Dharm Ki Swatantrata Ka Adhikar: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार क्या है? जानें आम नागरिक के लिए इसका महत्व

1 minute read
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 

Dharm Ki Swatantrata Ka Adhikar: भारत विविधताओं से भरा एक ऐसा देश है, जहां की गलियों में अनेकानेक मत-मजहब और जातियों के लोग परस्पर समन्वय के साथ रहते हैं। यही कारण है कि यहाँ के लोगों के दिलों में एक दूसरे के धर्म के प्रति समर्पण देखने को मिलता है। क्या आपने सोचा है कि अपने धर्मों का पालन करने की आज़ादी हमें कहाँ से मिलती है? वह कौन सा अधिकार है जो हमें अपनी पसंद का धर्म अपनाने, उसका पालन करने और उसे शांतिपूर्वक व्यक्त करने की ताकत देता है। यदि नहीं तो यह लेख आपके लिए मददगार साबित होगा क्योंकि यहाँ हम धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Dharm Ki Swatantrata Ka Adhikar) से जुड़े सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से जानेंगे। 

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार | Dharm Ki Swatantrata Ka Adhikar

भारतीय संविधान ने भारत में रह रहे सभी नागरिकों को बहुत से मौलिक अधिकार दिए हैं, जैसे: समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार, और संवैधानिक उपचारों का अधिकार। इनमें से एक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भी है। भारत में यह अधिकार सभी को समान रूप से दिया गया है। यह अधिकार मौलिक अधिकारों में से चौथा है। इसके बारे में भारतीय संविधान के भाग III में अनुच्छेद 25 से 28 में बताया गया है। भारतीय संविधान, भाग III के अनुच्छेद 25 से 28 कुछ इस प्रकार हैं:

अनुच्छेद विषय विश्लेषण
अनुच्छेद 25अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रतायह अनुच्छेद भारत के सभी व्यक्तियों को अपने अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान अधिकार प्रदान करता है। हालांकि, यह अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन है। इसके अतिरिक्त, यह अनुच्छेद राज्य को सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदू धार्मिक संस्थानों को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने के लिए कानून बनाने से नहीं रोकता है। सिखों द्वारा कृपाण धारण करना और ले जाना इस अनुच्छेद के तहत धर्म के मानने का हिस्सा माना जाता है।
अनुच्छेद 26धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रतायह अनुच्छेद प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी भाग को निम्नलिखित अधिकार प्रदान करता है, जो सार्वजनिक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्थ्य के अधीन हैं: (क) धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और रखरखाव का अधिकार (ख) अपने धार्मिक मामलों का स्वयं प्रबंध करने का अधिकार(ग) जंगम और स्थावर संपत्ति अर्जित करने और स्वामित्व का अधिकारघ) ऐसी संपत्ति का कानून के अनुसार प्रशासन करने का अधिकार।
अनुच्छेद 27किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रतायह अनुच्छेद किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या रखरखाव के लिए करों का भुगतान करने के लिए मजबूर करने से रोकता है। इसका अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म को बढ़ावा देने या बनाए रखने के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग नहीं कर सकता है। हालांकि, राज्य सभी धर्मों के लिए सामान्य कल्याणकारी गतिविधियों पर खर्च कर सकता है।
अनुच्छेद 28कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रतायह अनुच्छेद विभिन्न प्रकार की शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता से संबंधित है। (क) राज्य द्वारा पूरी तरह से पोषित किसी भी शिक्षा संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी। (ख) राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त या राज्य निधि से सहायता प्राप्त शिक्षा संस्थानों में धार्मिक शिक्षा प्रदान की जा सकती है, लेकिन किसी भी व्यक्ति को ऐसी शिक्षा या उपासना में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जाएगा यदि वह या उसके अभिभावक ऐसा नहीं चाहते हैं।

धार्मिक स्वतंत्रता की आवश्यकता

भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न धर्मों को मानने वाले और उनका पालन करने वाले लोग रहते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के 2021 के आँकड़ों के अनुसार, लगभग 46 लाख से ज़्यादा लोग हिंदू, जैन, इस्लाम, बौद्ध, सिख और ईसाई धर्म के अलावा दूसरे धर्मों को मानते हैं।

इतनी अलग-अलग तरह की आबादी के साथ, जहाँ लोग विभिन्न धर्मों और विश्वासों को मानते हैं, यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि हर धर्म की आस्था के अधिकारों की रक्षा की जाए और उन्हें सुरक्षित रखा जाए। धार्मिक स्वतंत्रता इसलिए भी ज़रूरी है ताकि इस विविधतापूर्ण देश में हर किसी को अपनी आस्था के अनुसार जीने का हक मिले और किसी के साथ कोई भेदभाव न हो।

धार्मिक स्वतंत्रता पर सीमाएं

यहाँ दिए गए निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से जानें क्या हैं धार्मिक स्वतंत्रता पर सीमाएं? जिनके माध्यम से आप इस विषय के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर पाएंगे। धार्मिक स्वतंत्रता पर सीमाएं इस प्रकार दी गई हैं –

  • भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता को नैतिकता, सार्वजनिक व्यवस्था और स्वास्थ्य के अधीन रखता है।
  • भारत में धर्म बदलने की स्वतंत्रता है, लेकिन यह स्वेच्छा से होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति धोखे, लालच या दबाव में धर्म परिवर्तन कराता है, तो यह संविधान और कानून दोनों के खिलाफ है।
  • धार्मिक परंपराएं अगर किसी की गरिमा, समानता या संविधान में निहित मूल्यों के खिलाफ जाती हैं, तो उन्हें सीमित किया जा सकता है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता का यह मतलब नहीं कि कोई व्यक्ति दूसरों के धर्म का अपमान करे। आईपीसी की धारा 295A के तहत धार्मिक भावनाओं को जानबूझकर ठेस पहुँचाना अपराध है।

धार्मिक स्वतंत्रता का महत्व

धार्मिक स्वतंत्रता के महत्व को निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जो इस प्रकार हैं –

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से अनुच्छेद 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया जाता है।
  • यह समाज में धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देती है। इसके साथ ही धार्मिक स्वतंत्रता मानवाधिकारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता के कारण ही अलग-अलग धर्मों के लोग साथ मिलकर रह सकते हैं, जिससे देश की एकता और अखंडता मजबूत होती है।
  • धार्मिक स्वतंत्रता पूर्ण रूप से निरंकुश नहीं है। आसान भाषा में समझें तो यदि किसी धार्मिक क्रिया से सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता या स्वास्थ्य को हानि होती है, तो सरकार उस पर नियंत्रण कर सकती है। इससे भारत की अखंडता को बरक़रार रखा जा सकता है।

धर्मनिरपेक्षता किसे कहते हैं?

धार्मिक स्वतंत्रता की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि हर किसी को हक है कि वह जिस भगवान या धर्म को मानना चाहे, मान सके और उसकी पूजा कर सके। कोई उसे मजबूर नहीं कर सकता कि वह कुछ और माने। यह ज़रूरी है ताकि अलग-अलग धर्मों के लोग शांति से एक साथ रह सकें और एक-दूसरे का सम्मान कर सकें। अगर सबको अपनी मर्जी का धर्म मानने की आजादी न हो, तो लड़ाई-झगड़े और राज्य में इमरजेंसी के हालात पैदा हो सकते हैं। 

भारत एक ऐसा देश है जहाँ विभिन्न धर्मों को मानने वाले और उनका पालन करने वाले लोग रहते हैं। वहाँ यह बहुत ज़रूरी हो जाता है कि हर धर्म की आस्था के अधिकारों की रक्षा की जाए और उन्हें सुरक्षित रखा जाए। 1976 में 42वें संविधान संशोधन के द्वारा भारत के संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ा गया। जिसका मतलब है कि इसका कोई सरकारी धर्म नहीं है और यह किसी विशेष धर्म का समर्थन नहीं करता है। 

सर्वोच्च न्यायालय ने अहमदाबाद सेंट जेवियर्स कॉलेज बनाम गुजरात राज्य (1975) के मामले में कहा कि धर्मनिरपेक्षता का मतलब न तो भगवान के खिलाफ होना है और न ही भगवान के पक्ष में। इसका सीधा मतलब है कि सरकार के कामकाज में धर्म को शामिल नहीं किया जाएगा और धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। भारतीय लोकतंत्र में इस विचार को बहुत महत्व दिया जाता है।

 FAQs 

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार क्या है?

धार्मिक स्वतंत्रता सभी नागरिकों को अंतःकरण की स्वतंत्रता, धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता अधिकार देता है।

धार्मिक स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?

धार्मिक स्वतंत्रता का अर्थ है किसी व्यक्ति या समुदाय को अपनी पसंद का धर्म मानने, उस पर आचरण करने, और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता होना।

मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 27 क्या है?

मौलिक अधिकारों का अनुच्छेद 27 में लिखा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कोई कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 27 क्या है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 27 में किसी विशेष धर्म के प्रचार के लिए करों के भुगतान के संबंध में स्वतंत्रता।

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ क्या होता है?

धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है किसी भी समाज में धर्म को सरकारी या राजनीतिक रूप से प्राथमिकता नहीं देना।

अधिनियम 25 से 28 क्या है?

अधिनियम 25 से 28 राज्य किसी भी धर्म के पालन में भेदभाव, संरक्षण या हस्तक्षेप नहीं करेगा।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार किसके अंतर्गत आता है?

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत आता है।

अनुछेद 28 क्या है?

अनुच्छेद 28 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है जो धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।

क्या अनुच्छेद 25-28 में दी गई धर्म की स्वतंत्रता के तहत प्रचार करने की स्वतंत्रता भी इसमें शामिल है?

हाँ, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता के तहत प्रचार करने की स्वतंत्रता भी इसमें शामिल है।

आर्टिकल 28(1) का क्या उद्देश्य है?

आर्टिकल 28(1) का उद्देश्य भारत शिक्षा के कुछ संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में भाग लेने की स्वतंत्रता से संबंधित है।

संबंधित आर्टिकल्स

आशा करते हैं कि आपको धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Dharm Ki Swatantrata Ka Adhikar) से सम्बंधित यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा। UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*