Bhagat Singh Poems : शहीद-ए-आज़म भगत सिंह पर क्रांतिकारी कविताएं, जो करेंगी आपको प्रेरित

1 minute read
bhagat singh poem in hindi

भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे महान नायक थे, जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनके परम बलिदान से क्रांति की एक ऐसी अलख जगी जिससे ब्रिटिश साम्राज्य की नीव हिल गई थी। सही मायनों में उनका साहस और बलिदान हमें आज भी मातृभूमि की सेवा और माँ भारती के चरणों में समर्पित होने के लिए प्रेरित करता है। भगत सिंह पर कविताएं युवाओं के अंतर्मन में राष्ट्रवाद का बीज बोने का कार्य करेंगी। शहीदों पर कविताएं ही राष्ट्र के युवाओं को राष्ट्रवाद का पाठ पढ़ाती हैं। भगत सिंह पर क्रांतिकारी कविताएं पढ़कर आपको शहीद भगत सिंह के राष्ट्रप्रेम और भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान के बारे में बताएंगी। इस ब्लॉग में आप Bhagat Singh Poems in Hindi के माध्यम से आप शहीद भगत सिंह पर कविताएं पढ़ पाएंगे, जिसके लिए आपको ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।

भगत सिंह का संक्षिप्त जीवन परिचय

Bhagat Singh Poems in Hindi को पढ़ने से पहले आपको शहीद भगत सिंह का संक्षिप्त जीवन परिचय अवश्य पढ़ लेना चाहिए। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में क्रांति की मशाल लेकर युवाओं को आज़ादी के लिए प्रेरित करने वाले एक महान क्रांतिकारी शहीद-ए-आज़म भगत सिंह भी थे। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को वर्तमान के पाकिस्तान में लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था। उनका पैतृक गांव भारत के पंजाब राज्य के खट्कड़ कलां में है। भगत सिंह को क्रांतिकारी संस्कार बचपन से ही अपने परिवार से मिले थे। उनकी माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। उनके जन्म के समय उनके पिता किशन सिंह, चाचा अजित और स्वरण सिंह जेल में थे। जिन्हें 1906 में लागू हुए औपनिवेशीकरण विधेयक के खिलाफ प्रदर्शन करने के जुल्म में जेल में डाल दिया गया था।

भगत सिंह एक अच्छे वक्ता, पाठक व लेखक भी थे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखा व संपादन भी किया। उनकी मुख्य रचनाएं, ‘एक शहीद की जेल नोटबुक (संपादन: भूपेंद्र हूजा), सरदार भगत सिंह : पत्र और दस्तावेज (संकलन : वीरेंद्र संधू), भगत सिंह के संपूर्ण दस्तावेज (संपादक: चमन लाल) आदि थी। मात्र 23 वर्ष की आयु में सरदार भगत सिंह आज़ादी के लिए फांसी के फंदे पर झूल गए थे।

यह भी पढ़ें : ऐसे लिखें ‘प्रभावशाली क्रांतिकारी’ भगत सिंह पर निबंध तो मिलेंगे परीक्षा में पूरे नंबर

भगत सिंह पर क्रांतिकारी कविताएं – Bhagat Singh Poems in Hindi

Bhagat Singh Poems in Hindi के माध्यम से आप शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह पर क्रांतिकारी कविताएं पढ़ पाएंगे, जिनको पढ़ने के बाद आप में देशभक्ति की भावना जागृत होगी। नीचे दी गयी कविताएं आपको भगत सिंह जी के जीवन और स्वतंत्रता के लिए, उनके द्वारा हुए संघर्षों के बारे में जान पाएंगे।

क्रांतिगीत 

Bhagat Singh Poems in Hindi के माध्यम से आप भगत सिंह जी के चरित्र को जान सकते हैं, जिसमें उन पर लिखी कविता “क्रांतिगीत ” है। यह एक ऐसी कविता है, जिसने क्रांति का मंगल गान किया।

Bhagat Singh Poems in Hindi

तू जी रहा है तो ज़िंदा हो क्या ज़िंदगी गुज़ारना…
आवाज़ उठा
विरोध कर
झुका नहीं
उठा दे सर,
वो बोल जो सही है
ज़ुबाँ तेरी है
किराये की नहीं है
कटा दे सर
झुकाना मत
ये कर्त्तव्य-बोध
भुलाना मत,

यही ध्येय
यही शपथ
न शीश हो
माँ का नत,

मृत्यु को सर पे बाँध ले
अंतिम चरण भी लांघ ले
अनुभूत होगा प्राप्ति-सुख
जो है वो सब ही वार ले,

मौत हो तो चूमना
गले लगा के झूमना
न पीड़ा हो, न शोक हो
जो हो तो जयघोष हो.

जयघोष हो मातृभूमि का
उद्घोष हो मातृभूमि का!
तू जी रहा है तो ज़िंदा हो क्या ज़िंदगी गुजारना।

यह भी पढ़ें : भगत सिंह के विचार…जो जगाते हैं ‘देशभक्ति की अलख’

जलियांवाला बाग

Bhagat Singh Poems in Hindi के माध्यम से आप भगत सिंह जी को क्रांति से भर देने वाले एक हादसे जलियांवाला बाग हत्याकांड पर आधारित है। डॉ सुधीर आज़ाद द्वारा रचित कविता “जलियांवाला बाग” के माध्यम से आप जलियांवाला बाग हत्याकांड के इतिहास को जान सकते हैं।

Bhagat Singh Poems in Hindi

एक गोली पिता का सीना फाड़ गयी,
अंगुली थामे बच्चे का बचपन मार गयी
नन्हीं श्वासों के गालों पर चांटा मारा, रुला दिया,
एक गोली ने बच्चे से माँ का दामन छुड़ा दिया

कई गोलियाँ साथ वहाँ उसका देने लगीं जमकर,
एक गोली से वृद्धा की साँसें जहाँ लड़ रहीं थीं डटकर
अकेला दीया एक अँधेरे घर तब लील गयी
एक गोली जब इकलौते बेटे का मस्तक चीर गयी

एक गर्भवती की कोख उसकी साँसों के साथ उजड़ गयी,
एक गोली जो पेट में घुसी और वहीँ पर धँस गयी
झुकी कमर थी पर मस्तक गर्व से तना गयी,
एक गोली बूढ़े बाबा को निशाना बना गयी

एक गोली लगी तुतलाते बच्चे की बोली को,
फिर भी किन्तु शर्म न आई अंग्रेजी टोली को.
हों बाल-वृद्ध, माता-बहन या जवान हो,
हर गोली लग रही थी वहाँ हिन्दुस्तान को
डॉ सुधीर आज़ाद

यह भी पढ़ें – भगत सिंह के नारे

महाप्रयाण

Bhagat Singh Poems in Hindi के माध्यम से आप भगत सिंह के बलिदान पर रचित कविता “महाप्रयाण” को पढ़ सकते हैं, जिसका उद्देश्य आप तक शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जी के बलिदान की गाथा सुनाना है।

Bhagat Singh Poems in Hindi

मुमूर्षा की मेरी अभिलाषा चिरसीम
हमारा ध्येयसिद्ध
और संघर्ष अमर कर देगी

‘एक क्रन्तिकारी का मिलन है
दूजे से,
बस चलता हूँ.’
कहकर किताब लेनिन की रखकर,
फांसी के फंदे की ओर बढ़ा फिर मतवाला

“अब मैं देख रहा हूँ,
अपने ईश्वर को
उसके दर्शनीय रूप में,
फाँसी के तख़्ते पर

फाँसी के तख़्ते पर  कुछ यूँ चढ़ा,
जैसे घोड़ी चढ़े कोई दूल्हा.
उन्मुक्त-भाव, ऊँचा मस्तक
तनी ग्रीवा,
आत्मीय हंसी.
पहली बार देख रहा था विश्व.
आह !!!

महासौंदर्य यह,
आनंद असीम
मृत्यु क्या इतनी सुन्दर,
ऐसी भी मोहक होती है?
क्या इतना सुख भी देती है यह ,
क्या इतनी सार्थक भी होती है?
डॉ सुधीर आज़ाद

यह भी पढ़ें – भगत सिंह के बारे में 20 लाइन

हंसते हंसते फांसी को गले लगाया

Bhagat Singh Poems in Hindi के माध्यम से आप भगत सिंह पर रचित कविता “हंसते हंसते फांसी को गले लगाया” को पढ़ सकते हैं, जो आपके सामने वो मंज़र प्रस्तुत करेगी, जिसमें आज़ादी के मतवालों ने आज़ादी के लिए हंसकर फांसी का फंदा चूमा था।

Bhagat Singh Poems in Hindi

मोमबत्तियां बुझ गयी
चिराग तले अँधेरा छाया था
फांसी के फंदे पर जब
तीनों वीरों को झुलाया  था
सुखदेव,भगत सिंह,राजगुरु के
मन को कुछ और न भाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

तीनों के साथ आज
एक बड़ा सा काफिला था
भारतवर्ष में लगा जैसे
मेला कोई रंगीला था
लेकर जन्म इस पावन धरा पर
उन्होंने अपना फर्ज निभाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

मौत का उनको डर न था
सीने में जोश जोशीला था
परवाह नहीं थी अपने प्राण की
बसंती रंग का पहना चोला था,
छोड़ मोह माया इस जग की
अपनों को भी भुलाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

इंकलाब का नारा लिए
विदा लेने की ठानी थी
लटक गए फांसी पर किन्तु
मुख से उफ्फ तक न निकाली थी,
देश भक्ति को देख तुम्हारी
सबने अश्रुधार बहाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

तुम छोड़ गए इस दुनिया को
दिखाकर आजादी  का सपना
सपना हुआ था सच लेकिन
हमने खो दिया बहुत कुछ अपना,
गोरों ने अपनी संस्कृति को
हमारे सभ्याचार में बसाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

टुकड़े  टुकड़े कर गोरों ने
भारत माँ का सीना चीरा था
एकसूत्र करने का हम पर
बहुत ही बड़ा बीड़ा था,
हिन्दू मुस्लिम के झगड़ों ने
इंसानियत के रिश्ते को भरमाया  था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

आज़ादी के बाद तो  देखो
कैसे यह लगी  बीमारी थी
हिन्दू मुस्लिम के चक्कर  में
लड़ना सबकी लाचारी थी,
कुछ को हिंदुस्तान मिला
तो कुछ ने पाकिस्तान बनाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

जातिवाद  का खेल में
बंट गया समाज भी अपना
ये तो वो न था
जो देखा था तुमने सपना,
सत्ता का खेल निराला आया
परिवार वाद भी उसमे गहरा  छाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

गाँधी नेहरू और जिन्ना ने फिर
राजनितिक माहौल बनाया था
देश की सत्ता की खातिर
अखंडता को दांव पर लगाया था,
बस अपनी बात मनवाने को
देश को टुकड़ों में बंटवाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

सरहद के उस बंटवारे का
आज तलक असर दिखता है
भारत पाक की सीमाओं पर
सिपाही मौत से लड़ता है,
तुमने जो सोचा था वैसा
कोई ये देश बना न पाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

इक वक़्त के खाने के लिए
कोई गरीब दिन-रात तरसता  है
कुछ ने रेशम की पोशाक वालों का
गुस्सा मजलूमों पर बरसता है,
कहीं जात-पात का शोर
तो कहीं आरक्षण ने सबको लड़ाया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।

जैसा न तुमने सोचा था
वैसी है अपनी आज़ादी
देश के लोग ही कर रहे हैं
आज इस देश की बर्बादी,
जब-जब सोचा तुम्हारे बारे में
मुझको तो रोना आया था
हँसते हँसते देश की खातिर
फांसी को गले लगाया था।
हरीश चमोली, टिहरी गढ़वाल (उत्तराखंड)

यह भी पढ़ें : जानिए भगत सिंह पर 100, 200 और 300 शब्दों में भाषण

भगत सिंह पर कविता – Poem on Bhagat Singh in Hindi

भगत सिंह पर कविता (Poem on Bhagat Singh in Hindi) पढ़कर आपको उनके परम बलिदान की गाथा को जानने का अवसर प्राप्त होगा। भगत सिंह पर कविता (Poem on Bhagat Singh in Hindi) कुछ इस प्रकार हैं, जो आपको उनकी देशभक्ति और उनके साहस से परिचित करवाएंगी;

मेघ बन कर छा गये जो, वक्त के अंगार पे

मेघ बन कर छा गये जो, वक्त के अंगार पे। 
रख दिए थे शीश अपना, मृत्यु की तलवार पे॥
तज गये जो वायु शीतल, लू थपेड़ो में घिरे। 
आज भी नव चेतना बन, वो नज़र मैं हैं तिरे॥

मुक्ति से था प्रेम उनको, बेड़ियाँ चुभती रहीं। 
चाल उनकी देख सदियाँ, हैं यहाँ झुकती रहीं॥
मृत्यु से अभिसार उनका, लोभ जीवन तज गया। 
आज भी जो गीत बनकर, हर अधर पर सज गया॥
तेज उनका था अनोखा, मुक्ति जीवन सार था। 
इस धरा से उस गगन तक, गूँजता हुंकार था॥
छू सका कोई कहाँ पर, चढ़ गये जो वो शिखर। 
आज भी इतिहास में वो, बन चमकते हैं प्रखर॥
आज हम आज़ाद फिरते, उस लहू की धार से। 
चूमते थे जो धरा को, माँ समझ कर प्यार से॥
क्या करूँ कैसे करूँ मैं, छू सकूँ उनके चरण। 
देश हित बढ़ कर हृदय से, मृत्यु का कर लूँ वरण॥

कर रही उनको नमन
खिल रहा उनसे चमन
छू सकूँ उनके चरण

- श्वेता राय

यह भी पढ़ें : जानिए भगत सिंह जयंती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान

आज लग रहा कैसा जी को कैसी आज घुटन है
दिल बैठा सा जाता है, हर साँस आज उन्मन है
बुझे बुझे मन पर ये कैसी बोझिलता भारी है
क्या वीरों की आज कूच करने की तैयारी है?

हाँ सचमुच ही तैयारी यह, आज कूच की बेला
माँ के तीन लाल जाएँगे, भगत न एक अकेला
मातृभूमि पर अर्पित होंगे, तीन फूल ये पावन,
यह उनका त्योहार सुहावन, यह दिन उन्हें सुहावन।

फाँसी की कोठरी बनी अब इन्हें रंगशाला है
झूम झूम सहगान हो रहा, मन क्या मतवाला है।
भगत गा रहा आज चले हम पहन वसंती चोला
जिसे पहन कर वीर शिवा ने माँ का बंधन खोला।

झन झन झन बज रहीं बेड़ियाँ, ताल दे रहीं स्वर में
झूम रहे सुखदेव राजगुरु भी हैं आज लहर में।
नाच नाच उठते ऊपर दोनों हाथ उठाकर,
स्वर में ताल मिलाते, पैरों की बेड़ी खनकाकर।

पुनः वही आलाप, रंगें हम आज वसंती चोला
जिसे पहन राणा प्रताप वीरों की वाणी बोला।
वही वसंती चोला हम भी आज खुशी से पहने,
लपटें बन जातीं जिसके हित भारत की माँ बहनें।

उसी रंग में अपने मन को रँग रँग कर हम झूमें,
हम परवाने बलिदानों की अमर शिखाएँ चूमें।
हमें वसंती चोला माँ तू स्वयं आज पहना दे,
तू अपने हाथों से हमको रण के लिए सजा दे।

सचमुच ही आ गया निमंत्रण लो इनको यह रण का,
बलिदानों का पुण्य पर्व यह बन त्योहार मरण का।
जल के तीन पात्र सम्मुख रख, यम का प्रतिनिधि बोला,
स्नान करो, पावन कर लो तुम तीनो अपना चोला।

झूम उठे यह सुनकर तीनो ही अल्हण मर्दाने,
लगे गूँजने और तौव्र हो, उनके मस्त तराने।
लगी लहरने कारागृह में इंक्लाव की धारा,
जिसने भी स्वर सुना वही प्रतिउत्तर में हुंकारा।

खूब उछाला एक दूसरे पर तीनों ने पानी,
होली का हुड़दंग बन गई उनकी मस्त जवानी।
गले लगाया एक दूसरे को बाँहों में कस कर,
भावों के सब बाँढ़ तोड़ कर भेंटे वीर परस्पर।

मृत्यु मंच की ओर बढ़ चले अब तीनो अलबेले,
प्रश्न जटिल था कौन मृत्यु से सबसे पहले खेले।
बोल उठे सुखदेव, शहादत पहले मेरा हक है,
वय में मैं ही बड़ा सभी से, नहीं तनिक भी शक है।

तर्क राजगुरु का था, सबसे छोटा हूँ मैं भाई,
छोटों की अभिलषा पहले पूरी होती आई।
एक और भी कारण, यदि पहले फाँसी पाऊँगा,
बिना बिलम्ब किए मैं सीधा स्वर्ग धाम जाऊँगा।

बढ़िया फ्लैट वहाँ आरक्षित कर तैयार मिलूँगा,
आप लोग जब पहुँचेंगे, सैल्यूट वहाँ मारूँगा।
पहले ही मैं ख्याति आप लोगों की फैलाऊँगा,
स्वर्गवासियों से परिचय मैं बढ, चढ़ करवाऊँगा।

तर्क बहुत बढ़िया था उसका, बढ़िया उसकी मस्ती,
अधिकारी थे चकित देख कर बलिदानी की हस्ती।
भगत सिंह के नौकर का था अभिनय खूब निभाया,
स्वर्ग पहुँच कर उसी काम को उसका मन ललचाया।

भगत सिंह ने समझाया यह न्याय नीति कहती है,
जब दो झगड़ें, बात तीसरे की तब बन रहती है।
जो मध्यस्त, बात उसकी ही दोनों पक्ष निभाते,
इसीलिए पहले मैं झूलूं, न्याय नीति के नाते।

यह घोटाला देख चकित थे, न्याय नीति अधिकारी,
होड़ा होड़ी और मौत की, ये कैसे अवतारी।
मौत सिद्ध बन गई, झगड़ते हैं ये जिसको पाने,
कहीं किसी ने देखे हैं क्या इन जैसे दीवाने?

मौत, नाम सुनते ही जिसका, लोग काँप जाते हैं,
उसको पाने झगड़ रहे ये, कैसे मदमाते हें।
भय इनसे भयभीत, अरे यह कैसी अल्हण मस्ती,
वन्दनीय है सचमुच ही इन दीवानो की हस्ती।

मिला शासनादेश, बताओ अन्तिम अभिलाषाएँ,
उत्तर मिला, मुक्ति कुछ क्षण को हम बंधन से पाएँ।
मुक्ति मिली हथकड़ियों से अब प्रलय वीर हुंकारे,
फूट पड़े उनके कंठों से इन्क्लाब के नारे ।

इन्क्लाब हो अमर हमारा, इन्क्लाब की जय हो,
इस साम्राज्यवाद का भारत की धरती से क्षय हो।
हँसती गाती आजादी का नया सवेरा आए,
विजय केतु अपनी धरती पर अपना ही लहराए।

और इस तरह नारों के स्वर में वे तीनों डूबे,
बने प्रेरणा जग को, उनके बलिदानी मंसूबे।
भारत माँ के तीन सुकोमल फूल हुए न्योछावर,
हँसते हँसते झूल गए थे फाँसी के फंदों पर।

हुए मातृवेदी पर अर्पित तीन सूरमा हँस कर,
विदा हो गए तीन वीर, दे यश की अमर धरोहर।
अमर धरोहर यह, हम अपने प्राणों से दुलराएँ,
सिंच रक्त से हम आजादी का उपवन महकाएँ।

जलती रहे सभी के उर में यह बलिदान कहानी,
तेज धार पर रहे सदा अपने पौरुष का पानी।
जिस धरती बेटे हम, सब काम उसी के आएँ,
जीवन देकर हम धरती पर, जन मंगल बरसाएँ।।

- श्रीकृष्ण सरल

बम चख़ है अपनी शाहे रईअत पनाह से

बम चख़ है अपनी शाहे रईयत पनाह से
इतनी सी बात पर कि 'उधर कल इधर है आज' ।
उनकी तरफ़ से दार-ओ-रसन, है इधर से बम
भारत में यह कशाकशे बाहम दिगर है आज ।
इस मुल्क में नहीं कोई रहरौ मगर हर एक
रहज़न बशाने राहबरी राहबर है आज ।
उनकी उधर ज़बींने-हकूमत पे है शिकन
अंजाम से निडर जिसे देखो इधर है आज ।

-अल्लामा 'ताजवर' नजीबाबादी

यह भी पढ़ें : 156वीं गाँधी जयंती पर शेयर करें बापू के संघर्ष और आदर्शों पर ये शायरी

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह पर शायरी

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह पर शायरी कुछ इस प्रकार हैं, जिनका मकसद नई पीढ़ी को प्रेरित करना है।

Bhagat Singh Poems in Hindi

हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली
ये मुश्ते खाक है, फानी रहे न रहे
भगत सिंह

उसे यह फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़े जफ़ा क्या है
हमें यह शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
-कुँवर प्रतापचन्द्र ‘आज़ाद’

दहर से क्यों ख़फ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें,
सारा जहाँ अदू सही, आओ मुक़ाबला करें
-बृजनारायण ‘चकबस्त’

संबंधित आर्टिकल

Rabindranath Tagore PoemsHindi Kavita on Dr BR Ambedkar
Christmas Poems in HindiBhartendu Harishchandra Poems in Hindi
Atal Bihari Vajpayee ki KavitaPoem on Republic Day in Hindi
Arun Kamal Poems in HindiKunwar Narayan Poems in Hindi
Poem of Nagarjun in HindiBhawani Prasad Mishra Poems in Hindi
Agyeya Poems in HindiPoem on Diwali in Hindi
रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएंरामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता
Ramdhari singh dinkar ki kavitayenMahadevi Verma ki Kavitayen
Lal Bahadur Shastri Poems in HindiNew Year Poems in Hindi

आशा है कि Bhagat Singh Poems in Hindi के माध्यम से आप भगत सिंह पर कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

प्रातिक्रिया दे

Required fields are marked *

*

*