गोपाल कृष्ण गोखले एक महान विचारक, समाज सुधारक, शिक्षाविद और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अनुकरणीय नेतृत्व प्रदान किया। महात्मा गांधी उन्हें अपना ‘राजनीतिक गुरु’ और मार्गदर्शक मानते थे। वित्तीय मामलों की गहरी समझ और प्रभावशाली वाद-विवाद की शैली के कारण उन्हें ‘भारत का ग्लेडस्टोन’ कहा गया। वर्ष 1905 में उन्होंने ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जनसेवा के माध्यम से राष्ट्र का निर्माण करना था। इसके अतिरिक्त, उन्होंने 1908 में ‘रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स’ की स्थापना में भी अहम भूमिका निभाई। इस लेख में महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक गोपाल कृष्ण गोखले के जीवन परिचय की विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है।
| नाम | गोपाल कृष्ण गोखले |
| जन्म | 9 मई, 1866 |
| जन्म स्थान | कोटलुक गाँव, महाराष्ट्र |
| पिता का नाम | श्री कृष्णराव श्रीधर गोखले |
| माता का नाम | श्रीमती वालूबाई गोखले |
| शिक्षा | स्नातक |
| पेशा | अध्यापक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी |
| स्थापना | ‘सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी’, ‘रानाडे इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स’ |
| राजनीतिक पार्टी | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) |
| दल | नरम दल |
| निधन | 19 फरवरी 1915 |
This Blog Includes:
- रत्नागिरी जिले में हुआ था ‘गोपाल कृष्ण गोखले’ का जन्म
- कक्षा में अपनी गलती की स्वीकार
- विद्यालय में मिली छात्रवृत्ति
- अध्यापन कार्य से की करियर की शुरुआत
- गोपाल कृष्ण गोखले का वैवाहिक जीवन
- वर्ष 1888 में किया राजनीति में प्रवेश
- शिक्षा के क्षेत्र में उठाया अनूठा कदम
- नरम दल के रहे समर्थक
- ‘नाइटहुड’ की उपाधि लेने से किया इंकार
- मॉर्ले-मिंटो सुधार में निभाई अहम भूमिका
- महात्मा गांधी मानते थे राजनीतिक गुरु
- राजनीतिक वसीयतनामा
- FAQs
रत्नागिरी जिले में हुआ था ‘गोपाल कृष्ण गोखले’ का जन्म
गोपाल कृष्ण गोखले जी का जन्म 9 मई 1866 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के कोटलक गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था, जो उस समय बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। उनके पिता श्री कृष्णराव श्रीधर गोखले कोल्हापुर रियासत में एक लिपिक (क्लर्क) के रूप में कार्यरत थे, जबकि उनकी माता श्रीमती वालूबाई गोखले एक गृहिणी थीं।
जब गोखले केवल 13 वर्ष के थे, तभी उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया, जिसके बाद पारिवारिक जिम्मेदारी उनके बड़े भाई और स्वयं उनके कंधों पर आ गई। बचपन से ही गोपाल कृष्ण गोखले सहिष्णु, ईमानदार और कर्मठ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे।
कक्षा में अपनी गलती की स्वीकार
गोपाल कृष्ण गोखले जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने पैतृक नगर में ही प्राप्त की थी। एक प्रेरक प्रसंग के अनुसार, एक बार विद्यालय में जब गणित के अध्यापक ने कक्षा में कठिन प्रश्न पूछा, तो अधिकांश विद्यार्थी उसका उत्तर नहीं दे पाए। परंतु गोपाल कृष्ण गोखले एकमात्र ऐसे विद्यार्थी थे जिन्होंने उस प्रश्न का सटीक उत्तर दिया। इससे प्रभावित होकर अध्यापक ने उनकी प्रशंसा की और उन्हें पुरस्कृत भी किया।
किंतु पुरस्कार प्राप्त करने के बाद गोखले जी के मन में गहरी बेचैनी उत्पन्न हो गई और वह रातभर ठीक से सो नहीं सके। अगली सुबह जब वे विद्यालय पहुँचे, तो उन्होंने गणित के अध्यापक को वह पुरस्कार लौटा दिया। जब अध्यापक ने इसका कारण पूछा, तो गोखले जी ने स्वीकार किया कि उन्होंने उत्तर पुस्तक से देखकर हल किया था। यह सुनकर अध्यापक ने उनके सत्यवादिता और साहस की सराहना की और वही पुरस्कार उन्हें पुनः भेंट किया।
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विद्यालय में मिली छात्रवृत्ति
मेधावी छात्र होने के कारण गोपाल कृष्ण गोखले जी गणित के अध्यापक हॉथानवेट तथा अंग्रेज़ी के अध्यापक वर्डसवर्थ के अत्यंत प्रिय हो गए। उनके सतत प्रयासों और प्रतिभा के फलस्वरूप उन्हें ₹20 मासिक छात्रवृत्ति प्राप्त होने लगी। वर्ष 1881 में उन्होंने मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और एलफिंस्टन कॉलेज में प्रवेश लिया। प्रारंभ में उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने का निर्णय लिया, किंतु उस विषय में रुचि न होने के कारण बाद में उन्होंने कानून का अध्ययन करने का निश्चय किया।
इसके पश्चात गोपाल कृष्ण गोखले ने पूना के प्रतिष्ठित फर्ग्युसन कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वे ‘महाराष्ट्र के सुकरात’ कहे जाने वाले विख्यात न्यायविद, लेखक और समाज-सुधारक ‘महादेव गोविंद रानाडे’ द्वारा स्थापित ‘डेक्कन एजुकेशन सोसायटी’ से जुड़ गए। वे इस संस्था के सक्रिय सदस्य बने और रानाडे जी की प्रेरणा से ‘सार्वजनिक सभा’ नामक संस्था के कार्यों में भी भाग लेने लगे।
अध्यापन कार्य से की करियर की शुरुआत
औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद गोपाल कृष्ण गोखले जी ने पूना के ‘न्यू इंग्लिश हाई स्कूल’ में अध्यापन कार्य से अपने करियर की शुरुआत की। कुछ समय पश्चात वे ‘फर्ग्युसन कॉलेज’ में इतिहास और अर्थशास्त्र के प्राध्यापक नियुक्त हुए। इसी दौरान उनका परिचय प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी ‘बाल गंगाधर तिलक’ और गणित के अध्यापक ‘एन. जे. बापट’ से हुआ।
बाद में गोखले और बापट को संयुक्त रूप से गणित की एक पाठ्यपुस्तक तैयार करने का दायित्व सौंपा गया। इस पुस्तक के प्रकाशित होने के पश्चात इसे देश के कई विद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया और इसका अनुवाद अनेक भारतीय भाषाओं में किया गया।
गोपाल कृष्ण गोखले का वैवाहिक जीवन
अपनी स्कूली शिक्षा के दौरान ही वर्ष 1881 में गोपाल कृष्ण गोखले जी का विवाह हुआ था। लेकिन अल्पायु में ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद वर्ष 1887 में उनका पुनर्विवाह हुआ, जिससे उन्हें तीन संतानें हुईं। पुत्र का जन्म होने के कुछ समय बाद ही उसका निधन हो गया, जबकि दो बेटियाँ काशीबाई और गोदूबाई स्वस्थ रहीं। गोखले जी ने उनका पालन-पोषण अच्छे से किया और उन्हें उच्च शिक्षा दिलाई। किंतु वर्ष 1900 में उनकी पत्नी का बीमारी के कारण निधन हो गया, जिसके बाद उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया।
वर्ष 1888 में किया राजनीति में प्रवेश
गोपाल कृष्ण गोखले जी ने वर्ष 1888 में इलाहाबाद में हुए ‘कांग्रेस अधिवेशन’ से सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया। वे ‘दक्षिण शिक्षा समिति’ के सदस्य भी रहे। इसके साथ ही उन्होंने सार्वजनिक और राजकीय कार्यों के लिए कई बार इंग्लैंड की यात्रा की। गोखले जी ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ (INC) में ‘नरम दल’ के प्रमुख नेताओं में गिने जाते थे और जीवन पर्यंत इसी दल के रूप में कार्य करते रहे।
वर्ष 1893 में गोपाल कृष्ण गोखले जी ने ‘बंबई प्रांतीय सम्मलेन’ का सचिव पद संभाला। इसके बाद वर्ष 1895 में उन्होंने बालगंगाधर तिलक के साथ कुछ समय तक कार्य किया। फिर उन्हें वर्ष 1902 में ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ का सदस्य चुना गया। इस काउंसिल में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सामने प्राथमिक शिक्षा, नमक कर, चिकित्सा में सुधार और युवाओं की सरकारी नौकरियों में भागीदारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए।
शिक्षा के क्षेत्र में उठाया अनूठा कदम
गोखले जी भारत की स्वतंत्रता और उसकी प्रगति के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा के महत्व को बखूबी समझते थे। इसलिए उन्होंने 12 जून, 1905 को देशहित और सार्वजनिक जीवन में युवाओं को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से ‘भारत सेवक समाज’ (Servants of India Society) की स्थापना का अनूठा कार्य किया। इस सोसाइटी के अन्य सदस्यों में ‘जी. के. देवधर’, ‘पंडित हृदय नारायण कुंजरू’ और ‘वी. श्रीनिवास शास्त्री’ जैसे समाज सुधारक शामिल थे।
नरम दल के रहे समर्थक
वहीं आगे चलकर ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ (INC) के नेताओं की विचारधारा और कार्यप्रणाली के अंतर्विरोध के कारण यह दल दो भागों में विभाजित हो गया ‘नरम दल’ और ‘गरम दल’। इसमें अहिंसा के पक्षधर नरम दल में थे, जबकि क्रांति की मशाल लेकर बढ़ रहे लोगों को गरम दल का माना गया। नरम दल का नेतृत्व ‘गोपाल कृष्ण गोखले’, ‘दादाभाई नौरोजी’ और ‘फिरोजशाह मेहता’ जैसे बड़े नेताओं ने किया, वहीं गरम दल का नेतृत्व ‘विपिन चन्द्र पाल’, ‘अरविंद घोष’, ‘बाल गंगाधर तिलक’ और ‘लाला लाजपत राय’ ने किया।
हालांकि दोनों दलों का अंतिम लक्ष्य भारत को स्वराज दिलाना था। गोपाल कृष्ण गोखले ‘सुधारक’, लोकमान्य तिलक ‘केसरी’ और ‘मराठा’ और ‘विपिन चंद्र पाल’ ने ‘न्यू इंडिया’ व ‘वंदे मातरम’ अखबारों के माध्यम से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराते थे।
‘नाइटहुड’ की उपाधि लेने से किया इंकार
क्या आप जानते हैं कि गोपाल कृष्ण गोखले जी के कार्यों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें ‘काउंसिल ऑफ द सेक्रेटरी ऑफ स्टेट’ के सदस्य के रूप में मनोनीत करने का प्रस्ताव दिया था। इसके साथ ही उन्हें ‘नाइटहुड’ की उपाधि देने का निर्णय भी किया गया था, लेकिन गोखले जी ने पद और ‘नाइटहुड’ की उपाधि लेने से साफ इंकार कर दिया।
मॉर्ले-मिंटो सुधार में निभाई अहम भूमिका
जब लॉर्ड कर्जन के बाद मिंटो को भारत का वायसराय बनाया गया, उस समय बंगाल विभाजन के कारण स्वदेशी आंदोलन अपने चरम पर था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1909 में भारत परिषद अधिनियम पारित किया, जिसमें कई सुधार किए गए जिनका श्रेय गोपाल कृष्ण गोखले और अन्य बड़े नेताओं को जाता है।
इस अधिनियम के तहत केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों, वायसराय की कार्यकारी परिषद और ‘इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल’ में भारतीयों को शामिल किया गया और उनकी संख्या में वृद्धि की गई। इसके साथ ही केंद्र और प्रांतों में विधानपरिषदों के सदस्यों को चार भागों में विभाजित किया गया। तत्कालीन भारत के सचिव जॉन मॉर्ले और भारत के वायसराय मिंटो के नाम पर इसे ‘मॉर्ले-मिंटो सुधार’ कहा गया।
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महात्मा गांधी मानते थे राजनीतिक गुरु
क्या आप जानते हैं कि गोपाल कृष्ण गोखले जी की प्रेरणा से ही महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ जन आंदोलन चलाया था? गांधी जी के भारत आगमन के बाद जब उन्होंने ‘साबरमती आश्रम’ की स्थापना की, तब भी गोखले जी ने आर्थिक सहयोग किया था।
महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा ‘सत्य के प्रयोग’ (The Story of My Experiments with Truth) में गोपाल कृष्ण गोखले जी को अपना ‘राजनीतिक गुरु’ और ‘मार्गदर्शक’ कहा है। इसके साथ ही गांधी जी ने उन्हें समर्पित ‘धर्मात्मा गोखले’ नामक पुस्तक भी लिखी थी, जो कि गुजराती भाषा में है।
राजनीतिक वसीयतनामा
गोपाल कृष्ण गोखले जी ने अपना संपूर्ण जीवन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और समाज सुधार के लिए समर्पित कर दिया था। लंबे समय तक खराब स्वास्थ्य के कारण उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष पुणे में बिताए। उन्होंने अंतिम बार एक राजनीतिक भाषण दिया, जिसे बाद में ‘गोखले का राजनीतिक वसीयतनामा’ कहा गया।
गंभीर बीमारी के कारण इस महान स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक ने 19 फरवरी, 1915 को अपनी अंतिम सांस ली। उनके संघर्ष और बलिदान के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा।
FAQs
गोखले जी ‘सार्वजनिक सभा पत्रिका’ और अंग्रेजी पत्रिका ‘द हितवाद’ से जुड़े हुए थे।
उनके राजनीतिक गुरु ‘महादेव गोविंद रानाडे’ थे।
उन्होंने वर्ष 1884 में एल्फिंस्टन कॉलेज, महाराष्ट्र से स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी।
आशा है कि आपको स्वतंत्रता संग्राम के आदर्श नेता गोपाल कृष्ण गोखले का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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