बालमुकुंद गुप्त आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध निबंधकार, संपादक, समाज सुधारक और कुशल अनुवादक थे। वे खड़ी बोली और आधुनिक हिंदी साहित्य को स्थापित करने वाले लेखकों में से एक थे। हिंदी साहित्य में उन्हें भारतेंदु युग और द्विवेदी युग के बीच की कड़ी माना जाता है। राष्ट्रीय नवजागरण काल के दौरान उन्होंने ‘अखबार-ए-चुनार’, ‘हिंदुस्तान’, ‘हिंदी बंगवासी’ और ‘भारत मित्र’ जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं का संपादन किया था। इस दौर में वे साहित्य सृजन में भी सक्रिय रहे। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- ‘शिवशंभु के चिट्ठे’, ‘चिट्ठे और खत’ एवं ‘खेल तमाशा’। क्या आप जानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों से ‘हरियाणा साहित्य अकादमी’ ने बाबू बालमुकुंद गुप्त के नाम पर साहित्य एवं पत्रकारिता क्षेत्र में पुरस्कार प्रारंभ किए हैं।
बाबू बालमुकुंद गुप्त की रचनाएँ भारत के विभिन्न विद्यालयों के अलावा बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, अनेक शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। इसके साथ ही UGC-NET और UPSC परीक्षा में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के लिए भी बालमुकुंद गुप्त का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
| नाम | बालमुकुंद गुप्त (Balmukund Gupt) |
| जन्म | 14 नवंबर, 1865 |
| जन्म स्थान | ग्राम गुड़ियानी, जिला रोहतक, हरियाणा |
| पिता का नाम | लाला पूरणमल |
| पत्नी का नाम | अनारो देवी |
| शिक्षा | मिडिल |
| भाषा | हिंदी |
| साहित्य काल | आधुनिक काल (भारतेंदुयुगीन रचनाकार) |
| विधा | निबंध, संपादन |
| मुख्य रचनाएँ | शिवशंभु के चिट्ठे, चिट्ठे और खत व खेल तमाशा। |
| निधन | 18 सितंबर, 1907, दिल्ली |
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हरियाणा के रोहतक जिले में हुआ था जन्म
बाबू बालमुकुंद गुप्त का जन्म 14 नवंबर, 1865 को हरियाणा के रोहतक जिले के ग्राम गुड़ियानी में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘लाला पूरणमल’ था। बताया जाता है कि 10 वर्ष की आयु में, वर्ष 1875 में, उन्हें गांव के मकतब भेजा गया था, जहाँ से उन्होंने उर्दू और फारसी की शिक्षा ग्रहण की। बालमुकुंद गुप्त ने जिला स्तर पर होने वाली पांचवीं की परीक्षा उच्च अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी। बाद में उन्होंने हिंदी सीखी।
मिडिल तक प्राप्त की शिक्षा
बालमुकुंद गुप्त आगे की पढ़ाई के बारे में कुछ सोच भी पाते, उससे पहले ही उनके पिता का वर्ष 1879 में आकस्मिक निधन हो गया। इसके बाद पूरे परिवार को संभालने की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। कुछ समय बाद, वर्ष 1880 में, रेवाड़ी के व्यापारी छाजूराम की पुत्री ‘अनारो देवी’ से उनका विवाह हुआ। इसी बीच, स्वाध्याय के बल पर उन्होंने वर्ष 1886 में मिडिल परीक्षा पास की, किंतु इसके बाद कोई औपचारिक शैक्षणिक योग्यता हासिल नहीं कर पाए। बाद में उन्होंने स्वाध्याय ही संस्कृत, बंगला, अंग्रेजी और हिंदी का ज्ञान प्राप्त किया।
बालमुकुंद गुप्त का साहित्यिक परिचय
बताया जाता है कि उर्दू पत्रकारिता में ‘शाद’ उपनाम से बालमुकुंद गुप्त की उर्दू नज़्में मासिक पत्र ‘गुलदस्तों’ में प्रकाशित होती थीं। इसके अतिरिक्त उनकी रचनाएँ ‘उर्दू-ए-मुअल्ला’, ‘विक्टोरिया गजट’, ‘भारत प्रताप’ और ‘अवध पंच’ में भी पढ़ी जाती थीं। वर्ष 1886 में उन्होंने चुनार से प्रकाशित ‘अखबार-ए-चुनार’ का संपादन शुरू किया। फिर इसके दो वर्ष बाद, यानी 1888 में, वह लाहौर से प्रकाशित होने वाले अख़बार ‘कोहेनूर’ के संपादक बने। 1886 से 1889 तक उन्होंने इन उर्दू पत्रों का संपादन किया था।
वर्ष 1889 में हिंदी अखबार ‘हिंदुस्थान’ के संपादक और महान शिक्षाविद् पंडित मदन मोहन मालवीय से उनका परिचय हुआ, जिसके बाद वे ‘हिंदुस्तान’ के संपादकीय मंडल में शामिल हो गए। इस तरह हिंदी पत्रकारिता में बाबू बालमुकुंद गुप्त का आगमन हुआ। इसके बाद लगभग दो वर्षों तक उन्होंने ‘हिंदुस्थान’ का संपादन किया। फिर वे 1893 से 1898 तक ‘हिंदी बंगवासी’ के संपादक रहे।
बालमुकुंद गुप्त ने इसके उपरांत 1899 से 1907 तक प्रतिष्ठित ‘भारत मित्र’ पत्रिका का संपादन किया और उसे नई बुलंदियों तक पहुँचाया। उन्होंने इस पत्रिका में ब्रिटिश हुकूमत की दमनकारी नीतियों के खिलाफ प्रखर रूप से लिखा था। वहीं ‘भारत मित्र’ में प्रकाशित ‘शिवशंभु के चिट्ठे’ ब्रिटिश सरकार की क्रूर नीतियों का कच्चा चिट्ठा थे।
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बालमुकुंद गुप्त की प्रमुख रचनाएं
बालमुकुंद गुप्त ‘राष्ट्रीय नवजागरण काल’ के दौरान अनेक पत्रिकाओं का संपादन करने के अतिरिक्त साहित्य सृजन में भी सक्रिय रहे थे। इस दौर में उन्होंने बांगला और संस्कृत की कुछ रचनाओं के अनुवाद भी किए थे। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी जा रही है:-
निबंध-संग्रह
- शिवशंभु के चिट्ठे
- चिट्ठे और खत
- खेल तमाशा
बालमुकुंद गुप्त की कविताएँ
- वसंतोत्सव
- शारदीय पूजा
- उर्दू को उत्तर
- तक़रीर मुँह ज़ुबानी
- दुर्गा-स्तवन
- ज़रूर कर सकते हो
- भैंस का स्वर्ग
- पुरानी दिल्ली
- सर सैयद का बुढ़ापा
- राम-विनय
संपादन
- हिंदुस्थान
- अखबार-ए-चुनार
- हिंदी बंगवासी
- भारतमित्र
- गुलदस्तों (मासिक पत्र)
- कोहेनूर
बालमुकुंद गुप्त की भाषा शैली
बालमुकुंद गुप्त की भाषा खड़ी बोली हिंदी है, जिसमें उर्दू शब्दों की प्रमुखता है। उनकी भाषा में निर्भीकता के साथ साथ व्यंग्य-विनोद का पटु दिखाई देता है। वे शब्दों के अद्भुत पारखी थे। उन्होंने अपने लेखन में मुख्य रूप से व्यंग्यात्मक, मुहावरेदार और संबोधन शैली का प्रयोग किया है।
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दिल्ली में हुआ था निधन
बालमुकुंद गुप्त ने अपने जीवनकाल में अनेक पत्रिकाओं का संपादन एवं साहित्य सृजन किया था। किंतु गंभीर रूप से बीमार होने के कारण उनका 18 सितंबर 1907 को दिल्ली में निधन हो गया। वे आज भी अपनी रचनाओं और हिंदी पत्रकारिता में दिए गए योगदान के लिए जाने जाते हैं।
FAQs
उनका जन्म 14 नवंबर, 1865 को हरियाणा के रोहतक जिले में ग्राम गुड़ियानी में हुआ था।
उनकी माता के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, उनके पिता का नाम लाला पूरणमल था।
वे भारतेंदु और द्विवेदी युग की मध्यवर्ती कड़ी माने जाते हैं।
शिवशंभु के चिट्ठे, चिट्ठे और खत व खेल तमाशा उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
बालमुकुंद गुप्त की भाषा खड़ी बोली हिंदी थी।
बालमुकुंद गुप्त का 18 सितंबर, 1907 को दिल्ली में निधन हुआ था।
आशा है कि आपको नवजागरण काल के महान लेखक बालमुकुंद गुप्त का जीवन परिचय और साहित्यिक योगदान पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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