भक्ति और प्रेम के महाकवि विद्यापति का जीवन परिचय

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Vidyapati Ka Jivan Parichay

महाकवि विद्यापति को आदिकाल (वीरगाथाकाल) और भक्तिकाल के संधिकाल का कवि माना जाता है। वे साहित्य, कर्मकांड, धर्मशास्त्र, दर्शन, न्याय, सौंदर्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, इतिहास और भूगोल के प्रकांड पंडित थे। उन्होंने संस्कृत, अवहट्ट तथा मैथिली भाषा में रचनाएँ कीं। मैथिली भाषा में रचित उनकी ‘पदावली’ उनकी कीर्ति का प्रमुख आधार बनी। ‘कीर्तिलता’ और ‘कीर्तिपताका’ भी उनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। वे भारतीय साहित्य की शृंगार एवं भक्ति परंपरा के प्रमुख स्तंभ थे। इस लेख में विद्यापति का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं की जानकारी दी गई है।

मूल नाम विद्यापति ठाकुर 
उपनाम विद्यापति 
जन्म सन 1350-1380 के बीच
जन्म स्थान बिस्पी गांव, मधुबनी जिला, बिहार 
पिता का नाम गणपति ठाकुर 
माता का नाम गंगा देवी 
गुरु का नाम पंडित हरि मिश्र 
साहित्य काल आदिकाल 
विधाएँ काव्य 
प्रमुख रचनाएँ पदावली, कीर्तिलता, कीर्तिपताका
भाषा मैथली, संस्कृत, अवहट्ट
देहावासन सन 1439-1460  

बिहार के मधुबनी जिले में हुआ था जन्म

महाकवि विद्यापति के जन्मकाल से संबंधित प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। उनके रचनाकाल और आश्रयदाताओं के राज्यकाल के आधार पर उनके जन्म और देहावासन का अनुमान किया गया है। साहित्यिक विद्वानों और इतिहासकारों के अनुसार उनका जन्म सन 1350-1380 के बीच बिहार के मधुबनी जिले के बिस्पी नामक गांव में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो विद्या और ज्ञान के लिए प्रसिद्ध था। उनके पिता का नाम ‘गणपति ठाकुर’ और माता का नाम ‘गंगा देवी’ था। 

विद्यापति की शिक्षा 

विद्यापति बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि और रचनाधर्मी स्वभाव के थे। माना जाता है कि उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ‘पंडित हरि मिश्र’ से प्राप्त की थी। वहीं, दस-बारह वर्ष की बालयवस्था से ही वे अपने पिता के साथ ‘महाराज गणेश्वर’ के दरबार में जाने लगे थे। 

विद्यापति का साहित्यिक परिचय

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार हिंदी साहित्येतिहास में 993 ई. से 1318 ई. तक के समय को ‘आदिकाल’ (वीरगाथाकाल) माना गया है। वहीं काव्य प्रवृति को ध्यान में रखते हुए आचार्य शुक्ल ने जिन बारह ग्रंथों की प्रवृतियों का विश्लेषण करते हुए वीरगाथा काल कहा है उनमें से दो ग्रंथ ‘कीर्तिलता’ और ‘कीर्तिपताका’ महाकवि विद्यापति की प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। ये दोनों कृतियां वीरगाथा मानी गई हैं। 

जहां ‘कीर्तिलता’ में चौदहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के मिथिला के क्षेत्रीय जनजीवन की अराजक स्थिति का दारुण विवरण है। तो दूसरी ओर ‘कीर्तिपताका’ की अंतिम पुष्पिका में मिथिला नरेश राजा शिवसिंह का यशोगान हुआ है। राजा शिवसिंह, विद्यापति के प्रिय मित्र, राजकवि और सलाहकार थे। 

विद्यापति की रचनाएँ

विद्यापति की रचनाओं में भक्ति, शृंगार, सांस्कृतिक अनुष्ठान, लोक व्यवहार, मानवीय प्रेम व नीति शास्त्र आदि का सजीव चित्रण देखने को मिलता है। वहीं भाषा की दृष्टि से उन्होंने संस्कृत, अवहट्ठ और मैथिली में काव्य-रचना की। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-

  • पदावली 
  • कीर्तिलता 
  • कीर्तिपताका
  • पुरुष परीक्षा 
  • भू-परिक्रमा 
  • लिखनावली 
  • गोरक्ष विजय 
  • मणिमंजरी नाटिका 
  • विभागसार 
  • गंगावाक्यावली
  • दानवाक्यावली   
  • गयापत्तालका

विद्यापति का देहावसान

विद्यापति ने अपने संपूर्ण जीवन में अनुपम काव्य कृतियों का सृजन किया है। वे हिंदी साहित्य के मध्यकाल के पहले ऐसे कवि थे जिनकी पदावली में जनभाषा में जनसंस्कृति की अभिव्यक्ति हुई है। साहित्यिक विद्वानों और इतिहासकारों के अनुसार उनका देहावसान सन 1439 या 1460 के आसपास हुआ था। किंतु आज भी वे अपनी  साहित्यिक रचनाओं के लिए जाने जाते हैं।

FAQs

विद्यापति का जन्म कब हुआ था?

लोकमान्यता है कि वे सन 1350–1380 ईस्वी के बीच बिहार के मधुबनी जिले के बिस्पी गांव में पैदा हुए थे।

विद्यापति के गुरु कौन थे?

उनके गुरु का नाम ‘पंडित हरि मिश्र’ था। 

विद्यापति की प्रमुख रचना कौन सी है?

विद्यापति की प्रमुख रचनाएँ पदावली, कीर्तिलता और कीर्तिपताका हैं। 

विद्यापति कौन से काल के कवि हैं?

विद्यापति को आदिकाल (वीरगाथाकाल) का कवि माना जाता है। 

विद्यापति की मृत्यु कब हुई थी?

माना जाता है कि उनका निधन सन 1439 या 1460 के आसपास हुआ था।

आशा है कि आपको भक्ति और शृंगार के अद्वितीय कवि विद्यापति का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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