“बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।” इन पंक्तियों से लगभग हर भारतीय परिचित है। रानी लक्ष्मीबाई, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की महिला सेनानी, झाँसी की रानी, वीरता और समर्पण से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान, 17 जून 1858 में ग्वालियर में शहीद हुईं। रानी लक्ष्मीबाई वीरता का प्रतिबिम्ब हैं। रानी लक्ष्मीबाई भारत के पहले स्वतंत्र संग्राम के समय में बहादुर वीरांगना थीं। झांसी की रानी ने आखिरी दम तक अंग्रेजों के साथ लड़ाई की थी। इनकी वीरता की कहानियां आज भी प्रचलित हैं, मरने के बाद भी झांसी की रानी अंग्रेजों के हाथ में नहीं आई थीं। रानी लक्ष्मीबाई अपनी मातृभूमि के लिए जान न्यौछावर करने तक तैयार थी।’ मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’ इनका यह वाक्य बचपन से लेकर अभी तक हमारे साथ है। यहाँ झांसी रानी की कहानी के बारे में विस्तार से बताया गया है।
This Blog Includes:
- झांसी की रानी का जीवन परिचय – Rani Laxmibai in Hindi
- झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन
- झांसी का बुलंद किला
- रानी लक्ष्मीबाई का विवाह
- रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम
- रानी लक्ष्मी बाई के पति की मृत्यु
- रानी लक्ष्मीबाई का उत्तराधिकारी बनना
- रानी लक्ष्मीबाई की कालपी की लड़ाई
- झांसी की रानी की मौत कैसे हुई?
- रानी लक्ष्मी बाई के बारे में रोचक तथ्य
- FAQs
झांसी की रानी का जीवन परिचय – Rani Laxmibai in Hindi
झांसी की रानी का जन्म 19 नवंबर 1828 वाराणसी भारत में हुआ था। इनके पिता का नाम मोरोपंत तांबे और माता का नाम भागीरथी सप्रे था। इनके पति का नाम नरेश महाराज गंगाधर राव नायलयर और बच्चे का नाम दामोदर राव और आनंद राव था। झांसी की रानी का नाम उनके माता पिता ने मणिकर्णिका रखा था। लेकिन शादी के बाद उनका नाम रानी लक्ष्मीबाई हो गया। उनके बचपन का नाम मनु भी था।
झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का बचपन
रानी लक्ष्मी बाई का असली नाम मणिकर्णिका था, बचपन में उन्हें प्यार से मनु कह कर बुलाते थे। उनका जन्म वाराणसी में 19 नवंबर 1828 मराठी परिवार में हुआ था। वह देशभक्ति ,बहादुरी, सम्मान का प्रतीक है। इनके पिता मोरोपंत तांबे मराठा बाजीराव की सेवा में थे और उनकी माता एक विदुषी महिला थी। छोटी उम्र में ही रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी माता को खो दिया था। उसके बाद उनके पिता ने उनका पालन पोषण किया, बचपन से ही उनके पिताजी ने रानी लक्ष्मीबाई को हाथियों और घोड़ों की सवारी और हथियारों का उपयोग करना सिखाया था। नाना साहिब और तात्या टोपे के साथ रानी लक्ष्मीबाई पली-बढ़ी थी।
झांसी का बुलंद किला
झांसी के किले की नींव आज से करीब कई सौ साल पहले 1602 में ओरछा नरेश वीरसिंह जूदेव के द्वारा रखी गई। ओरछा (मध्यप्रदेश में एक कस्बा) झांसी से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बंगरा पहाड़ी पर 15 एकड़ में फैले इस विशालकाय किले को पूरी तरह तैयार होने में 11 सालों का समय लगा और यह 1613 में बनकर तैयार हुआ। किले में 22 बुर्ज और बाहर की ओर उत्तर तथा उत्तर-पश्चिम दिशा में खाई है, जो दुर्ग की ओर ढाल बनकर आक्रमणकारियों को रोकती हैं। यही कारण है कि इस किले की पूरे संसार में इतनी चर्चा होती है। पहले झांसी ओरछा नरेश के राज्य में आती थी जो बाद में मराठा पेशवाओं के आधीन थी। मराठा नरेश गंगाधर राव से शादी होने के बाद मणिकर्णिका को लक्ष्मीबाई कहा जाने लगा। इसलिए उनके बलिदान के साथ उनकी छाप किले में हर जगह देखने को मिलती है।
रानी लक्ष्मीबाई का विवाह
रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के महाराज राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। विवाह के बाद मणिकर्णिका का नाम बदलकर लक्ष्मीबाई से जाना जाने लगा। फिर वह झांसी की रानी के नाम से प्रसिद्ध हुईं। 1851 में उनके बेटे का जन्म हुआ था, परंतु 4 महीनों के बादउसकी मृत्यु हो गई थी। कुछ समय बाद झांसी के महाराजा ने दत्तक ( आनंद राव) पुत्र को अपनाया।
रानी लक्ष्मी बाई के घोड़े का नाम
महल और मंदिर के बीच जाते समय रानी लक्ष्मीबाई घोड़े पर सवार होकर जाती थीं या फिर कभी कभी पालकी द्वारा भी जाती थीं। सारंगी ,पवन और बादल उनके घोड़े में शामिल थे। 1858 में इतिहासकारों के अनुसार यह माना गया है कि किले की तरफ भागते समय रानी लक्ष्मीबाई बादल पर सवार थी।
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रानी लक्ष्मी बाई के पति की मृत्यु
2 साल बाद सन 1853 में बीमारी के चलते हुएउनके पति की मृत्यु हो गई थी।बेटे और पति की मृत्यु के बाद भी रानी लक्ष्मीबाई हिम्मत नहीं हारी। जब उनकी पति की मृत्यु हुई थी तब रानी लक्ष्मीबाई की उम्र केवल 25 वर्ष थी। 25 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने सारी जिम्मेदारियां संभाल ली थीं।
रानी लक्ष्मीबाई का उत्तराधिकारी बनना
जब महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई थी ब्रिटिश लोगों ने कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में उसे स्वीकार नहीं किया था। उस समय गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी एक बहुत ही शातिर इंसान था , जिसकी नजर झांसी के ऊपर थी। झांसी के ऊपर कब्जा करना चाहते थे क्योंकि उसका कोई वारिश नहीं था। परंतु झांसी की रानी इसके खिलाफ थी, वह किसी भी हाल में किला नहीं देना चाहती थी। रानी को बाहर निकालने के लिए ,उन्हे 60000 वार्षिक पेंशन भी दी जाएगी। झांसी की रक्षा करने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने एक मजबूत सेना को इकट्ठा किया। इस सेना में महिलाएं भी शामिल थी , कुल 14000 विद्रोह को इकट्ठा किया और सेना बनाई थी।
रानी लक्ष्मीबाई की कालपी की लड़ाई
23 मार्च 1858 को झांसी की लड़ाई शुरू हो गई थी। अपनी सेना के साथ मिलकर झांसी को बचाने के लिए रानी लक्ष्मीबाई ने लड़ाई लड़ी थी। परंतु ब्रिटिश लोगों ने उसकी सेना पर अधिकार कर लिया था। फिर इसके बाद अपने बेटे के साथ रानी लक्ष्मीबाई कालपीचली गई थी। कालपी जाकर उन्होंने तात्या टोपे और दूसरे सभी विद्रोहियों के साथ मिलकर एक नई सेना बनाई थी।
झांसी की रानी की मौत कैसे हुई?
18 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा की सराय में रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु हुई थी। रानी लक्ष्मीबाई को लड़ाई करते समय ज्यादा चोट तो नहीं लगी थी परंतु काफी खून बह गया था। जब वह घोड़े पर सवार होकर गॉड रही थी तब एक बीच में एक नाला पड़ा,रानी लक्ष्मीबाई को लगा अगर यह नाला पार कर लिया तो कोई उसे पकड़ नहीं कर पाएगा। परंतु जब वह नाले के पास पहुंची तब उनके घोड़े ने आगे जाने से मना कर दिया। तभी अचानक पीछे से रानी लक्ष्मीबाई के कमर पर तेजी से राइफल की गोली आकर लगी, जिसके कारण काफी ज्यादा खून निकलने लगा। खून को रोकने के लिए जैसे ही उन्होंने अपनी कमर पर हाथ लगाया तभी अचानक उनकी हाथ से तलवार नीचे गिर गई।
फिर वापिस अचानक से एक अंग्रेजी सैनिक ने उनके सिर पर तेजी से वार जिसके कारण उनका सर फूट गया। फिर वह घोड़े पर से नीचे गिर पड़ीं। कुछ समय बाद एक सैनिक रानी लक्ष्मी बाई को पास वाले मंदिर में लेकर गया। अभी तक थोड़ी-थोड़ी उनकी सांसें चल रही थीं। उन्होंने मंदिर के पुजारी से कहा कि मैं अपने पुत्र दामोदर को आपके पास देखने के लिए छोड़ रही हूं । यह बोलने के बाद उनकी सांसे बंद हो गईं। फिर उनका अंतिम संस्कार किया गया। ब्रिटिश जनरल हयूरोज ने रानी लक्ष्मीबाई की बहुत सारी तारीफ में कहा था कि वह बहुत चतुर, ताकतवर और वीर योद्धा थीं।
रानी लक्ष्मी बाई के बारे में रोचक तथ्य
रानी लक्ष्मी बाई के बारे में रोचक तथ्य इस प्रकार हैं:
- लक्ष्मीबाई का जन्म का नाम मणिकर्णिका तांबे था। झांसी के राजा से विवाह के बाद ही उनका नाम बदला गया।
- ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मीबाई को घुड़सवारी का बहुत अच्छा ज्ञान था।
- इसके अलावा, छबीली उनके उपनामों में से एक है जो उन्हें उनके चंचल स्वभाव के कारण दिया गया था।
- परिणामस्वरूप, झांसी की साहसी रानी के सम्मान में 1957 में दो डाक टिकट जारी किये गये।
FAQs
रानी लक्ष्मीबाई का पुराना नाम क्या है?
रानी लक्ष्मीबाई का पुराना नाम मणिकर्णिका था।
रानी लक्ष्मीबाई के घोड़े का नाम सारंगी था।
झांसी की रानी के गुरु का नाम संत गंगा दास था।
झांसी की रानी किसकी बेटी थी?
झांसी की रानी के पिता का नाम मोरोपंत ताम्बे था।
रानी लक्ष्मीबाई का प्यार का नाम छबीली था।
आशा करते हैं कि आपको झांसी रानी की कहानी का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। ऐसे ही ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu पर बने रहिए।
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JASHI KI RANI !
HAR LADKIYO KO SHIKHNA HAHIYE INHISE……. -
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी
सब कुछ जानने के बाद भी रानी लक्ष्मीबाई के बारे में पढ़ना एक सुखद अनुभूति होती है।-
आपका धन्यवाद, ऐसे ही हमारी https://leverageedu.com/ पर बने रहिये।
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7 comments
really nice
Important information for us.
Thank you wings!🙏
Rani ji bahut bahadur thi. Kash agar ghoda nala par. Kar leta to shayad desh bahut pahle hi aajad ho jata hum es krantikari ko naman karte han aajadi ki first purodha ko salute jaihid
Jhasi ki rani
A powerful story of a women.
It tells us struggle of rani lakshmibai.
She was ,is ,will be always remembered.
JASHI KI RANI !
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