होली, रंगों का यह उत्सव हमारे जीवन को नई ऊर्जा देता है और हर रंग अपने आप में एक विशेष संदेश समेटे हुए होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इन रंगों का हमारे मन और जीवन पर कितना गहरा प्रभाव पड़ता है? लाल रंग ऊर्जा और प्रेम का प्रतीक है, तो पीला रंग बुद्धिमत्ता और आत्मज्ञान का। हरा रंग प्रकृति की ताजगी और सुख-समृद्धि लाता है, तो नीला रंग शांति और विश्वास को दर्शाता है। यही नहीं, हर रंग की अपनी एक कहानी होती है और जब ये रंग कविताओं के रूप में ढलते हैं, तो उनकी भावनाएँ और भी जीवंत हो जाती हैं। कविताएँ सिर्फ शब्दों का संयोजन नहीं होतीं, बल्कि वे एक अहसास होती हैं, जो हमारे दिल की गहराइयों तक पहुँचती हैं। जब होली पर कविताएँ लिखी जाती हैं, तो वे हमें इस रंगीन पर्व की गहराई को समझने में मदद करती हैं। इस लेख में आप होली के रंग और उनके अद्भुत प्रभाव कविताओं के माध्यम से (Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se) जान पाएंगे, जिसकी जानकारी इस प्रकार हैं।
होली पर कविताएं – Holi Ki Kavitayen
होली पर कविताएं पढ़कर आप अपने जीवन में रंगों की एहमियत समझ सकते हैं। Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se ही समाज में समाजिक सद्भावना को बढ़ाया जा सकता है। होली पर कविताएं कुछ इस प्रकार हैं;
होली
न बजती बाँसुरी कोई न खनके पांव की पायल
न खेतों में लहरता है किसी का टेसुआ आँचल्
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
हरे नीले गुलाबी कत्थई सब रंग हैं फीके
न मटकी है दही वाली न माखन के कहीं छींके
लपेटे खिन्नियों का आवरण, मिलती निबोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
अलावों पर नहीं भुनते चने के तोतई बूटे
सुनहरे रंग बाली के कहीं खलिहान में छूटे
न ही दरवेश ने कोई कहानी आज बोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न गेरू से रंगी पौली, न आटे से पुरा आँगन
पता भी चल नहीं पाया कि कब था आ गया फागुन
न देवर की चुहल है , न ही भाभी की ठिठोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कीकर है, न उन पर सूत बांधें उंगलियां कोई
न नौराते के पूजन को किसी ने बालियां बोईं
न अक्षत देहरी बिखरे, न चौखट पर ही रोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न ढोलक न मजीरे हैं न तालें हैं मॄदंगों की
न ही दालान से उठती कही भी थाप चंगों की
न रसिये गा रही दिखती कहीं पर कोई टोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कालिंदी की लहरें हैं न कुंजों की सघन छाया
सुनाई दे नहीं पाता किसी ने फाग हो गाया
न शिव बूटी किसी ने आज ठंडाई में घोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
– राकेश खंडेलवाल
कविता 1
रंगों का त्योहार है होली
खुशियों की बौछार है होली
लाल गुलाबी पीले देखो
रंग सभी रंगीले देखों
पिचकारी भर-भर ले आते
इक दूजे पर सभी चलाते
होली पर अब ऐसा हाल
हर चेहरे पर आज गुलाल
आओ यारो इसी बहाने
दुश्मन को भी चलो मनाने
– गुलशन मदान
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कविता 3
हुआ जो आके निशाँ आश्कार होली का
बुतों के ज़र्द पैराहन में इत्र चम्पा जब महका
बजा लो तब्लो तरब इस्तमाल होली का
होली पिचकारी
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
होली की बहार
जब खेली होली नंद ललन
क़ातिल जो मेरा ओढ़े इक सुर्ख़ शाल आया
फिर आन के इश्रत का मचा ढंग ज़मी पर
मियां तू हमसे न रख कुछ गुबार होली में
जुदा न हमसे हो ऐ ख़ुश जमाल होली में
मिलने का तेरे रखते हैं हम ध्यान इधर देख
आ झमके ऐशो-तरब क्या क्या, जब हुश्न दिखाया होली ने
आलम में फिर आई तरब उनवान से होली
होली की बहार आई फ़रहत की खिलीं कलियां
जब आई होली रंग भरी
होली की रंग फ़िशानी से है रंग यह कुछ पैराहन का
सनम तू हमसे न हो बदगुमान होली में
होली हुई नुमायां सौ फ़रहतें सभलियां
जो ज़र्द जोड़े से ऐ यार! तू खेले होली
उनकी होली तो है निराली जो हैं मांग भरी
– नज़ीर अकबराबादी
कविता 4
देखो-देखो होली है आई
चुन्नू-मुन्नू के चेहरे पर खुशियां हैं आई
मौसम ने ली है अंगड़ाई।
शीत ऋतु की हो रही है बिदाई
ग्रीष्म ऋतु की आहट है आई
सूरज की किरणों ने उष्णता है दिखलाई
देखो-देखो होली है आई।
बच्चों ने होली की योजना खूब है बनाई
रंगबिरंगी पिचकारियां बाबा से है मंगवाई
रंगों और गुलाल की सूची है रखवाई
जिसकी काका ने अनुमति है नहीं दिलवाई।
दादाजी ने प्राकृतिक रंगों की बात है समझाई
जिस पर सभी बच्चों ने सहमति है जतलाई
बच्चों ने खूब मिठाइयां खाकर शहर में खूब धूम है मचाई
देखो-देखो होली है आई।
होली ने भक्त प्रहलाद की स्मृति है करवाई
बच्चों और बड़ों ने कचरे और अवगुणों की होली है जलाई
होली ने कर दी है अनबन की सफाई
जिसने दी है प्रेम की जड़ों को गहराई।
बच्चों! अब है परीक्षा की घड़ी आई
तल्लीनता से करो पढ़ाई वरना सहनी पड़ेगी पिटाई
अथक परिश्रम, पुनरावृत्ति देगी सफलता
अपार जन-जन की मिलेगी बधाई
होगा प्रतीत ऐसा होली-सी खुशियां हैं फिर लौट आई
देखो-देखो होली है आई।
श्रीमती ममता असाटी
साभार – देवपुत्र
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कविता 5
पिचकारी रे पिचकारी रे
कितनी प्यारी पिचकारी।
छुपकर रहती रोजाना,
होली पर आ जाती है,
रंग-बिरंगे रंगों को इक-दूजे पर बरसाती है।
कोई हल्की, कोई भारी,
कितनी प्यारी पिचकारी।
होता रूप अजब अनूठा,
कोई पतली, कोई छोटी,
दुबली दिखती, गोल-मटोल,
कोई रहती मोटी-मोटी।
देखो सुन्दर लगती सारी,
कितनी प्यारी पिचकारी।
होली का त्योहार तो भैया,
इसके बिना रहे अधूरा,
नहीं छोड़े दूजों पर जब तक,
मजा नहीं आता है पूरा।
करती रंगों की तैयारी
कितनी प्यारी पिचकारी।
– सुमित शर्मा
होली के रंग और उनके अद्भुत प्रभाव कविताओं के माध्यम से
होली के रंग और उनके अद्भुत प्रभाव कविताओं के माध्यम से (Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se) आप इस उत्सव को हर्षोल्लास के साथ मना पाएंगे। यह कविताएं कुछ इस प्रकार हैं –
मोहन खेल रहे है होरी
मोहन खेल रहे है होरी।
गुवाल बाल संग रंग अनेकों, धन्य-धन्य यह होरी।
वो गुलाल राधे ले आई, मन मोहन पर ही बरसाई,
नन्दलाल भी लाल होगये, लाल-लाल वृज गौरी।
गुवाल सखा सब चंग बजावें, कृष्ण संग में नाचें गावें,
ऐसी धूम मचाई कान्हा, मस्त मनोहर जोरी।
नन्द महर घर रंग रँगीला,रंग-रंग से होगया पीला,
बहुत सजीली राधे रानी, वे अहिरों की छोरी।
शोभा देख लुभाये शिवजी, सती सयानी के हैं पिवजी,
शिवदीन लखी होरी ये रंग में, रंग दई चादर मोरी।
– शिवदीन राम जोशी
होली
कैसी होरी खिलाई।
आग तन-मन में लगाई॥
पानी की बूँदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई।
पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई॥
तबौ नहिं हबस बुझाई।
भूँजी भाँग नहीं घर भीतर, का पहिनी का खाई।
टिकस पिया मोरी लाज का रखल्यो, ऐसे बनो न कसाई॥
तुम्हें कैसर दोहाई।
कर जोरत हौं बिनती करत हूँ छाँड़ो टिकस कन्हाई।
आन लगी ऐसे फाग के ऊपर भूखन जान गँवाई॥
तुन्हें कछु लाज न आई।
– भारतेंदु हरिश्चंद्र
होली का आया त्यौहार
प्राची गुझिया बना रही है,
दादी पूड़ी बेल रही है ।
कभी-कभी पिचकारी लेकर,
रंगों से वह खेल रही है ।।
तलने की आशा में आतुर
गुझियों की है लगी कतार ।
घर-घर में खुशियाँ उतरी हैं,
होली का आया त्यौहार ।।
मम्मी जी दे दो खाने को,
गुझिया-मठरी का उपहार ।
सजता प्राची के नयनों में,
मिष्ठानों का मधु-संसार ।।
सजे-धजे हैं बहुत शान से
मीठे-मीठे शक्करपारे ।
कोई पीला, कोई गुलाबी,
आँखों को ये लगते प्यारे ।।
होली का अवकाश पड़ गया,
दही-बड़े कल बन जाएँगे ।
चटकारे ले-लेकर इनको,
बड़े मज़े से हम खायेंगे ।।
– रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
होली आई
सतरंगी बौछारें लेकर
इंद्रधनुष की धारें लेकर,
मस्ती की हमजोली आई
रंग जमाती होली आई!
पिचकारी हो या गुब्बारा
सबसे छूट रहा फव्वारा,
आसमान में चित्र खींचती
कैसी आज रंगोली आई!
टेसू और गुलाल लगाए
मस्त-मलंगों के दल आए,
नई तरंगों पर लहराती
उनके साथ ठिठोली आई!
महका-महका-सा फागुन है
चहकी-चहकी-सी हर धुन है,
कहीं काफियाँ, कहीं ठुमरियाँ
कहीं प्रीत की डोली आई!
चंग, मृदंग बजे बस्ती में
झूम उठे बच्चे मस्ती में,
ताल-ताल पर ठुमका देती
धूल उड़ाती टोली आई!
रंग जमाती होली आई!
– योगेन्द्र दत्त शर्मा
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