महान लोककथाकार विजयदान देथा का जीवन परिचय और राजस्थानी साहित्य में योगदान

1 minute read
विजयदान देथा का जीवन परिचय

विजयदान देथा आधुनिक भारतीय कथा-साहित्य के एक सर्वथा मौलिक और अनूठे हस्ताक्षर हैं। भारतीय भाषाओं के रचनाकारों के बीच उन्हें प्रेमपूर्वक ‘बिज्जी’ कहा जाता है। उन्होंने विभिन्न साहित्यिक विधाओं में उत्कृष्ट रचनाएँ कीं और अपने साहित्यिक जीवन में लगभग 800 लघुकथाएं लिखी हैं। वहीं ‘बातां री फुलवाड़ी’ (भाग-10) के लिए उन्हें राजस्थानी भाषा का प्रथम ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। इसके साथ ही वर्ष 2007 में उन्हें साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने के लिए प्रतिष्ठित ‘पद्म श्री’ पुरस्कार से नवाजा गया। इस लेख में विजयदान देथा का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाओं की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है।

नाम विजयदान देथा (Vijaydan Detha)
उपनाम ‘बिज्जी’ (Bijji)
जन्म 01 सितंबर, 1926 
जन्म स्थान बोरुंदा ग्राम, जोधपुर जिला, राजस्थान 
शिक्षा बी.ए.
पितामह का नाम जुगतीदान देथा 
पिता का नाम सबलदान देथा 
पत्नी का नाम शायर कुंवर 
कार्य क्षेत्र लेखन और संपादन 
विधाएँ कहानी, लोक साहित्य, बाल कथाएँ व उपन्यास  
भाषा राजस्थानी, हिंदी 
पुरस्कार एवं सम्मान पद्म श्री (2007) साहित्य अकादमी पुरस्कार,भारतीय भाषा परिषद अवॉर्ड (1992) के.के बिड़ला फाउंडेशन, नाहर पुरस्कार व दीपचंद जैन साहित्य पुरस्कार आदि। 
निधन 10 नवंबर, 2013 राजस्थान 
जीवनकाल 87 वर्ष 

राजस्थान के जोधपुर जिले में हुआ था जन्म

प्रतिष्ठित साहित्यकार विजयदान देथा का जन्म 1 सितंबर, 1926 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बोरुंदा नामक गाँव में हुआ था। उनके पितामह ‘जुगतीदान देथा’ राजस्थानी की डिंगल काव्य-धारा के विख्यात कवि थे। वहीं उनके पिता ‘सबलदान देथा’ भी पुश्तैनी चारणी काव्य-परंपरा के रचना-कौशल में निपुण थे। 

स्कूली शिक्षा के दौरान हुआ साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण 

विजयदान देथा की प्रारंभिक शिक्षा पाली जिले के जैतारण कस्बे की एक प्राथमिक शाला से शुरू हुई। इसके बाद उच्च प्राथमिक शिक्षा के लिए उन्हें बाड़मेर जाना पड़ा। बताया जाता है कि छठी कक्षा में उन्होंने एक कविता की रचना कर अपने लेखकीय जीवन की शुरुआत की थी। तत्पश्चात, जोधपुर के जसवंत कॉलेज में उच्च शिक्षा के दौरान, वर्ष 1947 में उनका पहला काव्य-संग्रह ‘उषा’ प्रकाशित हुआ।

साहित्य सृजन एवं संपादन 

विजयदान देथा ने अपनी लेखन यात्रा हिंदी से शुरू की थी। प्रारंभ में उन्होंने जोधपुर से प्रकाशित होने वाले ज्वाला साप्ताहिक में ‘घनश्याम पर्दा गिराओ’, ‘दोज़ख़ की सैर’ और ‘हम सभी मानव हैं’ जैसे कॉलम लंबे समय तक नियमित रूप से लिखे। इसके बाद उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का संपादन और सहलेखन किया। वर्ष 1959 में उन्होंने हिंदी के स्थान पर राजस्थानी में लेखन का निर्णय लिया। इसके पश्चात उन्होंने ‘बातां री फुलवाड़ी’ के 14 खंडों का सृजन किया। कथा-साहित्य के अलावा विजयदान देथा ने संपादन, संग्रहण और पाठ-शोधन में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके द्वारा संपादित राजस्थानी त्रैमासिक ‘परंपरा’ के तीन विशिष्ट अंक ‘लोकगीत’, ‘गोरा हट जा’ तथा ‘जेठवे रा सोरठा’ राजस्थानी साहित्य की उल्लेखनीय कृतियाँ मानी जाती हैं।

‘रूपायन संस्थान’ की स्थापना की 

विजयदान देथा ने वर्ष 1960 में प्रख्यात लोककलाविद ‘कोमल कोठारी’ के साथ मिलकर ‘रूपायन संस्थान’ (Rupayan Sansthan) नामक लोक-संस्कृति केंद्र की स्थापना की। यह संस्थान राजस्थानी भाषा की समृद्धि को उजागर करने के उद्देश्य से लोकगीतों, लोकवाद्यों और लोककथाओं के संग्रह और संरक्षण हेतु स्थापित किया गया था।

कहानियों पर बन चुकी हैं फिल्म

विजयदान देथा की लोकप्रिय कहानी ‘दुविधा’ पर वर्ष 1973 में बॉलीवुड के दिग्गज फिल्म निर्देशक मणि कौल ने एक कथा-फिल्म बनाई थी। इसके अलावा श्याम बेनेगल और प्रकाश झा ने भी उनकी कहानियों पर आधारित फिल्में निर्देशित की हैं। उनकी दर्जनों कहानियों का देश-विदेश के विभिन्न शहरों में नाट्य मंचन हुआ है। सुप्रसिद्ध नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर द्वारा निर्देशित उनकी कहानी पर आधारित नाटक ‘चरणदास चोर’ (Charandas Chor) को देश-विदेश में अत्यधिक सराहना मिली है। वहीं उनकी कहानियाँ अनुवाद के माध्यम से विभिन्न भारतीय भाषाओं में पहुँचीं और उन्हें एक विलक्षण कथाकार के रूप में पहचाना जाने लगा।

विजयदान देथा की रचनाएँ

विजयदान देथा ने साहित्य की अनेक विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन किया है। अब तक उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें कहानी-संग्रह, उपन्यास और बाल कथाएँ शामिल हैं। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-

विजयदान देथा की किताबें 

  • बातां री फुलवारी – 14 भाग 
  • अनोखा पेड़ – बाल कथाएं 
  • दुविधा व अन्य कहानियां 
  • उलझन
  • लाजवंती  
  • चौदराइन की चतुराई 
  • कब्बूरानी – बाल कथाएं 
  • उजाले के मुसाहिब 
  • अंतराल – 1998 
  • महामिलन – उपन्यास 
  • प्रिय मृणाल 
  • मेरौ दरद न जाने कोय 
  • प्रतिशोध – उपन्यास 

पुरस्कार एवं सम्मान

विजयदान देथा को भारतीय साहित्य और कला के क्षेत्र में उनके अतुलनीय योगदान के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान प्रदान किए गए हैं। इनकी सूची इस प्रकार है:-

  • पद्म श्री – 2007 
  • राजस्थानी साहित्य अकादमी पुरस्कार 
  • भारतीय भाषा परिषद अवॉर्ड – 1992 
  • के.के बिड़ला फाउंडेशन, 
  • नाहर पुरस्कार 
  • दीपचंद जैन साहित्य पुरस्कार 
  • द ग्रेट सन ऑफ राजस्थान 
  • दूरदर्शन व आकाशवाणी ने विजयदान देथा को इमेरिटस फेलोशिप देकर सम्मानित किया है। 
  • भारतीय ज्ञानपीठ ने राजस्थान के प्रेमख्यानों पर कथात्मक लेखन करने के लिए श्री देथा को एक वर्षीय फेलोशिप प्रदान की थी। 
  • राजस्थानी साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता। 

87 वर्ष की आयु में हुआ था निधन 

विजयदान देथा का 10 नवंबर, 2013 को 87 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हो गया था, किंतु आज भी वे अपनी लोकप्रिय रचनाओं के लिए स्मरण किए जाते हैं।

FAQs 

विजयदान देथा का जन्म कहाँ हुआ था?

विजयदान देथा का जन्म 01 सितंबर, 1926 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बोरुंदा नामक गांव में हुआ था।

उजाले के मुसाहिब किसकी रचना है?

उजाले के मुसाहिब, विजयदान देथा की लोकप्रिय रचना है। 

विजयदान देथा की पुस्तक दुविधा पर कौन सी फिल्म का निर्माण हो चुका है?

विजयदान देथा की पुस्तक ‘दुविधा’ पर ‘पहेली’ फिल्म बनाई गई है।

विजयदान देथा ने किस संस्थान की स्थापना की थी?

विजयदान देथा ने वर्ष 1960 में प्रख्यात लोककलाविद ‘कोमल कोठारी’ के साथ ‘रूपायन संस्थान’ नाम से लोक संस्कृति केंद्र की स्थापना की थी। 

विजयदान देथा की मृत्यु कब हुई थी?

विजयदान देथा का 10 नवंबर, 2013 को 87 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने के कारण निधन हुआ था। 

आशा है कि आपको लोककथा के सिरमौर विजयदान देथा का जीवन परिचय प्रस्तुत करता हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*