्रकृति-वर्णन, सौंदर्य-वर्णन, मनोभाव-वर्णन और आंतरिक दशा-वर्णन में अत्यंत सफल रहे हैं।

FAQs

भवभूति क्यों प्रसिद्ध है?

भवभूति, संस्कृत के महान कवि एवं सर्वश्रेष्ठ नाटककार थे। 

भवभूति के माता-पिता का नाम क्या था?

उनकी माता का नाम जातुकर्णि और पिता का नाम नीलकंठ था। 

उत्तररामचरित के लेखक कौन थे?

उत्तररामचरितम्’ भवभूति का अंतिम और सर्वोत्कृष्ट नाटक है। 

मालतीमाधव किसकी रचना है?

मालतीमाधव के रचियता महाकवि भवभूति है। 

उत्तररामचरितम् में कितने अंक हैं?

उत्तररामचरितम् नाटक के 7 अंकों में रामायण के उत्तरकांड की कथा वर्णित है।

आशा है कि आपको महाकवि भवभूति का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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