अरस्तु प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक प्लेटो के शिष्य थे और सिकंदर महान (अलेक्जेंडर द ग्रेट) के गुरु थे। उनका प्रचलित ज्ञान-विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों पर समान अधिकार था। उन्होंने एथेंस के समीप अपोलो नामक स्थान पर ‘लीसियस’ नाम से अपना एक निजी विद्यालय स्थापित किया था। यही कारण है कि उन्हें पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान की विधाओं का आदि आचार्य माना जाता है। उनके दो प्रमुख ग्रंथ हैं- ‘तखनेस रिटिकेस’ यानी ‘भाषण कला’ और दूसरा ‘पोएटिक्स’ जिसका अनुवाद ‘काव्यशास्त्र’ किया गया है। अरस्तु ने जिन काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है, उनमें से तीन सिद्धांत विशेष महत्व रखते हैं- अनुकरण सिद्धांत, त्रासदी-विवेचन और विरेचन सिद्धांत। इस लेख में अरस्तु का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | अरस्तु (Aristotle) |
| जन्म | 384 ई.पू |
| जन्म स्थान | मकदूनिया (अब मेसेडोनिया) स्तगिरा, ग्रीस |
| गुरु का नाम | प्लेटो (Plato) |
| शिष्य का नाम | सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट) |
| रचनाएँ | भाषण कला, काव्यशास्त्र |
| सिद्धांत | अनुकरण सिद्धांत, त्रासदी-विवेचन और विरेचन सिद्धांत |
| मृत्यु | 322 ई. पू चाल्सिस, ग्रीस |
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अरस्तु का जन्म
महान पाश्चात्य दार्शनिक अरस्तु का जन्म मकदूनिया के स्तगिरा नामक नगर में 384 ई. पू. में हुआ था। इनके पिता ‘सिकंदर’ (अलेक्जेंडर द ग्रेट) के पितामह ‘अमीनटास’ (Amyntas) के दरबार में चिकित्सक थे। बताया जाता है कि अरस्तु बाल्यकाल से ही अत्यंत मेधावी और कुशाग्र बुद्धि के थे। अपने गुरु प्लेटो की तरह ही उनमें भी शुरू से दार्शनिक स्वभाव थे। वह प्लेटो के सबसे प्रिय शिष्य थे और उन्हें ‘सिकंदर महान’ (Alexander the Great) का गुरु होने का गौरव प्राप्त था।
निजी विद्यापीठ की स्थापना की
अरस्तु प्लेटो के शिष्य थे, लेकिन उनकी मान्यताएँ उनके गुरु से सर्वथा भिन्न थीं। वहीं उनका प्रचलित ज्ञान-विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों पर समान अधिकार था। उन्होंने यूनान की राजधानी एथेंस के समीप अपोलो नामक स्थान पर ‘लीसियसज’ नाम से एक निजी विद्यापीठ स्थापित किया था।
अरस्तु की प्रमुख रचनाएं
अरस्तु ने अपने 62 वर्ष के जीवनकाल में तत्वमीमांसा, मनोविज्ञान, तर्कशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, भौतिकशास्त्र व साहित्यशास्त्र जैसे विषयों पर लगभग 400 से अधिक ग्रंथों की रचना की थी। किंतु उनके दो ग्रंथों से उन्हें दुनिया में प्रसिद्धि मिली। पहला ‘भाषण कला’ (Rhetoric) और दूसरा ‘काव्यशास्त्र’ (Poetics)। हालांकि ‘काव्यशास्त्र’ का यह ग्रंथ वृहत ग्रंथ न होकर एक छोटी सी पुस्तिका है, जिसमें सीधे कोई व्यवस्थित शास्त्रीय सिद्धांत निरूपण नहीं है।
अरस्तु का सिद्धांत
अरस्तु ने जिन काव्यशास्त्रीय सिद्धांतों का प्रतिपादन किया है, उनमें से तीन सिद्धांत इस प्रकार हैं:-
- अनुकरण सिद्धांत
- त्रासदी-विवेचन
- विरेचन सिद्धांत
अरस्तू का अनुकरण सिद्धांत
अरस्तू के अनुसार अनुकरण पूरी नकल नहीं है बल्कि पुनः प्रस्तुतिकरण है जिसमें पुर्नरचना भी शामिल है। अनुकरण के द्वारा कलाकार सार्वभौम को पहचानकर उसे सरल तथा इंद्रीय रूप से पुनः रुपागत करने का प्रयत्न करता है। वहीं रचनाकार अपनी रचना को संवेदना, ज्ञान, कल्पना और आदर्श आदि के द्वारा अपूर्ण से पूर्ण बना देता है।
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अरस्तु की मृत्यु
ऐसा माना जाता है कि महान दार्शनिक अरस्तु की मृत्यु 322 ई. पू चाल्सिस, ग्रीस में हुई थी। उन्होंने अपने संपूर्ण जीवनकाल में विभिन्न विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। वहीं काव्य के संदर्भ में उन्होंने जो विचार व्यक्त किए हैं, वे आज तक संदर्भवान एवं विचारणीय हैं।
FAQs
अरस्तु का मूल नाम एरिस्टोटल था।
अरस्तु का जन्म मकदूनिया के स्तगिरा नामक नगर में 384 ई. पू. में हुआ था।
अरस्तु की मृत्यु 322 ई. पू चाल्सिस, ग्रीस में हुई थी।
आशा है कि आपको महान दार्शिनक अरस्तु का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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