Jainendra Kumar Ka Jivan Parichay: जैनेंद्र कुमार हिंदी साहित्य में ‘प्रेमचंदोत्तर युग’ के प्रतिष्ठित उपन्यासकार, कहानीकार व निबंधकार थे। वहीं, एक लेखक के रूप में जैनेंद्र कुमार ने केवल गद्य विधा में ही साहित्य का सृजन किया है। अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से उन्होंने आधुनिक हिंदी साहित्य में एक सशक्त मनोवैज्ञानिक कथा-धारा का प्रवर्तन किया था। जैनेंद्र कुमार प्रेमचंदोत्तर युग में मुंशी प्रेमचंद के व्यक्तिगत रूप से करीब थे। किंतु उन्होंने एक रचनाकार के रूप में प्रेमचंद के लेखन का अनुसरण नहीं किया बल्कि एक भिन्न प्रकृति के साहित्य का सृजन किया।
आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए जैनेंद्र कुमार को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1971 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘पद्म भूषण’ और वर्ष 1966 में प्रतिष्ठित ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ के साथ ही अन्य पुरस्कारों से अलंकृत किया जा चुका हैं। इसके साथ ही जैनेंद्र कुमार की कई रचनाएँ जिनमें ‘परख’, ‘सुनीता’, ‘त्यागपत्र’ (उपन्यास), ‘एक रात’, ‘दो चिड़ियाँ’, ‘पाजेब’ व ‘नीलम देश की राजकन्या’ (कहानी-संग्रह) ‘बाजार दर्शन’ (निबंध) आदि को बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं।
वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं, इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी जैनेंद्र कुमार का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।आइए अब हिंदी साहित्य में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक जैनेंद्र कुमार का जीवन परिचय (Jainendra Kumar Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | जैनेंद्र कुमार (Jainendra Kumar) |
जन्म | 02 जनवरी 1905 |
जन्म स्थान | अलीगढ़, उत्तर प्रदेश |
माता का नाम | श्रीमती रमा देवी |
पेशा | लेखक |
भाषा | हिंदी |
विधाएँ | उपन्यास, कहानी, निबंध |
उपन्यास | परख, त्यागपत्र, सुनीता, कल्याणी, मुक्तिबोध आदि। |
कहानी | फाँसी, वातायन, नीलम देश की राजकन्या, एक रात, दो चिड़ियाँ, पाजेब आदि। |
निबंध | प्रस्तुत प्रश्न, जड़ की बात, पूर्वोदय, साहित्य का श्रेय और प्रेय, मंथन व सोच विचार आदि। |
साहित्य काल | आधुनिक (प्रेमचंदोत्तर युग) |
पुरस्कार एवं सम्मान | पद्म भूषण (वर्ष 1971), साहित्य अकादमी पुरस्कार (वर्ष 1966), भारत भारती सम्मान |
निधन | 24 दिसंबर, 1988 |
This Blog Includes:
- उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ जन्म – Jainendra Kumar Ka Jivan Parichay
- अल्प आयु में हुआ पिता का देहांत
- असहयोग आंदोलन का प्रभाव
- साहित्य में हुआ पर्दापण – Jainendra Kumar Ka Sahityik Parichay
- जैनेंद्र कुमार की प्रमुख रचनाएँ – Jainendra Kumar Ki Rachnaye
- पुरस्कार एवं सम्मान
- 83 वर्ष की आयु में हुआ निधन
- पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में हुआ जन्म – Jainendra Kumar Ka Jivan Parichay
हिंदी गद्य साहित्य में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक जैनेंद्र कुमार का जन्म 02 जनवरी 1905 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में कौड़िया गंज नामक गांव में हुआ था। क्या आप जानते है कि जैनेंद्र कुमार के बचपन का नाम ‘आनंदीलाल’ था किंतु हिंदी साहित्य जगत में वह जैनेंद्र कुमार के नाम से विख्यात हुए।
अल्प आयु में हुआ पिता का देहांत
जैनेंद्र कुमार की आयु जब मात्र दो वर्ष की थी उसी दौरान उनके पिता का अकस्मात देहांत हो गया। अल्प आयु में पिता का साया सर से उठने के बाद उनकी परवरिश उनकी माता ‘रमा देवी’ और मामा ‘भगवान दीन’ ने की। अपनी आरंभिक शिक्षा अतरौली से करने के बाद उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पंजाब से पास की और आगे के अध्ययन के लिए बनारस चले गए।
असहयोग आंदोलन का प्रभाव
किशोरावस्था में प्रवेश के दौरान जब उनकी आयु मात्र 15-16 वर्ष की थी। उस समय संपूर्ण भारत में राष्ट्रपिता ‘महात्मा गांधी’ के नेतृत्व वर्ष 1920 में अहसयोग आंदोलन का प्रारंभ हुआ। इसके बाद वर्ष 1921 में अहसयोग आंदोलन के प्रभाव के कारण जैनेंद्र कुमार ने भी अपनी पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन भाग लिया।
कुछ समय तक उन्होंने कांग्रेस के लिए भी काम किया और स्वाधीनता आंदोलन के दौर में जेल भी गए। जीवन में प्राप्त इन सभी अनुभवों को उनके साहित्य में भी देखा जा सकता है। वहीं उनका आरंभिक जीवन आर्थिक रूप से कष्टमय बीता।
साहित्य में हुआ पर्दापण – Jainendra Kumar Ka Sahityik Parichay
बता दें कि जैनेंद्र कुमार की पहली कहानी वर्ष 1928 में ‘विशाल भारत’ में प्रकाशित हुई। जिससे उन्हें 4 रुपया पारिश्रमिक भी प्राप्त हुआ। इससे उनका लेखन के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा और धीरे धीरे वह साहित्य लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य की साधना में लगा दिया और गद्य विधा में कई अनुपम रचनाएँ की। इनमें त्यागपत्र, परख, सुनीता (उपन्यास) व पाज़ेब, नीलम देश की राजकन्या और अपना-अपना भाग्य (कहानी-संग्रह) को कालजयी रचनाओं के रूप में मान्यता मिली।
जैनेंद्र कुमार की प्रमुख रचनाएँ – Jainendra Kumar Ki Rachnaye
जैनेंद्र कुमार (Jainendra Kumar Biography in Hindi) ने हिंदी साहित्य के ‘प्रेमचंदोत्तर युग’ में केवल गद्य विधा में साहित्य का सृजन किया जिनमें मुख्य रूप से उपन्यास, कहानी और निबध शामिल हैं। वहीं उनकी साहित्यिक और दार्शनिक मान्यताओं की झलक उनके साहित्य में देखने को मिलती है। यहाँ जैनेंद्र कुमार (Jainendra Kumar in Hindi) की संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-
उपन्यास – Jainendra Kumar Ke Upanyas
जैनेंद्र कुमार के उपन्यास | प्रकाशन |
परख | वर्ष 1929 |
सुनीता | वर्ष 1935 |
त्यागपत्र | वर्ष 1938 |
कल्याणी | वर्ष 1939 |
सुखदा | वर्ष 1953 |
विवर्त | वर्ष 1953 |
व्यतीत | वर्ष 1953 |
जयवर्द्धन | वर्ष 1965 |
मुक्तिबोध | वर्ष 1965 |
अनंतर | वर्ष 1968 |
अनामस्वामी | वर्ष 1974 |
दशार्क | वर्ष 1985 (अंतिम उपन्यास) |
कहानी-संग्रह
- फाँसी – वर्ष 1929
- वातायन – वर्ष 1930
- नीलम देश की राजकन्या – वर्ष 1933
- एक रात – वर्ष 1934
- दो चिड़ियाँ – वर्ष 1935
- पाजेब – 1942
- जयसंधि – वर्ष 1949
- जैनेंद्र की कहानियाँ (सात खंडों में)
निबध
- प्रस्तुत प्रश्न
- जड़ की बात
- पूर्वोदय
- साहित्य का श्रेय और प्रेय
- मंथन
- सोच विचार
- ये और वे
- इतस्ततः
- समय और हम
- परिप्रेक्ष्य
- साहित्य और संस्कृति
- प्रेम और परिवार
संपादन
- साहित्य चयन
- विचार वल्लरी
अनुवाद
- मंदालिनी
- प्रेम में भगवान
- पाप और प्रकाश
पुरस्कार एवं सम्मान
जैनेंद्र कुमार (Jainendra Kumar in Hindi) को हिंदी साहित्य जगत में अपना विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं:
- वर्ष 1961 में उन्हें ‘मुक्तिबोध’ उपन्यास के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया।
- वर्ष 1971 में भारत सरकार द्वारा जैनेंद्र कुमार को पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- भारत भारती पुरस्कार – उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा
- वर्ष 1974 में उन्हें साहित्य अकादमी फेलोशिप प्रदान की गई।
- बता दें कि जैनेंद्र कुमार ने विश्वविद्यालय की शिक्षा ग्रहण नहीं की थी। किंतु उनकी साहित्यिक रचनाओं के लिए उन्हें वर्ष 1973 में ‘दिल्ली विश्वविद्यालय’ और ‘आगरा विश्वविद्यालय’ द्वारा ‘डी.लिट्’ की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया था।
- जैनेंद्र कुमार की साहित्य सेवा के लिए उन्हें वर्ष 1973 में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग में ‘साहित्य वाचस्पति’ और ‘गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय’ ने ‘विद्या वाचस्पति’ की उपाधि से अलंकृत किया।
83 वर्ष की आयु में हुआ निधन
कई दशकों तक हिंदी साहित्य में अनुपम कृतियों की रचना करने वाले जैनेंद्र कुमार का 83 वर्ष की आयु में 24 दिसंबर 1988 को निधन हो गया। किंतु उनकी कृतियों के लिए साहित्य जगत में उन्हें हमेशा याद किया जाता रहेगा।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ हिंदी साहित्य में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक जैनेंद्र कुमार का जीवन परिचय (Jainendra Kumar Biography in Hindi) के साथ ही हिंदी साहित्य के अन्य साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही है। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
जैनेंद्र कुमार का जन्म 02 जनवरी 1905 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में कौड़िया गंज नामक गांव में हुआ था।
जैनेंद्र कुमार के बचपन का नाम ‘आनंदीलाल’ था।
बता दें कि वर्ष 1971 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया था।
‘नीलम देश की राजकन्या’ प्रसिद्ध लेखक जैनेंद्र कुमार का बहुचर्चित कहानी-संग्रह है।
जैनेंद्र कुमार का 83 वर्ष की आयु में 24 दिसंबर 1988 को निधन हुआ था।
परख व त्यागपत्र (उपन्यास) तथा फाँसी, नीलम देश की राजकन्या, एक रात, दो चिड़ियाँ और पाजेब (कहानी) उनकी प्रमुख रचनाएं मानी जाती हैं।
आशा है कि आपको हिंदी साहित्य में मनोविश्लेषणात्मक परंपरा के प्रवर्तक जैनेंद्र कुमार का जीवन परिचय (Jainendra Kumar Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।