होली पर कविताएं: होली के रंग और उनके अद्भुत प्रभाव कविताओं के माध्यम से

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Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se
Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se

Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se युवाओं को होली पर कविता पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा। होली की कविताएं विद्यार्थियों को इस पर्व के बारे में बताएंगी, यह कहना अनुचित नहीं होगा कि होली की कविताएं इस पर्व के उत्साह को बढ़ाने का कार्य करती हैं। होली की कविताएं और होली के पर्व को भावनात्मक रूप से और भी रंगीन बना देती हैं। Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se ही आप होली की कविताएं पढ़ पाएंगे। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को इन कविताओं का अध्ययन जरूर करना चाहिए, जिनसे आप पर्वों की महानता के बारे में जान पाएं। आईये जानें कविताओं के माध्यम से कैसे होली के रंग अपना अद्भुत प्रभाव डालते हैं। होली पर कविताएं पढ़कर आप होली पर्व को भव्यता के साथ मना सकते हैं। होली पर कविताएं पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें।

होली पर कविताएं

होली पर कविताएं पढ़कर आप अपने जीवन में रंगों की एहमियत समझ सकते हैं। Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se ही समाज में समाजिक सद्भावना को बढ़ाया जा सकता है। होली पर कविताएं कुछ इस प्रकार हैं;

कविता 1 

रंगों का त्योहार है होली
खुशियों की बौछार है होली
लाल गुलाबी पीले देखो
रंग सभी रंगीले देखों
पिचकारी भर-भर ले आते
इक दूजे पर सभी चलाते
होली पर अब ऐसा हाल
हर चेहरे पर आज गुलाल
आओ यारो इसी बहाने
दुश्मन को भी चलो मनाने
-गुलशन मदान

Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se

कविता 2 

केशर की, कलि की पिचकारी
पात-पात की गात सँवारी 
राग-पराग-कपोल किए हैं
लाल-गुलाल अमोल लिए हैं
तरू-तरू के तन खोल दिए हैं
आरती जोत-उदोत उतारी
गन्ध-पवन की धूप धवारी 
-केशर की कलि की पिचकारी / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

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कविता 3 

नज़ीर अकबराबादी
हुआ जो आके निशाँ आश्कार होली का
बुतों के ज़र्द पैराहन में इत्र चम्पा जब महका
बजा लो तब्लो तरब इस्तमाल होली का
होली पिचकारी
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
होली की बहार
जब खेली होली नंद ललन
क़ातिल जो मेरा ओढ़े इक सुर्ख़ शाल आया
फिर आन के इश्रत का मचा ढंग ज़मी पर
मियां तू हमसे न रख कुछ गुबार होली में
जुदा न हमसे हो ऐ ख़ुश जमाल होली में
मिलने का तेरे रखते हैं हम ध्यान इधर देख
आ झमके ऐशो-तरब क्या क्या, जब हुश्न दिखाया होली ने
आलम में फिर आई तरब उनवान से होली
होली की बहार आई फ़रहत की खिलीं कलियां
जब आई होली रंग भरी
होली की रंग फ़िशानी से है रंग यह कुछ पैराहन का
सनम तू हमसे न हो बदगुमान होली में
होली हुई नुमायां सौ फ़रहतें सभलियां
जो ज़र्द जोड़े से ऐ यार! तू खेले होली
उनकी होली तो है निराली जो हैं मांग भरी

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कविता 4 

देखो-देखो होली है आई
चुन्नू-मुन्नू के चेहरे पर खुशियां हैं आई
मौसम ने ली है अंगड़ाई।
शीत ऋतु की हो रही है बिदाई
ग्रीष्म ऋतु की आहट है आई
सूरज की किरणों ने उष्णता है दिखलाई
देखो-देखो होली है आई।
बच्चों ने होली की योजना खूब है बनाई
रंगबिरंगी पिचकारियां बाबा से है मंगवाई
रंगों और गुलाल की सूची है रखवाई
जिसकी काका ने अनुमति है नहीं दिलवाई।
दादाजी ने प्राकृतिक रंगों की बात है समझाई
जिस पर सभी बच्चों ने सहमति है जतलाई
बच्चों ने खूब मिठाइयां खाकर शहर में खूब धूम है मचाई
देखो-देखो होली है आई।
होली ने भक्त प्रहलाद की स्मृति है करवाई
बच्चों और बड़ों ने कचरे और अवगुणों की होली है जलाई
होली ने कर दी है अनबन की सफाई
जिसने दी है प्रेम की जड़ों को गहराई।
बच्चों! अब है परीक्षा की घड़ी आई
तल्लीनता से करो पढ़ाई वरना सहनी पड़ेगी पिटाई
अथक परिश्रम, पुनरावृत्ति देगी सफलता
अपार जन-जन की मिलेगी बधाई
होगा प्रतीत ऐसा होली-सी खुशियां हैं फिर लौट आई
देखो-देखो होली है आई।
श्रीमती ममता असाटी
साभार – देवपुत्र

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कविता 5 

पिचकारी रे पिचकारी रे
कितनी प्यारी पिचकारी।
छुपकर रहती रोजाना,
होली पर आ जाती है,
रंग-बिरंगे रंगों को इक-दूजे पर बरसाती है।
कोई हल्की, कोई भारी,
कितनी प्यारी पिचकारी।
होता रूप अजब अनूठा,
कोई पतली, कोई छोटी,
दुबली दिखती, गोल-मटोल,
कोई रहती मोटी-मोटी।
देखो सुन्दर लगती सारी,
कितनी प्यारी पिचकारी।
होली का त्योहार तो भैया,
इसके बिना रहे अधूरा,
नहीं छोड़े दूजों पर जब तक,
मजा नहीं आता है पूरा।
करती रंगों की तैयारी
कितनी प्यारी पिचकारी।

– सुमित शर्मा

कविता 6 

बड़े प्यार से अम्मा बोली।
खूब मनाओ भैया होली।।
नहीं करेंगे कभी कुसंग।
डालो सभी परस्पर रंग।।
एक वर्ष में होली आई।
जी भर खेलो खाओ मिठाई।।
ध्यान लगाकर सुनो-पढ़ो।
नए-नए सोपान चढ़ो।।
बच्चे शोर मचाए होली।
उछले-कूदें खेलें होली।।
बड़े प्यार से अम्मा बोली।
खूब मनाओ भैया होली।।
निकल पड़ी मद-मस्त ये टोली,
सबकी जुबाँ पे एक ही बोली
फिर से सजेगी रंग की महफिल,
प्यार की धारा बनेगी होली।

कविता 7 

रंगोत्सव पर काव्य की पिचकारी गह हाथ
शब्द-रंग से कीजिये, तर अपना सिर-माथ
फागें, होरी गाइए, भावों से भरपूर
रस की वर्षा में रहें, मौज-मजे में चूर
भंग भवानी इष्ट हों, गुझिया को लें साथ
बांह-चाह में जो मिले उसे मानिए नाथ
लक्षण जो-जैसे वही, कर देंगे कल्याण
दूरी सभी मिटाइये, हों इक तन-मन-प्राण

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आशा है कि इस ब्लॉग में आपको होली पर कविताएं पढ़ने का अवसर मिला होगा। Holi ke rang aur unke adbhut prabhav kavitaon ke madhyam se आप होली को और भी बेहतर ढंग से मना सकते हो। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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