महाकवि सूरदास का जीवन परिचय, कृष्णभक्ति शाखा, रचनाएँ एवं भाषा शैली

1 minute read
Surdas Ka Jivan Parichay

हिंदी साहित्य में भक्तिकाल की सगुण भक्ति काव्यधारा में महाकवि सूरदास को कृष्ण भक्ति काव्य के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। सूरदास ने कृष्ण को आधार बनाकर उच्च कोटि के साहित्य का सृजन किया है। इसके साथ ही वे ‘अष्टछाप’ के सबसे लोकप्रिय कवियों में से एक माने जाते हैं, जिन्हें “अष्टछाप के जहाज” की उपाधि भी दी गई है। सूरदास ‘वात्सल्य’ और ‘प्रेम’ के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। वहीं सूरदास की तीन प्रामाणिक रचनाओं का जिक्र मिलता है। इनमें ‘सूरसारावली’, ‘साहित्य लहरी’ व ‘सूरसागर’ सम्मिलित हैं। क्या आप जानते हैं कि ‘सूरसागर’ महाकवि सूरदास की अक्षय कीर्ति का आधार है। 

बता दें कि महाकवि सूरदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाएँ विद्यालयों के साथ-साथ बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रमों में भी पढ़ाई जाती हैं। वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। इसके साथ ही UGC-NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी सूरदास का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है।

इस लेख में महाकवि सूरदास का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं की जानकारी दी गई है।

नाम सूरदास
जन्म 1478 ई.
जन्म स्थान मान्यता के अनुसार ‘रुनकता’ या ‘सीही’ 
गुरु महाप्रभु वल्लभाचार्य
साहित्यिक रचनाएँ ‘सूरसारावली’, ‘साहित्य लहरी’ व ‘सूरसागर’ 
भाषा ब्रजभाषा 
मृत्यु 1538 ई.

सूरदास का जन्म

कृष्ण भक्ति शाखा के श्रेष्ठ कवि सूरदास ने भी अन्य प्राचीन और मध्यकालीन कवियों की तरह अपने बारे में न के बराबर लिखा है। यही कारण है कि उनकी जन्मतिथि व समय के बारे में विद्वानों के बीच मतभेद की स्थिति रही है। किंतु हिंदी साहित्य के कई विद्वानों द्वारा उनका जन्म 1478 ई. माना जाता है। वहीं एक मान्यता के अनुसार उनका जन्म स्थान मथुरा के निकट रुनकता क्षेत्र में हुआ था। जबकि दूसरी मान्यता के अनुसार उनका जन्म दिल्ली के निकट सीही नामक स्थान को माना जाता है। 

पुष्टिमार्ग में हुए दीक्षित 

माना जाता है कि महाकवि सूरदास मथुरा और वृंदावन के बीच गऊघाट पर निवास करते थे। वहीं श्रीनाथ जी के मंदिर में भक्ति भाव से विनयपद गाते थे। ‘महाप्रभु वल्लभाचार्य’ ने उन्हें पुष्टि मार्ग में दीक्षित किया और कृष्ण लीला के पद गाने की प्रेरणा दी। सूरदास जन्म से अंधे थे किंतु उन्होंने कृष्ण लीला पर ब्रजभाषा में कई रचनाएँ की हैं क्योंकि यह उनकी मातृ भाषा होने के साथ-साथ उनके आराध्य की लोक भाषा भी हैं। वहीं सूरदास ने ब्रजभाषा को अपनी लेखनी से समृद्ध किया और उसे काव्य के माध्यम से निखारने का कार्य किया। 

‘अष्टछाप’ के कवि 

सूरदास ‘महाप्रभु वल्लभाचार्य’ के प्रिय शिष्य थे। वल्लभाचार्य के पुत्र ‘आचार्य विट्ठलनाथ’ ने अपने पिता की मृत्यु के बाद उनके चार शिष्यों जिनमें ‘सूरदास’, ‘परमानंददास’, ‘कुंभनदास’ और ‘कृष्णदास’ व अपने चार शिष्यों ‘नंददास’, ‘चतुर्भुजदास’, ‘गोविंदस्वामी’ और ‘छीतस्वामी’ को मिलाकर ‘अष्टछाप’ बनाया था। बता दें कि ‘अष्टछाप’ कृष्ण काव्यधारा के आठ कवियों का समूह है। वहीं इसका मूल संबंध ‘महाप्रभु वल्लभाचार्य’ द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय से ही है।

कृष्ण भक्ति काव्य के प्रवर्तक

सूरदास भक्तिकाल युग में कृष्ण काव्य धारा के श्रेष्ठ कवि थे। उन्होंने अपनी अनुपम रचना सूरसागर में भगवान कृष्ण के बाल-रूप, सखा रूप व प्रेमी रूप का अत्यंत सूक्ष्म और सुंदर वर्णन किया है। इसलिए ही उन्हें स्वयं ‘महाप्रभु वल्लभाचार्य’ ने  ‘पुष्टिमार्ग का जहाज़’ कहा था। 

महाकवि सूरदास की रचनाएँ

यहाँ कृष्णभक्ति काव्यधारा के महान कवि सूरदास की प्रमुख रचनाओं के नाम बताए गए हैं:-

  • सूरसारावली 
  • साहित्य लहरी 
  • सूरसागर

सूरदास की भाषा शैली

सूरदास की भाषा ‘ब्रजभाषा’ है। यह उनकी मातृभाषा होने के साथ-साथ उनके आराध्य की क्रीड़ाभूमि ब्रज प्रदेश की लोकभाषा भी है। साधारण बोलचाल की भाषा को परिष्कृत कर उन्होंने उसे साहित्यिक रूप प्रदान किया है। उनके काव्य में ब्रजभाषा का स्वाभाविक, सजीव और भावानुकूल प्रयोग है। उन्होंने ब्रजभाषा को अपनी लेखनी से समृद्ध किया है। वहीं सूर का अलंकार विधान उत्कृष्ट है। उसमें शब्द चित्र उपस्थित करने एवं प्रसंगों की वास्तविक अनुभूति कराने की पूर्ण क्षमता है। सूरदास ने अपनी काव्य-कृतियों में अनेक अलंकारों के साथ उपमा, उत्प्रेक्षा और रूपक का कुशल प्रयोग किया हैं। 

पारसौली में हुआ देहावसान

सूरदास ने अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण के जीवन के सभी रूपों को आधार बनाकर अनुपम काव्य की रचना की थीं। इसके साथ ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में भजन कीर्तन करते हुए बिताया था। माना जाता है कि महाकवि सूरदास का पारसौली नामक स्थान पर 1583 ई. में देहावसान हुआ था। 

सूरदास की छवि के साथ एक स्मारक डाक टिकट 
Image Source – Wikimedia Commons

सूरदास के दोहे

कृष्ण काव्य धारा के प्रवर्तक माने जाने वाले महाकवि सूरदास ने अपना संपूर्ण जीवन श्री कृष्ण की भक्ति के लिए समर्पित कर दिया था। वहीं अपने आराध्य श्री कृष्ण के बाल्य काल का वर्णन करते हुए ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह मानों उनके बाल्यकाल का कोना – कोना झांक आए हो। आइए अब सूरदास जी के कुछ प्रसिद्ध दोहे पढ़ते हैं:-

अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल 

अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल।

काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥

महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल।

भरम भरयौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥

तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल।

माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥

कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।

सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥

– सूरदास 

है हरि नाम कौ आधार 

है हरि नाम कौ आधार।

और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥

नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार।

सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥

दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार।

सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥

– सूरदास 

अब कै माधव, मोहिं उधारि 

अब कै माधव, मोहिं उधारि।

मगन हौं भव अम्बुनिधि में, कृपासिन्धु मुरारि॥

नीर अति गंभीर माया, लोभ लहरि तरंग।

लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग॥

मीन इन्द्रिय अतिहि काटति, मोट अघ सिर भार।

पग न इत उत धरन पावत, उरझि मोह सिबार॥

काम क्रोध समेत तृष्ना, पवन अति झकझोर।

नाहिं चितवत देत तियसुत नाम-नौका ओर॥

थक्यौ बीच बेहाल बिह्वल, सुनहु करुनामूल।

स्याम, भुज गहि काढ़ि डारहु, सूर ब्रज के कूल॥

– सूरदास 

FAQs 

सूरदास का जन्म कब हुआ था?

माना जाता है कि महाकवि सूरदास का जन्म 1473 ई. में हुआ था। 

सूरदास के गुरु का क्या नाम था?

सूरदास के गुरु का नाम ‘महाप्रभु वल्लभाचार्य’ था। 

अष्टछाप का श्रेष्ठ कवि किसे माना जाता हैं?

बता दें कि अष्टछाप का श्रेष्ठ कवि सूरदास को माना जाता हैं। 

‘सूरसागर’ के रचनाकार का क्या नाम है?

‘सूरसागर’ महाकवि सूरदास की अनुपम काव्य कृति हैं। 

सूरदास का देहावसान कब हुआ था?

माना जाता है कि महाकवि सूरदास का पारसौली नामक स्थान पर 1583 ई. में देहावसान हुआ था। 

सूरसागर की भाषा क्या है?

सूरसागर, ब्रजभाषा में महाकवि सूरदास द्वारा रचे गए कीर्तनों-पदों का एक सुंदर संकलन है। 

सूरदास की मुख्य भाषा कौन सी थी?

सूरदास की भाषा ब्रजभाषा थी, जो उस समय की लोकप्रिय लोकभाषा थी। 

आशा है कि आपको महाकवि सूरदास का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*