साहित्य ही समाज को साहसिक निर्णय लेने में सक्षम बनाता हैं, साहित्य का एक मुख्य भाग कविताएं होती हैं, जिन्हें साहित्य के श्रृंगार के रूप में भी देखा जाता है। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों का उद्देश्य अधिकाधिक ज्ञान अर्जित करने का होता है, इसी ज्ञान की कड़ी में विद्यार्थियों को कविताओं की महत्वता को भी समझ लेना चाहिए। कविताओं के माध्यम से समाज की चेतना को जागृत करने वाले कवि “भारतेंदु हरिश्चंद्र” की लेखनी ने सदा ही समाज के हर वर्ग को प्रेरित करने का काम किया है। Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके बाद उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।
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कौन हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र?
Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi पढ़ने सेे पहले आपको भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि भारतेंदु हरिश्चंद्र भी हैं, जिनकी लेखनी आज के आधुनिक दौर में भी प्रासंगिक हैं। अपनी महान लेखनी और साहित्य की समझ से भारतेंदु हरिश्चंद्र को आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह के रूप में जाना जाता है।
9 सितंबर 1850 को भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र के पिता गोपाल चंद्र एक संस्कृत पंडित थे, जिनकी देखरेख में भारतेंदु हरिश्चंद्र अपनी प्रारंभिक शिक्षा को घर पर ही प्राप्त की। भारतेंदु हरिश्चंद्र के साहित्य का आधार संस्कृत, हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषाओं का अध्ययन था।
भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने जीवन में साहित्य के आँगन में एक ऐसा बीज बोया, जो एक विशाल वृक्ष की भांति आज संसार को तपती धूप से छाया प्रदान करता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र की नाट्य रचनाओं में प्रेम-संयोग, भारत दुर्दशा, अंधेर नगरी, विद्यापति, चंद्रावली, वीर दुर्गादास तथा काव्य रचनाओं में राष्ट्रगीत, शांति-गीत आदि सुप्रसिद्ध हैं।
भारतेंदु हरिश्चंद्र जी को आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह के रूप में जाना जाता है। हिंदी के एक महान कवि और समाज सुधारक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का निधन 6 जनवरी 1885 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था।
मदवा पीले पागल जोबन बीत्यो जात
Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “मदवा पीले पागल जोबन बीत्यो जात” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
मदवा पीले पागल जोबन बीत्यो जात। बिनु मद जगत सार कछु नाहीं मान हमारी बात॥ पी प्याला छक-छक आनंद से नितहि सांझ और प्रात। झूमत चल डगमगी चाल से मारि लाज को लात॥ हाथी मच्छड़, सूरज जुगूनू जाके पिए लखात। ऐसी सिद्धि छोड़ि मन मूरख काहे ठोकर खात॥
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
दुनिया में हाथ पैर हिलाना नहीं अच्छा
Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi आपकी सोच का विस्तार कर सकती हैं, भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “दुनिया में हाथ पैर हिलाना नहीं अच्छा” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
दुनिया में हाथ पैर हिलाना नहीं अच्छा। मर जाना पै उठके कहीं जाना नहीं अच्छा॥ बिस्तर प मिस्ले लोथ पड़े रहना हमेशा। बंदर की तरह धूम मचाना नहीं अच्छा॥ “रहने दो जमीं पर मुझे आराम यहीं है।” छोड़ो न नक्शेपा हैं मिटाना नहीं अच्छा॥ उठ करके घर से कौन चले यार के घर तक। “मौत अच्छी है पर दिल का लगाना नहीं अच्छा।” धोती भी पहिने जब कि कोई गेर पिन्हा दे। उमरा को हाथ पैर चलाना नहीं अच्छा॥ सिर भारी चीज है इसे तकलीफ हो तो हो। पर जीभ बिचारी को सताना नहीं अच्छा॥ फ़ाकों से मरिए पर न कोई काम कीजिए। दुनिया नहीं अच्छी है जमाना नहीं अच्छा॥ सिजदे से गर बिहिश्त मिले दूर कीजिए। दोज़ख़ ही सही सिर का झुकाना नहीं अच्छा॥ मिल जाय हिन्द ख़ाक में हम काहिलों का क्या। ऐ मीरे फ़र्श रंज उठाना नहीं अच्छा॥
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
चूरन अमल बेद का भारी
Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “चूरन अमल बेद का भारी” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:
चूरन अमल बेद का भारी। जिस को खाते कृष्ण मुरारी॥ मेरा पाचक है पचलोना। जिसको खाता श्याम सलोना॥ चूरन बना मसालेदार। जिसमें खट्टे की बहार॥ मेरा चूरन जो कोइ खाय। मुझको छोड़ कहीं नहिं जाय॥ हिन्दू चूरन इसका नाम। विलायत पूरन इसका काम॥ चूरन जब से हिन्द में आया। इसका धन बल सभी घटाया॥ चूरन ऐसा हट्टा कट्टा। कीना दांत सभी का खट्टा॥ चूरन चला डाल की मंडी। इसको खाएंगी सब रंडी॥ चूरन अमले सब जो खावैं। दूनी रुशवत तुरत पचावैं॥ चूरन नाटकवाले खाते। इसकी नकल पचा कर लाते॥ चूरन सभी महाजन खाते। जिससे जमा हजम कर जाते॥ चूरन खाते लाला लोग। जिनको अकिल अजीरन रोग॥ चूरन खावै एडिटर जात। जिनके पेट पचै नहिं बात॥ चूरन साहेब लोग जो खाता। साहा हिंद हजम कर जाता॥ चूरन पूलिसवाले खाते। सब कानून हजम कर जाते॥ ले चूरन कर ढेर, बेचा टके सेर॥
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
चने जोर गरम
Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “चने जोर गरम” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:
चने जोर गरम। चने बनावैं घासीराम। निज की झोली में दुकान॥ चना चुरमुर चुरमुर बोलै। बाबू खाने को मुंह खोलै॥ चना खावै तौकी मैना। बोलै अच्छा बना चबैना॥ चना खाय गफूरन मुन्ना। बोलै और नहीं कुछ सुन्ना॥ चना खाते सब बंगाली। जिन धोती ढीली ढाली॥ चना खाते मियां जुलाहे। डाढ़ी हिलती गाहे-बगाहे॥ चना हाकिम सब जो खाते। सब पर दूना टिकस लगाते॥ चने जोर गरम-टके सेर।
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
नाथ तुम अपनी ओर निहारो
Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की रचनाओं में से एक रचना “नाथ तुम अपनी ओर निहारो” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
नाथ तुम अपनी ओर निहारो। हमरी ओर न देखहु प्यारे निज गुन-गगन बिचारो॥ जौ लखते अब लौं जन-औगुन अपने गुन बिसराई। तौ तरते किमि अजामेल से पापी देहु बताई॥ अब लौं तो कबहूं नहिं देख्यौ जन के औगुन प्यारे। तो अब नाथ कई क्यौं ठानत भाखहु बार हमारे॥ तुव गुन छमा दया सों मेरे अब नहिं बड़े कन्हाई। तासों तारि लेहु नंद-नंदन ‘हरीचंद’ को धाई॥
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
भारतेंदु हरिश्चंद्र की ग़ज़लें
भारतेंदु हरिश्चंद्र की ग़ज़लें कुछ इस प्रकार है :
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में
बुझे दिल की लगी भी तो ऐ मेरे यार होली में
नहीं ये है गुलाल-ए-सुर्ख़ उड़ता हर जगह प्यारे
ये आशिक़ की है उमड़ी आह-ए-आतिश-बार होली में
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
मनाने दो मुझे भी जान-ए-मन त्यौहार होली में
‘रसा’ गर जाम-ए-मय ग़ैरों को देते हो तो मुझ को भी
नशीली आँख दिखला कर करो सरशार होली में।
दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा
दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा
ऐ शोला-रुख़ो आग लगाना नहीं अच्छा
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ
ये दाग़ कलेजे पे उठाना नहीं अच्छा
आया है अयादत को मसीहा सर-ए-बालीं
ऐ मर्ग ठहर जा अभी आना नहीं अच्छा
सोने दे शब-ए-वस्ल-ए-ग़रीबाँ है अभी से
ऐ मुर्ग़-ए-सहर शोर मचाना नहीं अच्छा
तुम जाते हो क्या जान मिरी जाती है साहिब
ऐ जान-ए-जहाँ आप का जाना नहीं अच्छा
आ जा शब-ए-फ़ुर्क़त में क़सम तुम को ख़ुदा की
ऐ मौत बस अब देर लगाना नहीं अच्छा
पहुँचा दे सबा कूचा-ए-जानाँ में पस-ए-मर्ग
जंगल में मिरी ख़ाक उड़ाना नहीं अच्छा
आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा
कर दूँगा अभी हश्र बपा देखियो जल्लाद
धब्बा ये मिरे ख़ूँ का छुड़ाना नहीं अच्छा
ऐ फ़ाख़्ता उस सर्व-ए-सही क़द का हूँ शैदा
कू-कू की सदा मुझ को सुनाना नहीं अच्छा।
बैठे जो शाम से तिरे दर पे सहर हुई
बैठे जो शाम से तिरे दर पे सहर हुई
अफ़्सोस ऐ क़मर कि न मुतलक़ ख़बर हुई
अरमान-ए-वस्ल यूँही रहा सो गए नसीब
जब आँख खुल गई तो यकायक सहर हुई
दिल आशिक़ों के छिद गए तिरछी निगाह से
मिज़्गाँ की नोक-ए-दुश्मन-ए-जानी जिगर हुई
पछताता हूँ कि आँख अबस तुम से लड़ गई
बर्छी हमारे हक़ में तुम्हारी नज़र हुई
छानी कहाँ न ख़ाक न पाया कहीं तुम्हें
मिट्टी मिरी ख़राब अबस दर-ब-दर हुई
ध्यान आ गया जो शाम को उस ज़ुल्फ़ का ‘रसा’
उलझन में सारी रात हमारी बसर हुई।
फिर मुझे लिखना जो वस्फ़-ए-रू-ए-जानाँ हो गया
बैठे जो शाम से तिरे दर पे सहर हुई
अफ़्सोस ऐ क़मर कि न मुतलक़ ख़बर हुई
अरमान-ए-वस्ल यूँही रहा सो गए नसीब
जब आँख खुल गई तो यकायक सहर हुई
दिल आशिक़ों के छिद गए तिरछी निगाह से
मिज़्गाँ की नोक-ए-दुश्मन-ए-जानी जिगर हुई
पछताता हूँ कि आँख अबस तुम से लड़ गई
बर्छी हमारे हक़ में तुम्हारी नज़र हुई
छानी कहाँ न ख़ाक न पाया कहीं तुम्हें
मिट्टी मिरी ख़राब अबस दर-ब-दर हुई
ध्यान आ गया जो शाम को उस ज़ुल्फ़ का ‘रसा’
उलझन में सारी रात हमारी बसर हुई।
आशा है कि Bhartendu Harishchandra Poems in Hindi के माध्यम से आप भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।