अमीर खुसरो को खड़ी बोली हिंदी का आदि कवि माना जाता है। उन्होंने 13वीं-14वीं शताब्दी में खड़ी बोली का सूत्रपात ‘हिंदवी’ के रूप में किया था। वे आदिकालीन साहित्य के प्रसिद्ध सूफ़ी संत, संगीतकार, इतिहासकार, भाषाविद् और योद्धा थे। उन्हें ‘हिंदी की तूती’ के नाम से भी जाना जाता है। वे सूफ़ी संत हजरत निज़ामुद्दीन औलिया के आध्यात्मिक शिष्य भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं में अध्यात्म, प्रेम, गाथाओं और इतिहास को मुख्य विषय बनाया है। वर्तमान में उनकी लगभग 22 रचनाएं उपलब्ध मानी जाती हैं। क्या आप जानते हैं कि फारसी से हिंदी का पहला शब्दकोश ‘खालिकबारी’ या ‘निसाबे ज़रीफ़ी’ भी उन्हीं की रचना मानी जाती है? उल्लेखनीय है कि उनकी कई रचनाएं विद्यालयों के साथ-साथ बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रमों में भी विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं। इस लेख में अमीर खुसरो का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| मूल नाम | अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद |
| उपनाम | अमीर खुसरो |
| जन्म | 1253 ई. (विद्वानों के अनुसार) |
| जन्म स्थान | एटा जिला, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | अमीर सैफ़ुद्दीन महमूद |
| माता का नाम | दौलत नाज़ या सय्यदा मुबारक बेगम |
| गुरु | हजरत निजामुद्दीन औलिया |
| आश्रयदाता | गुलाम वंश के शासक ‘कैकुबाद’ और ‘जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी’ |
| साहित्यकाल | आदिकाल |
| विधाएँ | पहेलियाँ, दो सूखने, निसबतें, ढकोसले, रुबाइयाँ, दोहे, हिंदवी गीत व गजलें आदि। |
| भाषा | खड़ी बोली हिंदी |
| निधन | 1325 ई. (विद्वानों के अनुसार) |
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उत्तर प्रदेश के एटा जिले में हुआ था जन्म
साहित्य के विद्वानों के अनुसार खड़ी बोली हिंदी के आदि कवि अमीर खुसरो का जन्म लगभग 1253 से 1255 ईस्वी के मध्य माना जाता है। उनका मूल नाम ‘अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद’ था, किंतु वे ‘अमीर खुसरो’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। कहा जाता है कि उनके पिता, ‘अमीर सैफ़ुद्दीन महमूद’, तुर्किस्तान के लाचीन कबीले के सरदार थे। वे चंगेज़ ख़ान के समय मंगोल आक्रमणों से त्रस्त होकर बल्ख और हज़ारा होते हुए भारत आए और उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले में स्थित गंगा नदी के किनारे ‘पटियाली’ नामक गांव में बस गए। उस समय दिल्ली की गद्दी पर कुतुबुद्दीन ऐबक के उत्तराधिकारी और गुलाम वंश के सुलतान ‘शम्सुद्दीन इल्तुतमिश’ का शासन था।
अमीर खुसरो की शिक्षा
जब अमीर खुसरो केवल नौ वर्ष के थे, तभी उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनके नाना ‘अमीर एमादुल्मुल्क रावत अर्ज़’ के संरक्षण में हुआ। वहीं उन्होंने तीरंदाज़ी, घुड़सवारी और सैन्य प्रशिक्षण के साथ-साथ फारसी, अरबी, तुर्की, संस्कृत, संगीत, महाभारत, कुरआन शरीफ़, हदीस आदि का गहन अध्ययन किया।
बताया जाता है कि उन्होंने बीस वर्ष की आयु में अपना पहला दीवान (काव्य-संग्रह) ‘तोहफतुस- सिगर’ अर्थात् ‘जवानी का तोहफ़ा’ की रचना की थी। वहीं फारसी पद्य और गद्य में खड़ी बोली हिंदी के मुहावरों का प्रथम प्रयोग भी उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है।
अमीर खुसरो के गुरु
अमीर खुसरो ने स्वयं अपनी कई रचनाओं में अपने गुरुओं या प्रेरणास्रोत कवियों का उल्लेख किया है। ग़ज़ल के क्षेत्र में उन्होंने ‘शेख़ सादी शीराज़ी’, सूफ़ी और नीति-काव्य के क्षेत्र में ‘खाक़ानी’ और ‘सनाई’, मसनवी में ‘निज़ामी गंजवी’ तथा क़सीदे के क्षेत्र में ‘कमाल इस्माईल’ का उल्लेख किया है।
अमीर खुसरो ने अपने दीवान ‘गुर्रतुल कमाल’ में सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया है। वर्ष 1325 ईस्वी में गुरु निज़ामुद्दीन औलिया के निधन के समय अमीर खुसरो उनकी दरगाह पर काले वस्त्र पहनकर शोकमग्न दशा में रहते थे और उन्होंने अपनी समस्त संपत्ति ग़रीबों व यतीमों में बांट दी थी।
जंग में लिया भाग
माना होता है कि 1273 ई. में अपने नाना अमीर इमादुल्मुल्क रावत अर्ज़ के निधन के बाद, अमीर खुसरो आजीविका के लिए ग़यासुद्दीन बलबन के भतीजे मलिक छज्जू के पास गए, जिसने उन्हें अपना सहयोगी बना लिया। यहीं पर उनकी मुलाकात बलबन के बड़े पुत्र बुग़रा ख़ाँ से हुई। खुसरो की बुद्धिमत्ता से प्रभावित होकर बुग़रा ख़ाँ ने उन्हें पटियाली के दरबार में स्थान दिया। किंतु जब बुग़रा ख़ाँ बंगाल पर आक्रमण के लिए रवाना हुए, तो खुसरो ने भी फ़ौज में भाग लिया और युद्ध को निकट से देखा, जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी कई रचनाओं में किया है।
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जब मिली ‘अमीर’ की पदवी
गुलाम वंश के शासक कैकूबाद के बाद, जब खिलजी वंश के जलालुद्दीन फिरोजशाह खिलजी दिल्ली के बादशाह बने, तब उन्होंने खुसरो को ‘अमीर’ की पदवी से सम्मानित किया। इसके बाद जब 1316 ई. में सुल्तान के छोटे बेटे कुतुबुद्दीन मुबारक शाह ने धोखे से दिल्ली की गद्दी हासिल की, तब भी खुसरो का दरबारी शायर का दर्जा कायम रहा।
1325 ई. में हुआ निधन
1321 ई. में जब गयासुद्दीन तुगलक दिल्ली के शासक बने, तो उन्होंने अवध-बंगाल की फतह के लिए सेना के साथ अमीर खुसरो को भी भेजा। इसी बीच अमीर खुसरो के गुरु निजामुद्दीन औलिया बीमार पड़ गए। किंतु 1325 ई. में जब वह बंगाल से दिल्ली लौटे, तो उन्हें अपने गुरु के देहावसान की सूचना मिली। इसके बाद उनके जीवन के अंतिम दिन अपने गुरु की दरगाह में ही बीते और छह महीने के भीतर उन्होंने भी अपनी आंखें सदा के लिए मूंद लीं।
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अमीर खुसरो की प्रमुख रचनाएँ
अमीर खुसरो अपनी पहेलियों, दोहे, निसबतों, ढकोसलों, रुबाइयों, हिंदवी गीतों और गज़लों आदि के लिए साहित्य जगत में विख्यात हैं। वहीं, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी के अनुसार उनकी निन्यानवे पुस्तकें मानी जाती हैं, जिनमें से केवल बाईस ही उपलब्ध हैं। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-
रचनाएँ
- मसनवी लैला मजनू
- मसनवी आइना-ए-सिकंदरी
- मसनवी अस्प्नामा
- इश्किया
- मसनवी नुह सिपहर
- मसनवी तुग़लक़नामा
- तारीखे अलाई
- ख्यालाते खुसरु
- एजाजे खुसरवी
- मुकाल
- किस्सा चार दरवेश
हिंदवी रचनाएँ
- खालिकबारी
- दीवान-ए-हिंदवी
- तराना-ए-हिंदवी
- हालात-ए-कन्हैया
- नजराना-ए-हिंदवी
- जवाहर-ए-खुसरवी
FAQs
माना जाता है कि अमीर खुसरो का जन्म 1253 ई. से 1255 ई. के आसपास उत्तर प्रदेश के एटा जिले में हुआ था।
उनके पिता का नाम ‘अमीर सैफ़ुद्दीन महमूद’ था।
अमीर खुसरो के गुरु का नाम ‘हजरत निजामुद्दीन औलिया’ था।
वे खड़ी बोली हिंदी के आदि कवि माने जाते हैं।
1325 ई. में उनका निधन हुआ था।
आशा है कि आपको अमीर खुसरो का जीवन परिचय और कृतित्व पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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