क्या आप जानते हैं कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य का पितामह कहा जाता है। उन्होंने 35 वर्षों के अपने अल्प जीवनकाल में लगभग 10 वर्षों तक हिंदी साहित्य जगत में गद्य और पद्य विधा में कई अनुपम कृतियों का सृजन किया और वो रच दिया जो इतिहास बन गया। वहीं हिंदी साहित्य में ‘आधुनिक काल’ के प्रथम युग का आरंभ भी भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाम पर ही रखा गया था जिसे ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना जाता है। हिंदी भाषा और मौलिक हिंदी नाटकों के विकास में उनका विशेष योगदान माना जाता है। इसलिए उन्हें हिंदी नाटक और रंगमंच का युग प्रवर्तक भी कहा जाता है। इस लेख में भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
| जन्म | 09 सितंबर, 1850 |
| जन्म स्थान | काशी, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | श्री गोपालचंद्र, गिरिधरदास (उपनाम) |
| माता का नाम | पार्वतीदेवी |
| शिक्षा | क्वींस कॉलेज, स्वाध्याय अध्ययन |
| पेशा | साहित्यकार, संपादक |
| साहित्य काल | आधुनिक काल (भारतेंदु युग) |
| विधाएँ | नाटक, काव्य, अनुवाद |
| भाषा | ब्रजभाषा, खड़ी बोली, हिंदी |
| नाटक | नीलदेवी, भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी आदि। |
| काव्य रचनाएँ | प्रेम-मालिका, प्रेमसरोवर, गीत गोविंद, सतसई सिंगार आदि। |
| पत्रिकाएं | कवि वाचन सुधा, हरीशचंद्र मैगज़ीन ,हरीशचंद्र पत्रिका, बाल बोधिनी (संपादन)। |
| अनुवाद | विधासुंदर, मुद्राराक्षस, कपूरमंजरी |
| निधन | 06 जनवरी, 1885 |
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काशी में हुआ था जन्म
आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामाह ‘भारतेंदु हरिश्चंद्र’ का जन्म 9 सितंबर, 1850 को काशी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘श्री गोपालचंद्र’ था जो एक प्रतिभाशाली कवि होने के साथ हिंदी-उर्दू व संस्कृत भाषा के प्रकाण्ड विद्वान थे। इसके साथ ही वह “गिरिधरदास” उपनाम से कविताएं लिखा करते थे। इससे यह ज्ञात होता है कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को साहित्यिक वातावरण विरासत में ही मिला था। उनकी माता का नाम ‘पार्वतीदेवी’ था जो दिल्ली के दीवान राय खिरोधरलाल की पुत्री थी।
अल्प आयु में हुआ माता-पिता का देहांत
भारतेंदु हरिश्चंद्र जब महज पांच वर्ष के थे उसी दौरान उनकी माता का निधन हो गया जिसके बाद उनके पिता श्री गोपालचंद्र ने उनका लालन-पोषण किया। किंतु 10 वर्ष की बाल्यावस्था में पिता का भी स्वर्गवास हो गया। इसलिए उन्हें जीवन के आरंभिक वर्षों में कई प्रकार के संघर्षों का सामना करना पड़ा।
स्वाध्याय ही किया अध्ययन
भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रारंभिक शिक्षा की शुरुआत बनारस के ‘क्वींस कॉलेज’ से हुई किंतु माता-पिता के निधन और व्यक्तिगत कारणों के कारण उनकी शिक्षा पूरी न हो सकी, परंतु विलक्षण प्रतिभा के धनी भारतेंदु हरिश्चंद्र ने आगे स्वाध्याय ही अध्यन्न किया और कई भारतीय भाषा सीखी जिनमें संस्कृत, बंगाली, मराठी, गुजराती, पंजाबी व उर्दू शमिल थी। वहीं उस दौर में प्रतिष्ठित लेखक व अंग्रेजी भाषा के ज्ञाता राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिन्द’ से उन्होंने अंग्रेजी का ज्ञान प्राप्त किया।
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पत्रकारिता के क्षेत्र में दिया अहम योगदान
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने भाषा और साहित्य के साथ साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपना विशेष योगदान दिया था। जिस समय भारतेंदु हरिश्चंद्र का साहित्य और पत्रकारिता जगत में पर्दापण हुआ था उस समय भारत पर ब्रिटिश हुकूमत का शासन हुआ करता था। वहीं गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए उस भारत में अंग्रेजी पढ़ना और लिखना शान की बात समझी जाती थी। किंतु हिंदी के प्रति जनसमुदाय में विशेष आकर्षण का भाव थोड़ा कम था।
तब भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी गद्य के विकास में अपना अहम योगदान देने का कार्य किया व अपनी लेखनी की धार को पत्रकारिता व हिंदी भाषा के उत्थान की ओर मोड़ा। सर्वप्रथम उन्होंने ‘कविवचन सुधा’ नामक पत्र निकाला जिसमें उस दौर के प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित होती थी। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1873 में ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’ नाम की एक पत्रिका निकाली लेकिन केवल आठ अंकों के प्रकाशन के बाद इस पत्रिका का नाम बदलकर ‘हरीशचंद्र चंद्रिका’ रख दिया।
यह पत्रिका वर्ष 1880 तक प्रकाशित होती रही जिसके बाद भारतेंदु हरिश्चंद्र ने वर्ष 1884 में ‘नवोदिता हरिश्चंद्र चंद्रिका’ पत्रिका का संपादन कार्य शुरू किया। किंतु इसके केवल दो ही अंक प्रकाशित हो सके। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने नारी उत्थान के लिए भी कार्य किया जिसके लिए उन्होंने ‘बालाबोधिनी’ नामक पत्रिका के माध्यम से इस कार्य को आगे बढ़ाया।
भाषा, साहित्य और पत्रकारिता के रहे पथ प्रदर्शक
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने जिस दौर में अपनी बहुमुखी प्रतिभा और लेखनी के माध्यम से पत्रकारिता, भाषा और साहित्य के परिष्कार का कार्य किया था। उसे आगे बढ़ाने का कार्य उस दौर के अन्य प्रतिष्ठित रचनाकारों ने किया। इसके बाद के तत्कालीन लेखकों द्वारा ‘आनंद कादम्बिनी’, ‘ब्राह्मण’, ‘भारत मित्र’, ‘हिंदी प्रदीप’, ‘काशी पत्रिका’ और ‘मित्र विलास’ नामक आदि पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। वहीं इस दौर के बाद ‘द्विवेदी युग’ का आरंभ हुआ इसके बाद ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’ जी के संपादन में ‘सरस्वती’ पत्रिका ने हिंदी जगत में विशेष प्रसिद्धि पाई।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रमुख रचनाएं
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने आधुनिक हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं में लगभग 100 से अधिक ग्रंथों की रचना की थी। इनमें मुख्य रूप से निबंध, कविता, नाटक, यात्रा-वृत्तांत और अनुवाद शामिल हैं। नीचे उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
काव्य रचनाएँ
- प्रेम मालिका
- फूलों का गुच्छा
- प्रेम सरोवर
- जैन कुतूहल
- प्रेम फुलवारी
- प्रेम तरंग
- प्रेम प्रलाप
- वर्षा विनोद
- मधु मुकुल
- होली
- सतसई सिंगार
- वैसाख महात्म्य
- भक्तमाला उत्तरार्ध
- भक्त सर्वस्व
- प्रेमाश्रु वर्षण
- प्रेम माधुरी
- कार्तिक स्नान
- कृष्ण चरित
- विनय प्रेम पचासा
- श्राग संग्रह
- विजय वल्लरी
- भारत भिक्षा
- भारत वीरत्व
नाटक
- विधा सुंदर
- पाखंडविडंबन
- वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति
- सत्यहरिश्चंद्र
- प्रेम जोगिनी
- विषस्य विषमौषधम
- चंद्रावली
- भारत दुर्दशा
- भारत जननी
- नीलदेवी
- अंधेर नगरी
निबंध
- भारतवर्षोंन्नति कैसे हो सकती है
- एक अद्भुत अपूर्व स्वपन
- नाटकों का इतिहास
- रामायण का समय
- काशी
- मणिकर्णिका
- कश्मीर कुसुम
- बादशाह दर्पण
- संगीत सार
- उदयपुरोदय
- वैष्णवता और भारतवर्ष
- तदीयसर्वस्व
- सूर्योदय
- ईश्वर बड़ा विलक्षण है
- बसंत
- ग्रीष्म ऋतु
- वर्षा काल
- बद्रीनाथ की यात्रा
आत्मकथा
- कुछ आपबीती कुछ जग बीती
यात्रा वृतांत
- सरयूपार की यात्रा
- लखनऊ
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अनूदित नाट्य रचनाएँ
- विद्यासुन्दर (यतीन्द्रमोहन ठाकुर कृत बँगला संस्करण का हिंदी अनुवाद)
- पाखंड विडंबन (कृष्ण मिश्र कृत ‘प्रबोधचंद्रोदय’ नाटक के तृतीय अंक का अनुवाद)
- धनंजय विजय (व्यायोग, कांचन कवि कृत संस्कृत नाटक का अनुवाद)
- कर्पूर मंजरी (सट्टक, राजशेखर कवि कृत प्राकृत नाटक का अनुवाद)
- भारत जननी (नाट्यगीत, बंगला की ‘भारतमाता’ के हिंदी अनुवाद पर आधारित)
- मुद्राराक्षस (विशाखदत्त के संस्कृत नाटक का अनुवाद)
- दुर्लभ बंधु (विलियम शेक्सपियर के नाटक ‘मर्चेंट ऑफ वेनिस’ का अनुवाद)
अल्प आयु में हुआ निधन
माना जाता है कि वर्ष 1882 में राजस्थान के मेवाड़ से यात्रा करने के बाद उनका स्वास्थ्य ख़राब हो गया लेकिन उपचार के बाद भी वह पूरी तरह से स्वस्थ न हो पाए। इसके बाद उनका 06 जनवरी 1885 को मात्र 35 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका जीवनकाल लंबा तो नहीं रहा किंतु उन्होंने जिस भी विधा में साहित्य का सृजन किया वह कालजयी हो गई। इसके साथ ही उनके विशेष साहित्यिक योगदान के कारण 1857 से 1900 तक के काल को ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना गया।

FAQs
उनके विधा गुरु का नाम राजा शिवप्रसाद ‘सितारेहिन्द’ था।
इस पत्रिका का संपादन भारतेंदु हरिश्चंद्र जी ने किया था।
भारतेंदु हरिश्चंद्र को नाट्य विधा का प्रवर्तक माना जाता हैं।
वे आधुनिक काल के लेखक माने जाते हैं। वहीं इनके नाम से ही आधुनिक काल का आरंभ माना जाता है।
आशा है कि आपको आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माता भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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