घनानंद हिंदी साहित्य में रीतिकाल की रीतिमुक्त या स्वच्छंद काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। उनके काव्य का केंद्रीय विषय प्रेम है। घनानंद के समकालीन कवियों में ‘आलम’, ‘बोधा’, ‘ठाकुर’ और ‘द्विजदेव’ का उल्लेख किया जा सकता है, किंतु रीतिमुक्त धारा में घनानंद को सर्वश्रेष्ठ कवि का स्थान प्राप्त है। उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में ‘सुजान सागर’, ‘विरह लीला’, ‘वियोगबेली’, ‘कृष्ण कौमुदी’ और ‘इश्कलता’ उल्लेखनीय हैं। इस लेख में रीतिकालीन कवि घनानंद का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | घनानंद (Ghananand) |
| जन्म | सन 1689 |
| जन्म स्थान | दिल्ली व ब्रजक्षेत्र |
| साहित्य काल | रीतिकाल |
| दरबारी कवि | बादशाह मुहम्मद शाह |
| विधाएँ | काव्य |
| काव्य-रचनाएँ | ‘सुजान सागर’, ‘विरह लीला’, ‘वियोगबेली’, ‘कृष्ण कौमुदी’ व ‘इश्क्लता’ आदि। |
| निधन | सन 1760-1761 मथुरा, उत्तर प्रदेश |
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घनानंद का जन्म
घनानंद रीतिकाल की रीतिमुक्त काव्यधारा के शिखर कवि माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि उनका जन्म सन् 1689 के आसपास दिल्ली या ब्रज क्षेत्र में हुआ था। वे फारसी साहित्य के गंभीर अध्येता थे। उनका प्रारंभिक जीवन भी दिल्ली के आसपास ही व्यतीत हुआ।
बादशाह ‘मुहम्मद शाह’ के मीर मुंशी
घनानंद दिल्ली के बादशाह मुहम्मद शाह के मीर मुंशी थे। उल्लेखनीय है कि वे दरबार में कवि के रूप में नहीं, बल्कि मीर मुंशी के रूप में जाने जाते थे। बताया जाता है कि वे दरबार में अपनी कविताओं से अधिक गायन के लिए विख्यात थे। कहा जाता है कि दरबार में ‘सुजान’ नामक एक स्त्री से उनका अटूट प्रेम था। उसी प्रेम के कारण एक बार वे दरबार में बादशाह से बेअदबी कर बैठे, जिससे नाराज होकर बादशाह ने उन्हें दरबार से निष्कासित कर दिया। इसके बाद सुजान ने भी उनका साथ छोड़ दिया, जिससे वे निराश और दुखी होकर वृंदावन चले गए।
निंबार्क संप्रदाय में ली दीक्षा
माना जाता है कि वृंदावन में रहते हुए वे ‘निंबार्क संप्रदाय’ में दीक्षित हुए और भक्त के रूप में अपना जीवन निर्वाह करने लगे। लेकिन वे सुजान को भूल नहीं सके और अपनी रचनाओं में सुजान के नाम का प्रतीकात्मक प्रयोग करते हुए काव्य सृजन करते रहे।
घनानंद का साहित्यिक परिचय
घनानंद मूलतः प्रेम की पीड़ा के वियोगी कवि माने जाते हैं। उनकी काव्य रचनाओं में प्रेम का अत्यंत गंभीर, निर्मल और व्याकुल कर देने वाला उदात्त रूप देखने को मिलता है। उन्होंने सुजान के रूप-सौंदर्य, लज्जा, व्यवहार आदि का अत्यंत मार्मिक वर्णन अपनी रचनाओं में किया है।
घनानंद की भाषा परिष्कृत और साहित्यिक है। जहां ‘बिहारी’ और उस काल के समकालीन कवियों ने अपनी रचनाओं में ब्रज को फारसी, अरबी तथा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं से मिश्रित किया है। वहीं उनकी काव्य रचनाओं में ब्रजभाषा का शुद्ध रूप देखने को मिलता है।
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घनानंद का साहित्यिक रचनाएँ
घनानंद ब्रजभाषा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित विद्वान ‘आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र’ ने ‘घनानंद ग्रंथावली’ में उनकी 39 काव्य रचनाओं को संकलित किया है, जो इस प्रकार हैं:-
- सुजान हित
- अनुभव चंद्रिका
- कृपाकंद
- रंग बधाई
- कृष्ण कौमुदी
- धाम चमत्कार
- मुरतिकामोद
- मनोरथ मंजरी
- वियोग बेलि
- प्रेम पद्धति
- प्रिया प्रसाद
- छंदास्तक
- इश्क्लता
- वृंदावन मुद्रा
- वृषभानुपुर सुषमा वर्णन
- त्रिभंगी
- युमनायश
- प्रीति पावस
- प्रेम पत्रिका
- प्रेम सरोवर
- ब्रज विलास
- सरस बसंत
- गोकुल गीता
- नाम माधुरी
- गिरिपूजन
- विचारसार
- दानघाट
- भावना प्रकाश
- ब्रज स्वरूप
- गोकुल चरित्र
- प्रेम पहेली
- रसना यश
- गोकुल विनोद
- ब्रज प्रसाद
- परमहंस वंशावली
- ब्रज व्यवहार
- गिरिगाथा
- पदावली
- स्फुट
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मथुरा में हुआ निधन
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार, अहमदशाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण के दौरान सन् 1760–1761 में मथुरा में घनानंद की हत्या कर दी गई थी। किंतु आज भी वे अपनी अनुपम काव्य-कृतियों के लिए साहित्य-जगत में स्मरण किए जाते हैं।
FAQs
माना जाता है कि घनानंद का जन्म दिल्ली या ब्रजक्षेत्र में सन 1689 के आसपास हुआ था।
घनानंद दिल्ली के बादशाह ‘मुहम्मद शाह’ के मीर मुंशी थे।
घनानंद रीतिकालीन काव्य में रीतिमुक्त धारा के प्रतिनिधि कवि थे।
घनानंद की भाषा परिष्कृत और साहित्यिक ब्रजभाषा है।
यह घनानंद की लोकप्रिय काव्य रचना है।
सुजान सागर, विरह लीला, वियोगबेली, कृष्ण कौमुदी व इश्क्लता घनानंद की प्रमुख रचनाएं हैं।
सुजान सागर घनानंद की सबसे प्रसिद्ध रचना है।
आशा है कि आपको घनानंद का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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