महाकवि भूषण हिंदी साहित्य में ‘रीतिकाल’ या (उत्तर मध्य काल) में रीतिबद्ध काव्यधारा के प्रतिष्ठित कवि थे। यद्यपि रीतिकाल शृंगार युग था किंतु भूषण ने उस युग में प्रभाव से हटकर वीररस की काव्य कृतियों का सृजन किया। बताया जाता है कि उन्होंने शृंगार रस में भी पद लिखे थे लेकिन उनका मन वीररस की रचनाओं में ही अधिक रमा। वे अपने जीवन काल में कई राजाओं के यहां रहे और वहां सम्मान प्राप्त किया। किंतु इनके प्रिय नरेश ‘शिवाजी’ और पन्ना के महाराज ‘छत्रसाल’ थे। उनके छह ग्रंथ माने जाते हैं लेकिन इनमें ‘शिवराज भूषण’, ‘शिवा बावनी’ और ‘छत्रसाल दशक’ ही उपलब्ध हैं। इस लेख में महाकवि भूषण का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | भूषण |
| जन्म | सन 1613 (विद्वानों के अनुसार) |
| जन्म स्थान | तिकवांपुर गांव, कानपुर, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | रत्नाकर त्रिपाठी |
| साहित्य काल | रीतिकाल |
| भाषा | ब्रज |
| विधाएँ | काव्य |
| प्रसिद्ध रचनाएँ | ‘शिवराज भूषण’, ‘शिवा बावनी’ और ‘छत्रसाल दशक’ |
| आश्रयदाता | नरेश “शिवाजी” और पन्ना के महाराज “छत्रसाल” |
| निधन | सन 1707 |
This Blog Includes:
उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ था जन्म
विद्वानों के अनुसार महाकवि भूषण का जन्म सन 1613 के आसपास उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में तिकवांपुर गांव में हुआ था। इनके वास्तविक नाम के बारे में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। वहीं ‘भूषण’ एक उपाधि है जो चित्रकूट के सोलंकी राजा रूद्र ने उन्हें सम्मान स्वरूप प्रदान की थी। कुछ विद्वान मानते हैं कि उनका मूल नाम ‘मनीराम’ था। इनके पिता का नाम ‘रत्नाकर त्रिपाठी’ था। प्रसिद्ध कवि ‘चिंतामणि’ और ‘मतिराम’ उनके भाई थे।
वीररस के कवि
भूषण अपने जीवनकाल में हृदयराम सोलंकी, साहूजी महाराज और जयसिंह के आश्रय में रहे और वहाँ बहुत सम्मान प्राप्त किया। किंतु भूषण के मनोनुकूल आश्रयदाता केवल दो ही थे, महाराज ‘शिवाजी’ और पन्ना के महाराज ‘छत्रसाल’। ऐसा कहा जाता है कि जब वे विदा होने लगे तो महाराज छत्रसाल ने इनकी पालकी में कंधा लगाया था।
भूषण के काव्य में वीर रस की प्रधानता थी। उन्होंने वीर शिवाजी और छत्रसाल का यशोगान किया जिन्होंने भारत की रक्षा की तथा सामाजिक, धार्मिक अर्धपतन को रोका। वहीं उन्होंने ‘शिवराज भूषण’ में अलंकारों का प्रयोग करते हुए शिवाजी की वीरता का चित्रण किया; ‘छत्रसाल दशक’ में महाराज छत्रसाल बुंदेला के पराक्रम और दानशीलता का वर्णन किया; तथा ‘शिवा बावनी’ में शिवाजी महाराज के गुणों और महानता को दर्शाया।
भूषण की काव्यगत विशेषताएँ
भूषण ने अपने वीर रस प्रधान काव्य के माध्यम से लोगों में देशप्रेम और राष्ट्रीयता की भावना को प्रबल किया। किंतु उनके काव्य में अलंकारों का भी विशेष महत्त्व है। उन्होंने काव्य में भाव पक्ष पर अधिक ध्यान दिया है। उनकी रचनाएँ ब्रज भाषा में हैं, किंतु उन्होंने अनेक विदेशी शब्दों का भी खुलकर प्रयोग किया है। वहीं विद्वानों ने माना है कि उनके काव्य में अरबी और फ़ारसी के शब्द घुल मिल गए हैं लेकिन भाषा में वीर भावना का समावेश है। वे राष्ट्रीय जागरण के कवि माने जाते हैं। उनकी वाणी आज भी देश की सुषुप्त चेतना को जगाने में सक्षम है।
यह भी पढ़ें – संस्कृत साहित्य के महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय
भूषण की भाषा शैली
भूषण ने अपने काव्य में मुख्य रूप से कवित्त, सवैया और दोहा छंद का प्रयोग किया है। भाषा पर उनका असाधारण अधिकार था। उन्होंने वीर रसानुकूल भाषा अपनाकर अपनी काव्य-शक्ति का प्रयोग सजीव बिंबों के निर्माण में किया है। अपने समय की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों का सजीव चित्रण उनके काव्य में स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।
महाकवि भूषण की रचनाएँ
नीचे महाकवि भूषण की प्रमुख रचनाओं की सूची दी गई है:-
- शिवराज भूषण
- शिवा बावनी
- छत्रसाल दशक
- भूषण उल्लास
- भूषण हजारा
- दूषण उल्लास
महाकवि भूषण की मृत्यु
भूषण का एक लंबा जीवनकाल रहा, जिसमें उन्होंने कई आश्रयदाताओं के लिए वीर रस से युक्त काव्य की रचना की। माना जाता है कि उनका निधन 92 वर्ष की आयु में, सन 1705 के आसपास हुआ था।
भूषण के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवित्त
महाकवि भूषण के शिक्षाप्रद कवित्त निम्नलिखित हैं:-
राखी हिंदुवानी हिंदुवान को तिलक राख्यो
राखी हिंदुवानी हिंदुवान को तिलक राख्यो अस्मृति पुरान राखे बेद बिधि सुनीमैं।
राखी रजपूती राजधानी राखी राजन की धरामैं धरम राख्यो गुन राख्यो गुनीमैं।
भूषन सुकबि जीति हद्द मरहट्ठन की देस-देस कीरति बखानी तव सुनी मैं।
साहि के सपूत सिवराज समसेर तेरी दिल्ली दल दाबि कै दिवाल राखी दुनी में॥
जढ़त तुरंग चतुरंग साजि सिवराज
चढ़त तुरंग चतुरंग साजि सिवराज चढ़त प्रताप दिन-दिन अति अंग में।
भूषन चढ़त मरहट्ठ-चित्त चाउ चारु खग्ग खुली चढ़त है अरिन कै अंग में।
भ्वैसिला के हाथ गढ़-कोट है चढ़त अरि-जोट है चढ़त एक मेरुगिरि-सृंग में।
तुरकान-गन ब्योमजान है चढ़त बिन मान है चढ़त बदरंग अवरंग में॥
छूटत कमान बान बंदूकरु कोकबान
छूटत कमान बान बंदूकरु कोकबान मुसकिल होत मुरचारनहू की ओट में।
ताही समै सिवराज हुकुम कै हल्ला कियो दावा बाँधि द्वेषिन पै बीरन लै जोट में।
भूषन भनत तेरी हिम्मति कहाँ लौं कहौं किम्मति इहाँ लगि है जाकी भटझोट में।
ताव दै दै मूछन कगूरन पै पाँव दै दै घाव दै दै अरिमुख कूदे परैं कोट में॥
आपस की फूट ही तें सारे हिंदुवान टूटे
आपस की फूट ही तें सारे हिंदुवान टूटे टूट्यो कुल रावन अनीति अति करतें।
पैठियो पताल बलि बज्रधर ईरषा तें टूट्यो हिरनाच्छ अभिमान चित धरतें।
टूट्यो सिसुपाल बासुदेव जू सौं बैर करि टूट्यो है महिष दैत्य अध्रम बिचरतें।
राम-कर छूवन तें टूट्यो ज्यौं महेस-चाप टूटी पातसाही सिवराज-संग लरतें॥
उतरि पलँग तें न दियो हैं धरा पै पग
उतरि पलँग तें न दियो हैं धरा पै पग तेऊ सगबग निसिदिन चली जाती हैं।
अति अकुलातीं मुरझातीं न छिपातीं गात बात न सोहाती बोले अति अनखाती हैं।
भूषन भनत सिंह साहि के सपूत सिवा तेरी धाक सुने अरि नारी बिललाती हैं।
जोन्ह में न जातीं ते वै धूपै चली जाती पुनि तीन बेर खातीं तेवै तीन बेर खाती हैं॥
यह भी पढ़ें – प्रथम ‘तार सप्तक’ के कवि गिरिजाकुमार माथुर का जीवन परिचय
FAQs
ऐसा माना जाता है कि भूषण का जन्म सन 1613 के आसपास कानपुर के तिकवांपुर गांव में हुआ था।
भूषण ब्रज भाषा के कवि थे।
यह महाकवि भूषण की प्रमुख रचना मानी जाती है।
‘शिवराज भूषण’, ‘शिवा बावनी’ और ‘छत्रसाल दशक’ को महाकवि भूषण की प्रमुख रचनाएँ माना जाता है।
आशा है कि आपको महाकवि भूषण का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
One app for all your study abroad needs






60,000+ students trusted us with their dreams. Take the first step today!
