राजस्थान के प्रसिद्ध संतों में दादू दयाल का महत्वपूर्ण स्थान है। वे हिंदी भक्तिकाल की ज्ञानाश्रयी शाखा के प्रमुख संत-कवि थे। उन्होंने कबीरदास, रविदास, मलूकदास, नामदेव और नानक साहब जैसे संत कवियों की भाँति निर्गुण काव्य परंपरा को समृद्ध करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। ‘हरदेव वाणी’ और ‘अंगवधू’ उनके प्रमुख ग्रंथ माने जाते हैं। उनके प्रमुख शिष्यों में रज्जब, सुंदरदास और प्रागदास का नाम उल्लेखनीय है। उन्होंने ‘परब्रह्म संप्रदाय’ की स्थापना की थी, जो बाद में ‘दादू पंथ’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जयपुर के नरैना स्थित दादू पीठ इस पंथ की प्रधान पीठ है, जहां देश-विदेश से अनुयायी और श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं। इस लेख में दादू दयाल का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख काव्य रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | दादू दयाल |
| जन्म | 1544 ई. मान्यता के अनुसार |
| जन्म स्थान | अहमदाबाद, गुजरात |
| साहित्य काल | भक्तिकाल |
| भाषा | ब्रज, राजस्थानी एवं खड़ी बोली |
| प्रमुख रचनाएँ | हरडे वाणी और अंगवधू |
| गुरु | वृद्धानंद |
| शिष्य | रज्जब, सुंदरदास और प्रागदास |
| स्थापना | दादू पंथ (Dadu Panth) |
| देहावसान | 1603 ई. मान्यता के अनुसार |
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दादू दयाल का जन्म
निर्गुण परंपरा के प्रमुख संत कबीरदास व संत रविदास की तरह दादू दयाल का कोई प्रमाणिक जीवन वृत्त अब तक सुलभ नहीं हो सका हैं। इसका एक कारण यह है कि ये संत आम जनता के बीच से उभरे थे। उनका या उनके परिवार का संबंध राजदरबार से नहीं था। वहीं तत्कालीन इतिहास लेखक, विदेशी यात्री और संग्रहकर्त्ताओं की दृष्टि में इतिहास के केंद्र राजघराने ही हुआ करते थे। इसके कारण आम जनता का विवरण आम तौर पर नहीं मिलता है।
कुछ विद्वान दादू दयाल का जन्म 1544 ई. में गुजरात के अहमदाबाद के निकट मानते हैं, परंतु वहां इनका कोई स्मारक या अन्य साक्ष्य नहीं मिलता। किंतु इतना निश्चित है कि उनके जीवन का बड़ा भाग राजस्थान में बीता। मान्यता के अनुसार वे देशाटन करते हुए राजस्थान आए और साँभर के निकट बस गए जहां वर्त्तमान में इनके नाम से ‘दादू द्वार’ (Dadu Dwar) है।
दादू दयाल के गुरु
माना जाता है कि दादू दयाल ने अज्ञात संत से दीक्षा प्राप्त की थी जिनका नाम ‘वृद्धानंद’ बताया जाता है। वहीं उन्होंने अपने पूर्ववर्ती निर्गुण संतों का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया है, विशेष रूप से उन्होंने कबीरदास, रविदास, गुरु नानक और नामदेव के प्रति अगाध श्रद्धा प्रकट की है।
‘परब्रह्म संप्रदाय’ की स्थापना की
दादू दयाल ने राजस्थान के साँभर में ‘परब्रह्म संप्रदाय’ की स्थापना की थी। किंतु उनकी मृत्यु के पश्चात उनके शिष्यों ने इस संप्रदाय को ‘दादू पंथ’ (Dadu Panth) कहना शुरू कर दिया। इनके प्रमुख शिष्यों में ‘रज्जब’, ‘सुंदरदास’, ‘प्रागदास’, ‘गरीबदास’,‘जनगोपाल’ व ‘बनवारीदास’ आदि प्रसिद्ध हुए। इनमें से अधिकतर निर्गुण संतों ने स्वयं की मौलिक रचनाएँ भी प्रस्तुत की थीं।
दादू पंथ की शाखाएं
दादू दयाल के देहावसान के बाद कालांतर में दादू पंथ के पांच प्रमुख उपसंप्रदाय निर्मित हुए। इन विभिन्न शाखाओं को मानने वाले अलग-अलग स्थानों पर मिलते हैं। इनमें आपस में थोड़ी बहुत मत भिन्नता भी पायी जाती हैं। ये पांच उपसंप्रदाय इस प्रकार हैं:-
- खालसा
- विरक्त
- उत्तरादे या स्थानधारी
- खाकी
- नागा
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दादू दयाल की प्रमुख रचनाएं
दादू दयाल की काव्य रचनाएँ लोक चेतना का अंग बनकर सामूहिक स्मृति में जीवित रही हैं। वहीं निर्गुण संत होने के बावजूद उन्होंने ईश्वर के सगुण रूप को भी स्वीकारा है। वे किसी मतवाद में न पड़कर भक्ति के सहज रूप को स्वीकार करते हैं। इनकी काव्य भाषा ब्रज है जिसमें राजस्थानी एवं खड़ी बोली के शब्दों का मिश्रण देखने को मिलता है। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
- हरडे वाणी
- अंगवधू
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नरैना में हुआ था देहावसान
माना जाता है कि संत कवि दादू दयाल की मृत्यु 1603 ई. में 59 वर्ष की आयु में राजस्थान के सांभर के निकट नरैना नामक स्थान पर हुई थी। वर्तमान में इस स्थान पर ‘दादू द्वार’ बना हुआ है। उनके जन्मदिवस और मृत्यु के दिन वहाँ हर वर्ष मेला लगता है। वहीं इस स्थान का पारंपरिक महत्व आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है।
FAQs
कुछ विद्वान उनका जन्म 1544 ई. में गुजरात के अहमदाबाद के निकट मानते हैं।
दादू दयाल के देहावसान के बाद दादू पंथ से पांच प्रमुख शाखाएँ निर्मित हुईं – खालसा, विरक्त, स्थानधारी (उत्तरादे), खाकी और नागा संप्रदाय।
माना जाता है कि दादू दयाल के गुरु का नाम ‘वृद्धानंद’ था।
आशा है कि आपको संत कवि दादू दयाल का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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