Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay: स्वामी विवेकानंद भारत के महान आध्यात्मिक गुरु और समाज सुधारक थे। इसके साथ ही वे देश के सबसे बड़े यूथ आइकन माने जाते हैं। उन्होंने 19वीं शताब्दी के अंत में विश्व मंच पर हिंदू धर्म को एक मजबूत पहचान दिलाई थी और विश्वभर में वेदांत दर्शन का प्रसार किया था। वहीं अपने गुरु ‘रामकृष्ण परमहंस’ के नाम पर उन्होंने वर्ष 1897 में ‘रामकृष्ण मिशन’ तथा ‘रामकृष्ण मठ’ की स्थापना की थी। हर वर्ष उनकी जयंती को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ (National Youth Day) के रूप में मनाया जाता है। आइए अब हम स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay) और उनके अनमोल विचारों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बता दें कि स्वामी विवेकानंद के दर्शन को बीए और एमए के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके दर्शन पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में दर्शनशास्त्र विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और उनके दर्शन का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम यूथ आइकन स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay) और उनके दर्शन के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मूल नाम | नरेंद्र नाथ दत्त |
उपनाम | स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) |
जन्म | 12 जनवरी, 1863 |
जन्म स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
पिता का नाम | विश्वनाथ दत्त (Vishwanath Dutta) |
माता का नाम | भुवनेश्वरी देवी (Bhuvaneshwari Devi) |
शिक्षा | कलकत्ता मेट्रोपोलिटन स्कूल, प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता |
गुरु | “रामकृष्ण परमहंस” |
धर्म | हिंदू (Hinduism) |
संस्थापक | ‘रामकृष्ण मिशन’, ‘रामकृष्ण मठ’ और ‘वेदांत सोसाइटी’ |
पुस्तकें | Raja Yoga, Karma Yoga, Meditation and Its Methods, The Powers of The Mind, Jnana Yoga |
देहावसान | 4 जुलाई, 1902 बेलूर मठ, बेलूर, पश्चिम बंगाल |
स्मारक | बेलूर मठ, पश्चिम बंगाल |
This Blog Includes:
- कलकत्ता में हुआ था जन्म – Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay
- रामकृष्ण परमहंस के हुए दर्शन
- पिता का हुआ स्वर्गवास
- जब खेतड़ी के राजा ने दिया ‘विवेकानंद’ नाम
- विश्व धर्म सम्मलेन में दिया यादगार भाषण
- रामकृष्ण मिशन की स्थापना
- स्वामी विवेकांनद की रचनाएँ – Swami Vivekananda Ki Rachnaye
- 39 वर्ष की आयु में प्राप्त हुआ निर्वाण
- स्वामी विवेकांनद के अनमोल विचार – Swami Vivekananda Quotes
- FAQs
कलकत्ता में हुआ था जन्म – Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। इनका वास्तविक नाम ‘नरेन्द्रनाथ दत्त’ था। इनके पिता का नाम ‘विश्वनाथ दत्त’ था जो कि पेशे से उच्च न्यायलय में एक प्रसिद्ध वकील थे। जबकि माता ‘भुवनेश्वरी देवी’ घार्मिक विचारों वाली महिला थीं। बताया जाता है कि स्वामी की शिक्षा का आरंभ अपने घर से ही हुआ था. फिर सात वर्ष की आयु में उन्हें ‘ईश्वरचंद्र विद्यासागर’ के मेट्रोपोलिटन स्कूल में भर्ती किया गया। यहां पर उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और 16 वर्ष की आयु में हाईस्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की।
इसके बाद उन्होंने वर्ष 1879 में ‘प्रेसीडेंसी कॉलेज’, कलकत्ता में दाखिला लिया. फिर एक वर्ष बाद इन्होंने ‘जनरल असेंबली इंस्टीट्यूट’ (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में पढ़ने लगे। इस समय कॉलेज के सिलेबस के अध्ययन के साथ-साथ उन्होंने साहित्य, दर्शन और धर्म का गंभीर अध्ययन किया।
रामकृष्ण परमहंस के हुए दर्शन
वर्ष 1881 में स्वामी विवेकानंद को कलकत्ता में ही स्थित दक्षिणेश्वर मंदिर में जाने और अपने भावी गुरु श्री ‘रामकृष्ण परमहंस’ के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। रामकृष्ण परमहंस मां काली के भक्त थे। एक बार जब उन्होंने परमहंस से पूछा कि क्या आपने भगवान को देखा है? तब इस सवाल के जवाब में रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि हां मैंने भगवान को देखा है, ठीक उसी तरह देखा है जैसे मैं तुम्हें देख रहा हूं। यह जवाब सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए और अकसर रामकृष्ण परमहंस के पास अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए जाने लगे। इसके बाद वे अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस का सत्संग करने लगे। इस सत्संग का यह प्रभाव हुआ कि वे गृहस्थ जीवन में नहीं बंधे और मात्र 25 वर्ष की आयु में संन्यासी बन गए।
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पिता का हुआ स्वर्गवास
वर्ष 1884 में जब उन्होंने बी.ए की परीक्षा पास की उसी दौरान उनके पिता का स्वर्गवास हो गया। इसके बाद संपूर्ण परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। इस बीच उन्होंने नौकरी तलाशने का बहुत प्रयास किया किंतु सफल न हुए। ऐसे में वे रामकृष्ण परमहंस के पास जाने लगे और अपना अधिंकाश समय यहीं व्यतीत करने लगे। इस तरह रामकृष्ण परमहंस बालक नरेन्द्र नाथ के आध्यात्मिक गुरु बन गए।
रामकृष्ण परमहंस गले के कैंसर से पीड़ित थे। इस बीच स्वामी विवेकांनद ने उनकी बहुत सेवा की किंतु इस घातक बीमारी से बच न सके और वर्ष 1886 में श्री परमहंस का भी महाप्रस्थान हो गया। वहीं महाप्रस्थान से तीन दिन पूर्व रामकृष्ण ने अपने शिष्य विवेकानंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था।
जब खेतड़ी के राजा ने दिया ‘विवेकानंद’ नाम
गुरु के महाप्रस्थान के बाद स्वामी विवेकानंद उनकी शिक्षाओं के प्रचार एवं प्रसार का कार्य करने लगे। शुरुआत में कलकत्ता में परिव्राजक के रूप में भ्रमण करने के बाद उन्होंने काशी, मथुरा, अयोध्या और हाथरस होते हुए हिमालय की यात्रा की। इसके बाद वर्ष 1892 में उन्होंने दक्षिण भारत की यात्रा का प्रारंभ किया। बताया जाता है कि दक्षिण भारत की यात्रा के अंतिम चरण में वे कन्याकुमारी पहुंचे और देवी की दर्शन करने के बाद तपस्या में समाधिस्थ हो गए।
इसके बाद वे मद्रास पहुंचे और यहाँ कई स्थानों पर वेदांत दर्शन पर विद्वतापूर्ण व्याख्यान दिए। वर्ष 1893 में स्वामी विवेकांनद शिकागो, अमरीका में होने वाले विश्व धर्म सम्मलेन में भाग लिया। क्या आप जानते हैं कि अमरीका जाने से पहले राजस्थान के खेतड़ी के राजा अजीत सिंह ने उन्हें ‘विवेकानंद’ नाम दिया था। जब स्वामी विवेकानंद शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए जा रहे थे तो जो वेशभूषा उन्होंने धारण की वह भी राजा अजीत सिंह ने ही उन्हें उपहार स्वरूप दी थी।
विश्व धर्म सम्मलेन में दिया यादगार भाषण
स्वामी विवेकानंद ने शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में अपने भाषण की शुरुआत मेरे प्रिय अमेरिकी भाइयों और बहनों के साथ की थी। इसके बाद उन्होंने संसार को भारतीय धर्म और दर्शन से परिचित कराया। फिर वे कुछ वर्ष अमरीका में रहे और वेदांत का प्रचार किया। इस बीच उनकी अनेक पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ, फिर उन्होंने पूरे यूरोप का व्यापक भ्रमण किया तथा पाश्चात्य विद्वान ‘मैक्स मूलर’ और ‘निकोला टेस्ला’ से संवाद किए।
रामकृष्ण मिशन की स्थापना
यूरोप से भारत लौटकर स्वामी विवेकानंद ने वर्ष 1897 में ‘रामकृष्ण मिशन’ तथा ‘रामकृष्ण मठ’ की स्थापना की। इसी समय उन्होंने कलकत्ता स्थित बेलूर मठ का निर्माण कराया जो 1899 के आरंभ में रामकृष्ण परमहंस के अनुयायियों का स्थायी केंद्र बन गया। बाद में उन्होंने अद्वैत आश्रम नाम से दो अन्य मठों की भी स्थापना की। बताया जाता है कि वर्ष 1899 में उन्होंने फिर से पश्चिम देश की यात्रा की और एक वर्ष अमरीका में रहने के बाद फ्रांस पहुंचे। यहाँ उन्होंने ‘पेरिस विश्व धर्म इतिहास सम्मलेन’ में भाग लिया. फिर वे फ्रांस से इटली और ग्रीस होते हुए भारत लौटे।
स्वामी विवेकांनद की रचनाएँ – Swami Vivekananda Ki Rachnaye
स्वामी विवेकांनद ने वर्ष 1887 से 1901 के बीच अनेक विषयों पर बहुत से ग्रंथों की रचना की थी। यहाँ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay) के साथ ही उनकी रचनाओं के बारे में बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- Complete Works of Swami Vivekananda
- Raja Yoga
- Karma Yoga
- Meditation and Its Methods
- The Powers of The Mind
- Jnana Yoga
- Teachings of Swami Vivekananda
- Practical Vedanta
- India’s Message to the World
- Karma-Yoga & Bhakti-Yoga
- Bartaman Bharat
- Inspired Talks
- The Book of Yoga
- The Song of the Sannyasin
- The East and the West
- Be one with God: A guiding light to mankind
- My Idea of Education
- Bhagavad Gita As Viewed by Swami Vivekananda
- Ekagrata Ka Rahasya
- Work and Its Secret
- Sisters and Brothers of America
- The Chicago addresses
- The Yoga Sutras of Patanjali
- The Sages of India
- Lectures
- Kali the Mother
- My Master
- Lectures from Colombo to Almora
39 वर्ष की आयु में प्राप्त हुआ निर्वाण
बताया जाता है कि छोटी सी आयु में ही स्वामी विवेकानंद कई गंभीर बीमारियों से पीड़ित थे जिसके कारण इस युग पुरुष ने 39 वर्ष की अल्प आयु में 04 जुलाई, 1902 को निर्वाण प्राप्त किया। लेकिन आज भी वे अपने दर्शन और शिक्षाओं के लिए दुनियाभर में विख्यात हैं।
स्वामी विवेकांनद के अनमोल विचार – Swami Vivekananda Quotes
यहाँ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay) के साथ ही उनके कुछ अनमोल विचारों के बारे में बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी।
- जैसा तुम सोचते हो, वैसे ही बन जाओगे। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
- उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य की प्राप्ति ना हो जाए।
- जो कुछ भी तुम्हें कमजोर बनाता है- शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक, उसे जहर की तरह त्याग दो।
- संगति आप को ऊंचा उठा भी सकती है और यह आप की ऊंचाई से गिरा भी सकती है। इसलिए संगति अच्छे लोगों से करें।
- जब तक जीना, तब तक सीखना। अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है।
- तुम्हें कोई पढ़ा नहीं सकता, कोई आध्यात्मिक नहीं बना सकता। तुमको सब कुछ खुद अंदर से सीखना है। आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नहीं है।
- यह कभी मत कहो कि ‘मैं नहीं कर सकता’, क्योंकि आप अनंत हैं।
- सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा उस उम्मीद को खो देना जिसके भरोसे हम सब कुछ वापस पा सकते हैं।
- एक समय में एक काम करो, ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकि सबकुछ भूल जाओ।
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पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
उनका जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में एक बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था।
उनके गुरु का नाम ‘रामकृष्ण परमहंस’ था।
उनकी माता का नाम ‘भुवनेश्वरी देवी’ और पिता का नाम ‘विश्वनाथ दत्त’ था।
गंभीर बीमारियों के कारण उनका 04 जुलाई 1902 को निधन हो गया था।
स्वामी विवेकानंद जी ने अपने गुरु के नाम पर ‘रामकृष्ण मिशन’ तथा ‘रामकृष्ण मठ’ की स्थापना की थी।
आशा है कि आपको स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय (Swami Vivekanand Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।