हिंदी साहित्य में रहीम को भक्तिकाल और रीतिकाल के संधिकाल का प्रमुख प्रतिनिधि कवि माना जाता है। वे मध्ययुगीन दरबारी संस्कृति के श्रेष्ठ कवि थे। माना जाता है कि मुगल बादशाह अकबर के दरबार में हिंदी के कवियों में उनका विशेष स्थान था। उन्हें अवधी और ब्रज भाषा पर समान अधिकार प्राप्त था। उनकी नीतिपरक उक्तियों में संस्कृत कवियों की छाप स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। क्या आप जानते हैं कि वे कवि होने के साथ-साथ एक योग्य योद्धा भी थे। अहमदाबाद विजय के उपलक्ष्य में अकबर ने उन्हें ‘खानखाना’ की उपाधि से सम्मानित किया था। इस लेख में UGC-NET अभ्यर्थियों के लिए रहीम का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| मूल नाम | अब्दुर रहीम ख़ानख़ाना |
| उपनाम | ‘रहीम’ |
| जन्म | सन 1556 |
| जन्म स्थान | लाहौर, पाकिस्तान |
| पिता का नाम | बैरम खान |
| पेशा | दरबारी कवि, योद्धा |
| विधाएँ | काव्य |
| भाषा | अवधी, ब्रज |
| दरबारी कवि | अकबर, जहांगीर |
| मृत्यु | सन 1626 |
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लाहौर में हुआ था जन्म
माना जाता है कि भक्तिकाल के प्रमुख कवि रहीम का जन्म सन 1556 के आसपास लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था। उनके पिता ‘बैरम खान’ बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। किंतु अल्प आयु में पिता की मृत्यु के बाद अकबर ने अभिभावकीय कर्तव्य निभाते हुए रहीम के संरक्षण का दायित्व निभाया।
शिक्षा और युद्धकला
रहीम ने विद्या अध्ययन के दौरान अरबी, फ़ारसी, तुर्की, संस्कृत और ब्रजभाषा सीखी और किशोरावस्था में विविध भाषाओं में काव्य रचनाएँ की। इसके साथ ही वे युद्धकला में भी निपुण थे। इतिहासकारों के अनुसार बताया जाता है कि बादशाह अकबर ने उन्हें सन 1583 ई. के आसपास गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया था। वहीं अहमदाबाद की विजय के उपरांत उन्हें अकबर ने ‘खानखाना’ की उपाधि से नवाज़ा था।
बताया जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक युद्ध लड़े व शासक के कोपभाजन का शिकार भी बने। इसके साथ ही ‘जहांगीर’ द्वारा दिए गए कारावास का दंड भी भोगा। परंतु बाद में जहाँगीर ने न केवल उन्हें कैद से रिहा किया बल्कि खानखाना की उपाधि भी वापस लौटा दी।
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रहीम की साहित्यिक रचनाएँ
रहीम के काव्य का मुख्य विषय शृंगार, वीरता, भक्ति और नीति है। उनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते थे। वहीं भाषा की दृष्टि से उन्होंने संस्कृत और बृजभाषा में काव्य-रचना की हैं। नीचे उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
काव्य रचनाएँ
- रहीम सतसई
- रास पंचाध्यायी
- रहीम रत्नावली
- भाषिक भेदवर्णन
- दोहावली
- नगर शोभा
- बरवै नायिका भेद
- शृंगार सोरठा
- मदनाष्टक
- खेट कौतुक जातकम
बता दें कि ये सभी कृतियाँ रहीम ग्रंथावली में समाहित हैं।
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सन 1626 में हुई मृत्यु
रहीम ने दशकों तक अनुपम काव्य कृतियों का सृजन किया हैं। साथ ही उन्होंने अपने जीवनकाल में अनेक युद्ध लड़े हैं। माना जाता है कि उनकी मृत्यु सन 1626 में हुई थी। किंतु आज भी उनका मकबरा निजामुद्दीन में बादशाह हुमायूँ के मकबरे के बगल में है।
रहीम के लोकप्रिय दोहे
भक्तिकाल के प्रसिद्ध कवि रहीम के कुछ दोहे नीचे दिए गए हैं:-
रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥
दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं क पिक, रितु बसंत के माहि।।
बड़े बड़ाई ना करैं, बड़ो न बोलैं बोल।
रहिमन हीरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल॥
वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेहंदी को रंग।।
रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।
रहिमन वे नर मर चुके, जे कहुँ माँगन जाहिं।
उनते पहिले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं॥
टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोहिए, टूटे मुक्ताहार॥
कहु रहीम कैसे निभै, बेर केर को संग।
वे डोलत रस आपने, उनके फाटत अंग॥
सदा नगारा कूच का, बाजत आठों जाम।
रहिमन या जग आइ कै, को करि रहा मुकाम॥
रहिमन मोहि न सुहाय, अमी पिआवै मान बिनु।
बरु, विष देय बुलाय, मान सहित मरिबो भलो॥
FAQs
रहीम का जन्म सन 1556 के आसपास लाहौर, पाकिस्तान में हुआ था।
रहीम का पूरा नाम ‘अब्दुर रहीम ख़ानख़ाना’ था।
रहीम हिंदी साहित्य में भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे।
रहीम के पिता का नाम ‘बैरम खान’ था जो बादशाह अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक थे।
माना जाता है कि रहीम की मृत्यु सन 1626 के आसपास हुई थी।
आशा है कि आपको भक्तिकाल के प्रमुख कवि रहीम का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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