Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay : महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती एक महान संत, भारतीय दार्शनिक और समाज सुधारक थे। उन्होंने ही ‘आर्य समाज’ (Arya Samaj) की स्थापना की थी, जिसने भारतीयों की धार्मिक धारणा में प्रमुखता से बदलाव किया। 7 अप्रैल, 1875 को उन्होंने मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की और इसके 10 सिद्धांत भी बनाए जो हिंदू धर्म से बिल्कुल अलग हैं, फिर भी वेदों पर आधारित हैं। इसके साथ ही उन्होंने अपने जीवनकाल में कई धार्मिक पुस्तकें लिखीं इनमें ‘सत्यार्थ प्रकाश’, ‘वेद भाष्य भूमिका’ और ‘वेद भाष्य भूमिका’ और ‘वेद भाष्य’ प्रमुख है।
वहीं स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा संपादित ‘आर्य पत्रिका’ उनके विचारों को दर्शाती है। उन्होंने ही “वेदो की ओर लौटो” का नारा दिया था। क्या आप जानते हैं कि स्वामी दयानंद सरस्वती को पुनर्जागरण युग में भारत का ‘मार्टिन लूथर’ कहा जाता है। आइए अब इस लेख में स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay) और उनके धार्मिक विचारों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayananda Saraswati) |
मूल नाम | मूलशंकर तिवारी |
अन्य नाम | दयाराम |
जन्म | 12 फरवरी, 1824 |
जन्म स्थान | टंकारा, गुजरात |
पिता का नाम | करशन लालजी तिवारी |
माता का नाम | यशोधाबाई |
गुरु | स्वामी विरजानंद दंडीशा |
प्रमुख रचनाएँ | सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादि, भाष्य-भूमिका और संस्कार विधि आदि। |
स्थापना | आर्य समाज (Arya Samaj) |
प्रसिद्ध नारा | “वेदो की ओर लौटो” |
दर्शन | वैदिक (Vedic) |
निधन | 30 अक्टूबर, 1883 अजमेर, राजस्थान |
This Blog Includes:
- स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म – Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay
- स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षा
- आर्य समाज की स्थापना
- स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा प्रणाली में योगदान
- स्वामी दयानंद सरस्वती की धार्मिक पुस्तकें
- स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार
- स्वामी दयानंद सरस्वती के अनमोल विचार
- स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु
- पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म – Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के मोरबी ज़िले में स्थित टंकारा नगर में एक ब्राहाण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘करशन लालजी तिवारी’ और माता का नाम ‘यशोधाबाई’ था। बताया जाता है कि मूल नक्षत्र के दौरान पैदा होने के कारण उन्हें पहले ‘मूलशंकर तिवारी’ नाम दिया गया था। वहीं उन्हें ‘दयाराम’ भी कहा जाता था। वह पाँच बच्चों में सबसे बड़े थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती की शिक्षा
स्वामी दयानंद सरस्वती की प्रारंभिक शिक्षा पांच वर्ष की अल्प आयु में शुरू हुई थी। वहीं आठ वर्ष की आयु तक उन्होंने देवनागरी लिपि में महारत हासिल कर ली थी। फिर 14 वर्ष की आयु तक उन्होंने यजुर्वेद और अन्य वेदों के मंत्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिया। बताया जाता है कि 22 वर्ष की आयु में स्वामी दयानंद सरस्वती ने सच्चे ज्ञान आध्यात्मिक शुद्धता और मोक्ष की खोज के लिए सन्यांस धारण कर लिया था। फिर सत्य की खोज में वे पंद्रह वर्ष तक तपस्वी के रूप में भ्रमण करते रहे।
इस दौरान वह कई बुद्धिमान ऋषियों से मिले किंतु ‘स्वामी विरजानंद दंडीशा’ से बहुत प्रभावित हुए। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1864 में स्वामी विरजानंद के अधीन अपना वैदिक अध्ययन पूरा किया और बाद में वैदिक प्रचार और शिक्षा के लिए वर्ष 1874 तक पूरे भारत की यात्रा की।
आर्य समाज की स्थापना
स्वामी दयानंद सरस्वती ने 7 अप्रैल, 1875 को मुंबई में ‘आर्य समाज’ की प्रथम इकाई (Arya Samaj) की स्थापना की थी। किंतु बाद में आर्य समाज का मुख्यालय लाहौर में स्थापित किया गया। आर्य समाज ने भारतीयों की धार्मिक धारणा में प्रमुखता से बदलाव किया। आर्य समाज का प्राथमिक उद्देश्य ज्ञान के स्रोत के रूप में वेदों की स्थापना करना और जनमानस में फैले अंधविश्वास को दूर करना था।
स्वामी दयानंद सरस्वती का शिक्षा प्रणाली में योगदान
स्वामी दयानंद सरस्वती ने आधुनिक भारत की शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसलिए उन्हें आधुनिक भारत के दूरदर्शी लोगों में से एक माना जाता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को शिक्षित करने के लिए कई गुरुकुलों की स्थापना की थी। उनकी दूरदर्शी सोच के कारण ही वर्ष 1886 में ‘दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज’ (Dayanand Anglo Vedic College) की स्थापना की गई थी। वहीं पहला DAV स्कूल, लाहौर (अब पाकिस्तान) में स्थापित किया गया था। बता दें कि आर्य समाज का प्रभाव पश्चिमी और उत्तरी भारत में अधिक रहा है।
स्वामी दयानंद सरस्वती की धार्मिक पुस्तकें
स्वामी दयानंद सरस्वती ने वैदिक ज्ञान की जागरूकता को फिर से जनमानस में जगाने के उद्देश्य से कई धार्मिक पुस्तकें लिखीं और प्रकाशित की थीं। इसके साथ ही उनकी रचनाएँ जनमानस को “वेदों की ओर लौटो” का संदेश देती हैं। यहाँ उनके द्वारा रचित कुछ प्रमुख धार्मिक पुस्तकों के बारे में बताया गया है:-
- सत्यार्थ प्रकाश
- ऋग्वेदादि
- भाष्य-भूमिका
- संस्कार विधि
- ऋग्वेद भाष्य
- यजुर्वेद भाष्य
- चतुर्वेदविषयसूची
- आर्याभिविनय
- गोकरुणानिधि
- आर्योद्देश्यरत्नमाला
- भ्रान्तिनिवारण
- अष्टाध्यायीभाष्य
- वेदांगप्रकाश
- संस्कृतवाक्यप्रबोध
- व्यवहारभानु
स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार
यहाँ स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay) के साथ ही उनके कुछ प्रमुख धार्मिक विचारों के बारे में बताया गया है:-
- ईश्वर समस्त सत्य ज्ञान और ज्ञान से ज्ञात होने वाली सभी बातों का कारण है।
- सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।
- सभी के प्रति हमारा आचरण प्रेम, धार्मिकता और न्याय से निर्देशित होना चाहिए।
- हमें अज्ञान को दूर करना चाहिए और ज्ञान को बढ़ावा देना चाहिए।
- किसी को भी केवल अपना भला करने से संतुष्ट नहीं होना चाहिए; इसके विपरीत, सभी का भला करने में अपना भला देखना चाहिए।
स्वामी दयानंद सरस्वती के अनमोल विचार
यहाँ स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay) के अनमोल विचारों के बारे में बताया गया है:-
- इंसान को दिया गया सबसे बड़ा संगीत यंत्र आवाज है।
- सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो
- भगवान का ना कोई रूप है ना रंग है. वह अविनाशी और अपार है। जो भी इस दुनिया में दिखता है वह उसकी महानता का वर्णन करता है।
- किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है इसलिए इसका परिणाम होगा। यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं।
- आत्मा अपने स्वरुप में एक है, लेकिन उसके अस्तित्व अनेक हैं।
स्वामी दयानंद सरस्वती की मृत्यु
स्वामी दयानंद सरस्वती की 30 अक्टूबर, 1883 को 59 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई थी। किंतु अपने विचारों और समाज सुधार के कार्यों के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता है।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं –
FAQs
स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी, 1824 को गुजरात के मोरबी ज़िले में स्थित टंकारा नगर में हुआ था।
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती एक महान संत, भारतीय दार्शनिक, समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक थे।
स्वामी दयानन्द सरस्वती के बचपन का नाम ‘मूलशंकर’ था।
सत्यार्थ प्रकाश, वेद भाष्य भूमिका और वेद भाष्य भूमिका उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
उन्होंने “वेदों की ओर लौटो” का नारा दिया था।
स्वामी दयानन्द की मातृभाषा गुजराती थी।
स्वामी विरजानंद दंडीशा उनके प्रथम गुरु थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती की 30 अक्टूबर, 1883 को 59 वर्ष की आयु में मृत्यु हुई थी।
आशा है कि आपको स्वामी दयानंद सरस्वती की जीवनी (Swami Dayananda Saraswati Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।