Poem of Nagarjun in Hindi : पढ़िए नागार्जुन की वो कविताएं, जो आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी

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Poem of Nagarjun in Hindi Photo Credit : hindwi.org

विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों का उद्देश्य अधिकाधिक ज्ञान अर्जित करने का होता है, इसी ज्ञान की कड़ी में विद्यार्थियों को कविताओं की महत्वता को भी समझ लेना चाहिए। कविताएं समाज को साहसिक और निडर बनाती हैं, कविताएं मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। कविताओं के माध्यम से समाज की चेतना को जागृत करने वाले कवि “नागार्जुन” की लेखनी ने सदा ही समाज के हर वर्ग को प्रेरित करने का काम किया है। Poem of Nagarjun in Hindi विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके बाद उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।

कौन हैं नागार्जुन?

Poem of Nagarjun in Hindi पढ़ने सेे पहले आपको नागार्जुन जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि नागार्जुन भी हैं, जिनकी लेखनी आज के आधुनिक दौर में भी प्रासंगिक हैं।

30 जून 1911 को नागार्जुन का जन्म बिहार के मधुबनी में हुआ था। नागार्जुन जी ने अपनी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्राम की संस्कृत पाठशाला से प्राप्त की, जिसके बाद उन्होंने काशी और कलकत्ता में संस्कृत का अध्ययन किया। काशी में रहते हुए ही नागार्जुन जी ने अवधी, ब्रज, खड़ी बोली आदि का भी अध्ययन किया। उनकी कविताओं की भाषा सरल, सहज और प्रवाहपूर्ण है, जिस कारण आज भी उनकी कविताएं बेहद प्रासंगिक हैं।

नागार्जुन जी की प्रमुख रचनाओं में ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘प्यासी पथराई आँखें’, ‘तालाब की मछलियाँ’, ‘चंदना’, ‘तुमने कहा था’, ‘खिचड़ी विप्लव देखा हमने’, ‘हज़ार-हज़ार बाहों वाली’, ‘पुरानी जूतियों का कोरस’, ‘रत्न गर्भ’, ‘ऐसे भी हम क्या, ऐसे भी तुम क्या!’, ‘आख़िर ऐसा क्या कह दिया मैंने’, ‘इस ग़ुब्बारे की छाया में’, ‘भूल जाओ पुराने सपने’, ‘अपने खेत में’ इत्यादि हैं।

वर्ष 1969 में नागार्जुन जी की रचना ‘पत्रहीन नग्न गाछ’ (मैथिली) के कारण उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया। संस्कृत, हिंदी, अवधि, ब्रज और खड़ी बोली के महारथी “जनकवि” नागार्जुन ने 5 नवंबर 1998 को बिहार के दरभंगा में अपनी अंतिम सांस लेकर पंचतत्व में विलीन हुए।

उनको प्रणाम!

Poem of Nagarjun in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, नागार्जुन जी की कविताओं की श्रेणी में से एक कविता “उनको प्रणाम!” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

जो नहीं हो सके पूर्ण-काम 
मैं उनका करता हूँ प्रणाम। 
कुछ कुंठित औ’ कुछ लक्ष्य-भ्रष्ट 
जिनके अभिमंत्रित तीर हुए; 
रण की समाप्ति के पहले ही 
जो वीर रिक्त तूणीर हुए! 
-उनको प्रणाम! 

जो छोटी-सी नैया लेकर 
उतरे करने को उदधि-पार; 
मन की मन मे ही रही, स्वयं 
हो गए उसी में निराकार! 
-उनको प्रणाम! 

जो उच्च शिखर की ओर बढ़े 
रह-रह नव-नव उत्साह भरे; 
पर कुछ ने ले ली हिम-समाधि 
कुछ असफल ही नीचे उतरे! 
-उनको प्रणाम! 

एकाकी और अंकिचन हो 
जो भू-परिक्रमा को निकले; 
हो गए पंगु, प्रति-पद जिनके 
इतने अदृष्ट के दाव चले! 
-उनको प्रणाम! 

कृत-कृत नहीं जो हो पाए; 
प्रत्युत फाँसी पर गए झूल 
कुछ ही दिन बीते हैं, फिर भी 
यह दुनिया जिनको गई भूल! 
-उनको प्रणाम! 

थी उग्र साधना, पर जिनका 
जीवन नाटक दुःखांत हुआ; 
था जन्म-काल में सिंह लग्न 
पर कुसमय ही देहांत हुआ! 
-उनको प्रणाम! 

दृढ़ व्रत औ’ दुर्दम साहस के 
जो उदाहरण थे मूर्ति-मंत; 
पर निरवधि बंदी जीवन ने 
जिनकी धुन का कर दिया अंत! 
-उनको प्रणाम! 

जिनकी सेवाएँ अतुलनीय 
पर विज्ञापन से रहे दूर 
प्रतिकूल परिस्थिति ने जिनके 
कर दिए मनोरथ चूर-चूर! 
-उनको प्रणाम!

-नागार्जुन

बहुत दिनों के बाद

Poem of Nagarjun in Hindi आपकी सोच का विस्तार कर सकती हैं, नागार्जुन जी की कविताओं की श्रेणी में से एक कविता “बहुत दिनों के बाद” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर देखी 
पकी-सुनहली फ़सलों की मुस्कान 
-बहुत दिनों के बाद 

बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैं जी भर सुन पाया 
धान कूटती किशोरियों की कोकिलकंठी तान 
-बहुत दिनों के बाद 

बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर सूँघे 
मौलसिरी के ढेर-ढेर-से ताज़े-टटके फूल 
-बहुत दिनों के बाद 

बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैं जी भर छू पाया 
अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल 
-बहुत दिनों के बाद 

बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर तालमखाना खाया 
गन्ने चूसे जी भर 
-बहुत दिनों के बाद 

बहुत दिनों के बाद 
अबकी मैंने जी भर भोगे 
गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर 
-बहुत दिनों के बाद

-नागार्जुन

बादल को घिरते देखा

Poem of Nagarjun in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, नागार्जुन जी की कविताओं की श्रेणी में से एक कविता “बादल को घिरते देखा” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

अमल धवल गिरि के शिखरों पर, 
बादल को घिरते देखा है। 
छोटे-छोटे मोती जैसे 
उसके शीतल तुहिन कणों को 
मानसरोवर के उन स्वर्णिम 
कमलों पर गिरते देखा है, 
बादल को घिरते देखा है। 

तुंग हिमालय के कंधों पर 
छोटी बड़ी कई झीलें हैं, 
उनके श्यामल नील सलिल में 
समतल देशों से आ-आकर 
पावस की ऊमस से आकुल 
तिक्त-मधुर बिषतंतु खोजते 
हंसों को तिरते देखा है। 
बादल को घिरते देखा है। 

ऋतु वसंत का सुप्रभात था 
मंद-मंद था अनिल बह रहा 
बालारुण की मृदु किरणें थीं 
अगल-बग़ल स्वर्णाभ शिखर थे 
एक-दूसरे से विरहित हो 
अलग-अलग रहकर ही जिनको 
सारी रात बितानी होती, 
निशा-काल से चिर-अभिशापित 
बेबस उस चकवा-चकई का 
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें 
उस महान सरवर के तीरे 
शैवालों की हरी दरी पर 
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है। 
बादल को घिरते देखा है। 

दुर्गम बर्फ़ानी घाटी में 
शत-सहस्र फुट ऊँचाई पर 
अलख नाभि से उठने वाले 
निज के ही उन्मादक परिमल— 
के पीछे धावित हो-होकर 
तरल-तरुण कस्तूरी मृग को 
अपने पर चिढ़ते देखा है, 
बादल को घिरते देखा है। 

कहाँ गए धनपति कुबेर वह 
कहाँ गई उसकी वह अलका 
नहीं ठिकाना कालिदास के 
व्योम-प्रवाही गंगाजल का, 
ढूँढ़ा बहुत किंतु लगा क्या 
मेघदूत का पता कहीं पर, 
कौन बताए वह छायामय 
बरस पड़ा होगा न यहीं पर, 
जाने दो, वह कवि-कल्पित था, 
मैंने तो भीषण जाड़ों में 
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर, 
महामेघ को झंझानिल से 
गरज-गरज भिड़ते देखा है, 
बादल को घिरते देखा है। 

शत-शत निर्झर-निर्झरणी कल 
मुखरित देवदारु-कानन में, 
शोणित धवल भोज पत्रों से 
छाई हुई कुटी के भीतर 
रंग-बिरंगे और सुगंधित 
फूलों से कुंतल को साजे, 
इंद्रनील की माला डाले 
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में, 
कानों में कुवलय लटकाए, 
शतदल लाल कमल वेणी में, 
रजत-रचित मणि-खचित कलामय 
पान पात्र द्राक्षासव पूरित 
रखे सामने अपने-अपने 
लोहित चंदन की त्रिपटी पर, 
नरम निदाग बाल-कस्तूरी 
मृगछालों पर पलथी मारे 
मदिरारुण आँखों वाले उन 
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की 
मृदुल मनोरम अँगुलियों को 
वंशी पर फिरते देखा है, 
बादल को घिरते देखा है।

-नागार्जुन

तकली मेरे साथ रहेगी

Poem of Nagarjun in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, नागार्जुन जी की कविताओं में से एक कविता “तकली मेरे साथ रहेगी” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

राजनीति के बारे में अब एक शब्द भी नहीं कहूँगा 
तकली मेरे साथ रहेगी, मैं तकली के साथ रहूँगा 
नहीं ज़रूरत रही देश में सत्याग्रह की, अनुशासन है 
सही राह पर हाकिम हैं तो भली जगह पर सिंहासन है 

संकट पहुँचा चरम बिंदु पर, एक वर्ष तक रहा मौन मैं 
नहीं पता चलता था बिल्कुल, कौन आप हो, और कौन मैं 
बहुत किया जब चिंतन मैंने, तकली का तब मिला सहारा 
आओ भाई, छोड़-छाड़कर राजनीति की सूखी धारा 

सत्य रहेगा अंदर, ऊपर से सोने का ढक्कन होगा 
चाँदी की तकली होगी, तो मुँह में असली मक्खन होगा 
करनी में गड़बड़ियाँ होंगी, कथनी में अनुशासन होगा 
हाथों में बंदूक़ें होंगी, कंधों पर सिंहासन होगा 

तकली से तकलीफ़ मिटाओ, बाक़ी सब कुछ सहते जाओ 
ख़ुद ही सब कुछ सुनते जाओ, ख़ुद ही सब कुछ कहते जाओ 
ठंड लगे तो गुदमा ओढ़ो, भूख लगे तो मक्खन खाओ 
राजनीति का लफड़ा छोड़ो, बस, बाबा पर ध्यान जमाओ 

बीस सूत्र हैं, बस काफ़ी हैं, निकलें इनसे लाखों धागे 
तुम आओगे पीछे-पीछे, मैं जाऊँगा आगे-आगे 
चीफ़ मिनिस्टर पैर छुएँगे, शीश नवाएँगे ऑफ़िसर 
सवदय का जादू अबके नाचेगा शासन के सिर पर 

आध्यात्मिकता पर बोलूँगा, बोलूँगा विज्ञान तत्व पर 
राजनीति का ज़िक्र करूँगा थोड़ा-थोड़ा ऊपर-ऊपर 
वही सुनूँगा याद रखूँगा जो मुझसे निर्मला कहेगी 
लोगों से मिलने-जुलने का माध्यम मेरा वही रहेगी 

शांति, शांति, संपूर्ण शांति बस, मेरा एक यही नारा 
अपना मठ, अपने जन प्रिय हैं मुझको प्रिय अपना इकतारा 
मुझको प्रिय है मैत्री अपनी, प्रिय है यह करुणा कल्याणी 
अपने मौन मुझे प्यारे हैं, मुझको प्रिय है अपनी वाणी 

दुर्जन हैं जो हँसते होंगे, बाबा उन पर ध्यान न देता 
बकवासों का अंत नहीं है, बाबा उन पर कान न देता 
बता नहीं पाऊँगा यह मैं, मौन मुझे कितना प्यारा है 
बता नहीं पाऊँगा यह मैं कौन मुझे कितना प्यारा है 

आज वृद्ध हूँ, बचपन में था भोली माँ का भोला बालक 
महा-मुखर था कभी, आज तो महा-मौन का हूँ संचालक 
सब मेरे, मैं भी हूँ सबका, मेरी मठिया सबका घर है 
आप और हम सब नीचे हैं, सबके ऊपर परमेश्वर है 
राजनीति के बारे में अब एक शब्द भी नहीं कहूँगा 
तकली मेरे साथ रहेगी, मैं तकली के साथ रहूँगा

-नागार्जुन

अकाल और उसके बाद

Poem of Nagarjun in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, नागार्जुन जी की कविताओं में से एक कविता “अकाल और उसके बाद” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास 
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास 
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त 
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त 

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद 
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद 
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद 
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद

-नागार्जुन

सिंदूर तिलकित भाल

Poem of Nagarjun in Hindi (नागार्जुन की कविताएं) के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, नागार्जुन जी की कविताओं में से एक कविता “सिंदूर तिलकित भाल” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

घोर निर्जन में परिस्थिति ने दिया है डाल! 
याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल! 
कौन है वह व्यक्ति जिसको चाहिए न समाज? 
कौन है वह एक जिसको नहीं पड़ता दूसरे से काज? 
चाहिए किसको नहीं सहयोग? 
चाहिए किसको नहीं सहवास? 
कौन चाहेगा कि उसका शून्य में टकराए यह उच्छ्वास? 

हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण 
जिसको डाल दे कोई कहीं भी 
करेगा वह कभी कुछ न विरोध 
करेगा वह कुछ नहीं अनुरोध 
वेदना ही नहीं उसके पास 
उठेगा फिर कहाँ से निःश्वास 
मैं न साधारण, सचेतन जंतु 
यहाँ हाँ-ना किंतु और परंतु 

यहाँ हर्ष-विषाद-चिंता-क्रोध 
यहाँ है सुख-दुख का अवबोध 
यहाँ है प्रत्यक्ष औ’ अनुमान 
यहाँ स्मृति-विस्मृति सभी के स्थान 
तभी तो तुम याद आतीं प्राण, 
हो गया हूँ मैं नहीं पाषाण! 

याद आते स्वजन 
जिनकी स्नेह से भींगी अमृतमय आँख 
स्मृति-विहंगम को कभी थकने न देंगी पाँख 
याद आता मुझे अपना वह ‘तरउनी’ ग्राम 
याद आतीं लीचियाँ, वे आम 
याद आते मुझे मिथिला के रुचिर भू-भाग 
याद आते धान 
याद आते कमल, कुमुदिनि और तालमखान 

याद आते शस्य-श्यामल जनपदों के 
रूप-गुण-अनुसार ही रखे गए वे नाम 
याद आते वेणुवन के नीलिमा के निलय अति अभिराम 
धन्य वे जिनके मृदुलतम अंक 
हुए थे मेरे लिए पर्यंक 
धन्य वे जिनकी उपज के भाग 
अन्न-पानी और भाजी-साग 

फूल-फल औ’ कंद-मूल अनेक विध मधु-मांस 
विपुल उनका ऋण, सधा सकता न मैं दशमांश 
ओह, यद्यपि पड़ गया हूँ दूर उनसे आज 
हृदय से पर आ रही आवाज़ 
धन्य वे जन, वही धन्य समाज 
यहाँ भी तो हूँ न मैं असहाय 
यहाँ भी हैं व्यक्ति औ’ समुदाय 
किंतु जीवन भर रहूँ फिर भी प्रवासी ही कहेंगे हाय! 
मरूँगा तो चिता पर दो फूल देंगे डाल 
समय चलता जाएगा निर्बाध अपनी चाल 

सुनोगी तुम तो उठेगी हूक 
मैं रहूँगा सामने (तस्वीर में) पर मूक 
सांध्य नभ में पश्चिमांत-समान 
लालिमा का जब करुण आख्यान 
सुना करता हूँ, सुमुखि, उस काल 
याद आता है तुम्हारा सिंदूर तिलकित भाल।

-नागार्जुन

सिके हुए दो भुट्टे

Poem of Nagarjun in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, नागार्जुन जी की कविताओं में से एक कविता “सिके हुए दो भुट्टे” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

सिके हुए दो भुट्टे सामने आए 
तबीयत खिल गई 
ताज़ा स्वाद मिला दूधिया दानों का 
तबीयत खिल गई 
दाँतों की मौजूदगी का सुफल मिला 
तबीयत खिल गई 
अखिलेश ने अपनी मेहनत से 
इन पौधों को उगाया था 

वार्ड नंबर दस के पीछे की क्यारियों में 
वार्ड नंबर दस के आगे की क्यारियों में 
ढाई महीने पहले की अखिलेश की खेती 
इन दिनों अब जाने किस-किस को पहुँचा रही है सुख 
बीसियों जने आज अखिलेश को दुआ दे रहे हैं 
सिके हुए भुट्टों का स्वाद ले रहे हैं 
डिस्ट्रिक्ट जेल की चहारदीवारियों के अंदर 
इन क्यारियों में अखिलेश अब सब्ज़ियाँ उगाएगा 
वह किसी मौसम में इन्हें ख़ाली नहीं रहने देगा 
श्रम का अपना सु-फल वो 
जाने किस-किस को चखाएगा 

वो अपना मन ताश और शतरंज में नहीं लगाएगा 
हममें से जो बातूनी और कल्पना-प्रवण हैं 
वे भी अखिलेश की फलित मेधा का लोहा मानते हैं— 
मन ही मन प्रणत हैं वे अखिलेश की उद्यमशीलता के प्रति 
पसीना-पसीना हो जाते हैं तरुण 
लगाते-लगाते संपूर्ण क्रांति के नारे 
फूल-फूल जाती हैं गर्दनों की नसें... 
काश वे भी जेल के पिछवाड़े क्यारियों में 
कुछ न कुछ उपजा के चले जाएँ 
भले, दूसरे ही उनकी उपज के फल पाएँ!

-नागार्जुन

गुलाबी चूड़ियाँ

Poem of Nagarjun in Hindi (नागार्जुन की कविताएं) के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, नागार्जुन जी की कविताओं में से एक कविता “गुलाबी चूड़ियाँ” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ, 
सात साल की बच्ची का पिता तो है! 
सामने गियर से ऊपर 
हुक से लटका रक्खी हैं 
काँच की चार चूड़ियाँ गुलाबी 
बस की रफ़्तार के मुताबिक़ 
हिलती रहती हैं... 

झूककर मैंने पूछ लिया 
खा गया मानो झटका 
अधेड़ उम्र का मुच्छड़ रोबीला चेहरा 
आहिस्ते से बोला ׃ हाँ सा’ब 
लाख कहता हूँ, नहीं मानती है मुनिया 
टाँगे हुए है कई दिनों से 
अपनी अमानत 
यहाँ अब्बा की नज़रों के सामने 
मैं भी सोचता हूँ 

क्या बिगाड़ती हैं चूड़ियाँ 
किस जुर्म पे हटा दूँ इनको यहाँ से? 
और ड्राइवर ने एक नज़र मुझे देखा 
और मैंने एक नज़र उसे देखा 

छलक रहा था दूधिया वात्सल्य बड़ी-बड़ी आँखों में 
तरलता हावी थी सीधे-सादे प्रश्न पर 
और अब वे निगाहें फिर से हो गईं सड़क की ओर 
और मैंने झुककर कहा— 
हाँ भाई, मैं भी पिता हूँ 
वो तो बस यूँ ही पूछ लिया आपसे 
बर्ना ये किसको नहीं भाएँगी? 
नन्हीं कलाइयों की गुलाबी चूड़ियाँ!

-नागार्जुन

आशा है कि Poem of Nagarjun in Hindi (नागार्जुन की कविताएं) के माध्यम से आप नागार्जुन की कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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