राहुल सांकृत्यायन आधुनिक हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित लेखक और साहित्यकार होने के साथ-साथ किसान आंदोलनकारी, बौद्ध भिक्षु, स्वतंत्रता सेनानी और बहुभाषाविद् के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्हें ‘हिंदी यात्रा साहित्य का जनक’ कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने यात्रा-वृत्तांत को साहित्यिक रूप प्रदान किया। उन्होंने ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ की रचना करके घुमक्कड़ी से होने वाले लाभों का विस्तार से वर्णन किया और मंजिल के स्थान पर यात्रा को ही घुमक्कड़ी का उद्देश्य बताया। वहीं, शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में उनके विशेष योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ तथा ‘पद्म भूषण’ जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से अलंकृत किया। इस लेख में महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दी गई है।
| मूल नाम | केदारनाथ पांडेय |
| उपनाम | राहुल सांकृत्यायन (Rahul Sankrityayan) |
| जन्म | 09 अप्रैल, 1893 |
| जन्म स्थान | पंदहा गांव, आजमगढ़ जिला, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | गोवर्धन पांडेय |
| माता का नाम | कुलवंती देवी |
| पेशा | लेखक, साहित्यकार, इतिहासकार |
| भाषा | हिंदी |
| विधाएँ | उपन्यास, कहानी, आत्मकथा, यात्रा वृतांत व जीवनी |
| साहित्यकाल | आधुनिक काल |
| पुरस्कार एवं सम्मान | साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्म भूषण |
| निधन | 13 अप्रैल, 1963 |
This Blog Includes:
- उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था जन्म
- शिक्षा के लिए अनेक स्थानों की यात्रा
- कई देशों की कठिन यात्रा की
- बौद्ध धर्म में हुए दीक्षित
- स्वतंत्रता आंदोलनों में लिया भाग
- राहुल सांकृत्यायन का साहित्यिक परिचय
- राहुल सांकृत्यायन की रचनाएँ
- राहुल सांकृत्यायन की भाषा शैली
- पुरस्कार एवं सम्मान
- राहुल सांकृत्यायन का निधन
- FAQs
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था जन्म
महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम ‘केदारनाथ पांडेय’ था, लेकिन साहित्य-जगत में वे ‘राहुल सांकृत्यायन’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके पिता का नाम ‘गोवर्धन पांडेय’ और माता का नाम ‘कुलवंती देवी’ था। पिता के आकस्मिक निधन के बाद उनका प्रारंभिक जीवन ननिहाल में बीता, यद्यपि उनका पैतृक गाँव ‘कनैला’ था।
शिक्षा के लिए अनेक स्थानों की यात्रा
बताया जाता है कि राहुल सांकृत्यायन की प्रारंभिक शिक्षा उर्दू माध्यम से हुई थी और मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे बनारस आ गए। यहां उन्होंने संस्कृत और दर्शनशास्त्र का गंभीर अध्ययन किया और इसके पश्चात वे वेदांत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए अयोध्या चले गए। भाषा के प्रति गहरी रुचि होने के कारण उन्होंने आगरा में अरबी और फ़ारसी सीखी, और फिर लाहौर (वर्तमान पाकिस्तान) की यात्रा की। लेकिन उनका यह अध्ययन-यात्रा का सिलसिला यहीं नहीं रुका, बल्कि जीवनभर चलता रहा।
क्या आप जानते हैं कि राहुल सांकृत्यायन प्राकृत, पाली, संस्कृत, अपभ्रंश, तिब्बती, चीनी, रूसी और जापानी जैसी अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे? माना जाता है कि उन्हें लगभग 20 से 25 भाषाओं का ज्ञान था। इन्हीं कारणों से उन्हें ‘महापंडित’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। वहीं, किशोरावस्था से ही ज्ञान की पिपासा ने उन्हें शोधार्थी और घुमक्कड़ी स्वभाव का बना दिया था, जो हमें उनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। उन्होंने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में लेखन किया। उनका सृजनात्मक कार्य किसी एक विधा तक सीमित नहीं रहा।

कई देशों की कठिन यात्रा की
राहुल सांकृत्यायन ने अपने जीवन के लगभग 45 वर्ष भारत के विभिन्न स्थानों तथा अन्य देशों की यात्राओं में बिताए। बताया जाता है कि वर्ष 1917 में वे रूसी क्रांति के दौर में कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए रूस पहुँचे। वहाँ कुछ समय प्रवास कर उन्होंने रूसी संस्कृति और क्रांति के कारणों का गहन अध्ययन किया तथा उन पर कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकों की रचना भी की। इसके पश्चात उन्होंने जापान, चीन, तिब्बत और श्रीलंका की यात्राएँ कीं और अपने यात्रा-वृत्तांतों में इन स्थानों के बारे में विस्तार से वर्णन किया।
बौद्ध धर्म में हुए दीक्षित
वर्ष 1930 में राहुल सांकृत्यायन ने श्रीलंका की यात्रा की और वहाँ रहकर पाली भाषा तथा बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन किया। वे बौद्ध धर्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बौद्ध मठ में न केवल बौद्ध धर्म की दीक्षा ली, बल्कि अपना नाम भी ‘राहुल सांकृत्यायन’ रख लिया। इसके बाद, तिब्बत की यात्रा के दौरान उन्होंने संस्कृत पांडुलिपियों और प्राचीन पुस्तकों की खोज की तथा उन्हें सहेजते हुए तिब्बत से भारत लौट आए। बाद में, इन अधिकांश पुस्तकों का उन्होंने हिंदी भाषा में अनुवाद भी किया।
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स्वतंत्रता आंदोलनों में लिया भाग
राहुल सांकृत्यायन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना अहम योगदान दिया था। वर्ष 1921 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए ‘असहयोग आंदोलन’ में उन्होंने सक्रिय भाग लिया। इसके साथ ही, उन्होंने अपने व्याख्यानों, पुस्तकों और लेखों के माध्यम से किसानों और भारतीय जनता को ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों से जागरूक करने का प्रयास किया। वर्ष 1942 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए भी उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की।
राहुल सांकृत्यायन का साहित्यिक परिचय
राहुल सांकृत्यायन इतिहासविद्, पुरातत्त्ववेत्ता, त्रिपिटकाचार्य होने के साथ ही एक महान लेखक और साहित्यकार भी थे। उन्होंने उपन्यास, कहानी, यात्रा-वृत्तांत, आत्मकथा, जीवनी, शोध आदि अनेक विधाओं में साहित्य का सृजन किया। साहित्य के अलावा, उन्होंने दर्शन, धर्म, राजनीति, इतिहास और विज्ञान आदि विषयों पर लगभग 150 से अधिक ग्रंथ लिखे हैं। ‘घुमक्कड़ शास्त्र’ और ‘वोल्गा से गंगा तक’ उनकी सबसे महत्वपूर्ण कृतियाँ मानी जाती हैं। उनकी कई पुस्तकों का कई भारतीय एवं विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है।
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राहुल सांकृत्यायन की रचनाएँ
राहुल सांकृत्यायन ने आधुनिक हिंदी साहित्य में मुख्य रूप से गद्य विधा में अनुपम साहित्य का सृजन किया है। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
कहानी संग्रह
- सतमी के बच्चे
- वोल्गा से गंगा तक
- बहुरंगी मधुपुरी
- कनैला की कथा
उपन्यास
- बाईसवीं सदी
- जीने के लिए
- भागो नहीं दुनिया का बदलो
- राजस्थान निवास
- मधुर स्वपन
- सिंह सेनापति
- जय यौधेय
- विस्मृत यात्री
- दिवोदास
जीवनी
- सरदार पृथ्वीसिंह
- नए भारत के नए नेता
- बचपन की स्मृतियाँ
- महामानव बुद्ध
- सिंहल के वीर पुरुष
- कप्तान लाल
- अतीत से वर्तमान
- स्तालिन
- लेलिन
- कार्ल मार्क्स
- माओ-त्से-तुंग
- घुमक्कड़ स्वामी
- मेरे अहसयोग के साथी
- जिनका मैं कृतज्ञ
- वीर चंद्रसिंह गढ़वाली
- सिंहल घुमक्कड़ जयवर्धन
यात्रा साहित्य
- किन्नर देश की ओर
- घुमक्कड़ शास्त्र
- मेरी तिब्बत यात्रा
- मेरी लद्दाख यात्रा
- तिब्बत में सवा वर्ष
- लंका
- जापान
- ईरान
- चीन में क्या देखा
- रूस में पच्चीस माह
आत्मकथा
- मेरी जीवन यात्रा
राहुल सांकृत्यायन की भाषा शैली
महापंडित राहुल सांकृत्यायन अनेक भाषाओं के विद्वान थे और भाषा को लेकर उनका दृष्टिकोण पूर्णतया राष्ट्रीय था। उनकी रचनाओं में सहज, सरल और व्यावहारिक खड़ी बोली का प्रयोग मिलता है। तत्सम–तद्भव शब्द, मुहावरे और लोकोक्तियां उनकी भाषा को समृद्ध बनाते हैं। उनकी शैली सहज और स्वाभाविक है, साथ ही उन्होंने विवेचनात्मक, वर्णनात्मक और व्यंग्यात्मक शैली का भी प्रभावी उपयोग किया है, जो विषयानुसार बदलता रहता है।
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पुरस्कार एवं सम्मान
राहुल सांकृत्यायन को हिंदी साहित्य और शिक्षा में उनके विशेष योगदान के लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों एवं सम्मानों से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो इस प्रकार हैंः-
- पद्म भूषण
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- त्रिपिटकाचार्य
राहुल सांकृत्यायन का निधन
राहुल सांकृत्यायन ने कई दशकों तक भारत और अन्य देशों की यात्रा की तथा अनेक विधाओं में अनुपम साहित्य और ग्रंथों का सृजन किया। किंतु इस महान यात्री का 14 अप्रैल, 1963 को 70 वर्ष की आयु में दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल में निधन हो गया। किंतु आज भी वे अपनी रचनाओं के लिए दुनियाभर में जाने जाते हैं।
FAQs
उनका मूल नाम ‘केदारनाथ पांडेय’ था।
उनका जन्म 09 अप्रैल, 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के पंदहा गांव में हुआ था।
उन्होंने श्रीलंका में ‘बौद्ध धर्म’ अपनाया था।
‘घुमक्कड़ शास्त्र’, ‘वोल्गा से गंगा तक’, किन्नर देश में और जीने के लिए राहुल सांकृत्यायन की प्रमुख रचनाएं हैं।
14 अप्रैल, 1963 को 70 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था।
उनकी माता का नाम ‘कुलवंती देवी’ था।
‘मेरी जीवन यात्रा’ उनकी लोकप्रिय आत्मकथा है।
आशा है कि आपको हिंदी साहित्य के महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जीवन परिचय और बौद्धिक विरासत पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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