Habib Tanvir ka Jeevan Parichay: भारतीय रंगमंच के महानायक ‘हबीब तनवीर’ (Habib Tanvir) एक ऐसा मशहूर नाम है जिन्होंने रंगमंच के मानचित्र पर अपनी एक खास जगह स्थापित की हैं। वह एक विख्यात नाटककार होने के साथ-साथ निर्देशक, पटकथा-लेखक, गीतकार और पत्रकार भी थे। हबीब तनवीर ने अपनी विशिष्ट शैली के माध्यम से ‘नाट्य’ प्रस्तुतियों में जनमानस की समस्याओं को बखूबी प्रदर्शित किया जो आमवर्ग को बहुत प्रभावित करती थी। हबीब तनवीर के नाटक ‘आगरा बाजार’, ‘चरणदास चोर’ और ‘देख रहे हैं नैन’ बहुत प्रसिद्ध माने जाते हैं।
क्या आप जानते हैं कि रंगमंच की दुनिया के अलावा उन्होंने हिंदी सिनेमा में भी काम किया था। भारतीय रंगमंच में उनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1983 में ‘पद्मश्री‘, वर्ष 2002 में ‘पद्म भूषण’ और ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ समेत कई पुरस्कारों और सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। आइए अब हम भारतीय रंगमंच के लीजेंड Habib Tanvir ka Jeevan Parichay और उनकी उपलब्धियों के बारे में जानते हैं।
मूल नाम | हबीब अहमद खान (Habib Ahmed Khan ) |
जन्म | 01 सितंबर, 1923 |
जन्म स्थान | रायपुर (छ्त्तीसगढ़) |
पिता का नाम | हफीज अहमद खान |
पत्नी का नाम | मोनिका मिश्रा |
संतान | नगीन तनवीर |
पेशा | नाट्य निर्देशक, पटकथा-लेखक, पत्रकार |
भाषा | हिंदी |
विधाएँ | नाटक, अभिनय, कविता, निर्देशन |
मुख्य रचनाएँ | आगरा बाजार, चरणदास चोर, देख रहे हैं नैन, हिरमा की अमर कहानी आदि। |
स्थापना | ‘नया थियेटर’ |
सम्मान | पद्मश्री, पद्म भूषण, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार आदि। |
निधन | 8 जून 2009 |
This Blog Includes:
- हबीब तनवीर का प्रारंभिक जीवन – Habib Tanvir ka Jeevan Parichay
- कैसे जुड़ा हबीब नाम के साथ ‘तनवीर’
- मुंबई से शुरू हुआ बड़ा सफर
- वैवाहिक जीवन की शुरुआत
- ‘नया थियेटर’ की स्थापना
- रंगमंच के माध्यम से किया चुनाव का प्रचार
- फिल्मों में भी दिखाया अभिनय
- हबीब तनवीर की रचनाएँ – Habib Tanvir Ki Rachnaye
- सम्मान और पुरस्कार
- हबीब तनवीर का निधन
- पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
हबीब तनवीर का प्रारंभिक जीवन – Habib Tanvir ka Jeevan Parichay
भारतीय रंगमंच के महानायक हबीब तनवीर (Habib Tanvir) का जन्म 1 सितंबर 1923 को छ्त्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के मुहल्ला बैजनाथपुरा में हुआ था। उनके पिता ‘हफीज अहमद खान’ पेशावर, पाकिस्तान से आकर यहां बसे थे। हबीब तनवीर ने अपनी स्कूली शिक्षा रायपुर के ‘लॉरी म्युनिसिपल हाईस्कूल’ से की। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1944 में नागपुर में ‘मॉरीस कॉलेज’ में दाखिला लिया और स्नातक की डिग्री प्राप्त की और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एम.ए की डिग्री कंप्लीट की।
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कैसे जुड़ा हबीब नाम के साथ ‘तनवीर’
क्या आप जानते हैं कि उनके बचपन का नाम ‘हबीब अहमद खान’ था। वहीं युवा अवस्था से ही उनकी साहित्य और लेखन में विशेष रूचि थी और उन्होंने कॉलेज के समय से ही छद्मनाम ‘तनवीर’ से कविताएँ लिखनी शुरू कर दी थी। जो बाद में हमेशा के लिए उनका उपनाम बन गया।
मुंबई से शुरू हुआ बड़ा सफर
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह साल 1945 में मुंबई आ गए और यहाँ ‘आकाशवाणी’ में बतौर प्रोड्यूसर के तौर पर अपनी नौकरी की शुरूआत की। यहीं रहते हुए उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए गाने लिखे और कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया। फिर यहीं से हबीब तनवीर ने नाट्य लेखन की शुरुआत कर दी। बता दें कि उन्होंने अपने पहले नुक्कड़ नाटक ‘शांतिदूत कामगार’ का प्रदर्शन मुंबई में किया था।
फिर वह ‘प्रगतिशील लेखक संघ’ और बाद में ‘इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन’ (इप्टा) से जुड़ गए। ये वो समय था जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हर जगह स्वतंत्रता के लिए आंदोलन हो रहे थे, उस समय ब्रिटिश शासन के खिलाफ ‘इप्टा’ से जुड़े अधिकांश वरिष्ठ लोग जेल चले गए तब उन्होंने ही संगठन की जिम्मेदारी संभाली थी।
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वैवाहिक जीवन की शुरुआत
वर्ष 1954 में हबीब तनवीर मुंबई से वापस दिल्ली आ गए और ‘बेगम कुदेसिया जैदी’ के ‘हिन्दुस्तानी थियेटर’ से जुड़ गए यहाँ उन्होंने बाल थियेटर के लिए भी कुछ समय तक कार्य किया। यही उनकी मुलाकात अभिनेत्री ‘मोनिका मिश्रा’ से हुई जिनसे आगे चलकर उनका विवाह हुआ। बता दें कि इसी समय उन्होंने अपना पहला नाटक ‘आगरा बाजार’ भी लिखा जिसका पहला मंचन दिल्ली के ‘जामिया मिलिया इस्लामिया’ में हुआ और फिर उन्होंने कथासम्राट ‘मुंशी प्रेमचंद’ की कहानी ‘शतरंज के मोहरे’ का भी निर्देशन किया। इसके बाद हबीब तनवीर थियेटर और अभिनय के गुण सीखने के लिए लंदन चले गए जहां उन्होंने ‘रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट’ (RADA) से निर्देशन और अभिनय की बारीकियों को सीखा।
‘नया थियेटर’ की स्थापना
हबीब तनवीर ‘हिन्दुस्तानी थियेटर’ से कुछ समय तक जुड़े रहे, जिसके बाद उन्होंने वर्ष 1958 में छत्तीसगढ़ी कलाकारों के साथ मिलकर ‘नया थियेटर’ शुरू किया। बता दें कि ‘राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ (NSD) की स्थापना भी लगभग इसी समय हुई थी। हबीब तनवीर ने अपने थियेटर ग्रुप के साथ मिलकर थिएटर किया और अपना संपूर्ण जीवन रंगमंचों को समर्पित कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने देश भर के ग्रामीण अंचलों की यात्रा की और लोक संस्कृति व विभिन्न लोक नाट्य शैलियों का गहन अध्ययन किया व लोक गीतों का संकलन किया।
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रंगमंच के माध्यम से किया चुनाव का प्रचार
क्या आप जानते हैं कि रंगमंच पर अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले हबीब तनवीर (Habib Tanvir) वर्ष 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानी राज्यसभा के मनोनीत सांसद भी रह चुके हैं। बता दें कि उन्होंने ‘इंदिरा गांधी’ के ‘गरीबी हटाओ’ नारे का समर्थन करते हुए अपने नाटकों के माध्यम से चुनाव का प्रचार किया था और लोगों को जनमानस की समस्याओं से जागरूक किया था।
फिल्मों में भी दिखाया अभिनय
हबीब तनवीर ने अपने रगमंच के सफर में 100 से अधिक नाटकों का मंचन किया साथ ही फिल्मों में भी अपना दमदार अभिनय दिखाया। उन्होंने हिंदी सिनेमा जगत में कुछ लोकप्रिय फिल्मों में भी काम किया है। यहाँ Habib Tanvir ka Jeevan Parichay के साथ ही उनके द्वारा की गई कुछ प्रमुख फिल्मों के बारे में बताया जा रहा है:-
- राही – 1952
- फ़ुट पाथ – 1953
- चरणदास चोर – 1975
- Staying On – 1980
- गाँधी – 1982
- कब तक पुकारू – 1985
- Man-Eaters of India – 1986
- ये वो मंज़िल तो नहीं – 1986
- हीरो हीरालाल – 1988
- प्रहार – 1991
- द बर्निंग सीजन – 1993
- द राइज़िंग: मंगल पांडे – 2005
- ब्लैक & व्हाइट – 2008
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हबीब तनवीर की रचनाएँ – Habib Tanvir Ki Rachnaye
Habib Tanvir ka Jeevan Parichay अपने आप में ही कमाल है। हबीब तनवीर ने अपना संपूर्ण जीवन रंगमंच की साधना में ही लगा दिया था। इसके साथ ही उन्होंने बहुत सी साहित्यिक रचनाओं का सृजन किया। आइए अब हम हबीब तनवीर (Habib Tanvir) की रचनाओं के बारे में जानते हैं:-
- आगरा बाजार
- शतरंज के मोहरे
- लाला शोहरत राय
- गाँव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद
- मिट्टी की गाड़ी
- मिर्जा शोहरत बेग
- लाला शोहरत राय
- हिरमा की अमर कहानी
- चरणदास चोर
- बहादुर कलारिन
- देख रहे हैं नैन
- मुद्राराक्षस
- कामदेव का अपना बसंत ऋतु का सपना
- सड़क
- शाजापुर की शांतिबाई
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सम्मान और पुरस्कार
हबीब तनवीर को होने जीवनकाल में कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान से नवाजा जा चुका हैं। यहाँ हम उन्हें मिले कुछ प्रमुख पुरस्कारों के बारे में बता रहे हैं:-
- संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार – 1969
- पद्मश्री अवार्ड – 1983
- संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप – 1996
- पद्म विभूषण -2002
- नांदिकर पुरस्कार
- शिखर सम्मान (मध्य प्रदेश सरकार द्वारा)
- बता दें कि वर्ष 1982 में स्कॉटलैंड में हुए ‘एडिनबर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टिवल’ में 52 देशों के मंचित नाटकों में से प्रथम पुरस्कार ‘चरणदास चोर’ को प्राप्त हुआ।
हबीब तनवीर का निधन
हबीब तनवीर (Habib Tanvir) ने नाट्य जगत में अपना विशेष योगदान देने के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के ‘नाचा कलाकारों’ को देश विदेश में पहचान दिलाई। इसके साथ ही हबीब तनवीर ने छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति को देश विदेश तक अपने नाटकों के जरिए पहुंचाया। वहीं 8 जून 2009 को 86 वर्ष की आयु में रंगमंच के महानायक ने दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया। किंतु वह भारतीय नाट्य शैली के साक्ष्य के रूप में सदैव याद किए जाते रहेंगे और भावी रंगकर्मियों के लिए पथ-प्रदर्शन का काम करते रहेंगे।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ भारतीय रंगमंच के प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर का जीवन परिचय (Habib Tanvir ka Jeevan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
हबीब तनवीर का पूरा नाम हबीब अहमद खान था।
हबीब तनवीर के पिता का नाम हफीज अहमद खान था।
चरणदास चोर नाटक के लेखक प्रसिद्ध रंगकर्मी हबीब तनवीर है।
हबीब तनवीर के प्रथम नाटक आगरा बाजार है जो उन्होंने वर्ष 1954 में लिखा था।
हबीब तनवीर का सबसे प्रसिद्ध नाटक चरणदास चोर है।
वे नाटक, अभिनय और निर्देशन के लिए प्रसिद्ध है।
‘आगरा बाजार’ और ‘चरणदास चोर’ हबीब तनवीर की प्रमुख नाट्य कृति है।
आशा है कि आपको भारतीय रंगमंच के महानायक हबीब तनवीर का जीवन परिचय (Habib Tanvir ka Jeevan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।