जगन्नाथदास रत्नाकर आधुनिक युग के ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि थे। उनकी प्राचीन भाषाओं, धर्म और साहित्य में विशेष अभिरुचि थी। उन्हें उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मराठी, बांग्ला, पंजाबी, आयुर्वेद, संगीत, ज्योतिष, व्याकरण, छंदशास्त्र, विज्ञान, योग-दर्शन, इतिहास तथा मध्यकालीन हिंदी काव्य आदि का भी अच्छा ज्ञान था। हिंदी साहित्य में अनुपम कृतियों का सृजन करने के साथ ही उन्होंने ‘साहित्य सुधानिधि’ तथा ‘सरस्वती’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन किया। साथ ही ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ की स्थापना एवं उसके विकास में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ की प्रमुख कृतियाँ हैं- ‘हरिश्चन्द्र’, ‘गंगावतरण’, ‘उद्धवशतक’, ‘गंगालहरी’, ‘विष्णुलहरी’ (पद्य रचना), ‘रोला छंद के लक्षण’, ‘महाकवि बिहारीलाल की जीवनी’, ‘साहित्यिक ब्रजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री’ (गद्य-लेख), ‘कविकुल कंठाभरण’, ‘हिततरंगिणी’, ‘सुजानसागर’, ‘बिहारी रत्नाकर’ (संपादन) आदि।
आपको बता दें कि जगन्नाथदास रत्नाकर की कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं और कई शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। इसके साथ ही, UGC-NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले विद्यार्थियों के लिए भी जगन्नाथदास रत्नाकर का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।
| नाम | जगन्नाथदास रत्नाकर |
| जन्म | सन 1866 |
| जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
| शिक्षा | एल.एल.बी. व एम.ए. फ़ारसी |
| पिता का नाम | पुरुषोत्तमदास |
| कार्य क्षेत्र | कवि, लेखक, संपादक |
| साहित्य काल | आधुनिक काल |
| विधा | पद्य व गद्य |
| भाषा | ब्रजभाषा |
| मुख्य रचनाएं | ‘हरिश्चन्द्र’, ‘गंगावतरण’, ‘उद्धवशतक’, ‘गंगालहरी’, ‘विष्णुलहरी’ (पद्य रचना) ‘रोला छंद के लक्षण’, ‘महाकवि बिहारीलाल की जीवनी’, ‘साहित्यिक ब्रजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री’ (गद्य-लेख) ‘कविकुल कंठाभरण’,‘हिततरंगिणी’, ‘सुजानसागर’, ‘बिहारी रत्नाकर’ (संपादन) |
| संपादन | ‘साहित्य सुधानिधि’ तथा ‘सरस्वती’ |
| निधन | 21 जून, 1932 हरिद्वार |
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में हुआ था जन्म
कवि जगन्नाथदास रत्नाकर का जन्म 1866 में वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘पुरुषोत्तमदास’ था। बताया जाता है कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू-फ़ारसी में हुई थी। बाद में उन्होंने क्वींस कालेज, बनारस, से सन 1891 में बी.ए. पास किया। इसके बाद एल.एल.बी. और एम.ए. फ़ारसी का अध्ययन प्रारंभ किया था, किंतु माता के आकस्मिक निधन के कारण एम.ए. की पढ़ाई पूरी न हो सकी।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
वर्ष 1900 में जगन्नाथदास रत्नाकर अवागढ़ के ख़ज़ाने के निरीक्षक नियुक्त हुए। फिर वर्ष 1902 में वे अयोध्या नरेश प्रताप नारायण सिंह के निजी सचिव बने तथा वर्ष 1906 में महाराज की मृत्यु के पश्चात् महारानी के निजी सचिव नियुक्त हुए।
वहीं साहित्य के क्षेत्र में उनका प्रवेश विद्यार्थी जीवन से ही हुआ था। वे ‘जकी’ उपनाम से उर्दू एवं फ़ारसी में कविता लिखते थे, लेकिन कालांतर में हिंदी कवियों से प्रभावित होकर केवल ब्रजभाषा में कविता लिखने लगे।
हिंदी साहित्य को अपनी लेखनी से समृद्ध करने के साथ ही जगन्नाथदास रत्नाकर ने ‘साहित्य सुधानिधि’ तथा ‘सरस्वती’ आदि पत्रिकाओं का संपादन किया था। इसके अलावा ‘काशी नागरी प्रचारिणी सभा’ के विकास में भी उनका विशेष योगदान था। वर्ष 1930 में वह ‘हिंदी साहित्य सम्मेलन’ के 20वें अधिवेशन के सभापति चुने गए थे।
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जगन्नाथदास रत्नाकर की प्रमुख रचनाएं
जगन्नाथदास रत्नाकर को उर्दू, फ़ारसी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, मराठी, पंजाबी और बांग्ला भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। साथ ही उन्हें संगीत, ज्योतिष, व्याकरण, छन्दशास्त्र, विज्ञान, योग दर्शन, साहित्य तथा इतिहास आदि विषयों में भी गहरी रूचि थी। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी जा रही है:-
पद्य रचनाएँ
- हरिश्चन्द्र
- गंगावतरण
- उद्धवशतक
- हिंडोला
- कलकाशी
- शृंगारलहरी
- गंगालहरी
- विष्णुलहरी
- रत्नाष्टक
- वीराष्टक
गद्य-लेख
- रोला छंद के लक्षण
- महाकवि बिहारीलाल की जीवनी
- बिहारी सतसई सम्बन्धी साहित्य
- साहित्यिक ब्रजभाषा तथा उसके व्याकरण की सामग्री
- बिहारी सतसई की टीकाएँ
संपादन
- कविकुल कंठाभरण
- दीपप्रकाश
- हम्मीर हठ
- रसिक विनोद
- हिततरंगिणी
- केशवदासकृत नखशिख
- सुजानसागर
- बिहारी रत्नाकर
- सूरसागर
जगन्नाथदास रत्नाकर की भाषा शैली
जगन्नाथदास रत्नाकर ब्रजभाषा के अंतिम ऐतिहासिक कवि थे। ब्रजभाषा के आधुनिक काल के कवियों में उनका स्थान अद्वितीय है। उनकी भाषा शुद्ध ब्रजभाषा है। उन्होंने ब्रजभाषा का परिष्कृत रूप भी प्रदान किया है। साथ ही उन्होंने साहित्यिक कृतियों में पुराने मुहावरों को अपनाया, लोकोक्तियों को स्थान दिया और बोलचाल के शब्दों को ग्रहण किया। उन्होंने शब्दों का चयन परिस्थितियों के अनुकूल ही किया है। उनकी कविता में संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग खुलकर हुआ है, परंतु इससे उनकी भाषा में बनावटीपन नहीं आता, जबकि उनकी शैली रीतिकाल की अलंकृत शैली है।
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66 वर्ष की आयु में हुआ था निधन
कवि जगन्नाथदास रत्नाकर ने तीन दशकों से अधिक समय तक हिंदी साहित्य और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध किया था। 21 जून, 1932 को इस महान साहित्यकार ने सदा के लिए अपनी आँखें मूंद लीं। किंतु आज भी वे अपनी लोकप्रिय कृतियों के लिए साहित्य जगत में विख्यात हैं।
FAQs
उनका जन्म सन 1866 में वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था।
उनके पिता का नाम ‘पुरुषोत्तमदास’ था।
‘उद्धवशतक’ और ‘हरिश्चन्द्र’ जगन्नाथदास रत्नाकर की सर्वाधिक लोकप्रिय कृति है।
जगन्नाथदास रत्नाकर ने ब्रजभाषा में उद्धव शतक की रचना की थी।
उद्धव शतक जगन्नाथदास रत्नाकर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ है।
जगन्नाथदास रत्नाकर का 21 जून, 1932 को 66 वर्ष की आयु में हरिद्वार में निधन हुआ था।
आशा है कि आपको ब्रजभाषा के सुप्रसिद्ध कवि जगन्नाथदास रत्नाकर का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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