संत रविदास का मध्ययुगीन संत परंपरा में विशिष्ट स्थान है। वे संत कबीर के समकालीन माने जाते हैं। भारत के विभिन्न भागों में स्थानीय बोली और उच्चारणगत भिन्नता के कारण संत रविदास के नाम के अनेक रूप प्रचलित हैं, जैसे रैदास, रयदास, रईदास, रुईदास, रुद्रदास, रामदास और रुहिदास। इनमें ‘रैदास’ और ‘रविदास’ नाम सर्वाधिक प्रचलित हैं, जिनमें ‘रैदास’ उनका लोक प्रचलित नाम माना जाता है।
कबीर की भाँति संत रविदास भी मूर्तिपूजा और तीर्थयात्राओं में विश्वास नहीं रखते थे। वे व्यक्ति की आंतरिक भावना, समता और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रविदास जी के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में संकलित हैं। रविदास जयंती का पर्व हर वर्ष माघ माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस पर्व को मनाने का उद्देश्य मुख्यतः सामाजिक समानता और भक्ति के क्षेत्र में उनके महत्वपूर्ण योगदान को स्मरण करना है। इस लेख में छात्रों के लिए रैदास का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | संत रविदास |
| जन्म | सन 1388 |
| जन्म स्थान | बनारस, उत्तर प्रदेश |
| समकालीन | कबीर, मीराबाई |
| भाषा | ब्रजभाषा |
| गुरु | रामानंद |
| शिष्या | मीराबाई |
| साहित्य काल | मध्ययुगीन (भक्तिकाल) |
| देहावसान | सन 1518 |
This Blog Includes:
संत रविदास का जीवन, साहित्य और दर्शन
निर्गुण भक्ति परंपरा के प्रमुख संत कबीरदास तथा अन्य संतों की भाँति संत रविदास का कोई प्रमाणिक जीवन-वृत्त अब तक उपलब्ध नहीं है। किंतु अनेक विद्वानों का मानना है कि संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन, सन 1388 ई. में वाराणसी के पास स्थित सीर गोवर्धनपुर नामक ग्राम में हुआ था। उनका देहावसान लगभग सन 1518 के आसपास बनारस में ही हुआ माना जाता है।
उनकी वाणी से यह संकेत मिलता है कि उनका जन्म दलित जाति की कुटबांढला नामक शाखा में हुआ था। ऐसा भी माना जाता है कि उनके माता-पिता ने उनका विवाह ‘लोना’ नामक एक युवती से किया था। जनश्रुति है कि रविदास और लोना के एक पुत्र भी हुआ, जिसका नाम ‘विजयदास’ था।
संत रविदास का बचपन अत्यंत विषम परिस्थितियों में बीता था। बाल्यावस्था से ही उनका मन साधु-संतों के प्रवचनों और सत्संग में रमने लगा था। नाभादास कृत ‘भक्तमाल’ के अनुसार, रामानंद के बारह शिष्यों में संत रविदास का नाम भी शामिल है। वहीं, सेन नाई कृत ‘रविदास-कबीर गोष्ठी’ में रविदास को कबीर का शिष्य बताया गया है।
बताया जाता है कि कबीर की भाँति संत रविदास को भी किसी विद्यालय में विधिवत शिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी। वे अनपढ़ माने जाते हैं। उन्होंने जो कुछ भी कहा, वह उनके जीवनानुभवों और आंतरिक अनुभवों पर आधारित था। उन्हें ब्रज, संस्कृत, उर्दू, फ़ारसी तथा कई स्थानीय भाषाओं का ज्ञान था, जिसके कारण उनकी रचनाओं में विभिन्न क्षेत्रीय बोली-भाषाओं के शब्द देखने को मिलते हैं।
संत रविदास जी के शिष्यों में मीराबाई का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। मीराबाई ने अपने भजनों में उन्हें गुरुवत स्वीकार करते हुए भक्ति-भाव से लिखा है- “रैदास संत मिले मोहि सतगुरु, दीन्ही सूरत सहदानी”। इसी प्रकार, प्रियादास कृत ‘भक्त रसबोधिनी’ में चित्तौड़ की ‘झाली रानी’ को भी रविदास की शिष्या बताया गया है। कुछ विद्वानों द्वारा क्षत्रिय राजा पीपा को भी उनका शिष्य माना गया है।
संत रविदास ने एक पंथ की स्थापना भी की, जिसे ‘रैदासी पंथ’ के नाम से जाना जाता है। इस पंथ के अनुयायी आज भी पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में पाए जाते हैं।
निर्गुण काव्य में योगदान
कबीरदास की तरह संत रविदास ने भी आडंबर और पाखंड पर तीव्र प्रहार किया था। अन्य निर्गुण संतों की भाँति वे भी तीर्थयात्रा, मूर्तिपूजा, व्रत-उपवास और बाह्य वेशभूषा आदि में विश्वास नहीं रखते थे। उनका मानना था कि ईश्वर मनुष्य के भीतर ही निवास करता है, उसे बाहर कहीं खोजने की आवश्यकता नहीं है। उस परमात्मा को आत्मिक अभ्यास और सुमिरन (स्मरण) के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है। संत रविदास के चालीस पद सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहिब’ में भी संकलित हैं।
यह भी पढ़ें – छायावाद के प्रमुख कवि जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय, रचनाएँ एवं भाषा शैली
रविदास की भाषा शैली
संत रविदास जी ने अपनी काव्य रचनाओं में सरल और व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, खड़ी बोली, राजस्थानी तथा उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। उन्होंने अपनी रचनाओं में उपमा और रूपक अलंकारों का विशेष रूप से प्रयोग किया है। संत कवि ने सीधे-सादे पदों के माध्यम से हृदय के भाव अत्यंत सहजता और स्पष्टता के साथ प्रकट किए हैं।
यह भी पढ़ें – लोकप्रिय संत-कवयित्री ललद्यद का जीवन परिचय एवं साहित्यिक योगदान
गुरु रविदास जयंती 2026
हर वर्ष माघ महीने की पूर्णिमा तिथि को ‘गुरु रविदास जयंती’ मनाई जाती है। इस वर्ष 12 फरवरी, 2026 को गुरु रैदास जी की जयंती मनाई जाएगी। इस दिन उनके भक्त भजन-कीर्तन करते हैं और शोभा यात्रा निकालते हैं। उनकी जयंती के अवसर पर विभिन्न देशों से भी श्रद्धालु आते हैं।
वहीं, उनकी जन्मतिथि के दिन पवित्र नदी या संगम में स्नान का विशेष महत्व होता है। इस दिन विभिन्न स्थानों पर भंडारे करवाए जाते हैं और भक्त दान-पुण्य भी करते हैं। इस विशेष अवसर पर संत रविदास जी के दोहे आज भी मंचों पर गाए और सुनाए जाते हैं।
FAQs
संत रविदास का जन्म माघ पूर्णिमा के दिन सन 1388 में वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर गांव में हुआ था।
जनश्रुति है कि बाल्यवस्था में रविदास जी का विवाह लोना देवी से कर दिया गया था।
संत रविदास जी का देहावासन सन 1518 के आसपास बनारस में हुआ था।
संत रविदास जी को मीराबाई का गुरु माना जाता है।
संत कवि रैदास के गुरु का नाम ‘रामानंद’ था।
आशा है कि आपको संत रविदास का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
One app for all your study abroad needs






60,000+ students trusted us with their dreams. Take the first step today!
