Holi Kab Hai : जानिए होली कब है? वर्ष 2024 में क्या है होलिका दहन का शुभ मुहूर्त और होली के महत्व के बारे में 

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Holi Kab Hai

होली हिन्दू धर्म का मुख्य त्यौहार है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार होली का त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली को रंगों का त्यौहार भी कहते हैं। यह पारम्परिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन किया जाता है। दूसरे दिन लोग आपस में मिलकर होली खेलते हैं जिसे धुलेंडी कहा जाता है। यहाँ होली कब है? (Holi Kab Hai) 2024 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है? और इसके महत्व के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।  

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 2024 (Holi Kab Hai) 

  • होलिका दहन 2024 का दिन एवं तिथि : 24 मार्च 2024, रविवार 
  • होलिका दहन का शुभ मुहूर्त : 24 मार्च 2024 रात्रि  11 : 13 बजे से लेकर 25 मार्च 2024 मध्य रात्रि 12 : 32 बजे तक 

रंगों वाली होली कब है? (Holi Kab Hai)

रंगों वाली होली जिसे धुलेंडी या दुलहंडी भी कहा जाता है, 25 मार्च 2024 के दिन मनाई जाएगी। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाते हैं और गले मिलकर एक दूसरे को होली की शुभकामनाएं भी देते हैं। इस दिन घरों में गुजिया और अन्य स्वादिष्ट पकवान भी बनाए जाते हैं।

होली पूजा का महत्व (Holi Kab Hai) 

ऐसी मान्यता है कि होलिका की पूजा करने से घर में सुख, शान्ति और समृद्धि आती है। होली का एक तात्पर्य यह भी है कि इस दिन लोग अपने पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करते हैं। लोग अपने पुराने वस्त्रों को होलिका में जला देते हैं। ऐसा करने से माना जाता है कि मनुष्य दरिद्रता का त्याग करके नई शुरुआत करता है। इसी कारण से होली के दहन को सुख और समृद्धि से जोड़कर देखा जाता है। 

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होली से जुड़ी पौराणिक कथा (Holi Kab Hai) 

होली से जुड़ी पौराणिक कथा यह है कि स्वयं को भगवान मानने वाला राक्षस हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से घृणा करता था। इसके पीछे का कारण यह है कि उसका पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। हिरण्यकश्यप को अपने पुत्र की यह बात बिलकुल पसंद नहीं थी। उसने कई बार अपने पुत्र से ऐसा करने से मना किया। लेकिन वह नहीं माना। हिरण्यकश्यप की एक बहन थी होलिका। उसे यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को जलाकर मारने की योजना बनाई। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को गोदी में लेकर आग की चिता में बैठा जाए। होलिका ने अपने भाई के कहने पर ऐसा ही किया। किन्तु भगवान विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा की और होलिका अग्नि में जलकर मर गई और भगवान के भक्त हिरण्यकश्यप पर आंच तक नहीं आई। इसी बात की याद की में होली पर होलिका दहन किया जाता है। यह बुराई पर सच्चाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है जिसे धुलैंडी या दुलहंडी भी कहा जाता है। 

होलिका पूजा के लिए विधि (Holi Kab Hai) 

यहाँ होलिका पूजा के लिए विधि बताई जा रही है : 

  • सबसे पहले होलिका पूजन के लिए पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके बैठें। 
  • गोबर की होलिका बनाएं। 
  • एक थाल में रोली, कच्चा सूत, फूल,साबुत हल्दी, बताशे, फल और एक लोटे में जल भरकर रखें।  
  • नरसिंह भगवान को याद करते हुए रोली, चावल, मिठाई, फूल आदि उन्हें चढ़ाएं।  
  • नरसिंह भगवान का नाम जपते हुए पांच दाने अनाज के चढ़ाएं। 
  • अंत में दोनों हाथ जोड़कर अक्षत, हल्दी और पुष्प अर्पित करें।  
  • एक कच्चा सूत लेकर होलिका के चारों तरफ परिक्रमा लगाएं। 
  • आखिर में गुलाल डालें और जल अर्पित करें।  

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